Maha Shivratri 2022 : जाने अनजाने में ऐसे बना एक शिकारी भोलेनाथ का परमभक्त

महाशिवरात्रि का महत्व ( Mahashivratri Significance )


शैव पंथ के लिए सबसे बड़ा पर्व महाशिवरात्रि होता है, यह एक ऐसा दिन होता है जिस दिन भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं। व्रत का पालन करते हैं और अपना पूरा समय भोलेनाथ के ध्यान में लगा देते हैं। आज हम Mahashivratri की कहानी के बारे में बताने जा रहे है। इस कथा का सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि इसका वर्णन शिव पुराण में मिलता है।

महाशिवरात्रि की कथा ( Mahashivratri ki katha ) :


शिव पुराण में वर्णित महाशिवरात्रि की कथा कहती है कि पुराने में समय में एक शिकारी हुआ करता था जिसका नाम चित्रभानु था। चित्रभानु के ऊपर बहुत अधिक कर्जा था और यही उसके जीवन की सबसे बड़ी परेशानी थी। साहूकार ने शिकारी से अपना सारा कर्जा वसूलने के लिए उसे सज़ा देने की सोची।

साहूकार को मालूम था कि Chitrabhanu कर्ज देने की स्थिति में नहीं है इसलिए उसने चित्रभानु को एक शिवमठ में बंदी बना दिया। चित्रभानु के साथ सबसे बड़ा संजोग यह हुआ कि जिस दिन उसे बंदी बनाया गया वह दिन महाशिवरात्रि का था साहूकार ने महाशिवरात्रि के उपलक्ष में अपने घर में पूजा का भव्य आयोजन किया। पूजा के बाद Shivaratri की कथा का पाठ भी किया गया शिवमठ में बंदी बना बैठा चित्रभानु शिकारी भी पूजा और कथा में बताई गई बातों को ध्यान से सुनता रहा। जैसे ही पूजा कार्यक्रम समाप्त हुआ। तुरंत साहूकार ने चित्रभानु को अपने पास बुलाया और उससे कर्ज चुकाने की बात कही तो शिकारी ने उसे ऋण वापिस देने का वचन दिया।

इस Mahashivratri Vrat Katha में शिकारी का वचन सुन साहूकार ने तुरंत उसे रिहा कर दिया। अपनी रिहाई के तुरंत बाद शिकारी जंगल में शिकार के लिए गया, अब रात हो चली थी इसलिए शिकारी ने वहीँ जंगल में आराम करने की सोची। चित्रभानु आराम करने के लिए बेल के पेड़ पर चढ़ गया। बेल के पेड़ के ठीक नीचे एक शिवलिंग स्थापित था। सौभाग्य तो चित्रभानु का इस तरह से साथ दे रहा था मानो स्वयं ईश्वर उसका मार्गदर्शन कर रहे हों। शिकारी बेल के पेड़ पर रात बिताने लगा और उसके नीचे स्थापित शिवलिंग बेलपत्र से ढक चुका था क्योंकि शिकारी ने पेड़ से बेलपत्र की कुछ पत्तियां तोड़ी और इसी दौरान उसकी कुछ पत्तियां शिवलिंग पर जा गिरी।

Shivratri Katha आगे इस प्रकार है कि शिकारी भूखा था इसलिए उसका Maha Shivaratri के व्रत का पालन हो गया। शिकारी भूख प्यास से बहुत व्याकुल था तभी उसे एक हिरणी वहां से जाते हुए दिखी। चित्रभानु ने जैसे ही हिरणी पर तीर दागने की सोची हिरणी बोली कि मैं गर्भवती हूँ कुछ ही समय में बच्चे को जन्म देने वाली हूँ तू अभी मुझे मारकर एक साथ दो जीवों की हत्या करेगा।

जैसे ही मैं अपने बच्चे को जन्म दे दूंगी शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाउंगी अभी मुझे जाने दो। इसपर शिकारी ने उसकी बात मान ली और उसे जाने दिया। अपना धनुष रखने के दौरान पेड़ से कुछ बेल पत्र गिराकर नीचे शिवलिंग पर गिर गए इस तरह चित्रभानु की प्रथम प्रहर की पूजा सम्पन्न हुई।

इसके कुछ समय बाद वहां से एक और हिरणी निकली शिकारी ने उसे देखते ही अपने धनुष से तीर शिकार के लिए निकाल लिया यह देख हिरणी बोली कि मैं थोड़ी देर पहले ऋतू से निवृत्त हुई हूँ और मैं अपने प्रिय को खोज रहीं हूँ। अपने पति से मिलकर मैं शीघ्र ही यहाँ आ जाउंगी। निवेदन है कि अभी मुझे यहाँ से जाने दें। शिकारी ने हिरणी की बात मान उसे भी जाने दिया। एक बार फिर से धनुष रखने पर पेड़ से बेल पत्र गिरकर Shivling पर जा गिरे और शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी पूर्ण हो गई।

अब फिर से शिकारी को वहां से जाती हुई तीसरी हिरणी दिखाई दी अब चित्रभानु एक भी मौका नहीं छोड़ना चाहता था इसलिए तीर निशाने पर लगा लिया। इस बार जो हिरणी दिखी उसके साथ बच्चा भी था। हिरणी ने शिकारी से निवेदन किया कि मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ने जा रही हूँ मुझे अभी जाने दो। वापिस लौटते वक़्त मैं तुम्हारे पास आ जाउंगी तब तुम मेरा शिकार कर लेना। शिकारी से हिरणी की बातों से भावुक हो गया और उसे जाने दिया।

भूख से व्याकुल चित्रभानु पेड़ से बेल के पत्ते तोड़-तोड़ कर शिवलिंग पर फेंकता ही जा रहा था। इस प्रकार चित्रभानु की रात बीत गई। अब सुबह की पहली किरण निकली तो शिकारी ने जंगल में एक मृग देखा। शिकारी ख़ुशी से उत्साहित हो उठा और अपने धनुष से तीर निकालते हुए मृग पर निशाना लगाया।

यह देख मृग बोला कि यदि तुमने इस मार्ग से गुजरने वाली तीन हिरणियों और बच्चों को मार दिया है तो तुम मुझे भी मार सकते हो और यदि तुमने उन्हें जीवनदान प्रदान किया है तो तुम मुझे भी मेरे परिवार से मिलने दो क्योंकि मैं उन हिरणियों का पति हूँ। शिकारी मृग की बात सुनकर दया भाव से भर गया और उसे भी बाकियों की ही तरह जीवनदान दिया।

Mahashivratri Katha में आगे की बात करें तो अब सुबह हो चुकी थी शिकारी चित्रभानु का जाने अनजाने में व्रत पालन हुआ, भूख के कारण रात्रि का जागरण हुआ और व्याकुलता के कारण शिवलिंग पर बेल पत्र पर भी अर्पित हो गए। भगवान शिव की कृपा शिकारी को तुरंत प्राप्त हुई क्योंकि वे तो भोलेनाथ हैं। Bholenath की ही कृपा से अब शिकारी कोमल ह्रदय वाला चिरभानु बन गया था इसलिए जब मृग और हिरणी का परिवार उसके सामने आया तो उसने उन्हें मारा नहीं।

जाने अनजाने में चित्रभानु ने जो पूजा विधि का पालन किया था उससे उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। चित्रभानु मृत्यु के पश्चात यमदूत के साथ नहीं बल्कि शिवगणों के साथ शिवलोक पहुंचा। शिकारी का सौभाग्य तो देखिये अगले जन्म में राजा बने चित्रभानु को अपने पूर्व जन्म की सभी बातें याद थी। इसी के कारण राजा चित्रभानु Mahashivratri Vrat का इस जन्म में पालन कर सका और इस बार राजा ने जाने अनजाने में नहीं बल्कि चेतन मन से महाशिवरात्रि का पालन किया था।

गोवर्धन पर्वत परिक्रमा शुरू करने से पहले जान लें ये जरूरी नियम और मार्ग में आने वाले प्रमुख स्थान

गोवर्धन की परिक्रमा का महत्व ( Govardhan Parikrama Significance ) :


गोवर्धन वासी साँवरें की लीलाओं से सभी लोग भली भांति परिचित हैं पर आज हम आपको श्री कृष्ण की किसी लीला के बारे में बताने नहीं जा रहे हैं बल्कि हम आपको Goverdhan ji परिक्रमा के साक्षात् दर्शन कराने जा रहे हैं, वही गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा, जिसके आस पास का क्षेत्र ब्रजभूमि कहलाता है, वही गोवर्धन पर्वत जिसे गिरिराज जी ( Girraj Maharaj ) के नाम से भी जाना जाता है।

Govardhan Parvat के हर छोटे और बड़े पत्थर में श्री कृष्ण का वास है ये पत्थर इतने पावन है कि ब्रज में हर जगह इन पवित्र पत्थरों की पूजा होती दिखाई देती है। कान्हा द्वारा अपनी कनिष्ठ उंगली पर उठाये गए इस पर्वत पर लोगों का विश्वास इतना अडिग है कि यहाँ का बच्चा-बच्चा आपको पत्थरों पर चरणों के चिन्ह, गौमाता और राधा-कृष्ण की छवि तक दिखा देंगे। तो चलिए आज हम आपको लेकर चलेंगे प्रभुभक्ति के माध्यम से Govardhan hill की परिक्रमा के इस सफर पर :

वैसे तो Govardhan पर्वत की परिक्रमा 21 किलोमीटर की होती है पर भक्त इस परिक्रमा को अपनी श्रद्धा अनुसार कर सकते हैं। यह परिक्रमा दो  तरीके से की जाती है बड़ी परिक्रमा और छोटी परिक्रमा। जो भक्त बड़ी परिक्रमा करने में सक्षम नहीं है वे छोटी परिक्रमा भी कर सकते हैं। लेकिन आपको बता दें कि दोनों ही परिक्रमा अपने आप में महत्वपूर्ण है और समान रूप से फल देती है। सबसे पहले हम बड़ी परिक्रमा के सफर पर आपको लेकर चलेंगे जो 12 किलोमीटर ( Govardhan parikrama distance ) की होती है।

गोवर्धन पर्वत बड़ी परिक्रमा ( Govardhan Parvat Badi Parikrama )


1. दानघाटी मंदिर ( Daan Ghati Mandir ) : दानघाटी Govardhan Temple वह स्थान है जहाँ से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का शुभारंभ होता है। यहाँ गिरिराज जी का दूध से अभिषेक किये जाने की परम्परा है। एक समय ऐसा था जब सुनसान सी दिखने वाली दानघाटी के बारे में कोई नहीं जानता था पर आज यहाँ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का वैभव दिखाई पड़ता है। इस पवित्र स्थली के बारे में हमारा धार्मिक इतिहास बहुत कुछ बखान करता है। कहते हैं इसी जगह से होते हुए ब्रज की समस्त गोपियाँ राजा कंस को माखन कर चुकाने जाया करती थीं और यहीं पर माखन चोर कान्हा अपने ग्वाल बालों के संग माखन और दही का दान लिया करते थे।

यह कान्हा का ही अटूट प्रेम था जिसने कान्हा को अपने भक्तों से दान मांगने पर विवश कर दिया था। दान लिए जाने की इसी वजह के कारण इसे दानघाटी के नाम से जाना जाता है। दानकेलि कौमुदी ग्रन्थ में तो इस सुन्दर लीला का वर्णन बहुत विस्तार से किया गया है। क्योंकि यहाँ कान्हा अपने बालरूप में आते थे इसलिए इस मंदिर में प्रभु को भोग स्वरुप माखन-मिश्री और दूध दिया जाता है।

2. संकर्षण कुंड ( Sankarshan Kund ) : Govardhan Parikrama में आगे चलते हुए अब संकर्षण कुंड के दर्शन होते हैं जिसके पास में ही दाऊजी का एक बहुत प्राचान मंदिर भी मौजूद है जिसके बारे में ऐसी मान्यता है कि आज से पांच हजार वर्ष पहले भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने दाऊ जी को विराजमान किया था। संकर्षण भगवान ही दाऊ जी हैं जिन्हें हम बलराम, बालभद्र के नाम से भी जानते हैं।

3. पूंछरी का लौठा ( Poonchhri ka Lautha ) : अब हमारे मार्ग में पड़ेगा पूंछरी का लौठा, नाम थोड़ा अजीब है पर इसकी कहानी उतनी ही दिलचस्प है। पूंछरी का लौठा को भगवान श्री कृष्ण का सखा कहा जाता है। कहते हैं कि यहाँ पर जो भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से govardhan ji परिक्रमा करने के लिए आता है उसकी हर मनोकमना पूर्ण होती है। यह स्थान भले ही छोटा हो पर इसका महत्व बहुत अधिक है। बंदरों से घिरे हुए इस स्थान के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहाँ आने वाले हर भक्त को इस स्थान पर हाजिरी लगाना अनिवार्य है नहीं तो Giriraj Govardhan परिक्रमा पूरी नहीं मानी जाती है।

4. श्रीनाथ जी मंदिर ( Shri Nath Ji Temple, Govardhan ) : समर्पण भाव को समेटे हुए जतीपुरा का श्री नाथ मंदिर राधा कृष्ण के प्रेम की कहानी कहता है, यहाँ तक पहुँचने के लिए आपको गिरिराज जी की शिलाओं के ऊपर से जाना पड़ेगा। यहाँ प्रभु श्री नाथ जी के शयन कक्ष में ही प्रेम गुफा का एक द्वार बना हुआ है। श्री नाथ मंदिर में बनी यह गुफा दो प्रदेशों की अमर प्रेम कहानियों का बखान करती है। मेवाड़ की अजब कुमारी के पिता की जब तबियत खराब हुई तो वे अपने पिता के शीघ्र स्वस्थ होने की मनोकामना को लिए हुए गोवर्धन तक चली आईं। गोवर्धन पहुँचते ही श्री नाथ जी को कुमारी ने निहारा और उन्हें मन ही मन अपना पति स्वीकार कर लिया।

उन्होंने मीरा की भांति ही श्री कृष्ण की आराधना और सेवा में लीन हो गई। अपने भक्त की भक्ति को देख श्री कृष्ण प्रसन्न हो उठे और कुमारी को अपने विराट दर्शन दिए। कुमारी ने प्रभु से नाथ द्वारा चलकर अपने बीमार पिता को दर्शन देने का आग्रह किया। परन्तु श्री कृष्ण तो ब्रजवासियों के प्रेम में बंधे हुए थे इसलिए उन्होंने ब्रज के बाहर जाने से मना कर दिया। पर भक्त के वशीभूत भगवान कृष्ण ने रोजाना सोने के लिए ब्रज में आने की शर्त पर अजब कुमारी का आग्रह स्वीकार कर लिया। जब से मान्यता है, इस गुफा के रास्ते प्रभु श्री कृष्ण shree नाथ चले जाते हैं और नयनों में नींद भरते ही वापस गोवर्धन की ओर लौट आते हैं।

5. इंद्रमानभंग ( Indraman Bhang ) : यह वह स्थान हैं जहाँ पर देवराज इंद्र अपने ऐरावत हाथी के साथ उतरे थे और जैसा कि इसके नाम से प्रतीत होता है यह वही स्थान है जहाँ पर इंद्र देव का मान भंग हुआ था। आपको जानकार हैरानी होगी कि यहाँ पर ऐरावत हाथी के पदचिन्ह अभी तक दिखाई देते हैं। आप इन चिन्हों को मान भांग वाले मंदिर के निकट देख सकते हैं।     

6. जतीपुरा मुखारबिंद ( Jatipura Temple ) : Govardhan ki parikrama के अगले पड़ाव में दर्शनीय स्थल जतीपुरा है जिसके बारे में ऐसी मान्यताएं है कि भगवान कृष्ण का मुख होने का यहाँ आभास होता है। जतीपुरा में पहुंचकर श्रद्धालु प्रसाद अर्पण करते हैं क्योंकि परिक्रमा के दौरान इस मंदिर के प्रसाद का बहुत महत्व बताया गया है। यहाँ पर आपको भगवान गिरिराज जी के मुखारविन्दु में श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम के मुख के दर्शन होते है इसीलिए यहाँ पर छप्पन भोग लगाए जाने की परम्परा है।

अब गोवर्धन पर्वत की छोटी परिक्रमा का आरंभ करते हैं लेकिन आगे बढ़ने से पहले हमारे चैनल प्रभुभक्ति को सब्सक्राइब करना न भूलें ताकि आगे आने वाले सभी अपडेट आप तक पहुंचते रहें।

गोवर्धन पर्वत छोटी परिक्रमा ( Govardhan Parvat Chhoti Parikrama )


गोवर्धन पर्वत की छोटी परिक्रमा 9 किलोमीटर ( Govardhan parikrama km 9 ) की है जतीपुरा मुखारबिंद के बाद यह छोटी परिक्रमा शुरू हो जाती है हमारे इस छोटी परिक्रमा के पड़ाव में सबसे पहले लक्ष्मी नारायण मंदिर आता है।

1. लक्ष्मीनारायण मंदिर गोवर्धन ( Laxmi Narayan Mandir Govardhan ) : कोई मनोकामना पूर्ण होने पर या किसी मनोकामना को लेकर दूध की परिक्रमा शुरू इसी लक्ष्मीनारायण govardhan mandir से की जाती है। मंदिर में विराजमान लक्ष्मीनारायण देवता धन, सुख समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। Govardhan parvat parikrama के लिए आने वाले तथा दूध की धार से परिक्रमा करने वाले सभी भक्त परिक्रमा से पहले लक्ष्मी नारायण मंदिर में पूजा की शुरुआत करते हैं।

2. उद्धव कुंड ( Uddhava Kunda ) : छोटी परिक्रमा के मार्ग में दूसरा स्थान उद्धव कुण्ड ( Uddhava Kunda ) है जो गोवर्धन के बिल्कुल पश्चिम में परिक्रमा मार्ग पर दाईं तरफ स्थित है। हमारे पुराणों में इस कुण्ड का वर्णन बहुत अच्छे से किया गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार उद्धव जी ने द्वारका की महिषियों को इसी स्थान पर सांत्वना दी थी।

3. राधा कुंड ( Radha Kund ) : अब इस छोटी परिक्रमा के अगले पड़ाव में राधा कुंड आता है। इस radha kund govardhan की कहानी श्री कृष्ण के गौचारण करने से संबंधित है अब आप सोच रहे होंगे कि भला राधा कुंड का गौचारण से क्या संबंध? तो हम आपको बता दें कि गोवर्धन में ही कान्हा गाय चराने आया करते थे। जब अरिष्टासुर को ज्ञात हुआ तो कि कान्हा यहाँ आया करते हैं तो वह बछड़े का भेष धारण कर यहाँ पहुँच गया। बछड़े के भेष में आया अरिष्टासुर जब श्री कृष्ण पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा तो उन्होंने उस बछड़े रूपी असुर का वध कर दिया।

वध करने के बाद राधा रानी ने श्री कृष्ण से कहा कि आपने बछड़े का वध किया है इसलिए आप पर गोहत्या का पाप लगेगा। राधा रानी के मुख से यह वचन सुन श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान भी किया। तभी से इस स्थान को राधा कुंड के नाम से जाना जाने लगा। मान्यता है कि सप्तमी की रात्रि को पुष्य नक्षत्र में रात्रि 12 बजे राधा कुंड में स्नान किया जाता है। स्नान के बाद सुहागिनें अपने केश खोलकर राधा रानी से पुत्र प्राप्ति की कामना करती हैं। इस राधा कुंड की खासियत यह है की यहाँ का पानी सात रंगों में बदलता है और कभी कभी तो दूध जैसा सफ़ेद भी दिखाई देता है।   

4. श्याम कुंड ( Shyam Kunda ) : अब राधा कुंड के बाद श्याम कुंड के दर्शन होते हैं। यह तो शाश्वत सत्य है जहाँ राधा वहां कृष्ण। इसी प्रकार जहाँ पर राधा कुंड कुंड होगा वहां श्याम कुंड होना तो अनिवार्य ही है। जब श्री कृष्ण ने गोहत्या के पाप से मुक्त होने के लिए अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया था तो राधा जी ने भी अपने कंगन से पास में ही कुंड खोदा जिसे श्याम कुंड कहा जाता है। श्याम कुंड वही स्थान है जहाँ पर पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान आये थे।  

5. कुसुम सरोवर ( Kusum Sarovar ) : श्याम कुंड के बाद अब कुसुम सरोवर अगला पड़ाव है। यह मथुरा में गोवर्धन से 2 किमी दूर स्थित है कुसुम सरोवर जो 450 फ़ीट लम्बा और 60 फ़ीट गहरा है। कुसुम सरोवर से जुड़ी कई पौराणिक कहानियां हैं जिसमें से एक कहानी राधा कृष्ण से जुड़ी हुई है।

कहते हैं कि भगवान कृष्ण छुप-छुप कर राधा रानी से मिलने के लिए इसी स्थान पर आया करते थे। राधा रानी और उनकी सखिया श्री कृष्ण के लिए पुष्प चुनने के लिए कुसुम सरोवर ही जाया करती थी। इसका सौंदर्य देखते ही बनता है। Kusum Sarovar Govardhan के चारोँ ओर सीढ़ियां बनी हुई है। इसका सौंदर्य ही लोगों को इस स्थान तक खींच कर लाता है। यहाँ के रहने वाले लोगों का मानना है कि इस सरोवर में पारस पत्थर और नागमणि है जिस कारण इस सरोवर को रहस्यमयी कहा जाता है।

6. कान वाले बाबा ( Kaan Wale Baba ) : छोटी परिक्रमा के रास्ते में पड़ने वाला कान वाले बाबा का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। मंदिर के चमत्कार के किस्से पुरे ब्रज में  मशहूर है। इस मंदिर में स्थित गिरिराज जी के पत्थर रूपी स्वरुप में चमत्कारी कान है। परिक्रमा करते हुए भक्त इस मंदिर में आते है और गिरिराज जी महाराज के कान में अपनी मनोकामना मांगते है।

7. मानसी गंगा मुखारबिंद ( Mansi Ganga ) : छोटी परिक्रमा की समाप्ति मानसी गंगा मुखारबिंद पर आकर होती है। मानसी गंगा गोवर्धन गाँव के मध्य में स्थित है, परिक्रमा करने के दौरान मानसी गंगा दाईं ओर पड़ती है जबकि पूंछरी से लौटते समय बाईं ओर हमें इसके दर्शन होते हैं। गंगा के मानसी गंगा बनने की कहानी कुछ ऐसी है कि एक बार नन्द बाबा-यशोदा और सभी ब्रजवासी ने गंगा स्नान का मन बनाया और अपना सफर शुरू किया। चलते-चलते जब सभी goverdhan तक पहुंचे तो शाम हो चुकी थी। रात्रि व्यतीत करने के लिए नन्द जी ने वहीँ पर अपना विश्रामस्थान बनाने की सोची।

यहाँ पर रात्रि गुजारते हुए श्री कृष्ण के मन में विचार आया कि ब्रजधाम में ही सभी-तीर्थों का वास है, परन्तु ब्रजवासी गण इसकी महान महिमा से अनजान हैं। श्रीकृष्ण के मन में ऐसा विचार आते ही गंगा जी अपने मानसी रूप में गिरिराज जी की तलहटी में प्रकट हुई। सुबह जब ब्रजवासियों ने गिरिराज तलहटी में गंगा जी को देखा तो वे सब हैरान रह गए।

सभी हैरान देखते हुए श्री कृष्ण बोले कि ब्रजभूमि की सेवा के लिए तो तीनों लोकों के सभी-तीर्थ यहाँ आकर विराजते हैं और आप सभी गंगा स्नान के लिए ब्रज को छोड़कर जा रहे हैं। यही कारण है यहाँ गंगा मैया स्वयं Mansi Ganga का रूप धारण किये कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को पधारी हैं।

गोवर्धन परिक्रमा के नियम ( Rules of Govardhan Parikrama in hindi ) :


गोवर्धन परिक्रमा करने के नियम भी आपको जान लेना बहुत जरुरी है। गोवर्धन की परिक्रमा शुरू करने से पूर्व सर्वप्रथम गोवर्धन पर्वत को प्रणाम करें और जिस स्थान से परिक्रमा शुरू की है वहीँ पर उसे समाप्त करें। मान्यता है कि जो भी परिक्रमा आरम्भ करना चाहते हैं उन्हें मानसी गंगा में स्नान अवश्य कर लेना चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि परिक्रमा को बीच में कभी अधूरा न छोड़े।

तो दोस्तों यह थी हमारी गोवर्धन पर्वत की छोटी और बड़ी परिक्रमा साथ ही उससे जुड़ी धार्मिक मान्यताओं की कहानी। अगर आपको यह वीडियो पसंद आई हो तो हमारे प्रभुभक्ति को सब्सक्राइब करना न भूलें।

आइये जानें सपने में गड़ा हुआ धन देखने या मिलने का क्या अर्थ है?

सपने में गड़ा हुआ धन देखना ( Sapne me gada hua dhan dekhna )


हमारे हिन्दू शास्त्रों में लगभग हर कृत्य के पीछे एक ठोस कारण छिपा हुआ है, यानी इस संसार में जो भी घटित हो रहा या घटित होने की संभावना है उसके होने का कोई न कोई कारण तो है। भगवान कृष्ण ने भी कहा है कि मनुष्य द्वारा किये जा रहे कर्म उनके पूर्व जन्म में किये गए कर्मों का ही फल हैं।

आज हम कर्म या भविष्य का लेखा जोखा रखने वाले सपनों की बात करेंगे, वो सपनें जो हमारे लिए भले ही इतने महत्वपूर्ण न हो पर उनका कोई न कोई अर्थ तो जरूर है। ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि हिन्दू धर्म के स्वप्न शास्त्र स्वयं ही इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। आज के इस लेख में हम सपने में खजाने या गड़े हुए खजाने को देखने के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं की बात करने जा रहे हैं।

सपने में गड़ा हुआ खजाना देखना ( Sapne me gada hua khajana dekhna )


हमारे वैदिक ग्रंथों में रावण सहिंता और वराह संहिता स्वप्न फल को जानने के लिए सबसे उत्तम माने जाते हैं। लोगों को सपने बड़े ही विचित्र से आते हैं कई बार तो उन सपनों का कोई अर्थ ही नहीं निकलता है पर सपनों में हमारा जोर तो चलता नहीं है। कुछ लोग सपनें में कहीं पर गड़ा हुआ खजाना देख लेते हैं फिर उन्हें लगता है कि यह सच हो सकता है। फिर वे जी जान से उस गड़े हुए खजाने को ढूंढने में जुट जाते हैं।

शायद लोगों को यह नहीं मालूम कि सपने में गड़े हुए खजाने को देखने का अर्थ यह नहीं है। जब भी कोई व्यक्ति सपने में गड़ा धन मिलना देखता है तो यह रावण सहिंता और वराह सहिंता के अनुसार यह नहीं कहता कि उस व्यक्ति को कहीं पर गड़ा हुआ खजाना मिल ही जाएगा। दरअसल इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि उस व्यक्ति को अचानक धन मिलने या सम्मान-प्रतिष्ठा हासिल होने की संभावना है। गड़ा धन मिलने के संकेत है कि आपको अज्ञात स्त्रोतों से धन की प्राप्ति हो सकती है और समाज में प्रतिष्ठा मिल सकती है।

अब आपको बताते हैं कि आखिर कब आपको गड़ा हुआ धन प्राप्त होने की संभावना अत्यधिक होती है और गुप्त धन मिलने के संकेत क्या होते हैं? :


रावण सहिंता और वराह सहिंता के अनुसार अगर किसी व्यक्ति को गड़े हुए खजाने के मिलने की संभावनाएं होती हैं तो उसे सपनें में सफेद नाग दिखाई देता है। वह सफेद नाग जिस स्थान पर दिखाई देता हैं वहीँ पर गड़ा हुआ खजाना मिलने की संभावना होती है।

आपको बता दें कि सपने में दिखने वाला सफेद नाग कोई सामान्य नाग नहीं बल्कि नाग के रूप में पितर होते हैं जो अपने वंशजों को गड़े हुए खजाने ( Gada hua khajana ) पाने के लिए संकेत दिया करते हैं। पितर अपने ही द्वारा छिपाए गए खजाने के रक्षक होते हैं जो अपने परिवार जनों को बार बार सफेद नाग के रूप में सपने में आकर संकेत दिया करते हैं और गुप्त धन के बारे में जानकारी देते हैं।
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