यूपी के वाराणसी में गंगा का जलस्तर उफान के बाद अब ठहर गया है। इस बीच गंगा (Ganga Aarti)के इस रौद्र रूप का प्रभाव,रोज होने वाले पूजा अनुष्ठान पर भी दिखाई दे रहा है। हाल ये है कि,अब वाराणसी में नित्य संध्या होने वाली गंगा आरती…सीढ़ियों के बजाय छत पर हो रही है। बड़ी बात ये है कि,आयोजकों ने आरती में भक्तों की संख्या को भी सीमित कर दिया है। इसके पीछे एक दूसरी वजह भी है। वाराणसी के दशाश्वमेघ घाट पर गंगा सेवा निधि द्वारा विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती की जाती है। इस वक्त छत पर सीमित संसाधनों के बीच,नित्य गंगा आरती को किया जा रहा है। इतना ही नहीं, बाढ़ के वक्त घाटों पर भीड़ इकठ्ठा न हो इसके लिए एक तरफ पर्दा भी लगाया गया है।
दरसअल वाराणसी में गंगा(Ganga Aarti) में उफान के कारण घाटों की कई सीढ़ियां जलमग्न हो गई हैं। इसके कारण घाटों पर भीड़ का दबाव बढ़ गया। इस बीच किसी तरह की अनहोनी न हो और घाटों पर भीड़ इक्कठा न रहे, इसलिए आयोजकों ने आरती को घाटों की सीढ़ियों के बजाए छत पर करना शुरू कर दिया। गंगा सेवा निधि के अध्यक्ष,सुशांत मिश्रा ने बताया कि गंगा के उफान के कारण पांच बार गंगा आरती का स्थान बदला गया था और अब समिति के छत पर आरती हो रही है। इसके अलावा दूसरी वजह ये है कि,दो महीने के सावन में घाटों पर कम जगह होने के कारण किसी तरह की घटना न हो इसको ध्यान में रखते हुए भी आरती का स्थान और स्वरूप को थोड़ा बदला गया है।
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काशी नगरी का इतिहास
काशी नगरी वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित पौराणिक नगरी है। इसे संसार के सबसे पुरानी नगरों में माना जाता है। भारत की यह जगत्प्रसिद्ध प्राचीन नगरी…गंगा(Ganga Aarti) के उत्तर तट पर उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी कोने में वरुणा और असी नदियों के गंगा संगमों के बीच बसी हुई है। इस स्थान पर गंगा ने प्राय: चार मील का दक्षिण से उत्तर की ओर घुमाव लिया है और इसी घुमाव के ऊपर इस नगरी की स्थिति है। इस नगर का प्राचीन ‘वाराणसी’ नाम लोकोच्चारण से ‘बनारस’ हो गया था। जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने शासकीय रूप से पूर्ववत् ‘वाराणसी’ कर दिया है। जिसके राजा राज ऋषि राम कोल नागवंशीय थे। विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ,ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार यह आद्य वैष्णव स्थान है। पहले यह भगवान विष्णु की पुरी थी। जहां श्रीहरि के आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदुसरोवर बन गया और प्रभु यहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। ऐसी एक कथा है कि,जब भगवान शंकर ने क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी का पांचवां सिर काट दिया।
तो वह उनके करतल से चिपक गया। बारह वर्षों तक अनेक तीर्थों में भ्रमण करने पर भी वह सिर उन से अलग नहीं हुआ। किंतु जैसे ही उन्होंने काशी की सीमा में प्रवेश किया, ब्रह्महत्या ने उनका पीछा छोड़ दिया और वह कपाल भी अलग हो गया। जहां यह घटना घटी, वह स्थान कपालमोचन-तीर्थ कहलाया। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास-स्थान बन गया। वाराणसी गंगा आरती (Ganga Aarti)दुनिया में सबसे सुंदर धार्मिक समारोहों में से एक है। यह समारोह एक शंख बजाने के साथ शुरू होता है। माना जाता है कि संख सभी नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करता है। वाराणसी गंगा आरती काशी विश्वनाथ मंदिर के पास, पवित्र दशाश्वमेध घाट पर हर सूर्यास्त के समय सम्पन्न होती है।