संकटमोचक ( Sankat Mochan ) कहे जाने वाले हनुमान जी ( Hanuman Ji ) की माँ अंजना ( Maa Anjana ) अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा हुआ करती थीं लेकिन अपनी एक भूल के चलते उन्हें ऋषि के श्राप को भोगना पड़ा था। इसी श्राप के चलते उन्होंने विरज नामक वानर राजा के घर में एक वानरी के रूप में जन्म लिया था। आइये जानते है एक अप्सरा की वानरी बनने की कहानी के बारे में :
अंजनी माता की कहानी ( Anjani Mata ki Kahani )
एक बार की बात है देवराज इंद्र ( Devraj Indra ) की सभा लगी हुई थी जिसमें अपने क्रोध के लिए विशेष रूप से लोकप्रिय ऋषि दुर्वासा ( Rishi Durvasa ) भाग ले रहे थे। सभा आरंभ हुई और विचार-विमर्श की प्रक्रिया भी शुरू हुई। इसी दौरान एक पुंजिकस्थला ( Punjikasthala ) नामक अप्सरा बार-बार सभा का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के प्रयास कर रही थी। अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए वह इधर-उधर जा रही थी।
ऋषि दुर्वासा पुंजिकस्थला के इन सभी कृत्यों पर गौर कर रहे थे। जब सभा में ज्यादा ही व्यवधान पड़ने लगा तो उन्होंने उस अप्सरा को श्राप दे डाला। ऋषि दुर्वासा ने श्राप देते हुए कहा था कि तू कैसी अप्सरा है जो एक वानर की भांति इधर-उधर भटक रही है और सभा में व्यवधान डाल रही है। अपनी इस आदत के चलते तू एक वानरी बनेगी।
ऋषि दुर्वासा के मुख से यह वचन सुन अप्सरा भयभीत हो गई। उसने इस तरह के श्राप की कल्पना भी नहीं की थी जिस कारण उसने ऋषि दुर्वासा से माफ़ी मांगी। पुंजिकस्थला ने हाथ जोड़कर अनुनय-विनय किया, खूब प्रार्थना की। पुंजिकस्थला ने कहा ‘मैं अपनी मूढ़ता के कारण इस तरह की गलती दोहराती रही कृपया मुझे क्षमा कीजिये! और बताइये कि इस श्राप से मुझे किस प्रकार मुक्ति मिल सकती है।
अप्सरा पुंजिकस्थला की क्षमा प्रार्थना सुन ऋषि दुर्वासा का क्रोध ठंडा हो गया। इसके बाद उन्होंने कहा कि अपने चंचल स्वभाव के चलते तू वानर जाति के राजा विरज की कन्या के रूप धरती पर जन्म लेगी। तू! एक देवसभा की अप्सरा है इसलिए तेरे गर्भ से बड़े ही बलशाली, यशस्वी और एक बहुत बड़े प्रभुभक्त बालक जन्म लेगा। वह बालक युगों-युगों तक अमर रहेगा। ऋषि दुर्वासा की यह बात सुनकर पुंजिकस्थला को कुछ संतुष्टि मिली।
हनुमान जी की माता अंजना के वानर रुपी जन्म लेने के पीछे एक और कथा प्रचलित हैं। इस कथा के अनुसार अंजना एक अप्सरा थीं जो बालपन में बहुत चंचल स्वाभाव की थी। अपनी इस चंचलता के कारण उन्होंने वन में तप कर रहे एक ऋषि के साथ दुर्व्यवहार किया था। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें तपस्वी ऋषि के श्राप का सामना करना पड़ा।
जब ऋषि एक वानर रूप में भेष बदलकर भगवान् की तपस्या में लीन थे उस समय पुंजिकस्थला ने तपस्या कर रहे ऋषि को वानर समझा और हंसी-ठिठोली करने लगी। चंचलपन के कारण क्रीड़ा के दौरान उन्होंने ऋषि पर फल फेंक दिया। तपस्या में व्यवधान के कारण ऋषि की समाधि टूट गई।
यह देख ऋषि को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अप्सरा को श्राप देते हुए कहा कि जब भी तुम्हें किसी से प्रेम होगा तुम उसी समय वानरी बन जाओगी। इसी श्राप का फल है कि जब वानर राजा विरज की पुत्री को वानरराज केसरी से प्रेम हुआ तो वे अपने आप वानरी बन गई।
हनुमान जी को भी मिला था अपनी शक्तियां भूल जाने का श्राप ( Hanuman ji ko mila tha Shrap )
हनुमान जी अपने बालपन में बड़े ही नटखट स्वाभाव के थे, इसी स्वभाव की वजह से हनुमान जी को अपनी शक्तियां भूल जाने का श्राप मिला था। इस श्राप से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय था कि जैसे ही हनुमान जी को उनकी शक्तियों का एहसास दिलाया जाएगा उन्हें अपनी सारी शक्तियां स्मरण हो आएंगी। रामायण में इस संबंध में एक प्रसंग मिलता है जिसमें सागरपार जब हनुमान जी माता सीता को लेकर जा रहे थे तब जामवंत ने उन्हें शक्तियां याद दिलाई थीं।
( संकटमोचक हनुमान भक्तों के सारे दुःख हर लेते हैं फिर चाहे वह गंभीर रोग हो या कोई बुरा साया। हनुमान जी के भक्तों का कोई भी बुरी शक्ति बाल भी बांका नहीं कर सकती है। यदि आप लम्बे समय से किसी बड़ी परेशानी से जूझ रहे हैं तो आपको Original Panchmukhi Hanuman Kavach धारण करना चाहिए। इसमें शामिल अलौकिक शक्तियां आपको हर बुरी परिस्थिति से लड़ने में सहायता करेगी और सरंक्षण भी प्रदान करेगी। )