Maa Siddhidatri- 9th Day of Navratri

Mahanavami पर्व

हिन्दू धर्म में महानवमी का पर्व ख़ासा महत्व रखता है। इस दिन navarathri goddess देवी पार्वती के नौंवे अवतार सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।  यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाता है। भारत के कई राज्यों बिहार, बंगाल, उड़ीसा, असम में दुर्गा पूजा बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है। यहाँ navratri day 9 को दुर्गा उत्सव, शरदोत्सब, अकालबोधन, महापूजो जैसे भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। वहीँ Sharada Navaratri के दौरान बंगाल में मनाया जाने वाले महापूजों के दिन दुर्गा मां की विदाई विसर्जन स्वरुप की जाती है। [1

देवी Siddhidhatri

Hindu calendar के अनुसार Sharada Navaratri के 9th day of navratri में दुर्गा मां के सिद्धिदात्री अवतार की पूजा की जाती है। सिद्धि प्रदान करने वाली देवी ही सिद्धिदात्री के नाम से प्रचलित है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के शरीर का आधा भाग सिद्धिदात्री का है। वैदिक पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने देवी सिद्धिदात्री की आराधना कर ही सिद्धि प्राप्त की थी जिसके बाद से महादेव का आधा हिस्सा देवी के रूप में बन गया।

siddhidhatri और शिव के संगम को अर्द्धनारीश्वर की संज्ञा दी गई है जो आधुनिक समाज की लैंगिक समानता का सटीक उदाहरण पेश करता है यानी वैदिक काल से आधुनिक विचारधाराएं प्रचलन में है। 

siddhidatri mata ki katha सिद्धिदात्री माता की कथा

देवी की चार भुजाएं हैं और इन चारों भुजाओं में चक्र, गदा, कमल और शंख रहता है। देवी कमलपुष्प और सिंह दोनों पर ही विराजमान रहती हैं।

मार्कण्डेयपुराण के अनुसार siddhidhatri की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे 8 प्रकार की सिद्धियों पर अपना प्रभाव रखती हैं जिनमें अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्वये शामिल हैं। भगवान शिव ने देवी की आराधना कर इन्हीं सिद्धियों की प्राप्ति की थी जिसके बाद उनका आधा शरीर सिद्धिदात्री जैसा बन गया था।  [2]

महिषासुर वध की कथा

महिषासुर कौन था

पौराणिक कथा के अनुसार असुरों के राजा रम्भ और जल में रहने वाली भैंस के संगम से महिषासुर का जन्म हुआ था जिस कारण वह कभी भी मनुष्य और कभी भी भैंसे का रूप ले लिया करता था।  महिषासुर ब्रह्मा जी का परम भक्त था।  ब्रह्मा जी ने महिषासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया था कि न तो देवता और न ही कोई असुर महिषासुर को हरा सकते हैं।  ब्रह्मा जी  के इसी वरदान का फायदा उठाकर महिषासुर ने तीनों लोकों पर अपना कब्ज़ा जमाने की सोची और आतंक मचाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते दानव ने स्वर्ग और पृथ्वी लोक दोनों पर अपना आधिपत्य जमा लिया। सभी देवताओं ने उसे हराने के लिए भीषण युद्ध किये लेकिन किसी को भी जीत हासिल न हो पाई।

महिषासुर के मचाये उत्पात से तंग आकर सभी देवता त्रिमूर्ति ब्रह्मा-विष्णु-महेश के पास पहुंचें। त्रिमूर्ति ने इसके समाधान स्वरुप अपनी तीनों की ही शक्तियों का समावेश कर शक्ति नामक देवी का निर्माण किया। देवी दुर्गा नाम से जानी जानें वाली शक्ति ने महिषासुर को परास्त करने के लिए पूरे नौ दिन तक भीषण युद्ध किया और अंत में जाकर महिषासुर की हार हुई। इस तरह Nauratam में पूजे जाने वाले देवी दुर्गा के नौ रूपों ने महिषासुर को हराया और बुराई पर अच्छाई ने विजय प्राप्त की। [3]

Durga Navami puja vidhi in hindi

1. Nauratam के आखिरी दिन देवी की प्रतिमा के सामने धूप और दीपक जलाकर देवी की आरती व हवन करना चाहिए। 

2. Navaratra के नौंवे दिन इनकी पूजा होने के कारण माँ दुर्गा का भोग  नौ प्रकार के फल, फूल, मिष्ठान और नैवैद्य के सम्मिश्रण वाला होना चाहिए। 

3. इस दिन सभी देवताओं के नाम की आहुति भी जानी चाहिए।  

4. जो भी भक्त पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से माता की उपासना करते हैं उनकी सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।  

5. सिद्धि प्राप्ति के लिए देवी के जाप मंत्र का 108 बार उच्चारण करना चाहिए।

Maa Siddhidatri Mantra: सिद्धिदात्री माता का मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

Mata Siddhidatri Jaap Mantra: माता सिद्धिदात्री जाप मंत्र

ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥

Mata Siddhidatri प्रार्थना मंत्र

सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

Maa Siddhidatri beej mantra: मां सिद्धिदात्री बीज मंत्र

ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:

siddhidatri mata ki aartiनवरात्रि नौवें दिन की आरती

जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता। तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥

तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥

रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥

तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा। महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता। भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥ [4]

Siddhidhatri का दाता रूप हमें देता है दानदाता बनने की प्रेरणा

देवी के दात्री रूप की आराधना कर भक्त 8 प्रकार की सिद्धियों को वरदान में पा सकते हैं और इस सिद्धि का सीधा सरल मार्ग है ईश्वर की भक्ति। परंपरा की मानें तो दो ही प्रकार से ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है जिसमें से एक आसान मार्ग भक्ति है। नवरात्र के इन पावन दिनों में सच्ची भक्ति और योग साधना ही वह मार्ग है जो ईश्वर तक जाने का द्वार खोलता है। वहीँ व्यक्ति भी माता के इस रूप से दानदाता बनने की एक सीख लेकर अपने व्यक्तिगत लाभ को एक तरफ रखकर समाज में अपना योगदान दे सकता है।  

Kalratri Mata-7th day of Navratri

Devi Kalaratri: माता कालरात्रि

navarathri goddess मां दुर्गा की सप्त शक्ति का नाम देवी कालरात्रि है। इनके नाम से साफ़ झलकता है काल की रात। saptami के दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में अवस्थित होता है इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति को संसार  की सारी सिद्धि और निधि (विद्या, धन, शक्ति) प्राप्त होती है।

Devi (Durga) के अनेक नाम है जैसे भद्रकाली, महाकाली, भैरवी, चामुंडा और चंडी आदि। इन्हें ही देवी काली की संज्ञा दी है कालरात्रि और महाकाली दोनों ही नाम एक दूसरे के पूरक है। इनकी पूजा से भूत, पिशाच और सभी नकारात्मक बुरी शक्तियां नष्ट हो जाती है और व्यक्ति सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ता है। देवी के रूप को देखें तो यह बहुत भयानक प्रतीत होता है लेकिन सच्चे मन से भक्ति करने पर माता शुभ फल देती हैं इसलिए इन्हें शुभंकरी के नाम से भी पुकारा जाता है। देवी कालरात्रि की उपासना करने से जीव-जंतु भय, अग्नि भय, जल भय, रात्रि भय और भूत पिशाच भय कभी नहीं होते।  [1]

कालरात्रि की पौराणिक कथा

navratri day 7 देवी कालरात्रि से जुड़ी एक कथा के अनुसार एक रक्तबीज नामक राक्षस था जिससे सभी देवता परेशान थे और देवताओं की परेशानी की जड़ थी रक्तबीज का रक्त। दरअसल राक्षस का रक्त जिस भी स्थान पर गिरता था वहां बिल्कुल रक्तबीज जैसा नया दानव बन जाता था। सभी देवता परेशान होकर भगवान शिव के पास पहुंचे।  भगवान शिव ने समाधान स्वरुप देवी पार्वती का नाम लिया और कहा कि केवल देवी पार्वती ही इस दानव का वध कर सकती हैं। पार्वती ने रक्तबीज के खात्मे के लिए ही कालरात्रि रूप का सृजन किया था। कालरात्रि ने जब दानव का वध किया तो उसका रक्त धरती पर गिरने के बजाय अपने मुख में भर लिया और सभी देवताओं की चिंता का हल निकाल लिया। [2]

महाभारत के अंत में क्यों प्रकट हुई थी मां कालरात्रि

जब महाभारत में कौरवों की सेना हार के चरम पर थी उस वक़्त अश्वतथामा ने अपने पिता द्रोणाचार्य की मौत का बदला लेने के लिए आक्रोश में आकर दृष्टद्युम्न समेत पाडंवों के पाँचों पुत्र की हत्या कर दी थी। युद्ध में की गई बेईमानी को देखकर ही देवी कालरात्रि वहां प्रकट हुई थी।

Maa kalratri puja vidhi in hindi: पूजा विधि

1. देवी मां की तस्वीर या प्रतिमा पर प्रातःकाल गंगाजल छिड़कें।  

2. इसके पश्चात navratri 7th day colour तथा देवी का प्रिय लाल रंग का वस्त्र चढ़ाएं और सिन्दूर अर्पित करें।   

3. मिष्ठान, पंच मेवा, पंच फल और पंचामृत वाला नैवैद्य अर्पित करें।  

4.  इन सब क्रिया के बाद 108 बार मंत्र का जाप करें इससे माता रानी की कृपा भक्तों पर अवश्य बनी रहेगी।  

Kaal ratri mantra: कालरात्रि मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

Kalratri Mata प्रार्थना मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥

Kalratri Mata जाप मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः।। [3]

ईमानदारी की राह पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं देवी कालरात्रि

Durgaspatashati के दिन पूजी जाने वाली माता कालरात्रि व्यक्ति को ईमानदारी की राह पर जाने के लिए प्रेरित करती है और ऐसा नहीं होने पर वे भक्तों को संकेत भी दिया करती हैं। सही राह पर चलने का उदाहरण महाभारत के प्रसंग से लिया जा सकता है. सच्चे मन से देवी की आराधना करने वह व्यक्ति संसार के सभी भय से मुक्त हो जाता है और सच्चाई के रास्ते पर अग्रसर होता है। 

Mata Katyayani – 6th Day of Navratri

Maa Katyayani: माता कात्यायनी

6th day of navratri पर पूजी जाने वाली मां दुर्गा का नाम मां कात्यायनी है। कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन ने अपनी कठिन तपस्या के माध्यम से देवी को अपनी पुत्री स्वरुप प्राप्त किया था। आपको बता दें कि योग साधना के छठे दिन साधना करने वाले का मन आज्ञा चक्र में अवस्थित रहता है और आज्ञा चक्र में ध्यान लगे होने के कारण व्यक्ति आज्ञा स्वरूप अपना सब कुछ देवी के चरणों में अर्पित कर देता है। इनकी चार भुजाओ में अस्त्र-शस्त्र और कमलपुष्प है, देवी सिंह पर विराजमान है। देवी कात्यायनी को महिषासुरमर्दिनि के नाम से भी पुकारा जाता है।

navarathri goddess को साधक रूप में पूजने से चार महत्वपूर्ण तत्व जिनमें धर्म, अर्थ, कर्म, और मोक्ष शामिल है की प्राप्ति की जा सकती है। क्योंकि इस वक़्त साधक का मन आज्ञा चक्र में विद्यमान होता है। ऐसे में देवी की साधना करने वाला व्यक्ति उनके समक्ष सभी तरह के पाप-पुण्य अर्पित कर देता है एक तरह से देखा जाए अपना सब कुछ वह देवी के सामने न्यौछावर कर देता है।  [1]

Mata Katyayani Ki Katha: माता कात्यायनी की पौराणिक कथा

मां का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसके पीछे भी एक कहानी जुड़ी हुई है दरअसल जब पृथ्वी लोक पर असुर महिषासुर का आतंक बहुत बढ़ गया था उस वक़्त ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने अपनी शक्तियों के सम्मिश्रण से देवी शक्ति को जन्म दिया। सबसे ख़ास बात यह कि जन्म के पश्चात सर्वप्रथम देवी को पूजने वाले महर्षि कात्यायन ही थे इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। [2]

गोपियों से देवी का संबंध

मां कात्यायिनी का श्री कृष्ण और गोपियों से भी संबंध है। बताते चलें कि ब्रज की गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण को अपने पति के रूप में पाने के लिए कालिंदी जमना के तट पर देवी कात्यायिनी की आराधना की थी जिस कारण से ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के नाम से भी जानी जाती है।

Maa Katyayani Beej Mantra: माँ कात्यायनी बीज मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

Katyayani devi jaap Mantra: कात्यायनी देवी जाप मंत्र

ॐ देवी कात्यायन्यै नम:॥

Mata Katyayani Mantra: माता कात्यायनी प्रार्थना मंत्र

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

Devi Katyayani Ki Puja Vidhiदेवी कात्यायनी की पूजा विधि

1.6th day of navratri colour : षष्ठी पर गोधूलि वेला में पीले कपड़े पहनने चाहिए।  

2. देवी को पीले फूल और पीला वस्त्र अर्पित करें। 

3. साथ ही माता को हल्दी अर्पण करने से उनकी असीम कृपा बरसेगी।  

4. भोग स्वरुप शहद चढ़ाना चाहिए। 

Katyayni Vrat For Marriage

कुंडली में किसी तरह के दोष होने पर यदि इनकी आराधना की जाए तो वह दोष समाप्त हो जाता है। वैवाहिक जीवन में किसी तरह की परेशानी दूर करने के लिए इनकी पूजा लाभकारी है। जल्दी विवाह के लिए भी देवी की पूजा की जाती है। 

महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देता Maa Katyayani का रूप

इस कहानी में सबसे प्रभावकारी वह कथा है जिसमें महर्षि कात्यायन देवी को बेटी के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करते हैं और उनकी तपस्या सफल हो भी जाती है। एक महर्षि की पुत्री के रूप में जन्मी देवी कात्यायनी साहसी, ऊर्जावान, बौद्धिक और कौशल क्षमता की धनी व्यक्तित्व की हैं जो आज के समाज की स्त्री के सामने बड़ा उदाहरण पेश करती हैं और हर बुरी परिस्थिति में लड़ने के लिए हिम्मत भी प्रदान करती है।

Maa Brahmacharini- 2nd Day of Navratri

Mata Brahmacharini: माता ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दुसरे दिन ब्रह्मचारिणी मां की पूजा की जाती है। ब्रह्मचारिणी नाम के पीछे के रहस्य के बारे में बात करें तो इसका तात्पर्य तपस्या करने वाली देवी से है क्योंकि ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाले। इस दिन माता पार्वती के युवा कन्या रूप की आराधना की जाती है और कुंडलिनी शक्तियों को जगाया जाता है। ऐसी  मान्यता है कि जो भी देवी के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा अर्चना पूरे मन से करता है उसमे तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। [1]

Brahmacharini Story: ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा

देवी पार्वती ने अपने पूर्वजन्म में नारद जी के उपदेश देने के बाद भगवान शिव को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था और उन्हें पाने के लिए कठिन तपस्या की थी इसलिए उनके इस रूप को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। इस शब्द का संधि विच्छेद करने से पता चलता है कि ब्रह्म- अर्थात् तपस्या तथा चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली।

सती के रूप में अपने आप को यज्ञ में झोंक देने के बाद देवी ने हिमालय राज की बेटी शैलपुत्री या हेमावती के रूप में जन्म लिया। जब देवी पार्वती अपनी युवावस्था में आईं उस वक़्त नारद जी ने उन्हें बताया कि यदि वे तपस्या के मार्ग पर आगे बढ़ती हैं तो उन्हें अपने पूर्व जन्म के पति का साथ दोबारा मिल सकता है, नारद जी की इस बात को मानकर देवी पार्वती ने कठिन तपस्या का मार्ग चुना। 

देवी के इस मार्ग में कई तरह के पड़ाव आये। अपने इस पहले पड़ाव में हज़ारों सालों तक शाख पर रहकर दिन व्यतीत किये और इसके अगले वर्षों तक उन्होंने कठोर तपस्या करते हुए फल-मूल खाकर बिताये। कई वर्षों तक कठोर व्रत करते हुए खुले आसमान में वर्षा, धूप और सर्दी के सभी कष्ट झेले और अपनी तपस्या को आगे जारी रखा। उनकी इस तपस्या में तीसरा पड़ाव आया जब उन्होंने धरती पर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर जीवन का निर्वाह किया। उसके बाद निर्जल रहकर उन्होंने अपनी तपस्या को आगे बढ़ाया। देवी पार्वती की इसी कठोर तपस के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से पुकारा जाता है और नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी के रूप में इनकी पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार देवी पार्वती यानी ब्रहमचारिणी ने लगभग 5000 हज़ार वर्षों तक कठिन तपस्या की थी. [2]

Maa Brahmacharini Puja Vidhi: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

1. प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए हाथ में पुष्प लेकर माता का ध्यान करें। 

2. ध्यान करने  के पश्चात देवी को पंचामृत से स्नान कराएं।  

3. विभिन्न प्रकार के फूल, कुमकुम, सिन्दूर आदि माता को अर्पित करें। 

4. इन सभी क्रियाओं के बाद देवी का ध्यान करते हुए नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें।  

BRAHAMCHARINI MANTRA: ब्रह्मचारिणी मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

BRAHAMCHARINI DEVI PRARTHANA MANTRA: ब्रह्मचारिणी देवी प्रार्थना मंत्र

दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। 

देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

DEVI BRAHAMCHARINI JAAP MANTRA: देवी ब्रह्मचारिणी जाप मंत्र :

ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

ब्रह्मचारिणी देवी का आधुनिक समाज में महत्व

आधुनिकता के इस दौर में लोगों की दिनचर्या भोग-विलास और भौतिक सुखों से आगे बढ़ ही नहीं पा रही है। यह धुन लोगों पर इस हद तक सवार है कि वे अपने जीवन का मूल लक्ष्य ढूंढने के बजाय विलासिता में डूबे हुए हैं। ऐसे में देवी ब्रह्मचारिणी का रूप उनके लिए बहुत बड़ा उदहारण है कि कैसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को त्याग और सयंम बरतकर कर्म करना चाहिए।

हिन्दू धर्म में माता ब्रह्मचारिणी का महत्व : IMPORTANCE OF MATA BRAHAMCHARINI


माता ब्रह्मचारिणी पूरे जगत में विद्यमान चर और अचर विद्याओं की देवी है। वे एक श्वेत वस्त्र धारण की हुई कन्या या पुत्री के रूप में जगत में विख्यात है। इनकी सवारी बाघिन है। उनके दाहिने हाथ में एक जाप माला और बाएं हाथ में कमण्डलु है। त्याग और संयम के गुण लिए मां ब्रह्मचारिणी समाज को धैर्य और निरंतर प्रयासरत रहने की प्रेरणा देती है।  

क्या खाएं और क्या पहनें ? WHAT TO WEAR AND WHAT TO EAT


नवरात्रि में तामसिक भोजन ग्रहण करना वर्जित है। ब्रह्मचारिणी देवी को श्वेत रंग बेहद प्रिय है इसलिए इस दिन सफ़ेद वस्त्र और खाने में दूध और उससे बने पदार्थ ही ग्रहण किये जाएं तो देवी की असीम कृपा होगी। इसी के साथ आपको यह भी बताते चलें कि माता को नवरात्रि के दूसरे दिन चीनी और पंचामृत का भोग भी लगाया जाता है।

ब्रह्मचारिणी की पूजा कैसे करें?


1. प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात हाथ में कमल पुष्प लेकर देवी का ध्यान करें। 

2. इसके बाद नीचे दिए गए मंत्र का 108 बारी जाप करें। 
 
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥  

3. देवी ब्रह्मचारिणी की व्रत कथा पढ़कर भी पूजा अर्चना की जा सकती है। 

Ashwin Month Navratri: Why is navratri celebrated?

नवऱात्रि मनाये जाने का महत्व

नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ तो नौ रातें हैं लेकिन गहराई में उतरे तो ज्ञात होता है वह नौ रातें जो दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित हों।  यह नौ पवित्र दिन शक्ति पूजा के लिए है, योग साधना के लिए हैं, मां को प्रसन्न करने के लिए हैं। मनुष्य के शरीर में नौ छिद्र है दो आँख, दो कान, दो नाक, दो गुप्तांग और एक मुँह। इन पवित्र दिनों में व्यक्ति इन्हीं छिद्रों का शुद्धिकरण कर छठी इंद्री को जगाने का प्रयास करता है। 

हिन्दू पांचांग के अनुसार तो साल में चार बार नवरात्रि आते हैं लेकिन साल में दो ही बार इसे मनाये जाने की परंपरा  है। एक तो चैत्र नवरात्रि के रूप में और दूसरी अश्विनी नवरात्रि के रूप में। दोनों ही नवरात्रों का अपना अलग ख़ास महत्व है और आज हम 7 अक्टूबर को पड़ने वाले शारदीय नवरात्री के बारे में बात करेंगे। अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष से प्रारम्भ होने वाले शारदीय नवरात्रि का नाम शारद ऋतू के चलते शारदीय पड़ा। ध्यान देने योग्य बात यह है कि दो तिथियां एक साथ पड़ने के कारण इस बार आठ ही दिन तक पूजन किया जाएगा। [1]

How to do puja at home

नवरात्रि में दुर्गा मां को प्रसन्न करने  का सबसे सरल उपाय है दुर्गा सप्तशती का पाठ करना। दुर्गा सप्तशती महर्षि व्यास ने मार्कण्डेय पुराण से ली है इसमें 700 श्लोकों का समावेश होने के कारण इसे सप्तशती कहा गया है। सप्तशती का पाठ करने से व्यक्ति के सारे दुःख और परशानी दूर हो जाती है।

आखिर क्यों जलाई जाती है अखंड जोत

नवरात्रि में अखंड जोत जलाये जाने के पीछे महत्व यह है कि पूरे नौ दिन अखंड जोत जलाने से प्रकृति के सभी अवरोध समाप्त हो जाते हैं वातावरण शुद्ध हो जाता है और सारी नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती है।

पौराणिक कथा

नवरात्र से जुड़ी दो पौराणिक कथाएं प्रचलन में है। जिसमें से एक का जिक्र तो हिंदी साहित्य के बड़े साहित्यकार निराला जी ने अपनी कविता राम की शक्ति पूजा में किया है। जबकि दूसरी कहानी टेलीविज़न पर कई बार प्रदर्शित की जाती है जिसमें से महिषासुर नामक एक राक्षस होता है जिसका वध करने के लिए देवी का जन्म हुआ था।

ऐसा माना जाता है कि रावण को हराने के लिए प्रभु श्री राम ने लगातार नौ दिन रामेश्वरम में शक्ति पूजा की थी और दुर्गा मां से वरदान मिलने के पश्चात ही श्री राम रावण का वध कर पाने में सक्षम हो पाए थे।

वहीँ दूसरी कथा महिषासुर राक्षस के वध से जुड़ी है। महिषासुर नामक एक राक्षस था। वह ब्रह्मा जी का बहुत बड़ा भक्त था। उसने अपनी कठोर तपस्या के माध्यम से ब्रह्माजी को खुश किया और वरदान प्राप्त कर मांगा कि कोई भी देव, दानव या धरती पर रहने वाला कोई भी व्यक्ति उसे मार नहीं पाएगा। यह वरदान मिलने के बाद महिषासुर क्रूर हो गया और उसने तीनो लोको में आतंक मचाना प्रारंभ कर दिया। इस बात से तंग होकर ब्रह्मा, विष्णु, शिव ने मिलकर मां शक्ति के रूप में दुर्गा को जन्म दिया। दुर्गा माता के साथ राक्षस के नौ दिनों तक चले भीषण युद्ध में अंततः दुर्गा मां की जीत हुई और महिषासुर मारा गया जिसके बाद से यह दिन बुराई पर अच्छे की जीत की नाम से मनाया जाता है। रोचक तथ्य यह है कि दुर्गा मां के कात्यायिनी स्वरुप ने राक्षस महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनि के नाम से पुकारा जाता है। 

इन ३ देवियों का नवरात्रि में होता है खाश महत्व

नवरात्रि में देवियों को पूजने की मान्यता है लेकिन इसी के साथ ही देवियों के दिन को तीन भागों में भी विभाजित किया गया है।

बताते चलें कि शुरुआत के तीन दिन देवी पार्वती को समर्पित जिसमें से पहले दिन देवी को कन्या के रूप में पूजा जाता है दूसरे दिन युवा स्त्री के रूप में देवी को पूजा जाता है वहीँ तीसरे दिन एक परिपक्व स्त्री के रूप में पार्वती का पूजन होता है।  

मध्य के तीन दिन देवी लक्ष्मी को समर्पित हैं क्योंकि मां लक्ष्मी धन, वैभव और सौभाग्य की देवी हैं इसलिए इन तीन दिनों में मन के सभी विकार जैसे लोभ, ईर्ष्या, वासना, क्रोध, घृणा से मुक्ति पाकर और शून्यता के स्तर तक पहुंचकर ही व्यक्ति लक्ष्मी मां को प्रसन्न कर सकता है।

आखिरी के तीन दिन देवी सरस्वती की अराधना के लिए है इन तीन दिनों में बौद्धिक और कौशल क्षमता के विकास के लिए देवी की पूजा की जाती है। अंत में नौंवे दिन दुर्गा अष्टमी होती है जिस दिन दुर्गा मां को बड़ी ही धूमधाम से विदा किया जाता है। [2]

नवरात्रि मनाये जाने के पीछे वैज्ञानिक तर्क

नवरात्रि मनाने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि दोनों ही नवरात्रे  ऐसे मौसम में आते हैं जब न तो ज्यादा गर्मी होती है न ही ज्यादा सर्दी ऐसे में व्यक्ति को अपने शरीर का ख़ास ध्यान रखने की आवश्यकता होती है इसलिए इस दौरान या तो व्यक्ति को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए या फिर व्रत रखना चाहिए।

Navratri Calender 2021

  • (पहला दिन) 7 अक्टूबर-  मां शैलपुत्री 
  • (दूसरा दिन) 8 अक्टूबर – मां ब्रह्मचारिणी
  • (तीसरा दिन) 9 अक्टूबर – मां चंद्रघंटा और मां कुष्मांडा
  • (चौथा दिन)10 अक्टूबर- मां स्कंदमाता
  • (पांचवा दिन)11 अक्टूबर- मां कात्यायनी
  • (छठां दिन)12 अक्टूबर- मां कालरात्रि
  • (सातवां दिन)13 अक्टूबर-मां महागौरी
  • (आठवां दिन)14 अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री
  • (नौंवा दिन)15 अक्टूबर- विजय दशमी[3]
How long is Navratri?

हिंदु पंचांग के मुताबिक शारदीय नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार, 7 अक्टूबर 2021 से होगी और 15 अक्टूबर 2021 को समाप्त होगी और गुरुवार, 7 अक्टूबर को नवरात्रि के प्रथम दिवस पर कलश स्थापना की जाएगी। अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नवरात्री का प्रारम्भ होता है, सनातन धर्म में अश्विनी मास का महत्व बहुत अधिक है क्योंकि इस महीने में पितृ और देव दोनों की कृपा भक्तों पर बरसती है।

Nav Durga Name

1. देवी शैलपुत्री : पहाड़ों की बेटी।  
2. देवी ब्रह्मचारिणी : तपस्या की देवी। 
3. देवी चंद्रघंटा : चंद्रमा की भांति चमक रखने वाली।  
4. देवी कुष्मांडा : पूरे लोक को अपने चरणों में रखने वाली।  
5 .देवी स्कंदमाता : कार्तिक स्वामी की देवी।  
6. देवी कात्यायनी : कात्यायन आश्रम में जन्म लेने वाली।  
7. देवी कालरात्रि : काल का सर्वनाश करने वाली।  
8. देवी महागौरी : श्वेत रंग वाली देवी।  
9. देवी सिद्धिदात्री : सिद्धि प्रदान करने वाली।  

Why onion and garlic are not eaten in Navratri?

नवरात्रि के दौरान तामसिक भोजन वर्जित है क्योंकि शक्ति पूजा के लिए सात्विक रहना अनिवार्य है। ऐसा माना जाता है कि सात्विक भोजन ग्रहण करने से व्यक्ति का मस्तिष्क और मन पवित्र व शांत रहता है। लहसुन, प्याज, मांस और मदिरा सभी तामसिक भोजन में गिने जाते है और यह सभी आहार राक्षसी प्रवृति के लोगों का भोजन होता है इन्हें ग्रहण करने से व्यक्ति में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। जबकि आध्यात्मिक क्षेत्र में उन्नति के लिए सकारात्मक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। 

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