Gupt Navratri 2022 : आइये जानें गुप्त नवरात्रि कब है और कैसे करें इस दिन माँ दुर्गा का पूजन?

गुप्त नवरात्रि का क्या महत्व है? ( Gupt Navratri ka mahatva kya hai? )

साल में दो ही नवरात्रि ऐसी होती हैं जिन्हें सार्वजानिक रूप से मनाया जाता है जबकि बहुत कम लोग इस बात को जानते है कि वर्ष में चार बार नवरात्रि पूजन होता है। सार्वजानिक नवरात्रि के अलावा बाकी नवरात्रों को गुप्त नवरात्रि ( Gupt Navratri ) कहा जाता है। गुप्त नवरात्रों का अपना अलग महत्व है क्योंकि इस दौरान तंत्र-मंत्र जैसी गुप्त विद्याओ की शक्तियों को प्राप्त करने के लिए साधना की जाती है।

गोपनीय या गुप्त नवरात्रों के दौरान साधक तंत्र-मंत्र की विद्या सीखने के उद्देश्य से माँ भगवती और महादेव की पूजा-अर्चना करते हैं ताकि वे इन विद्याओं में महारत हासिल कर सकें। गुप्त नवरात्रों को उत्तरी भारत के राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा के आस-पास मनाया जाता है। साथ ही बताते चलें कि इस दौरान कई साधक महादेव और माँ काली समेत तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, माँ छिन्नमस्ता, माँ धूमावती, माता बगलामुखी, माता कमलादेवी, माता त्रिपुर भरैवी आदि की भी पूजा करते हैं।     

गुप्त नवरात्रि क्यों कहा जाता है? ( Gupt Navratri kyu kaha jata hai? )

वर्ष में चार बार नवरात्रि आती हैं- पौष, चैत्र, आषाढ़ और अश्विन माह में। इनमें से पौष माह और आषाढ़ माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है क्योंकि इस दौरान की जाने वाली पूजा गोपनीय रूप से की जाती है। गुप्त नवरात्रि तंत्र-मंत्र की क्रियाओं और 10 महाविद्याओं की प्राप्ति के लिए विशेष रूप से की जाती है। अतः तांत्रिक क्रियाओं को पाने के लिए साधना के इच्छुक लोग ही इन नवरात्रि में पूजन करते हैं यही वजह है कि इसे गुप्त नवरात्रि नाम दिया गया है। 

गुप्त नवरात्रि की पूजा कैसे करें? ( Gupt Navratri ki puja kaise karen? )

गुप्त नवरात्रि पूजा विधि 2022 ( Gupt Navratri puja vidhi 2022 ) :

1. गुप्त नवरात्रों में माँ काली और महादेव की पूजा की जाती है।  
2. प्रातःकाल स्नानादि कर कलश की स्थापना करें।
3. कलश में गंगाजल, लौंग, सुपारी, इलाइची, हल्दी, चन्दन, अक्षत, मौली, रोली और पुष्प डालें।  
4. आम, पीपल आदि के पत्तों से कलश को सजाएँ।  
5. अब चावल या जौ भरी कटोरी को कलश पर रख पानी वाला नारियल लाल कपड़ें में लपेटकर उसपर रखें।   
6. इसके बाद उत्तर पूर्व दिशा में चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर महादेव और माँ काली की प्रतिमा को रखें।  
7. माँ काली के बाएं तरह उनके पुत्र श्री गणेश की प्रतिमा भी विराजित करें।  
8. इसके उपरान्त धरती माता पर 7 प्रकार के अनाज, नदी की रेत और जौं डाले।  
9. फिर अखंड ज्योति को जलाएं और पूरे नौ दिन उसके प्रज्जवलित रहने का ध्यान रखें।  
10. माँ काली को शृंगार सामान, लाल चुन्नी अर्पित करने से वे प्रसन्न होती हैं।  
11. इसके बाद स्वयं आसन पर बैठकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और मंत्र का 108 बार जाप करें।  
                  ”ॐ एम ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”
12. पूरे नौ दिन श्रद्धा भाव से सुबह-शाम इसी तरह पूजन करें आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। 

( गुप्त नवरात्रि में Shri Durga Kavach या Original Maa Baglamukhi Yantra को माँ दुर्गा की पूजा करने पश्चात धारण करें। कवच में समाहित अलौकिक शक्तियां आपके उद्देश्यों को शीघ्र ही पूर्ण करेंगी और आपकी हर मनोकामना को पूर्ण होगी। साथ ही मां दुर्गा की कृपा से आपके शत्रुओं का विनाश होगा। ) 

गुप्त नवरात्रि साधना कैसे करें? ( Gupt Navratri Sadhana kaise karen? )

1. गुप्त नवरात्रि के दौरान साधना के लिए उत्तर दिशा में मुख करके आसन पर बैठ जाएं।

2. इसके बाद देवी दुर्गा की प्रतिमा को चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर रखें और तेल के 9 दीपक जला लें

3. जब तक साधना करें तब तक वे दीपक जलते रहने चाहिए।  

4. नीचे दिए गए मन्त्रों का उनके दिनों के हिसाब से 108 बार जाप करें।   

                         गुप्त नवरात्रि मंत्र ( Gupt Navratri Mantra )

प्रथम दिन गुप्त नवरात्रि मंत्र : क्रीं ह्रीं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा। ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा।

द्वितीय दिन गुप्त नवरात्रि माँ तारा मंत्र : ऊँ ह्रीं स्त्रीं हूं फट।

तृतीय दिन गुप्त नवरात्रि माँ त्रिपुरसुंदरी मंत्र : ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीये नम:।

चतुर्थ दिन गुप्त नवरात्रि माँ भुवनेश्वरी मंत्र : ह्रीं भुवनेश्वरीय ह्रीं नम:। ऊं ऐं ह्रीं श्रीं नम:।

पंचम दिन गुप्त नवरात्रि माँ छिन्नमस्ता मत्र : श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैररोचनिए हूं हूं फट स्वाहा।

षष्टम दिन गुप्त नवरात्रि माँ त्रिपुर भैरवी मंत्र : ऊँ ह्रीं भैरवी क्लौं ह्रीं स्वाहा।

सप्तम दिन गुप्त नवरात्रि माँ धूमावती मंत्र : धूं धूं धूमावती दैव्ये स्वाहा।

अष्टम गुप्त नवरात्रि माँ बगलामुखी मंत्र : ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं, पदम् स्तम्भय जिव्हा कीलय, शत्रु बुद्धिं विनाशाय ह्रलीं ऊँ स्वाहा।

नवम दिन गुप्त नवरात्रि माँ मातंगी मंत्र : क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा।

गुप्त नवरात्रि का क्या रहस्य है? ( Gupt Navratri ka kya rahasya hai? )

देवी भागवत में हमें गुप्त नवरात्रि के रहस्य का वर्णन मिलता है कि साल में गोपनीय रूप से आने वाले इन नवरात्रों में दस महाविद्याओं की प्राप्ति के लिए मंत्र साधना और पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि और गुप्त नवरात्रि में अंतर केवल इतना है कि नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है जबकि इन गुप्त नवरात्रों में देवी दुर्गा की 10 महा विद्याओं की पूजा होती है।

गुप्त नवरात्रि मनाने के एक रहस्य यह भी है कि जब भगवान विष्णु शयन अवस्था में लीन होते हैं तब देवशक्ति कमजोर होने लगती हैं। ऐसे में ब्रह्माण्ड को सुचारु रूप से चलाने के लिए गुप्त रूप से देवी दुर्गा की उपासना की जाती है ताकि आने वाली विपत्तियों से रक्षा की जा सके।   

गुप्त नवरात्रि की कथा ( Gupt Navratri Katha )

गुप्त नवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथा ( Gupt Navratri ki Katha ) कुछ इस प्रकार है कि एक बार जब ऋषि श्रृंगी भक्तों को दर्शन दे रहे थे तभी अचानक भक्तों की भीड़ से स्त्री निकलकर आई। चिंतित स्त्री ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति बुरी संगत और आदतों से हमेशा घिरे रहते हैं जिस कारण मैं कोई पूजा पाठ नहीं कर पाती हूं। इतना ही नहीं मैं ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न तक समर्पित नहीं कर पाती। वह स्त्री आगे बोली कि मेरे पति मांस – मदिरा का सेवन करते हैं, जुआ खेलते हैं पर मैं मां दुर्गा की उपासना करना चाहती हूं ताकि मैं अपने और अपने पति के जीवन को सफल बना पाऊं।

ऋषि श्रृंगी स्त्री की बातों को बड़े गौर से सुन सुन रहे थे, जब स्त्री अपने सभी दुःख दर्द बता देती है तो ऋषि श्रृंगी स्त्री के मां दुर्गा के प्रति भक्ति भाव से अत्यंत प्रभावित हो जाते हैं। तब ऋषि स्त्री को इन सभी चिंताओं से मुक्ति पाने के लिए उपाय बताते हैं। वे कहते हैं कि वसंत और शरद ऋतु में आने वाले नवरात्रों से तो लगभग सभी जनमानस भलीभांति परिचित हैं। परंतु इसके अलावा भी वर्ष में दो नवरात्रें आते हैं। उन्होंने आगे कहा कि प्रत्यक्ष रूप से मनाए जाने नवरात्रों में तो मां दुर्गा के नौ रूपों की होती है परंतु गुप्त रूप से आने वाले इन नवरात्रों में मां दुर्गा की दस महाविद्याओं के पूजा किए जाने का विधान है।

ऋषि कहते हैं कि इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरूप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है। यदि इन गुप्त नवरात्रि के दौरान कोई भक्त सच्चे मन से मां दुर्गा की पूजा और मंत्र साधना करता है, तो मां दुर्गा उसके जीवन को सफल कर देती हैं और कामना पूर्ण करती हैं। ऋषि श्रृंगी ने आगे अपनी बात पूरी करते हुए कहते हैं कि लोभी, व्यसनी, मांसाहारी या कोई नास्तिक भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता का पूजन करता है, तो उसे जीवन में कुछ और करने की कोई जरूरत ही नहीं रहती है।

स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों का पूर्ण रूप से पालन किया और पूरी श्रद्धा से गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा की। मां दुर्गा उस पर अत्यंत प्रसन्न हुईं और देखते ही देखते स्त्री के जीवन में बदलाव दिखने लगे। स्त्री का पति अब सत्कर्मों में लग गया, सुख शांति बनी रहने लगी और इस प्रकार गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना कर स्त्री का जीवन धन्य हो गया।  

गुप्त नवरात्रि में क्या करना चाहिए? ( Gupt Navratri me kya karna chahiye? )

1. गुप्त नवरात्रि में विधि पूर्वक देवी दुर्गा की प्रतिमा और कलश स्थापित कर नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए।

2. माँ काली को प्रसन्न करने के लिए सुबह और शाम दोनों ही समय दुर्गा सप्तशती का पाठ और मंत्र का 108 बार उच्चारण करें।

3. नौकरी की समस्या से निजात पाने के लिए 9 दिनों तक देवी दुर्गा को लौंग और बताशे अर्पित करें।

4. मुकदमें और शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए 9 दिनों तक गुग्गल का धूप जलाएं।

5. अखडं दीप जलाने से व्यक्ति को अपनी हर समस्या से छुटकारा मिलेगा।

गुप्त नवरात्रि में क्या नहीं करना चाहिए? ( Gupt Navratri me kya nahi karna chahiye? )

1. सात्विक भोजन ग्रहण करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
2. लड़ाई-झगड़ा और अपशब्द कहने से बचें।
3. जीव-जंतु को सताएं नहीं और न ही उन्हें नुकसान पहुंचाएं।
4. तामसिक भोजन, मांस मदिरा घर में न लाएं।
5. काले वस्त्र न पहनें और चमड़े की वस्तु का प्रयोग न करें।
6. बाल, दाढ़ी और नाख़ून काटना वर्जित है।
7. किसी कन्या या स्त्री का अपमान न करें।
8. खुले स्थान पर पूजा-अर्चना न करें।
9. गुप्त नवरात्रों में नींबू काटना भी मना है।

गुप्त नवरात्रों में क्या खाना चाहिए? ( Gupt navratron me kya khana chahiye? )

गुप्त नवरात्रों में अनाज और नमक को छोड़कर कुट्टू और सिंघाड़े का आटा, समारी के चावल, सेंधा नमक, साबूदाना, फल, मूंगफली और मेवे आदि खा सकते हैं।

2022 गुप्त नवरात्रि कब है? ( 2022 Gupt Navratri kab hai? )

आइये जानते हैं gupt navratri kab se shuru hai :

गुप्त नवरात्रि पंचांग ( Gupt Navratri 2022 date )
माघ मास, शुक्लपक्ष प्रतिपदा
आरम्भ : 02 फरवरी 2022 ( बुधवार )
समाप्ति : 10 फरवरी 2022 ( गुरुवार )
घटस्थापना मुहूर्त :  प्रात: 07:09 से 08:31 तक


Why do we celebrate Dussehra?

दशहरा कब मनाया जाता है

Hindu calendar में month Ashvin की दशमी तिथि (शुक्ल पक्ष) को Dussehra मनाया जाता है। जिस प्रकार नवरात्र में Devi (Durga) के नौ रूपों ने लगातार नौ दिन तक भीषण युद्ध लड़कर दसवें दिन संसार को असुरों से मुक्ति दिलाई थी उसी प्रकार vijaya dashami के दिन प्रभु श्री राम ने रावण का अंत कर बुराई को जड़ से समाप्त कर दिया था। इसलिए चाहे इस पर्व को राम द्वारा रावण का वध किये जाने के रूप में मनाया जाए या फिर दुर्गा द्वारा महिषासुर का संहार किये जाने के रूप में दोनों ही तरह से यह बुराई पर अच्छाई की विजय है और उत्सव मनाये जाने की प्रमुख वजह भी। दशहरा संस्कृत भाषा का एक शब्द है जिसका तात्पर्य है सभी 10 पापों को मिटाना क्योंकि रावण के दस सिर 10 पापों का प्रतीक है जिसका सर्वनाश श्री राम ने किया था। [1

आइये जानते हैं Vijayadashmi Dashara ki kahani

सर्वप्रथम तो Vijayadashami durga puja के अंत की सूचक है क्योंकि इस दिन ब्रह्मा-विष्णु-महेश की मिश्रित शक्ति से बनी navarathri goddess देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर धर्म की रक्षा की थी वहीँ विजयदशमी को जब दशहरा के नाम से बुलाया जाता है तब इसे राम द्वारा रावण के वध किये जाने से जोड़कर देखा जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने लगातार 9 दिनों तक लंका में रहकर रावण से युद्ध किया और फिर 10वें दिन यानी विजयदशमी के ही दिन श्री राम ने रावण की नाभ‍ी में तीर मारकर युद्ध पर पूर्णविराम लगाया था।

रावण का वध किये जाने के पीछे एक कहानी यह भी प्रचलित है कि भगवान श्री राम ने दुर्गा मां की निरंतर नौ दिनों तक उपासना की थी। देवी ने भगवान श्री राम की परीक्षा लेते हुए उनकी पूजा में रखे गए कमल के पुष्पों में से एक पुष्प गायब कर दिया था जब पूजा में एक फूल कम पड़ा तो राम ने अपने कमल नयन देवी को अर्पित करने की ठान ली। राम की सच्ची श्रद्धा देख देवी प्रसन्न हुई और उन्होंने प्रभु श्री राम को रावण का वध किये जाने का वरदान दिया तब जाकर श्री राम दशानन रावण का खात्मा करने में सक्षम हो पाए।

इसे मनाये जाने का तीसरा कारण महाभारत से जुड़ा हुआ है दरअसल महाभारत में पांडवों ने अपने शस्त्रों को शमी नामक वृक्ष पर ही छिपाया था और उन्हीं हथियारों के जरिये कौरवों को रणभूमि में मात दी थी यही वजह है कि इस दिन क्षत्रिय समाज के लोग शस्त्रों की पूजा-अर्चना करते हैं। [2]

विजयादशमी क्यों मनाई जाती है?

Dussehra मनाये जाने की पौराणिक कथा के अलावा इसके पीछे सांस्कृतिक कारण भी हैं जिसके अभाव में इस पर्व के महत्व को समझना बहुत कठिन है। दशहरे के सांस्कृतिक पहलू की बात करें तो कृषि प्रधान भारत में जब किसान खेत में फसल उगाकर अन्न अपने घर लेकर आता है तो उस वक़्त किसान की ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता। इसी ख़ुशी के मौके पर वह भगवान का पूजन करता है और अपना हर्ष व्यक्त करता है। इसी के साथ आपको यह भी बताते चलें कि पूरे भारत में vijayadashmi अलग अलग तरीके से मनाई जाती है। उदहारणस्वरुप महाराष्ट्र में इस मौके पर ‘सिलंगण’ के नाम से उत्सव मनाये जाने का प्रचलन है। [3]

मात्र एक त्यौहार नहीं दशहरा

दशहरा केवल एक पर्व नहीं है बल्कि समाज को शिक्षा देने का पौराणिक माध्यम है जिससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं जैसे बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी सच्चाई का साथ देना, मित्रता को बनाये रखने और संबंधों को निभाने की कला सीखना, निस्वार्थ भाव से किसी की सहायता करना आदि। इन सभी विशेषताओं को यदि एक लाइन में समाहित किया जाए तो यह आतंक पर आदर्शवाद की विजय तथा क्रूरता पर अनुशासन की जीत है।

Maa Mahagauri- 8th Day of Navratri

Maa Mahagauri: देवी महागौरी

Durga ashtami के दिन देवी महागौरी की आराधना की जाती है। Nauratri की आठवीं देवी महागौरी के स्वरुप की बाते करें तो देवी की चार भुजाएं हैं, जिसमें से एक भुजा में उन्होंने त्रिशूल लिया हुआ है वहीँ एक हाथ में उनके डमरू विराजमान है। हाथ में भोलेनाथ का डमरू होने के कारण ही उन्हें शिव के नाम से भी पुकारा जाता है। ये दोनों ही शिव -शक्ति का प्रतीक है यानी शिव महागौरी के बगैर अधूरे है। देवी की शक्ति अमोघ और अधिक फलदायी है। 

Sharada Navaratri का आठवां दिन विवाहित स्त्रियों के बहुत महत्व रखता है, सुहागिने इस दिन अपने सुहाग की मंगलकामना के लिए देवी को चुनरी भेंट करती हैं। [1]

इस तरह पड़ा Navarathri Goddess का नाम महागौरी

महागौरी के नाम और उनकी सवारी के पीछे पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं जिनका उल्लेख नीचे किया गया है :

पहली कथा के मुताबिक एक बार भगवान शिव देवी पार्वती को जाने अनजाने में कुछ कह देते है देवी पार्वती अपने पति की इस बात से नाराज़ होकर तपस्या में लीन हो जाती हैं। कई सालों तक जब पार्वती नहीं लौटती तो भोलेनाथ देवी को खोजते हुए उनके पास पहुंचते हैं। तपस्या के स्थान पर पहुंचकर भगवान शिव जब देवी की ओर निहारते हैं तो उनका ओजपूर्ण रंग देख आश्चर्यचकित हो जाते हैं, पार्वती के इसी ओजस्वी रूप देखकर उन्हें गौर वर्ण का वरदान भगवान शिव से प्राप्त होता है।

दूसरी कहानी के अनुसार कथाओं में पहले से ही इस बात का ज़िक्र किया गया है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति स्वरुप पाने दूसरी कहानी का संबंध भी देवी की तपस्या से ही जुड़ा हुआ है। कथाओं में पहले से ही इस बात का ज़िक्र किया गया है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति स्वरुप पाने के लिए कठोर तपस्या की थी जिस कारण उनका शरीर एक दम काला पड़ गया था। जब भोलेनाथ उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं तो वे उनकी काली पड़ी देह को देखकर चौंक जाते हैं। जैसे ही महादेव उनकी देह को गंगा जल से साफ़ करते है तो देवी चमकीले गौर वर्ण में तब्दील हो जाती है। यही वजह है कि माता को महागौरी नाम दिया गया है।

महागौरी की सवारी सिंह होने के पीछे एक कहानी प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार जब महागौरी तपस्या में लीन थी उस समय भूख महागौरी की सवारी सिंह होने के पीछे एक कहानी प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार जब महागौरी तपस्या में लीन थी उस समय भूख से व्याकुल एक शेर जंगल में विचरण कर रहा था और तपस्या कर रही देवी को देखकर शेर विचलित हो उठा लेकिन उसने देवी की तपस्या खत्म हो जाने तक वहीँ बैठकर इंतज़ार किया। प्रतीक्षा करते-करते शेर का शरीर लगभग क्षीण ही हो चुका था शेर का धैर्य देखकर माता ने उसे अपनी सवारी बना लिया। इस प्रकार देवी की सवारी बैल और सिंह दोनों ही है। [2]

Mahagauri ki puja vidhi

हिन्दू परंपरा में कुछ लोग durga ashtami के दिन कन्याओं को भोजन कराते हैं तो कहीं नवमी के दिन कन्या पूजन का विधान है। दोनों में से navratri day 8 कन्या पूजन को अधिक शुभ माना गया है।

1. प्रातःकाल देवी की प्रतिमा या तस्वीर को चौकी पर श्वेत वस्त्र बिछाकर रखें।  

2. इसके पश्चात माता के समक्ष सफ़ेद फूल अर्पित करें तथा धूप जलाएं।  

3. दूध से बने नैवैद्य अर्पित करने के बाद हाथ में फूल लेकर माता का सच्चे मन से ध्यान करें।  

4. महागौरी मंत्र का 108 बार उच्चारण करने से देवी प्रसन्न होती हैं।

Mahagauri Stuti Mantra: महागौरी स्तुति मंत्र

माहेश्वरी वृष आरूढ़ कौमारी शिखिवाहना

श्वेत रूप धरा देवी ईश्वरी वृष वाहना।

Gauri Mata Mantra: गौरी माता प्रार्थना मंत्र

श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः। 

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

Mahagauri jaap mantra: महागौरी जाप मंत्र

ओम देवी महागौर्यै नमः

Mahagauri beej mantra: महागौरी बीज मंत्र

श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:

Mahagauri ki aarti: महागौरी की आरती

जय महागौरी जगत की माया ।

जया उमा भवानी जय महामाया ।।

हरिद्वार कनखल के पासा ।

महागौरी तेरा वहां निवासा ।।

चंद्रकली ओर ममता अंबे ।

जय शक्ति जय जय मां जगदंबे ।।

भीमा देवी विमला माता ।

कौशिकी देवी जग विख्याता ।।

हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा ।

महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा ।।

सती ‘सत’ हवन कुंड में था जलाया ।

उसी धुएं ने रूप काली बनाया ।।

बना धर्म सिंह जो सवारी में आया ।

तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया ।।

तभी मां ने महागौरी नाम पाया ।

शरण आनेवाले का संकट मिटाया ।।

शनिवार को तेरी पूजा जो करता ।

मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता ।।

भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो ।

महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो ।। [3]

महागौरी माता मंदिर : सिद्ध SHAKTI PITHAS

पुराणों के अनुसार जहां-जहां देवी parvati के अंग, वस्त्र, गहनों के टुकड़े गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए और सदियों से यहाँ माता को पूजा जाने की परम्परा चली आ रही है। Navarathri में शक्तिपीठों का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। आपको बता दें कि वैसे तो ब्रह्माण्ड पुराण में देवी के कुल 64 shakti pithas का वर्णन किया गया है लेकिन देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का ही जिक्र है जो पूरे भारत में फैले हुए है। इनमें से एक है सिद्ध शक्तिपीठ महागौरी मंदिर जो शिमलापुरी, लुधिआना में अवस्थित है।  [4]

कड़वे संबंधों को मधुर करने की प्रेरणा देतीं देवी महागौरी

दुर्गा का महागौरी रूप आज के बनते बिगड़ते संबंधों को मजबूती प्रदान करने के लिए सीख देता है क्योंकि आदि शक्ति का संगम एक सुखी वैवाहिक जीवन का प्रतीक है। लोग देवी को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानकर रिश्तों की खटास को कम करने का प्रयास कर सकते हैं जो जीवन में सुखी रहने की एक आवश्यक शर्त भी है।

Maa Siddhidatri- 9th Day of Navratri

Mahanavami पर्व

हिन्दू धर्म में महानवमी का पर्व ख़ासा महत्व रखता है। इस दिन navarathri goddess देवी पार्वती के नौंवे अवतार सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।  यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाता है। भारत के कई राज्यों बिहार, बंगाल, उड़ीसा, असम में दुर्गा पूजा बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है। यहाँ navratri day 9 को दुर्गा उत्सव, शरदोत्सब, अकालबोधन, महापूजो जैसे भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। वहीँ Sharada Navaratri के दौरान बंगाल में मनाया जाने वाले महापूजों के दिन दुर्गा मां की विदाई विसर्जन स्वरुप की जाती है। [1

देवी Siddhidhatri

Hindu calendar के अनुसार Sharada Navaratri के 9th day of navratri में दुर्गा मां के सिद्धिदात्री अवतार की पूजा की जाती है। सिद्धि प्रदान करने वाली देवी ही सिद्धिदात्री के नाम से प्रचलित है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के शरीर का आधा भाग सिद्धिदात्री का है। वैदिक पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने देवी सिद्धिदात्री की आराधना कर ही सिद्धि प्राप्त की थी जिसके बाद से महादेव का आधा हिस्सा देवी के रूप में बन गया।

siddhidhatri और शिव के संगम को अर्द्धनारीश्वर की संज्ञा दी गई है जो आधुनिक समाज की लैंगिक समानता का सटीक उदाहरण पेश करता है यानी वैदिक काल से आधुनिक विचारधाराएं प्रचलन में है। 

siddhidatri mata ki katha सिद्धिदात्री माता की कथा

देवी की चार भुजाएं हैं और इन चारों भुजाओं में चक्र, गदा, कमल और शंख रहता है। देवी कमलपुष्प और सिंह दोनों पर ही विराजमान रहती हैं।

मार्कण्डेयपुराण के अनुसार siddhidhatri की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे 8 प्रकार की सिद्धियों पर अपना प्रभाव रखती हैं जिनमें अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्वये शामिल हैं। भगवान शिव ने देवी की आराधना कर इन्हीं सिद्धियों की प्राप्ति की थी जिसके बाद उनका आधा शरीर सिद्धिदात्री जैसा बन गया था।  [2]

महिषासुर वध की कथा

महिषासुर कौन था

पौराणिक कथा के अनुसार असुरों के राजा रम्भ और जल में रहने वाली भैंस के संगम से महिषासुर का जन्म हुआ था जिस कारण वह कभी भी मनुष्य और कभी भी भैंसे का रूप ले लिया करता था।  महिषासुर ब्रह्मा जी का परम भक्त था।  ब्रह्मा जी ने महिषासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया था कि न तो देवता और न ही कोई असुर महिषासुर को हरा सकते हैं।  ब्रह्मा जी  के इसी वरदान का फायदा उठाकर महिषासुर ने तीनों लोकों पर अपना कब्ज़ा जमाने की सोची और आतंक मचाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते दानव ने स्वर्ग और पृथ्वी लोक दोनों पर अपना आधिपत्य जमा लिया। सभी देवताओं ने उसे हराने के लिए भीषण युद्ध किये लेकिन किसी को भी जीत हासिल न हो पाई।

महिषासुर के मचाये उत्पात से तंग आकर सभी देवता त्रिमूर्ति ब्रह्मा-विष्णु-महेश के पास पहुंचें। त्रिमूर्ति ने इसके समाधान स्वरुप अपनी तीनों की ही शक्तियों का समावेश कर शक्ति नामक देवी का निर्माण किया। देवी दुर्गा नाम से जानी जानें वाली शक्ति ने महिषासुर को परास्त करने के लिए पूरे नौ दिन तक भीषण युद्ध किया और अंत में जाकर महिषासुर की हार हुई। इस तरह Nauratam में पूजे जाने वाले देवी दुर्गा के नौ रूपों ने महिषासुर को हराया और बुराई पर अच्छाई ने विजय प्राप्त की। [3]

Durga Navami puja vidhi in hindi

1. Nauratam के आखिरी दिन देवी की प्रतिमा के सामने धूप और दीपक जलाकर देवी की आरती व हवन करना चाहिए। 

2. Navaratra के नौंवे दिन इनकी पूजा होने के कारण माँ दुर्गा का भोग  नौ प्रकार के फल, फूल, मिष्ठान और नैवैद्य के सम्मिश्रण वाला होना चाहिए। 

3. इस दिन सभी देवताओं के नाम की आहुति भी जानी चाहिए।  

4. जो भी भक्त पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से माता की उपासना करते हैं उनकी सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।  

5. सिद्धि प्राप्ति के लिए देवी के जाप मंत्र का 108 बार उच्चारण करना चाहिए।

Maa Siddhidatri Mantra: सिद्धिदात्री माता का मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

Mata Siddhidatri Jaap Mantra: माता सिद्धिदात्री जाप मंत्र

ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥

Mata Siddhidatri प्रार्थना मंत्र

सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

Maa Siddhidatri beej mantra: मां सिद्धिदात्री बीज मंत्र

ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:

siddhidatri mata ki aartiनवरात्रि नौवें दिन की आरती

जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता। तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥

तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥

रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥

तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा। महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता। भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥ [4]

Siddhidhatri का दाता रूप हमें देता है दानदाता बनने की प्रेरणा

देवी के दात्री रूप की आराधना कर भक्त 8 प्रकार की सिद्धियों को वरदान में पा सकते हैं और इस सिद्धि का सीधा सरल मार्ग है ईश्वर की भक्ति। परंपरा की मानें तो दो ही प्रकार से ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है जिसमें से एक आसान मार्ग भक्ति है। नवरात्र के इन पावन दिनों में सच्ची भक्ति और योग साधना ही वह मार्ग है जो ईश्वर तक जाने का द्वार खोलता है। वहीँ व्यक्ति भी माता के इस रूप से दानदाता बनने की एक सीख लेकर अपने व्यक्तिगत लाभ को एक तरफ रखकर समाज में अपना योगदान दे सकता है।  

Kalratri Mata-7th day of Navratri

Devi Kalaratri: माता कालरात्रि

navarathri goddess मां दुर्गा की सप्त शक्ति का नाम देवी कालरात्रि है। इनके नाम से साफ़ झलकता है काल की रात। saptami के दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में अवस्थित होता है इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति को संसार  की सारी सिद्धि और निधि (विद्या, धन, शक्ति) प्राप्त होती है।

Devi (Durga) के अनेक नाम है जैसे भद्रकाली, महाकाली, भैरवी, चामुंडा और चंडी आदि। इन्हें ही देवी काली की संज्ञा दी है कालरात्रि और महाकाली दोनों ही नाम एक दूसरे के पूरक है। इनकी पूजा से भूत, पिशाच और सभी नकारात्मक बुरी शक्तियां नष्ट हो जाती है और व्यक्ति सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ता है। देवी के रूप को देखें तो यह बहुत भयानक प्रतीत होता है लेकिन सच्चे मन से भक्ति करने पर माता शुभ फल देती हैं इसलिए इन्हें शुभंकरी के नाम से भी पुकारा जाता है। देवी कालरात्रि की उपासना करने से जीव-जंतु भय, अग्नि भय, जल भय, रात्रि भय और भूत पिशाच भय कभी नहीं होते।  [1]

कालरात्रि की पौराणिक कथा

navratri day 7 देवी कालरात्रि से जुड़ी एक कथा के अनुसार एक रक्तबीज नामक राक्षस था जिससे सभी देवता परेशान थे और देवताओं की परेशानी की जड़ थी रक्तबीज का रक्त। दरअसल राक्षस का रक्त जिस भी स्थान पर गिरता था वहां बिल्कुल रक्तबीज जैसा नया दानव बन जाता था। सभी देवता परेशान होकर भगवान शिव के पास पहुंचे।  भगवान शिव ने समाधान स्वरुप देवी पार्वती का नाम लिया और कहा कि केवल देवी पार्वती ही इस दानव का वध कर सकती हैं। पार्वती ने रक्तबीज के खात्मे के लिए ही कालरात्रि रूप का सृजन किया था। कालरात्रि ने जब दानव का वध किया तो उसका रक्त धरती पर गिरने के बजाय अपने मुख में भर लिया और सभी देवताओं की चिंता का हल निकाल लिया। [2]

महाभारत के अंत में क्यों प्रकट हुई थी मां कालरात्रि

जब महाभारत में कौरवों की सेना हार के चरम पर थी उस वक़्त अश्वतथामा ने अपने पिता द्रोणाचार्य की मौत का बदला लेने के लिए आक्रोश में आकर दृष्टद्युम्न समेत पाडंवों के पाँचों पुत्र की हत्या कर दी थी। युद्ध में की गई बेईमानी को देखकर ही देवी कालरात्रि वहां प्रकट हुई थी।

Maa kalratri puja vidhi in hindi: पूजा विधि

1. देवी मां की तस्वीर या प्रतिमा पर प्रातःकाल गंगाजल छिड़कें।  

2. इसके पश्चात navratri 7th day colour तथा देवी का प्रिय लाल रंग का वस्त्र चढ़ाएं और सिन्दूर अर्पित करें।   

3. मिष्ठान, पंच मेवा, पंच फल और पंचामृत वाला नैवैद्य अर्पित करें।  

4.  इन सब क्रिया के बाद 108 बार मंत्र का जाप करें इससे माता रानी की कृपा भक्तों पर अवश्य बनी रहेगी।  

Kaal ratri mantra: कालरात्रि मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

Kalratri Mata प्रार्थना मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥

Kalratri Mata जाप मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः।। [3]

ईमानदारी की राह पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं देवी कालरात्रि

Durgaspatashati के दिन पूजी जाने वाली माता कालरात्रि व्यक्ति को ईमानदारी की राह पर जाने के लिए प्रेरित करती है और ऐसा नहीं होने पर वे भक्तों को संकेत भी दिया करती हैं। सही राह पर चलने का उदाहरण महाभारत के प्रसंग से लिया जा सकता है. सच्चे मन से देवी की आराधना करने वह व्यक्ति संसार के सभी भय से मुक्त हो जाता है और सच्चाई के रास्ते पर अग्रसर होता है। 

Mata Katyayani – 6th Day of Navratri

Maa Katyayani: माता कात्यायनी

6th day of navratri पर पूजी जाने वाली मां दुर्गा का नाम मां कात्यायनी है। कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन ने अपनी कठिन तपस्या के माध्यम से देवी को अपनी पुत्री स्वरुप प्राप्त किया था। आपको बता दें कि योग साधना के छठे दिन साधना करने वाले का मन आज्ञा चक्र में अवस्थित रहता है और आज्ञा चक्र में ध्यान लगे होने के कारण व्यक्ति आज्ञा स्वरूप अपना सब कुछ देवी के चरणों में अर्पित कर देता है। इनकी चार भुजाओ में अस्त्र-शस्त्र और कमलपुष्प है, देवी सिंह पर विराजमान है। देवी कात्यायनी को महिषासुरमर्दिनि के नाम से भी पुकारा जाता है।

navarathri goddess को साधक रूप में पूजने से चार महत्वपूर्ण तत्व जिनमें धर्म, अर्थ, कर्म, और मोक्ष शामिल है की प्राप्ति की जा सकती है। क्योंकि इस वक़्त साधक का मन आज्ञा चक्र में विद्यमान होता है। ऐसे में देवी की साधना करने वाला व्यक्ति उनके समक्ष सभी तरह के पाप-पुण्य अर्पित कर देता है एक तरह से देखा जाए अपना सब कुछ वह देवी के सामने न्यौछावर कर देता है।  [1]

Mata Katyayani Ki Katha: माता कात्यायनी की पौराणिक कथा

मां का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसके पीछे भी एक कहानी जुड़ी हुई है दरअसल जब पृथ्वी लोक पर असुर महिषासुर का आतंक बहुत बढ़ गया था उस वक़्त ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने अपनी शक्तियों के सम्मिश्रण से देवी शक्ति को जन्म दिया। सबसे ख़ास बात यह कि जन्म के पश्चात सर्वप्रथम देवी को पूजने वाले महर्षि कात्यायन ही थे इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। [2]

गोपियों से देवी का संबंध

मां कात्यायिनी का श्री कृष्ण और गोपियों से भी संबंध है। बताते चलें कि ब्रज की गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण को अपने पति के रूप में पाने के लिए कालिंदी जमना के तट पर देवी कात्यायिनी की आराधना की थी जिस कारण से ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के नाम से भी जानी जाती है।

Maa Katyayani Beej Mantra: माँ कात्यायनी बीज मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

Katyayani devi jaap Mantra: कात्यायनी देवी जाप मंत्र

ॐ देवी कात्यायन्यै नम:॥

Mata Katyayani Mantra: माता कात्यायनी प्रार्थना मंत्र

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

Devi Katyayani Ki Puja Vidhiदेवी कात्यायनी की पूजा विधि

1.6th day of navratri colour : षष्ठी पर गोधूलि वेला में पीले कपड़े पहनने चाहिए।  

2. देवी को पीले फूल और पीला वस्त्र अर्पित करें। 

3. साथ ही माता को हल्दी अर्पण करने से उनकी असीम कृपा बरसेगी।  

4. भोग स्वरुप शहद चढ़ाना चाहिए। 

Katyayni Vrat For Marriage

कुंडली में किसी तरह के दोष होने पर यदि इनकी आराधना की जाए तो वह दोष समाप्त हो जाता है। वैवाहिक जीवन में किसी तरह की परेशानी दूर करने के लिए इनकी पूजा लाभकारी है। जल्दी विवाह के लिए भी देवी की पूजा की जाती है। 

महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देता Maa Katyayani का रूप

इस कहानी में सबसे प्रभावकारी वह कथा है जिसमें महर्षि कात्यायन देवी को बेटी के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करते हैं और उनकी तपस्या सफल हो भी जाती है। एक महर्षि की पुत्री के रूप में जन्मी देवी कात्यायनी साहसी, ऊर्जावान, बौद्धिक और कौशल क्षमता की धनी व्यक्तित्व की हैं जो आज के समाज की स्त्री के सामने बड़ा उदाहरण पेश करती हैं और हर बुरी परिस्थिति में लड़ने के लिए हिम्मत भी प्रदान करती है।

Maa Skandmata- 5th Day of Navratri

Maa Skandamata: मां स्कंदमाता

5th day of navratri में दुर्गा मां के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है। यह पांचवा रूप माता का है जिसमें ममता और स्नेह का समावेश है। जैसा कि देवी के नाम से ही प्रदर्शित होता है भगवान स्कंद की माता। चार भुजाओं, तीन आंखे और सिंह की सवारी करने वाली माता कुमार कार्तिकेय यानी भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय की माता है। इस पांचवे रूप में भगवान कार्तिकेय बालक रूप में माता की गोद में विराजमान है। देवी कमल से बने आसन पर सदैव विराजमान रहती हैं इसलिए इन्हें पद्मासन के नाम से भी पुकारा जाता है।

स्कंदमाता के स्वरुप की बात करें तो इनके दाहिने ओर की ऊपर वाली भुजा में कुमार कार्तिकेय को पकड़े हैं वहीँ दाहिनें हाथ में ही नीचे की ओर से जो ऊपर की ओर उठी हुई भुजा में कमलपुष्प लिए हुए है। बाई तरफ के ऊपर वाला हाथ वरमुद्रा में है वहीँ बाई तरफ से नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमे भी कमलपुष्प ही विराजमान है।

Skandamata ki katha: स्कंदमाता की पौराणिक कथा

देवी पार्वती का पांचवा रूप उनके ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय की मां के रूप में विख्यात है इनसे जुड़ी कहानी की बात करें तो माता को अपने पुत्र से अधिक स्नेह है इसलिए उन्हें स्कंदमाता के नाम से बुलाया जाता है। मान्यता के अनुसार यदि navarathri goddess स्कंदमाता की उपासना सच्चे मन से की जाए तो कार्तिकेय के बालरूप की पूजा भी स्वयं हो जाती है और व्यक्ति को दोनों का फल मिलता है। देवी के स्कन्द रूप को पूजने से व्यक्ति को समस्त दुखों से निजात मिलती है और माता का स्नेह भक्तों पर हमेशा के लिए बना रहता है।  

स्कन्दमाता की कथा के अनुसार ताड़कासुर नामक राक्षस के आतंक से तीनों लोक काफी परेशान थे और मिले वरदान के मुताबिक़ ताड़कासुर का वध केवल शिव के पुत्र के द्वारा ही किया जा सकता था। असुर के खात्मे के लिए देवी ने स्कन्द रूप में ही अपने ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रक्षिशण प्रदान किया था।  

Skandamata Puja Vidhi: पूजा विधि

1. सर्वप्रथम प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात माता की चौकी पर तस्वीर सामने रखें।

2.  तस्वीर को गंगाजल से शुद्ध करने के बाद माता को कुमकुम लगाएं।  

3. navratri 5th day colour पीला वस्त्र और पीला नैवैद्य अर्पित करने से देवी प्रसन्न होती है।   

4. साथ ही इलाइची का भोग लगाना भी शुभ माना जाता है।  

5. 108 बार मंत्र जाप करने से माता की असीम कृपा होती है और संतान प्राप्ति के लिए भी यह उपाय काफी लाभकारी है।   

Skanda Mata Mantra: स्कंदमाता मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

Maa Skandamata Beej Mantra: बीज मंत्र

ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।

Skanda Mata Praarthana Mantra : स्कंद माता प्रार्थना मंत्र

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

Significance of 5th day of navratri: युद्ध मुद्रा से ममता की ओर जाता देवी का रूप

स्कंदमाता का स्वरुप एक मां की ममता और स्नेह को दर्शाता है जहां एक तरफ मां के अन्य रूप संसार में मौजूद समस्त बुरी शक्तियों का सर्वनाश करते हैं वहीँ devi durga का पांचवा रूप अपने युद्ध वाली मुद्रा को त्यागकर प्रेम और ममता का उदहारण पेश करता है।

Maa Kushmanda – 4th Day of Navratri

Maa Kushmanda: माता कुष्मांडा

नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा का पूजन होता है kushmanda meaning पर गौर करें तो ‘कु’ का तात्पर्य सूक्ष्म तथा ऊष्मा का अर्थ गर्माहट या ऊर्जा से और अंडा शब्द को पृथ्वी का सूचक बताया गया है। ये व्यक्ति के अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं। माता के आठ हाथ होने के कारण Ashtabhuja Devi के नाम से भी पुकारा जाता है। देवी के 7 हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है और उनके आठवें हाथ में सिद्धि और निधियों को देने वाली जपमाला है जिससे वे सभी को सिद्धि व निधि प्रदान करती है। माता कूष्माण्डा की सवारी सिंह है और वे सूर्य के भीतर निवास करती है साथ ही आपको यह भी बताते चलें कि यहां निवास कर सकने की शक्ति भी केवल इन्हीं में निहित है। [1]

Maa Kushmanda Ki Katha: कुष्मांडा की पौराणिक कथा

kushmanda story के अनुसार जब हर जगह अंधकार था, समय का कोई अस्तित्व नहीं था उस वक़्त देवी ने संसार से अँधेरा मिटाने के लिए हल्की सी मुस्कान के माध्यम से एक अंडा आकार में सृष्टि का सृजन किया और पूरे संसार में प्रकाश की लौ जलाई। सृजन की इसी प्रक्रिया के कारण माता का नाम कूष्माण्डा पड़ा। 

Mata Kushmanda Ki Puja Vidhi: माता कूष्माण्डा की पूजा विधि

1.4th day of navratri  मां कूष्माण्डा को मालपुए का भोग लगाना चाहिए। 

2. अर्पित किये गए प्रसाद को ब्राह्मण को दान करना चाहिए इससे व्यक्ति का बौद्धिक विकास होता है।

3. कूष्माण्डा को संस्कृत भाषा में कुम्हड़ कहते है इसलिए देवी को कुम्हड़ की बलि दी जाती है बलि देने से हर संकट से छुटकारा मिलता है।   

4. इसके बाद कूष्मांडा का ध्यान कर उनको धूप, लाल फूल, कुम्हड़, सूखे मेवे अर्पित करें।

Devi Kushmanda Mantra: देवी कूष्माण्डा मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ [2]

Maa Kushmanda praarhtna mantra: माँ कुष्मांडा प्रार्थना मंत्र

सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। 

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥

Mata Kushmanda Beej Mantra: माता कुष्मांडा बीज मंत्र

ऐं ह्री देव्यै नम:।

देवी के नाम में ही छिपा है बड़ा राज़ 

सृष्टि का सृजन करने वाली कूष्माण्डा देवी ने केवल अपने हास्य से ही सृष्टि का सृजन किया था जो इस बात की प्रेरणा हमें देता है कि जीवन में यदि परिस्थतियां अन्धकार के समान हम पर हावी है तो ये दिन भी ढल जाएंगे और प्रकाश की लौ जरूर जीवन में उजाला कर देगी। नवरात्रि के चौथे दिवस पर देवी का सच्चे मन से ध्यान करने से व्यक्ति को हर परिस्थिति में लड़ने के लिए हिम्मत मिलेगी। 

Maa Chandraghanta – 3rd Day of Navratri

Maa Chandraghanta: माता चंद्रघंटा

नवरात्रि के शुरुआत के दो दिन पार्वती के कन्या रूप की पूजा की जाती है वहीँ तीसरे दिन उनके विवाहित रूप की आराधना होती है जो देवी चंद्रघंटा के नाम से प्रचलित हैं। यह देवी पार्वती का वैवाहिक रूप है जिसमें वे भगवान शिव के साथ शादी हो जाने के बाद आधे चंद्र को अपने माथे पर धारण करती हैं। navratri 3rd day पूजे जानी वाली माता चंद्रघंटा का शरीर सोने की भांति चमकीला होता है। मां सिंह पर सवारी करती हैं उनके 10 हाथ है जो कि अस्त्र-शस्त्र जैसे खड्ग, गदा, त्रिशूल, चक्र और धनुष से सदैव सुशोभित रहते हैं। ऐसी मान्यता है कि देवी चंद्रघंटा की सच्चे मन से पूजा करने से विवाहित लोगों के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। यह भी बताते चलें कि माता हमेशा युद्ध की मुद्रा में ही रहती है। शिव पुराण के अनुसार देवी चंद्रघंटा शिव का आधा भाग हैं यही वजह है कि भगवान शिव को अर्धनारीश्वर कहा जाता है यानी बिना शक्ति के शिव अधूरे हैं।  [1]

Maa Chandraghanta ki katha: पौराणिक कथा

मां चंद्रघंटा अस्त्रों-शस्त्रों से सुशोभित रहती है उनके इस रूप से ही यह ज्ञात हो जाता है कि उनका अस्तित्व असुरों की समाप्ति करना है। माता के इस रूप की chandraghanta story की बात करें तो उन्होंने राक्षस महिषासुर का खात्मा कर तीनों लोकों को अन्याय और क्रूरता से छुटकारा दिलाया था।

महिषासुर ब्रह्मा जी का बहुत बड़ा भक्त था। उसने अपनी कठोर तपस्या के माध्यम से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और वरदान मांगा कि कोई भी देव, दानव या धरती पर रहने वाला उसे मार न सके। यह वरदान मिलने के बाद महिषासुर आतंकित हो गया और उसने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य जमाने के मकसद से क्रूरता करनी आरम्भ कर दी। जब ब्रह्मा विष्णु और महेश के साम-दाम-दंड-भेद काम नहीं आये तब तीनों ने मिलकर शक्ति के रूप में देवी शक्ति को जन्म दिया। देवी चंद्रघंटा ने ही राक्षस का संहार किया था।  [2]

maan chandraghanta kee pooja vidhi

Maan Chandraghanta Kee Pooja Vidhiमां चंद्रघंटा की पूजा विधि

1. navarathri goddess चंद्रघंटा को केसर और केवड़े के जल से स्नान करना चाहिए।  

2. उसके बाद उन्हें सुनहरे रंग का कपड़ा चढ़ाकर लाल या फिर चमेली का फूल अर्पित करें तो देवी प्रसन्न होगी क्योंकि ये फूल उन्हें काफी प्रिय हैं।  

3. माता को मिश्री, मिठाई और पंचामृत का भोग लगाएं। उसके बाद साधना में लीन होकर नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण करें। 

Chandraghanta Mantra: चंद्रघंटा मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

Chandraghanta Praarthana Mantra: चंद्रघंटा प्रार्थना मंत्र

पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

Maa Chandraghanta beej mantra: मां चंद्रघंटा बीज मंत्र

‘ऐं श्रीं शक्तयै नम:’

Chandraghanta Jaap Mantra: चंद्रघंटा जाप मंत्र :

ॐ देवी चंद्रघण्टायै नम: [3]

बुराई से लड़ने की प्रेरणा देती हैं chandraghanta devi

मां दुर्गा का यह तीसरा रूप बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। माता की अराधना से व्यक्ति अपने भीतर बुराई से लड़ने की असीम शक्ति प्राप्त कर सकता है और जीवन में इस ऊर्जा का उपयोग हर पड़ाव पर कर सकता है। व्यक्ति को निर्भीक होकर कार्य करते रहने की प्रेरणा भी हमें देवी की पूजा अर्चना से प्राप्त होती है। 

Maa Brahmacharini- 2nd Day of Navratri

Mata Brahmacharini: माता ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दुसरे दिन ब्रह्मचारिणी मां की पूजा की जाती है। ब्रह्मचारिणी नाम के पीछे के रहस्य के बारे में बात करें तो इसका तात्पर्य तपस्या करने वाली देवी से है क्योंकि ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाले। इस दिन माता पार्वती के युवा कन्या रूप की आराधना की जाती है और कुंडलिनी शक्तियों को जगाया जाता है। ऐसी  मान्यता है कि जो भी देवी के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा अर्चना पूरे मन से करता है उसमे तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। [1]

Brahmacharini Story: ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा

देवी पार्वती ने अपने पूर्वजन्म में नारद जी के उपदेश देने के बाद भगवान शिव को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था और उन्हें पाने के लिए कठिन तपस्या की थी इसलिए उनके इस रूप को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। इस शब्द का संधि विच्छेद करने से पता चलता है कि ब्रह्म- अर्थात् तपस्या तथा चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली।

सती के रूप में अपने आप को यज्ञ में झोंक देने के बाद देवी ने हिमालय राज की बेटी शैलपुत्री या हेमावती के रूप में जन्म लिया। जब देवी पार्वती अपनी युवावस्था में आईं उस वक़्त नारद जी ने उन्हें बताया कि यदि वे तपस्या के मार्ग पर आगे बढ़ती हैं तो उन्हें अपने पूर्व जन्म के पति का साथ दोबारा मिल सकता है, नारद जी की इस बात को मानकर देवी पार्वती ने कठिन तपस्या का मार्ग चुना। 

देवी के इस मार्ग में कई तरह के पड़ाव आये। अपने इस पहले पड़ाव में हज़ारों सालों तक शाख पर रहकर दिन व्यतीत किये और इसके अगले वर्षों तक उन्होंने कठोर तपस्या करते हुए फल-मूल खाकर बिताये। कई वर्षों तक कठोर व्रत करते हुए खुले आसमान में वर्षा, धूप और सर्दी के सभी कष्ट झेले और अपनी तपस्या को आगे जारी रखा। उनकी इस तपस्या में तीसरा पड़ाव आया जब उन्होंने धरती पर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर जीवन का निर्वाह किया। उसके बाद निर्जल रहकर उन्होंने अपनी तपस्या को आगे बढ़ाया। देवी पार्वती की इसी कठोर तपस के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से पुकारा जाता है और नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी के रूप में इनकी पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार देवी पार्वती यानी ब्रहमचारिणी ने लगभग 5000 हज़ार वर्षों तक कठिन तपस्या की थी. [2]

Maa Brahmacharini Puja Vidhi: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

1. प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए हाथ में पुष्प लेकर माता का ध्यान करें। 

2. ध्यान करने  के पश्चात देवी को पंचामृत से स्नान कराएं।  

3. विभिन्न प्रकार के फूल, कुमकुम, सिन्दूर आदि माता को अर्पित करें। 

4. इन सभी क्रियाओं के बाद देवी का ध्यान करते हुए नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें।  

BRAHAMCHARINI MANTRA: ब्रह्मचारिणी मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

BRAHAMCHARINI DEVI PRARTHANA MANTRA: ब्रह्मचारिणी देवी प्रार्थना मंत्र

दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। 

देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

DEVI BRAHAMCHARINI JAAP MANTRA: देवी ब्रह्मचारिणी जाप मंत्र :

ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

ब्रह्मचारिणी देवी का आधुनिक समाज में महत्व

आधुनिकता के इस दौर में लोगों की दिनचर्या भोग-विलास और भौतिक सुखों से आगे बढ़ ही नहीं पा रही है। यह धुन लोगों पर इस हद तक सवार है कि वे अपने जीवन का मूल लक्ष्य ढूंढने के बजाय विलासिता में डूबे हुए हैं। ऐसे में देवी ब्रह्मचारिणी का रूप उनके लिए बहुत बड़ा उदहारण है कि कैसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को त्याग और सयंम बरतकर कर्म करना चाहिए।

हिन्दू धर्म में माता ब्रह्मचारिणी का महत्व : IMPORTANCE OF MATA BRAHAMCHARINI


माता ब्रह्मचारिणी पूरे जगत में विद्यमान चर और अचर विद्याओं की देवी है। वे एक श्वेत वस्त्र धारण की हुई कन्या या पुत्री के रूप में जगत में विख्यात है। इनकी सवारी बाघिन है। उनके दाहिने हाथ में एक जाप माला और बाएं हाथ में कमण्डलु है। त्याग और संयम के गुण लिए मां ब्रह्मचारिणी समाज को धैर्य और निरंतर प्रयासरत रहने की प्रेरणा देती है।  

क्या खाएं और क्या पहनें ? WHAT TO WEAR AND WHAT TO EAT


नवरात्रि में तामसिक भोजन ग्रहण करना वर्जित है। ब्रह्मचारिणी देवी को श्वेत रंग बेहद प्रिय है इसलिए इस दिन सफ़ेद वस्त्र और खाने में दूध और उससे बने पदार्थ ही ग्रहण किये जाएं तो देवी की असीम कृपा होगी। इसी के साथ आपको यह भी बताते चलें कि माता को नवरात्रि के दूसरे दिन चीनी और पंचामृत का भोग भी लगाया जाता है।

ब्रह्मचारिणी की पूजा कैसे करें?


1. प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात हाथ में कमल पुष्प लेकर देवी का ध्यान करें। 

2. इसके बाद नीचे दिए गए मंत्र का 108 बारी जाप करें। 
 
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥  

3. देवी ब्रह्मचारिणी की व्रत कथा पढ़कर भी पूजा अर्चना की जा सकती है। 
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