Masik Durgashtami | मासिक दुर्गाष्टमी
हिन्दू धर्म में, दुर्गाष्टमी ( Masik Durgashtami ) का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित होता है। दुर्गाष्टमी हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को आती है। इस शुभ दिन पर लोग मां दुर्गा ( Maa Durga ) की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं। चैत्र और अश्विन मास में दो मुख्य नवरात्रि ( Navratri ) होती हैं जो बहुत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है।
मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा विधि ( Masik Durgashtami Pooja Vidhi )
मासिक दुर्गाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करें।
– पूजा करने के लिए चयनित स्थान पर गंगा जल से नहाएं।
– पूजा के दौरान मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें।
– घर के मंदिर में दीपक जलाएं।
– मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल फूल चढ़ाएं।
– भोग के रूप में फल और मिठाइयां चढ़ाएं।
– इस दिन दुर्गा चालीसा का पाठ ( Durga Chalisa ka path ) करें और फिर मां की आरती करें।
मासिक दुर्गा अष्टमी 2024 में कब हैं ? ( Masik Durgashtami 2024 mein kab hain )
मासिक दुर्गा अष्टमी की तिथि – फरवरी के महीने में माघ मासिक दुर्गा अष्टमी 17 फरवरी 2024 दिन शनिवार को मनाई जाएगी।
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मासिक दुर्गाष्टमी का महत्व ( Masik Durgashtami Ka Mahatv )
मासिक दुर्गा अष्टमी ( Masik Durgashtami ) के अवसर पर पूजा और व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन की वर्तमान समस्याओं से राहत मिलती है। मां दुर्गा अपने भक्तों की रक्षा भी करती हैं। इस दिन सच्चे मन से पूजा करने से जीवन में तरक्की आती है।
मासिक दुर्गा अष्टमी क्या है? ( Masik Durgashtami kya hain )
मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत विधि ( Masik Durgashtami Vrat Vidhi )
मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा विधि – घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। माता रानी को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें। प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं। आखिर में धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां दुर्गा की आरती करें।
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मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत कथा ( Masik Durgashtami Vrat Katha )
मासिक दुर्गाष्टमी व्रत कथा – सबसे बेहद शक्तिशाली महिषासुर था। उसका अंत करने के लिए देवों के देव महादेव भगवान शिव, जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी और भगवान ब्रह्मा जी ने शक्ति स्वरूप देवी दुर्गा को बनाया। सभी देवता ने मां दुर्गा को हथियार दिए। फिर इसके बाद मां दुर्गा पृथ्वी पर प्रकट हुई |
मासिक दुर्गा अष्टमी कैसे करें? ( Masik Durgashtami kaise karen )
मासिक दुर्गाष्टमी पर किसकी पूजा होती है? ( Masik Durgashtami par kiske pooja hote hain )
मासिक अष्टमी व्रत में क्या खाना चाहिए? ( Masik Ashtami Vrat mein kya khaana chahiye )
मासिक दुर्गाष्टमी व्रत नियम
इस दिन सुबह से शाम तक कुछ भी नहीं खाना चाहिए, यदि यह संभव न हो तो फल और दूध का सेवन किया जा सकता है। शाम को विधि अनुसार पूजा करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशति का पाठ ( Durga Saptashati Path ) विधि अनुसार, करना चाहिए। सूर्यास्त के बाद व्रत का समापन करना चाहिए।
मां दुर्गा का प्रिय मंत्र कौन सा है? ( Maa Durga ka priy Mantra kaunsa hain )
दुर्गा चालीसा पाठ (Durga Chalisa Ka Path )
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥