क्या है फुलेरा दूज? ( Kya hain Phulera Dooj )
Phulera Dooj 2024 – फुलेरा दूज को एक प्रमुख और महत्वपूर्ण उत्सव माना जाता है, जो उत्तर भारत के प्राय: सभी क्षेत्रों में बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है।
यह त्योहार भगवान कृष्ण को समर्पित है। ‘फुलेरा’ शब्दिक अर्थ में ‘फूल’ को दर्शाता है, जिससे यह संदेश सामने आता है कि भगवान कृष्ण फूलों के साथ खेलते हैं और फुलेरा दूज की शुभ पूर्व संध्या पर होली के उत्सव में भाग लेते हैं। यह त्योहार लोगों के जीवन में खुशियों और उल्लास का संचार करता है।
वृंदावन और मथुरा के कुछ मंदिरों में, भक्तों को भगवान कृष्ण के विशेष दर्शन का भी मौका मिल सकता है, जहां वह हर साल फुलेरा दूज के उचित समय पर होली उत्सव में भाग लेते हैं। इस दिन विभिन्न अनुष्ठानों और समारोहों का आयोजन किया जाता है और साथ ही देवता भगवान कृष्ण की मूर्तियों को होली के आगामी उत्सव पर दर्शाने के लिए रंगों से सजाया जाता है।
कब है फुलेरा दूज 2024? ( 2024 Mein Phulera Dooj Kab hain )
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष के दौरान द्वितीया तिथि (Phulera Dooj) को मनाया जाता है। इसे ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च या फरवरी के महीने में मनाया जाता है। प्रति वर्ष, फुलेरा दूज दो महत्वपूर्ण त्योहारों, वसंत पंचमी और होली, के बीच आता है।
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फुलेरा दूज कैसे मनाते हैं? ( Phulera Dooj kaise manate hain )
इस खास दिन पर, भक्त भगवान कृष्ण की पूजा और आराधना में लगे रहते हैं। उत्तरी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में दृढ़ उत्साह और जोश के साथ भव्य उत्सवों का आयोजन होता है। भक्तगण अपने घरों और मंदिरों को सजाकर उन्हें भगवान के समर्पण में सुंदर बनाते हैं और उन्हें सजीव करते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण आयोजनों में से एक, भगवान कृष्ण के साथ रंग-बिरंगे फूलों से होली खेलना होता है, जिससे आनंद और हर्ष का वातावरण बना रहता है।
- ब्रज क्षेत्र में, इस दिन पर भव्य उत्सवों का आयोजन होता है, जो देवता की मूर्तियों को रंगीन और सजीव बनाते हैं।
- मंदिरों को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है और भगवान कृष्ण की मूर्ति को एक सुशोभित और रंगीन मंडप में स्थापित किया जाता है।
- भगवान कृष्ण की मूर्ति पर रंग-बिरंगा गुलाल छिड़ाया जाता है, जिससे यह प्रतीत होता है कि वह होली खेलने के लिए तैयार हैं।
- ‘शयन भोग’ के रस्म के बाद, रंगीन कपड़े को हटा दिया जाता है और इससे होली के आगामी उत्सव की तैयारी होती है।
पवित्र भोजन फुलेरा दूज के दिन शाम को होता है, जिसमें पोहा और विभिन्न अन्य विशेष सेव शामिल होते हैं। भोजन पहले देवता को अर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में सभी भक्तों के बीच बाँटा जाता है।
फुलेरा दूज का क्या महत्व है? ( Phulera Dooj ka kya Mahatv hain )
आकाशीय और ग्रह संबंधी भविष्यवाणियों के अनुसार, यह त्योहार सबसे प्रमुख और शुभ दिनों में से एक माना जाता है। इस दिन को भाग्यशाली माना जाता है और किसी भी प्रकार के अशुभ प्रभावों और दोषों से प्रभावित नहीं होता है, और इसलिए इसे “अबूझ मुहूर्त” कहा जाता है।
इसका अर्थ है कि विवाह, संपत्ति की खरीद, आदि सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए यह दिन अत्यधिक पवित्र है। शुभ मुहूर्त की तलाश करने या किसी विशेष शुभ मुहूर्त को जानने के लिए पंडित से परामर्श करने की जरूरत नहीं होती। उत्तर भारत के राज्यों में, अधिकांश विवाह समारोह फुलेरा दूज की पूर्व संध्या पर होते हैं। लोग आमतौर पर इस दिन को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए सबसे उत्सुक होते हैं।
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फुलेरा दूज क्यों मनाते हैं? ( Phulera Dooj kyu manate hain )
फुलेरा दूज के दिन क्या करना चाहिए? ( Phulera Dooj ke din kya karna chahiye )
क्या फुलेरा दूज शादी के लिए अच्छा है? ( Kya Phulera Dooj Shaadi ke liye achaa hain )
फुलेरा दूज मुख्य रूप से ब्रज धाम में मनाया जाता है और इस दिन श्री कृष्ण और राधा रानी को अबीर और गुलाल अर्पित किया जाता है। इस दिन श्री कृष्ण और राधा रानी को माखन मिश्री का भोग भी लगाया जाता है। यह दिन विवाह के लिए सबसे उत्तम माना जाता है और इस दिन किया गया विवाह अच्छे से संपन्न होता है।