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    Home » नवरात्रि स्पेशल : माँ शैलपुत्री का रहस्य, जो कोई नहीं जनता
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    नवरात्रि स्पेशल : माँ शैलपुत्री का रहस्य, जो कोई नहीं जनता

    VeshaliBy VeshaliOctober 14, 2023
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    हिन्दू धर्म में नवरात्रि  एक मुख्या पर्व माना जाता है।  देश के सब  हिस्सों में  नवरात्रि धूम धाम से अलग-अलग रीती रिवाज़ों से बनाई जाती है।

    हिन्दू मंचांग के अनुसार एक साल में  4 नवरात्रि आती है, जिनमें से दो गुप्त नवरात्रि  होती है और बाकी एक चैत्र और दूसरी शारदीय नवरात्री  के नाम से जानी जाती है।  साल के  सातवे  महीने के बाद आश्विन महीना शुरू हो जाता है जो भगवान् और  पितृ पूजन के लिए  बहुत महत्वपूर्ण  है।  अश्विन महीना  दो  हिस्सों  में  बटा  हुआ है, एक है  कृष्ण पक्ष , जिसमें पूर्वजो का शराद करते है और दूसरा ‘शुक्ल पक्ष’ जो मां दुर्गा को समर्पित महीना है।

    नवरात्रि में  माँ दुर्गा के कई अवतारों में से 9 अवतारों की पूजा की जाती है.

    नवरात्रि  के पहले दिन माँ आदिशक्ति का रूप जिन्हें माँ शैलपुत्री के नाम से भी जाना जाता है, उनकी पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री पूर्व जन्म में , प्रजापति दक्ष की बेटी ‘सती ‘ थी. माता सती  के पिता राजा दक्ष थे जो  की ब्रह्मा जी  के बेटे थे, वो विष्णु भगवान की आराधना करते थे और महादेव को  पूजने लायक नहीं मानते थे।  जब माता सती, जो की आदिशक्ति है, उस समय उन्हें आदिशक्ति होने का एहसास नहीं था। लेकिन  वो धीरे-धीरे महादेव से आकर्षित होने लगी और उनसे प्रेम करने लगी, लेकिन प्रजापति दक्ष महादेव को सती से विवाह के योग्य नहीं मानते थे और ना ही महादेव को अपने किसी भी कार्य में  शामिल करना चाहते थे।  जब माता सती और महादेव ने प्रजापति दक्ष के खिलाफ जाकर विवाह कर लिया उसके बाद भी दक्ष ने महादेव को नहीं स्वीकारा।

    एक समय की बात है जब माता सती को उनके पिता के घर हो रहे हवन के बारे में  पता चलता है, जहाँ  सारे देवी-देवताओं  को न्योता दिया था, लेकिन महादेव और सती माता को नहीं बुलाया था।

    ये बात जानते ही सती माता अपने पिता के यज्ञ में  शामिल होने के ज़िद्द करती है लेकिन महादेव उन्हें मना  कर देते है, की ऐसे बिना न्योते के कही भी शामिल होना सही नहीं रहेगा, लेकिन माता सती ज़िद्द कर के चली जाती है।  वहां पहुंच  कर जब दक्ष और माता सती की बहने  महादेव का सबके सामने अपमान करने लगते है, तब भरी सभा के सामने अपने पति का अपमान माता सती बर्दाश्त नहीं कर पाती और वही दक्ष के यज्ञ में  उतर कर भस्म हो जाती है और अपना देह त्याग कर देती है।

    अगले जनम में वह  शैलराज हिमालय और उनकी पत्नी मेनका के घर जन्म लेती हैं जसिके  कारण माँ दुर्गा के इस रूप का नाम शैलपुत्री पड़ा, नवरात्री के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा और उपासना की जाती है.

    माँ शैलपुत्री की सवारी ‘वृषभ’ यानी ‘बैल’ है इस कारण से माँ शैलपुत्री को ‘वृषारूढ़ा’ के नाम से भी जाना जाता है  , माँ शैलपुत्री का विवाह शंकर भगवान् से हुआ था इसलिए उन्हें पारवती भी कहा जाता है।

    माँ के  दाई हाथ में  त्रिशूल है,  जो की काल का प्रतीक है और बाई हाथ में  कमल है जो पवित्रता और त्याग का प्रतीक है । शिव पुराण के अनुसार माँ शैलपुत्री के अंदर नदी, पहाड़, पूरी प्रकृति बसी हुई है जिसकी वजह से उनको प्रकृति की देवी भी माना जाता है।

    माँ के इस रूप को लाल, पीले और  सफ़ेद  रंग की वस्तुए पसंद है ।  सफ़ेद रंग  शांति, लाल रंग उल्लास और शक्ति का प्रतीक है, वही पीला रंग सौभाग्य को भड़ाता  है।

    इस दिन माँ को लाल और सफ़ेद रंग की वस्तुए  अर्पित करे, जैसे लाल रंग का फूल और दूध की मिठाई का भोग  लगाए, माँ शैलपुत्री का पूजन करने से घर के सभी सदस्यों  के रोग और दुःख दूर होते है, वही माता अपने भक्तो को  बुद्धि भड़ाने और सही नर्णय लेने की क्षमता का वरदान देती है। घर से दरिद्रता मिट जाती है और सम्पन्नता आती है।  आज के दिन आप इस मंत्र का 108  जाप कर माँ की आराधना कर सकते है

    ”ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम: ”

    जय हो शैलपुत्री मैय्या की।

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