देवभूमि उत्तराखंड के पांच ऐसे स्थल जहाँ पर नदियों का संगम हुआ उसे ही पंच प्रयाग के नाम से जाना जाता है। पंच प्रयाग नाम से प्रसिद्ध ये जगह ख़ास तौर पर दान पुण्य और स्नान के लिए हैं। हरिद्वार और ऋषिकेश वाले मार्ग से बद्रीनाथ की ओर जाते हुए आप इन पंच प्रयाग के दर्शन कर सकते हैं। ये स्थान धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों ही तरह से बहुत महत्वपूर्ण हैं।
पंच प्रयाग कौन-कौन से हैं? (Panch Prayag kaun-kaun se hai?)
1. देव प्रयाग ( Dev Prayag )
अलकनन्दा और भागीरथी नदियों का जहाँ संगम होता है वह स्थान देव प्रयाग (Dev Prayag) है। यह जगह ऋषिकेश से करीब 73 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में तो अलकनंदा को बहु और भागीरथी को सास का दर्जा दिया जाता है। स्कंदपुराण में इस स्थान का वर्णन कुछ इस प्रकार मिलता है कि देव शर्मा नाम के ब्राह्मण ने सतयुग के दौरान एक पैर पर खड़े होकर केवल सूखे पत्ते खाकर हजार वर्षों तक तपस्या की थी।
ब्राह्मण की तपस्या से भगवान् विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने वर मांगने को कहा। इसके बाद देव शर्मा नामक ब्राह्मण ने कहा ‘हे! भगवन आप यहीं निवास करें और यह पवित्र क्षेत्र कलियुग में संपूर्ण पापों का नाश करने वाला हो, और जो भी व्यक्ति यहाँ पूजा-अर्चना करे उसे मिले।
2. रुद्रप्रयाग ( Rudra Prayag )
बद्रीनाथ से होकर जो मार्ग जाता है वहां अलकनंदा और मन्दाकिनी के संगम पर रुद्रप्रयाग (Rudra Prayag) अवस्थित है। यह ऋषीकेश से 140 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है। धार्मिक कहानियों के अनुसार भगवान् शिव के रूद्र के नाम के कारण ही इसे रुद्रप्रयाग कहते हैं।
यह वही स्थान है जहाँ पर ब्रह्मा जी की आज्ञा लेकर देवर्षि नारद ने हजारों वर्षों की तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें यहाँ अपने दर्शन दिए थे और उनसे सम्पूर्ण गांधर्व शास्त्र हासिल किया था।
3. कर्ण प्रयाग ( Karn Prayag )
कर्ण प्रयाग उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में चमोली नामक जिले का एक क़स्बा है जो ऋषिकेश से 170 किलोमीटर की दूरी पर अलकनंदा और पिंडर नदियों के संगम पर स्थित है। इसकी गिनती पंच प्रयागों में तीसरे स्थान पर होती है। यह कर्ण की तपस्थली मानी जाती है इसलिए इसे कर्ण प्रयाग (Karn Prayag) के नाम से जानते हैं।
धार्मिक मान्यताएं कहती हैं कि इसी स्थान पर कर्ण ने भगवान सूर्य की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया था और कवच कुण्डल भी प्राप्त किये थे। दानवीर कर्ण के नाम से विख्यात होने के चलते यहाँ दान पुण्य की करने की एक प्रथा चली आ रही है।
4. नंदप्रयाग ( Nand Prayag )
नंदप्रयाग (Nand Prayag) का मूल नाम कंदासु था जो बदरीनाथ धाम के यात्रा मार्ग मौजूद है। यह चमोली जिले और कर्णप्रयाग के मध्य में नंदाकिनी तथा अलकनंदा नदी के संगम पर स्थित है। इस संबंध में एक पौराणिक कथा इस प्रकार है कि यहाँ महाराज नन्द ने पुत्र प्राप्ति के कठोर तपस्या की थी।
5. विष्णु प्रयाग ( Vishnu Prayag )
पंचप्रयागों में आखिरी प्रयाग विष्णु प्रयाग (Vishnu Prayag) है जो बदरीनाथ धाम के बिल्कुल समीप अलकनंदा और धौलीगंगा के संगम पर अवस्थित है। यह स्थान ऋषिकेश से 272 किलोमीटर दूर पर मौजूद है। इसके बारे में एक पौराणिक कहानी प्रचलित है जिसके मुताबिक नारद मुनि ने यहाँ भगवान् विष्णु के लिए तप किया था। यहाँ पर एक भगवान् विष्णु का मंदिर भी है जिसका निर्माण इंदौर की महारानी अहिलायाबाई होल्कर ने करवाया था।
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