Why do we celebrate Dussehra?

दशहरा कब मनाया जाता है

Hindu calendar में month Ashvin की दशमी तिथि (शुक्ल पक्ष) को Dussehra मनाया जाता है। जिस प्रकार नवरात्र में Devi (Durga) के नौ रूपों ने लगातार नौ दिन तक भीषण युद्ध लड़कर दसवें दिन संसार को असुरों से मुक्ति दिलाई थी उसी प्रकार vijaya dashami के दिन प्रभु श्री राम ने रावण का अंत कर बुराई को जड़ से समाप्त कर दिया था। इसलिए चाहे इस पर्व को राम द्वारा रावण का वध किये जाने के रूप में मनाया जाए या फिर दुर्गा द्वारा महिषासुर का संहार किये जाने के रूप में दोनों ही तरह से यह बुराई पर अच्छाई की विजय है और उत्सव मनाये जाने की प्रमुख वजह भी। दशहरा संस्कृत भाषा का एक शब्द है जिसका तात्पर्य है सभी 10 पापों को मिटाना क्योंकि रावण के दस सिर 10 पापों का प्रतीक है जिसका सर्वनाश श्री राम ने किया था। [1

आइये जानते हैं Vijayadashmi Dashara ki kahani

सर्वप्रथम तो Vijayadashami durga puja के अंत की सूचक है क्योंकि इस दिन ब्रह्मा-विष्णु-महेश की मिश्रित शक्ति से बनी navarathri goddess देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर धर्म की रक्षा की थी वहीँ विजयदशमी को जब दशहरा के नाम से बुलाया जाता है तब इसे राम द्वारा रावण के वध किये जाने से जोड़कर देखा जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने लगातार 9 दिनों तक लंका में रहकर रावण से युद्ध किया और फिर 10वें दिन यानी विजयदशमी के ही दिन श्री राम ने रावण की नाभ‍ी में तीर मारकर युद्ध पर पूर्णविराम लगाया था।

रावण का वध किये जाने के पीछे एक कहानी यह भी प्रचलित है कि भगवान श्री राम ने दुर्गा मां की निरंतर नौ दिनों तक उपासना की थी। देवी ने भगवान श्री राम की परीक्षा लेते हुए उनकी पूजा में रखे गए कमल के पुष्पों में से एक पुष्प गायब कर दिया था जब पूजा में एक फूल कम पड़ा तो राम ने अपने कमल नयन देवी को अर्पित करने की ठान ली। राम की सच्ची श्रद्धा देख देवी प्रसन्न हुई और उन्होंने प्रभु श्री राम को रावण का वध किये जाने का वरदान दिया तब जाकर श्री राम दशानन रावण का खात्मा करने में सक्षम हो पाए।

इसे मनाये जाने का तीसरा कारण महाभारत से जुड़ा हुआ है दरअसल महाभारत में पांडवों ने अपने शस्त्रों को शमी नामक वृक्ष पर ही छिपाया था और उन्हीं हथियारों के जरिये कौरवों को रणभूमि में मात दी थी यही वजह है कि इस दिन क्षत्रिय समाज के लोग शस्त्रों की पूजा-अर्चना करते हैं। [2]

विजयादशमी क्यों मनाई जाती है?

Dussehra मनाये जाने की पौराणिक कथा के अलावा इसके पीछे सांस्कृतिक कारण भी हैं जिसके अभाव में इस पर्व के महत्व को समझना बहुत कठिन है। दशहरे के सांस्कृतिक पहलू की बात करें तो कृषि प्रधान भारत में जब किसान खेत में फसल उगाकर अन्न अपने घर लेकर आता है तो उस वक़्त किसान की ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता। इसी ख़ुशी के मौके पर वह भगवान का पूजन करता है और अपना हर्ष व्यक्त करता है। इसी के साथ आपको यह भी बताते चलें कि पूरे भारत में vijayadashmi अलग अलग तरीके से मनाई जाती है। उदहारणस्वरुप महाराष्ट्र में इस मौके पर ‘सिलंगण’ के नाम से उत्सव मनाये जाने का प्रचलन है। [3]

मात्र एक त्यौहार नहीं दशहरा

दशहरा केवल एक पर्व नहीं है बल्कि समाज को शिक्षा देने का पौराणिक माध्यम है जिससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं जैसे बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी सच्चाई का साथ देना, मित्रता को बनाये रखने और संबंधों को निभाने की कला सीखना, निस्वार्थ भाव से किसी की सहायता करना आदि। इन सभी विशेषताओं को यदि एक लाइन में समाहित किया जाए तो यह आतंक पर आदर्शवाद की विजय तथा क्रूरता पर अनुशासन की जीत है।

Maa Skandmata- 5th Day of Navratri

Maa Skandamata: मां स्कंदमाता

5th day of navratri में दुर्गा मां के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है। यह पांचवा रूप माता का है जिसमें ममता और स्नेह का समावेश है। जैसा कि देवी के नाम से ही प्रदर्शित होता है भगवान स्कंद की माता। चार भुजाओं, तीन आंखे और सिंह की सवारी करने वाली माता कुमार कार्तिकेय यानी भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय की माता है। इस पांचवे रूप में भगवान कार्तिकेय बालक रूप में माता की गोद में विराजमान है। देवी कमल से बने आसन पर सदैव विराजमान रहती हैं इसलिए इन्हें पद्मासन के नाम से भी पुकारा जाता है।

स्कंदमाता के स्वरुप की बात करें तो इनके दाहिने ओर की ऊपर वाली भुजा में कुमार कार्तिकेय को पकड़े हैं वहीँ दाहिनें हाथ में ही नीचे की ओर से जो ऊपर की ओर उठी हुई भुजा में कमलपुष्प लिए हुए है। बाई तरफ के ऊपर वाला हाथ वरमुद्रा में है वहीँ बाई तरफ से नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमे भी कमलपुष्प ही विराजमान है।

Skandamata ki katha: स्कंदमाता की पौराणिक कथा

देवी पार्वती का पांचवा रूप उनके ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय की मां के रूप में विख्यात है इनसे जुड़ी कहानी की बात करें तो माता को अपने पुत्र से अधिक स्नेह है इसलिए उन्हें स्कंदमाता के नाम से बुलाया जाता है। मान्यता के अनुसार यदि navarathri goddess स्कंदमाता की उपासना सच्चे मन से की जाए तो कार्तिकेय के बालरूप की पूजा भी स्वयं हो जाती है और व्यक्ति को दोनों का फल मिलता है। देवी के स्कन्द रूप को पूजने से व्यक्ति को समस्त दुखों से निजात मिलती है और माता का स्नेह भक्तों पर हमेशा के लिए बना रहता है।  

स्कन्दमाता की कथा के अनुसार ताड़कासुर नामक राक्षस के आतंक से तीनों लोक काफी परेशान थे और मिले वरदान के मुताबिक़ ताड़कासुर का वध केवल शिव के पुत्र के द्वारा ही किया जा सकता था। असुर के खात्मे के लिए देवी ने स्कन्द रूप में ही अपने ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रक्षिशण प्रदान किया था।  

Skandamata Puja Vidhi: पूजा विधि

1. सर्वप्रथम प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात माता की चौकी पर तस्वीर सामने रखें।

2.  तस्वीर को गंगाजल से शुद्ध करने के बाद माता को कुमकुम लगाएं।  

3. navratri 5th day colour पीला वस्त्र और पीला नैवैद्य अर्पित करने से देवी प्रसन्न होती है।   

4. साथ ही इलाइची का भोग लगाना भी शुभ माना जाता है।  

5. 108 बार मंत्र जाप करने से माता की असीम कृपा होती है और संतान प्राप्ति के लिए भी यह उपाय काफी लाभकारी है।   

Skanda Mata Mantra: स्कंदमाता मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

Maa Skandamata Beej Mantra: बीज मंत्र

ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।

Skanda Mata Praarthana Mantra : स्कंद माता प्रार्थना मंत्र

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

Significance of 5th day of navratri: युद्ध मुद्रा से ममता की ओर जाता देवी का रूप

स्कंदमाता का स्वरुप एक मां की ममता और स्नेह को दर्शाता है जहां एक तरफ मां के अन्य रूप संसार में मौजूद समस्त बुरी शक्तियों का सर्वनाश करते हैं वहीँ devi durga का पांचवा रूप अपने युद्ध वाली मुद्रा को त्यागकर प्रेम और ममता का उदहारण पेश करता है।

Maa Brahmacharini- 2nd Day of Navratri

Mata Brahmacharini: माता ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दुसरे दिन ब्रह्मचारिणी मां की पूजा की जाती है। ब्रह्मचारिणी नाम के पीछे के रहस्य के बारे में बात करें तो इसका तात्पर्य तपस्या करने वाली देवी से है क्योंकि ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाले। इस दिन माता पार्वती के युवा कन्या रूप की आराधना की जाती है और कुंडलिनी शक्तियों को जगाया जाता है। ऐसी  मान्यता है कि जो भी देवी के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा अर्चना पूरे मन से करता है उसमे तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। [1]

Brahmacharini Story: ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा

देवी पार्वती ने अपने पूर्वजन्म में नारद जी के उपदेश देने के बाद भगवान शिव को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था और उन्हें पाने के लिए कठिन तपस्या की थी इसलिए उनके इस रूप को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। इस शब्द का संधि विच्छेद करने से पता चलता है कि ब्रह्म- अर्थात् तपस्या तथा चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली।

सती के रूप में अपने आप को यज्ञ में झोंक देने के बाद देवी ने हिमालय राज की बेटी शैलपुत्री या हेमावती के रूप में जन्म लिया। जब देवी पार्वती अपनी युवावस्था में आईं उस वक़्त नारद जी ने उन्हें बताया कि यदि वे तपस्या के मार्ग पर आगे बढ़ती हैं तो उन्हें अपने पूर्व जन्म के पति का साथ दोबारा मिल सकता है, नारद जी की इस बात को मानकर देवी पार्वती ने कठिन तपस्या का मार्ग चुना। 

देवी के इस मार्ग में कई तरह के पड़ाव आये। अपने इस पहले पड़ाव में हज़ारों सालों तक शाख पर रहकर दिन व्यतीत किये और इसके अगले वर्षों तक उन्होंने कठोर तपस्या करते हुए फल-मूल खाकर बिताये। कई वर्षों तक कठोर व्रत करते हुए खुले आसमान में वर्षा, धूप और सर्दी के सभी कष्ट झेले और अपनी तपस्या को आगे जारी रखा। उनकी इस तपस्या में तीसरा पड़ाव आया जब उन्होंने धरती पर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर जीवन का निर्वाह किया। उसके बाद निर्जल रहकर उन्होंने अपनी तपस्या को आगे बढ़ाया। देवी पार्वती की इसी कठोर तपस के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से पुकारा जाता है और नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी के रूप में इनकी पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार देवी पार्वती यानी ब्रहमचारिणी ने लगभग 5000 हज़ार वर्षों तक कठिन तपस्या की थी. [2]

Maa Brahmacharini Puja Vidhi: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

1. प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए हाथ में पुष्प लेकर माता का ध्यान करें। 

2. ध्यान करने  के पश्चात देवी को पंचामृत से स्नान कराएं।  

3. विभिन्न प्रकार के फूल, कुमकुम, सिन्दूर आदि माता को अर्पित करें। 

4. इन सभी क्रियाओं के बाद देवी का ध्यान करते हुए नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें।  

BRAHAMCHARINI MANTRA: ब्रह्मचारिणी मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

BRAHAMCHARINI DEVI PRARTHANA MANTRA: ब्रह्मचारिणी देवी प्रार्थना मंत्र

दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। 

देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

DEVI BRAHAMCHARINI JAAP MANTRA: देवी ब्रह्मचारिणी जाप मंत्र :

ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

ब्रह्मचारिणी देवी का आधुनिक समाज में महत्व

आधुनिकता के इस दौर में लोगों की दिनचर्या भोग-विलास और भौतिक सुखों से आगे बढ़ ही नहीं पा रही है। यह धुन लोगों पर इस हद तक सवार है कि वे अपने जीवन का मूल लक्ष्य ढूंढने के बजाय विलासिता में डूबे हुए हैं। ऐसे में देवी ब्रह्मचारिणी का रूप उनके लिए बहुत बड़ा उदहारण है कि कैसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को त्याग और सयंम बरतकर कर्म करना चाहिए।

हिन्दू धर्म में माता ब्रह्मचारिणी का महत्व : IMPORTANCE OF MATA BRAHAMCHARINI


माता ब्रह्मचारिणी पूरे जगत में विद्यमान चर और अचर विद्याओं की देवी है। वे एक श्वेत वस्त्र धारण की हुई कन्या या पुत्री के रूप में जगत में विख्यात है। इनकी सवारी बाघिन है। उनके दाहिने हाथ में एक जाप माला और बाएं हाथ में कमण्डलु है। त्याग और संयम के गुण लिए मां ब्रह्मचारिणी समाज को धैर्य और निरंतर प्रयासरत रहने की प्रेरणा देती है।  

क्या खाएं और क्या पहनें ? WHAT TO WEAR AND WHAT TO EAT


नवरात्रि में तामसिक भोजन ग्रहण करना वर्जित है। ब्रह्मचारिणी देवी को श्वेत रंग बेहद प्रिय है इसलिए इस दिन सफ़ेद वस्त्र और खाने में दूध और उससे बने पदार्थ ही ग्रहण किये जाएं तो देवी की असीम कृपा होगी। इसी के साथ आपको यह भी बताते चलें कि माता को नवरात्रि के दूसरे दिन चीनी और पंचामृत का भोग भी लगाया जाता है।

ब्रह्मचारिणी की पूजा कैसे करें?


1. प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात हाथ में कमल पुष्प लेकर देवी का ध्यान करें। 

2. इसके बाद नीचे दिए गए मंत्र का 108 बारी जाप करें। 
 
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥  

3. देवी ब्रह्मचारिणी की व्रत कथा पढ़कर भी पूजा अर्चना की जा सकती है। 
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