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    Home » जब बजरंगबली ने लौटाई नेत्रहीन बालक की रौशनी
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    जब बजरंगबली ने लौटाई नेत्रहीन बालक की रौशनी

    Prabhu BhaktiBy Prabhu BhaktiJuly 27, 2023Updated:July 27, 2023
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    कर्णाटक के बेलगाउं जिले में एक ऐसी घटना घटित हुई जिसे जिसने सुना व देखा तो वह वही का वही दंग रह गया , किसी को अपने कानो व आँखों पर यकीन नहीं हुआ क्युकी बेलगाउं में जो हुआ वह अविश्वसनीय था।

    बेलगाउं में संजीव नाम का व्यक्ति रहा करता था , जो की एक सरकरी नौकरी करता है व माता पिता और अपने छोटे भाई के साथ रहा करता है।
    संजीव एक लम्बे अरसे से पवनपुत्र बजरंगबली की पूजा पाठ करता आ रहा है। समय के साथ संजीव का विवाह एक पास की ही कन्या के साथ हो गया।

    विवाह के कुछ वर्ष बाद संजीव व उसकी पत्नी को बड़ी परेशानियों के पश्चात एक पुत्र की प्राप्ति हुई परन्तु पुत्र प्राप्ति के साथ दोनों पर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा। उन्हें जो पुत्र हुआ था वह नेत्रहीन था , दोनों को जब ये बात पता चली दोनों अस्पताल में ही फुट फुट कर रोने लगे।

    डॉक्टर और वहाँ मौजूद लोगो ने उन्हें संभाला। वे दोनों बालक को घर ले गए और सोचने लगे क्या करना है इस बालक की आंखों का इलाज तो किसी भी हाल में कराना ही है , अन्यथा यह अपना सारा जीवन कैसे व्यतीत करेगा। दोनों देश के बड़े-बड़े डॉक्टरो से जाकर मिलते और उसके आंखों के इलाज का प्रयास कर रहे थे परंतु किसी भी ओर से कोई सुखद परिणाम नहीं आ रहा था।

    उन्हें कोई और मार्ग दिखाई नहीं दिया तो उन्होंने इसी में जीवन की सच्चाई मांग ली। इस बालक की आंखों में कुछ ना हो पाएगा। उसी में उन्होंने अपनी खुशी को मान लिया। उन दोनों ने उस बालक के लालन-पालन में किसी प्रकार की कोई कमी नही रखी । दोनों बालक को बचपन से ही हनुमान जी की किस्से कहानियां सुनाते आ रहे थे जो कहानियां उसे बडा उत्साहित भी करती थी। दोनों ने उसका नाम भी हनुमान जी के नाम पर रख दिया मारुति!

    मारुती बड़ा होकर विद्यालय जाने लगा परन्तु वहाँ सब उसका मजाक उड़ाया करते , मारुती कभी देख न पाने के कारण कही गिर जाया करता तो कभी किसी और परेशानी में पड़ जाया करता , इन सब को देख संजीव का मन दुःख से भर आता।

    एक दिन जब संजीव से अपने पुत्र का दुःख देखा नहीं गया तब वह मंदिर जाकर बजरंग बलि से अपने पुत्र का दुःख साझा करने लगा , कहने लगा हे प्रभु मुझसे मेरे पुत्र का दुःख देखा नहीं जाता , हे संकटमोचन कृपया मेरे पुत्र के संकट दूर करो। संजीव अपनी भावनाओ को रोक न सका और वही मंदिर में ही फूट फूटकर रोने लगा , ये सब वहाँ मंदिर में उपस्थित महंत ने देख लिया उन्होंने संजीव को अपने पास बुलाया और संजीव से कहने लगे : मैंने तुम्हारी सारी बात सुन ली है मैं जान चूका हूँ की तुम और तुम्हारा पुत्र दोनों बेहद ही कष्ट में हो। परन्तु तुम्हे चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है तुम यदि बजरंगबली को प्रसन्न कर दो तो अवश्य ही वह तुम्हारा कष्ट दूर करेंगे। संजीव ने पुछा की मुझे ऐसा क्या करना पड़ेगा की बजरंगबली प्रसन्न हो जाये इस पर महंत जी ने उत्तर दिया की तुम अखंड हनुमान चालीसा और सुन्दर कांड का पाठ कराओ पवनपुत्र अवश्य ही प्रसन्न होंगे।

    संजीव महंत जी की बातो से उत्साहित होकर घर की ओर निकल गया एवं अखंड पाठ की बात अपनी पत्नी को बताते हुए कहने लगा की बजरंगबली की कृपा से हमारे पुत्र की आँखों की रौशनी वापस आने वाली है।
    दोनों पूरी आस्था भाव के साथ अखंड पाठ की तैयारी में लग गए और मगलवार के दिन अखंड पाठ प्रारम्भ हो गया , चारो ओर भक्ति भाव की चादर फ़ैल सी गयी , मारुती को भी अखंड पाठ में आनंद आ रहा था।

    दिन गुज़रते जा रहे थे परन्तु अखंड पाठ रुका नहीं था , लोग आ रहे थे जा रहे थे परन्तु संजीव व उसका पुत्र मारुती हनुमान जी के सामने से पल भर को दूर ना हुए थे , क्यों की दोनों का प्रबल विश्वास था की बजरंग बलि उनकी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण करेंगे।

    एक रात ऐसी आयी जब अखंड पाठ चल रहा था मध्य रात्रि से हनुमान जयंती का दिन प्रारम्भ हो चुका था , अचानक से बहुत तेज हवाएं चलने लगी बादलो की गर्जना से सलल डोल उठा , एक बार को तो ऐसा लगा की भूकंप आ गया हो। तेज हवा के कारण पूरे शहर की विधुत आपूर्ति ठप हो गयी , जिस पंडाल में अखंड पाठ चल रहा था वहाँ भी अँधेरा छा गया। परन्तु इतनी तेज़ तूफ़ान के बाद भी पंडाल में जलने वाली अखंड जोत ज्यो की तो रही।

    अचानक से तेज़ आंधी में से एक व्यक्ति पंडाल की ओर बढ़ता हुआ आने लगा अँधेरा होने के कारन उसका चेहरा दिख नहीं पा रहा था परन्तु जैसे जैसे वह नजदीक आ रहा था वैसे वैसे तूफ़ान शांत होता जा रहा था , ओर जैसे ही उस व्यक्ति ने पंडाल में कदम रखा तूफ़ान एक दम से शांत हो गया। उस व्यक्ति ने श्वेत वस्त्र अपने शरीर पर लपेटा हुआ था , विशाल शरीर और आँखों में एक अलौकिक तेज़ , वहाँ मौजूद लोगो की नज़रे व्यक्ति से हट ही नहीं पा रही थी।

    परन्तु उसके बाद जो हुआ वो देख संजीव सहित वहाँ उपस्तिथ सभी के होश उड़ गए , वह व्यक्ति धीरे धीरे मारुती के पास पंहुचा और उससे ऐसे बात करने लगा जैसे व मारुती को कई वर्षो से जनता हो। सभी लोग उसे बड़ी अचरज भरी नज़रो से देखते रहे।

    बातों बातो में उस व्यक्ति ने मारुती की आखों पर हाथ फेरा और उठ कर वहाँ से जाने लगा , मारुती इधर बड़ी जोरो से चिल्लाया सभी दर गए की यह अनजान व्यक्ति बालक के साथ क्या कर गया , कुछ लोग तो उस व्यक्ति को पकड़ने के लिए उसके पीछे भी दौड़े परन्तु व्यक्ति न आने कैसे कही लुप्त हो गया।

    संजीव ने अपने पुत्र को संभाला मारुती ने अपने हाथो से आँखों को रगड़ कर खोला तो सब आश्चर्य में रह गए , मारुती ने अपने पिता से ख़ुशी से कहा पिता जी मुझे सब दिख रहा है यह सुन किसी को अपने सुने पर विश्वास नहीं हुआ परन्तु यह सच था।

    संजीव को ज्ञात हुआ की यह जो विशेष तेज़ वाला व्यक्ति आया था यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं था स्वयं हनुमान जी थे जो मेरे पुत्र की आखों की रौशनी प्रसन होकर देकर गए है , जिसने यह देखा या सुना वह आश्चर्य में था। सभी ने बजरंग बलि का जयकारा लगाया और संजीव व मारुती ने बजरंग बलि के आगे सर झुका कर उन्हें धन्यवाद अर्पित किया।

    ” नासै रोग हरे सब पीरा , जपत निरंतर हनुमत बीरा ” अर्थात हनुमान जी के नाम मात्र जपने से सारे संकट और रोगो का नाश हो जाता है , ये घटना देख कर समज आता है की हनुमान चालीसा की इस चौपाई कितनी सत्यता है।

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