द्वारकाधीश मंदिर ( Dwarkadhish Temple )
द्वारकाधीश मंदिर ( Dwarkadhish Temple ) गुजरात राज्य के सौराष्ट्र में पश्चिमी छोर पर गोमती नदी के निकट मौजूद द्वारका नगरी में अवस्थित प्रसिद्ध मंदिरों में से एक हैं। यह मंदिर भगवान कृष्ण ( Bhagwan Krishna ) को समर्पित है क्योंकि द्वारका उनकी कर्मभूमि मानी जाती है। द्वारकाधीश मंदिर को जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह आज से लगभग 2500 वर्ष प्राचीन है। यह तो भी ज्ञात होगा ही कि द्वारका नगरी को सप्तपुरियों ( Sapta Puri ) और चार धाम ( Char Dham ) में प्रमुख स्थान प्राप्त है। जो विश्व की सबसे प्राचीन नगरी और पवित्र तीर्थ के रूप में प्रख्यात है।
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह आज से लगभग 2500 वर्ष प्राचीन है। यह तो भी ज्ञात होगा ही कि द्वारका नगरी को सप्तपुरियों ( Sapta Puri ) और चार धाम ( Char Dham ) में प्रमुख स्थान प्राप्त है। जो विश्व की सबसे प्राचीन नगरी और पवित्र तीर्थ के रूप में प्रख्यात है।
द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण कब हुआ था? ( What is the history of Dwarkadhish Temple? )
द्वारकाधीश मंदिर ( Dwarkadhish Mandir ) के निर्माण से जुड़ी मान्यताएं कहती हैं कि इसका निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पोते वज्रभ द्वारा कराया गया था। इस मंदिर का बाकी विस्तार 15वीं और 16वीं शताब्दी के मध्य में किया गया था। भारतीय पुरातत्व विभाग का कहना है कि द्वारकाधीश मंदिर आज से लगभग 2200-2500 वर्ष प्राचीन है।
इस मंदिर के विस्तार किये जाने में धर्मगुरु शंकराचार्य ने भी अपना योगदान दिया था। यहाँ भीतर अन्य मंदिरों में सुभद्रा, वासुदेव, रुक्मणि, बलराम और रेवती के मंदिर भी शामिल हैं।
इस मंदिर के विस्तार किये जाने में धर्मगुरु शंकराचार्य ने भी अपना योगदान दिया था। यहाँ भीतर अन्य मंदिरों में सुभद्रा, वासुदेव, रुक्मणि, बलराम और रेवती के मंदिर भी शामिल हैं।
द्वारकाधीश मंदिर की वास्तुकला ( Architecture of Dwarkadhish Temple )
द्वारकाधीश मंदिर ( Dwarkadhish Mandir ) का निमार्ण चूना पत्थर से किया गया है जिसे चालुक्य शैली की अद्भुत वास्तुकला में गिना जाता है। पांच मंजिला इस मंदिर में 72 स्तंभ हैं। साथ ही बता दें कि इस मंदिर का शिखर 78.3 मीटर ऊँचा है। मंदिर के ऊपर जो ध्वज है वह सूर्य और चन्द्रमा का प्रतीक माना जाता है। जिसका तात्पर्य है कि जब तक इस संसार में सूर्य और चन्द्रमा रहेंगे तब तक भगवान श्री कृष्ण का अस्तित्व रहेगा।
मंदिर के दो प्रवेश द्वार हैं जिनमें से एक द्वार को जो उत्तर दिशा में है मुख्य प्रवेश द्वार है जिसे मोक्ष द्वार भी कहा जाता है। जबकि दक्षिण दिशा में मौजूद द्वार को स्वर्ग द्वार कहा जाता है।
मंदिर के दो प्रवेश द्वार हैं जिनमें से एक द्वार को जो उत्तर दिशा में है मुख्य प्रवेश द्वार है जिसे मोक्ष द्वार भी कहा जाता है। जबकि दक्षिण दिशा में मौजूद द्वार को स्वर्ग द्वार कहा जाता है।
द्वारकाधीश मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा ( Mythological Story Behind Dwarkadhish Temple )
हिन्दू पौराणिक कथा कहती है कि द्वारका का निर्माण स्वयं भगवान कृष्ण द्वारा भूमि के एक टुकड़े पर किया गया था। वह टुकड़ा श्री कृष्ण को समुद्र से प्राप्त हुआ था। एक बार की बात है ऋषि दुर्वासा श्री कृष्ण और रुक्मणि से मिलने के लिए द्वारका में पधारे। ऋषि दुर्वासा की यह प्रबल इच्छा थी कि वे दोनों उन्हें अपने महल में लेकर जाएँ।
ऋषि दुर्वासा ने श्री कृष्ण और रुक्मणि से अपनी इच्छा व्यक्त की तो दोनों सहमत हो गए और महल में ले जाने लगे। कुछ दूर चलते ही रुक्मणि थक गई और श्री कृष्ण से पानी मांगने लगी। इसके लिए श्री कृष्ण ने एक पुराना छेद खोदा जो गंगा नदी में लाया गया था। इसपर ऋषि दुर्वासा उग्र हो उठे और उन्होंने रुक्मणि को इसी जगह रहने का श्राप दे डाला। आज जिस स्थान पर वे खड़ीं थी उसी स्थान पर द्वारकाधीश मंदिर मौजूद है।
( भगवान श्री कृष्ण की किसी भी पूजा विधि में तुलसी का होना अनिवार्य माना जाता है। तुलसी के बिना उनकी पूजा को अधूरा या फिर न के बराबर माना जाता है। इसी तरह भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिए Tulsi Mala से जाप करना बहुत जरुरी है। यदि आप Original Tulsi Japa Mala खरदीने के इच्छुक हैं तो इसे आज ही Online Order करें। )
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