केदारनाथ में 16 जून 2013 को एक भीषण बाढ़ आई थी। जून में बारी बारिश के दौरान वहां बादल फटे थे और कहते हैं कि केदारनाथ मंदिर से 5 किलोमीटर ऊपर चौराबाड़ी ग्लेशियर के पास एक झील बन गई थी जिसके टूटने से उसका सारा पानी तेजी से नीचे आ गया था। यह बिल्कुल जल प्रलय जैसा ही दृश्य था। केदारनाथ मंदिर के मुख्य तीर्थ की ओर 16 जून को शाम करीब 8 बजे के बाद अचानक मंदिर के पीछे ऊपर वाले पहाड़ी भाग से पानी का तेज बहाव आता दिखा। इसके बाद बहुत से तीर्थयात्रियों ने मंदिर में शरण ली। रातभर लोग एक-दूसरे को हिम्मत दे रहे थे मंदिर के चारों ओर जल प्रलय था। उस समय दो साधू अपनी जान बचने के लिए एक बड़े से खम्बे पर चढ़ गए ओर सारी रात वही जा कर अपनी जान बचायी , वह दोने भोलेनाथ से प्रार्थना कर रहे थे की सुब कुछ सही हो जाय। पानी, रेत, चट्टान, पत्थर और मिट्टी के सैलाब ने पूरी केदार घाटी के पत्ते-पत्ते को उजाड़ दिया। पहाड़ों में धंसी बड़ी-बड़ी मजबूत चट्टाने भी टूटकर पत्थर बन गई थी। सैलाब के सामने कोई नहीं टिक पाया था मंदिर पर भी खतरा मंडरा रहा था , और अचानक पानी का भहाव तेजी से मंदिर की ओर बढ़ने लगा दोनों साधू बहुत डर गए की पानी इस रफ़्तार से मंदिर से ठकरा तो मंदिर व मंदिर की शरण मैं आये सारे भक्तो को बहुत नुक्सान हो जायेगा वह दोनों केदार बाबा से विनती करने लगे प्रभु रक्षा करो। तभी मंदिर के पीछे की पहाड़ी से एक विशालकाय डमरू के आकार का पत्थर जिसकी रफ़्तार कुछ १०० किलो मीटर प्रति घंटा होगी वो मंदिर की ओर बढ़ने लगा दोनों साधु बहुत डर गए की जल के प्रकोप से तो मंदिर शयद बच भी जाये लेकिन यह पत्थर तो सुब कुछ तबाह कर देगा परन्तु वह पत्थर मंदिर के सामने ५० फुट की दूर पर आकर रुक गया जैसे किसी दिव्य शक्ति ने उसे रोक दिए हो उस पत्थर की चौड़ाई भी मंदिर की चौड़ाई मंदिर जितनी ही थी , ये देख दोनों साधु हैरान रहे गए , एवम जो पानी का बहाव मंदिर की ओर आ रहा था वो भी स डमरू के आकार के पत्थर से टकरा कर दो भागो मैं बंट गया जिसके कारण मंदिर व मंदिर की शरण मैं आये भक्तों को किसी प्रकार की कोई हानि नहीं हुई। इस प्रकार की भयानक प्रलय के बीच महादेव के इस चमत्कार को देख सभी हैरान रहे गए। तारणहार इसी शिला ने बाढ़ त्रासदी में बाबा केदारनाथ धाम ज्योतिर्लिंग मंदिर की रक्षा की थी। आज भी इस शिला का रहस्य बरकरार है कि मंदिर की चौड़ाई के बराबर यह शिला आई कहां से और कैसे यह अचानक मंदिर के कुछ दूरी पर ही रुक गई? आखिर यह चमत्कार कैसे हुआ। कुछ लोग कहते हैं कि सर्वप्रथम यह मंदिर पांडवों ने बनवाया था। यहीं भीम ने भगवान शंकर का पीछा किया था। प्रलय के समय ऐसा लगा जैसे भीम ने अपनी गदा गाड़कर महादेव के मंदिर को बचाया हो। संभवत: इसीलिए इस शिला को लोग भीम शिला कहने लगे हैं। भोलेनाथ की महिमा तो भोलेनाथ ही जानें। आज इस शिला के चमत्कार को सभी लोग नमस्कार कर रहे हैं, क्योंकि इस शिला ने सही समय पर और सही जगह रुककर मंदिर को सुरक्षित किया था। पूरी बाढ़ के पानी तथा उसके साथ आने वाले बड़े-बड़े पत्थरों को इसी शिला ने रोककर केदारनाथ मंदिर की रक्षा की थी। डमरूनुमा भीमशिला की चौड़ाई लगभग मंदिर की चौड़ाई के बराबर है जिसने प्रलय का अभिमान चकनाचूर कर मंदिर को लेशमात्र भी क्षतिग्रस्त नहीं होने दिया।