Ramayan | रामायण
एक समय था जब भगवान श्री राम (Bhagwan Shri ram) ने नदी को पवित्र करने के लिए अपने चरण नदी मे डुबोए तब नदी खून जैसी लाल हो गई और उसमे बड़े बड़े कीड़े पनपने लगे । पर ऐसा क्यूँ हुआ होगा? चलिए बताते है आज के इस लेखन में ।
कहते है शबरी श्री राम की परम भक्तों मे से एक थी, शबरी भील कबीले से थी और भील समाज में शुभ अवसर पर पशुओं की बलि दी जाती थी, लेकिन शबरी पशु-पक्षियों से बेहद प्यार किया करती थी, इसलिए शबरी ने कभी विवाह नहीं किया क्यूँ की विवाह के शुभ अवसर पर भी जानवरों की बलि दी जाती है और इसलिए वह अपने कबीले से भाग कर मातंग ऋषि के आश्रम मे सेवा करने लागि ।
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शबरी प्रभु श्री राम की भक्ति मे लीन रहती थी और मातंग ऋषि से धर्म और शस्त्रों का ज्ञान लिया करती थी । मातंग ऋषि त्रिकाल दर्शी थे । शबरी की निस्वार्थ सेवा देखकर बेहद प्रसन्न हो गए थे और जब मातंग ऋषि का अंतिम समय निकट था तब उन्होंने शबरी को आशीर्वाद दिया था, की एक दिन भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्री राम शबरी की कुटिया मे आकार उन्हे साक्षात दर्शन देंगे, जिसके बाद शबरी को मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी ।
जब शबरी ने पूछा की श्री राम कब आएंगे तब मातंग ऋषि ने जवाब दिया, तुम उनकी प्रतीक्षा करते रहना, वो जरूर आएंगे ।
लेकिन तब तक प्रभु श्री राम का जन्म भी धरती पर नहीं हुआ था ।
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शबरी कुटिया मे रहकर रोज भगवान श्री राम के आने का इंतज़ार करती थी, वो रोज उसके आश्रम के रास्ते से कांटे पत्थर झाड कर, रास्ते मे फूल बिछाया करती थी और जंगल से ताजे फल ला कर प्रभु श्री राम के लिए रखा करती थी ।
ऐसा करते करते शबरी को 1000 साल बीत गए , लेकिन ऐसा कोई दिन नहीं था शबरी ने प्रभु श्री राम के आगमन की तैयारी ना की हो,
एक दिन , जब शबरी अपने आश्रम के रास्ते मे झाड़ू लगा रही थी, तब कुछ ऋषि मुनि पास की नदी मे स्नान करके आ रहे थे, तभी शबरी की जादू से धूल उड़कर ऋषि पर जा गिरी, ऋषि धूल पड़ते ही बेहद क्रोधित हो उठे और शबरी से क्रोध मे आकार बोले, दुष्ट औरत तेरी वजह से मे अस्वच हो गया, अब मुझे पुनः स्नान करना पड़ेगा, और क्रोध मे ऋषि वापस नदी मे स्नान करने चले गए ।
परंतु जैसे ही उन्होंने नदी मे कदम रखा तो वैसे ही नदी खून जैसी लाल हो गई, और उसमे छोटे छोटे कीड़े पद गए । ये देख कर ऋषि ने सोचा की ये जरूर उस मूर्ख औरत की वजह से हुआ है । जब श्री राम यहाँ आएंगे तब वह नदी मे अपने चरण रख स्वच और पवित्र बना देंगे ।
जब श्री राम और लक्ष्मण सीता माँ की तलाश मे भटकते भटकते शबरी की कुटिया मे पहुचे तब शबरी ने प्रेम बहाओ से उनका स्वागत किया और रू कर उनके चरड़ों मे लिपट गई, और उनकी खूब सेवा की , तब ही ऋषि मुनि भी वहाँ या गए और उन्होंने प्रभु श्री राम को पास की नदी के हाल बताया , तभी सब उस नदी के पास पहुच गए, जैसे ही श्री राम ने नदी मे अपने कदम रखे, वैसे ही नदी का पानी और लाल हो गया, और बड़े बड़े कीड़े उसमे पनपने लगे। ये देख कर सभी दंग रह गए फिर श्री राम ने शबरी को बुलाकर अपने चरण नदी मे डालने को कहा, शबरी के चरण नदी मे पड़ते ही, नदी वापस स्वच और पवित्र हो गई ।
क्यूँ की प्रभु श्री राम भले ही अपना मान थोड़ा कम कर दे, लेकिन अपने भक्तों का मान कभी कम नहीं होने देते ।
रामायण कितने वर्ष पहले हुई? | Ramayan Kitne Saal Pehle hui thi ?
रामकथा का सबसे पहला बीज दशरथ जातक कथा में मिलता है। जो संभवतः ईसा से 400 साल पहले लिखी गई थी। इसके बाद ईसा से 300 साल पूर्व का काल वाल्मीकि रामायण का मिलता है। वाल्मीकि रामायण को सबसे ज्यादा प्रमाणिक इसलिए भी माना जाता है क्योंकि वाल्मीकि भगवान राम के समकालीन ही थे और सीता ने उनके आश्रम में ही लव-कुश को जन्म दिया था।
सीता की मृत्यु कैसे हुई ? | Sita Mata ki Mrityu kaise hui ?
माता सीता अपने पुत्रों के साथ वाल्मीकि आश्रम में ही रहती थीं। एक बार की बात है कि भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में वाल्मीकिजी ने लव और कुश को रामायण सुनाने के लिए भेजा। राम ने दोनों कुमारों से यह चरित्र सुना। कहते हैं कि प्रतिदिन वे दोनों बीस सर्ग सुनाते थे। उत्तरकांड तक पहुंचने पर राम ने जाना कि वे दोनों राम के ही बालक हैं।
तब राम ने सीता को कहलाया कि यदि वे निष्पाप हैं तो यहां सभा में आकर अपनी पवित्रता प्रकट करें। वाल्मीकि सीता को लेकर सभा में गए। वहां सभा में वशिष्ठ ऋषि भी थे। वशिष्ठजी ने कहा- ‘हे राम, मैं वरुण का 10वां पुत्र हूं। जीवन में मैंने कभी झूठ नहीं बोला। ये दोनों तुम्हारे पुत्र हैं। यदि मैंने झूठ बोला हो तो मेरी तपस्या का फल मुझे न मिले। मैंने दिव्य-दृष्टि से उसकी पवित्रता देख ली है।’
सीता हाथ जोड़कर नीचे मुख करके बोलीं- ‘हे धरती मां, यदि मैं पवित्र हूं तो धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं।’ जब सीता ने यह कहा तब नागों पर रखा एक सिंहासन पृथ्वी फाड़कर बाहर निकला। सिंहासन पर पृथ्वी देवी बैठी थीं। उन्होंने सीता को गोद में बैठा लिया। सीता के बैठते ही वह सिंहासन धरती में धंसने लगा और सीता माता धरती में समा गईं।
हालांकि पद्मपुराण में इसका वर्णन अलग मिलता है। पद्मपुराण की कथा में सीता धरती में नहीं समाई थीं बल्कि उन्होंने श्रीराम के साथ रहकर सिंहासन का सुख भोगा था और उन्होंने भी राम के साथ में जल समाधि ले ली थी।
इन बातों का निचोड़ यही है कि आज की स्त्री भी सीता के पावन चरित्र की तरह ही सेवा, संयम, त्याग, शालीनता, अच्छे व्यवहार, हिम्मत, शांति, निर्भयता, क्षमा और शांति को जीवन में स्थान देकर कामकाजी और दांपत्य जीवन के बीच संतुलन के साथ सफलता और सम्मान भी पा सकती है।
सीता जी लंका में कितने दिन तक रही थी ? | Sita Mata kitne dino tak Lanka me bandhit rahi ?
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, लंका में माता सीता कुल 435 दिन रही थीं। वहीं, भगवान श्री राम (कैसे हुई श्री राम की मृत्यु) ने युद्ध के दौरान लंका में कुल 111 दिन बिताये थे।
भगवान श्री राम के गुरु कौन थे ? | Bhagwan Shri Ram ke Guru kaun the ?
भगवान श्री राम की बहन का नाम | Bhagwan Shri Ram Sister Name
भगवान श्री राम की मृत्यु कैसे हुई ? | Bhagwan Shree Ram ki Mrityu Kaise hui ?
भगवान श्री राम के अन्य नाम | Bhagwan Shree Ram ke Dusre Naam
- व्रिशा
- वैकर्तन (सुर्य का अन्श)
- श्रीरामचंद्रजी
- श्रीदशरथसुतजी
- श्रीकौशल्यानंदनजी
- श्रीसीतावल्लभजी
- श्रीरघुनन्दनजी, श्रीरघुवरजी
- श्रीरघुनाथजी
- ककुत्स्थकुलनंदन आदि।