महाशिवरात्रि का महत्व ( Mahashivratri Significance )
शैव पंथ के लिए सबसे बड़ा पर्व महाशिवरात्रि होता है, यह एक ऐसा दिन होता है जिस दिन भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं। व्रत का पालन करते हैं और अपना पूरा समय भोलेनाथ के ध्यान में लगा देते हैं। आज हम Mahashivratri की कहानी के बारे में बताने जा रहे है। इस कथा का सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि इसका वर्णन शिव पुराण में मिलता है।
महाशिवरात्रि की कथा ( Mahashivratri ki katha ) :
शिव पुराण में वर्णित महाशिवरात्रि की कथा कहती है कि पुराने में समय में एक शिकारी हुआ करता था जिसका नाम चित्रभानु था। चित्रभानु के ऊपर बहुत अधिक कर्जा था और यही उसके जीवन की सबसे बड़ी परेशानी थी। साहूकार ने शिकारी से अपना सारा कर्जा वसूलने के लिए उसे सज़ा देने की सोची।
साहूकार को मालूम था कि Chitrabhanu कर्ज देने की स्थिति में नहीं है इसलिए उसने चित्रभानु को एक शिवमठ में बंदी बना दिया। चित्रभानु के साथ सबसे बड़ा संजोग यह हुआ कि जिस दिन उसे बंदी बनाया गया वह दिन महाशिवरात्रि का था साहूकार ने महाशिवरात्रि के उपलक्ष में अपने घर में पूजा का भव्य आयोजन किया। पूजा के बाद Shivaratri की कथा का पाठ भी किया गया शिवमठ में बंदी बना बैठा चित्रभानु शिकारी भी पूजा और कथा में बताई गई बातों को ध्यान से सुनता रहा। जैसे ही पूजा कार्यक्रम समाप्त हुआ। तुरंत साहूकार ने चित्रभानु को अपने पास बुलाया और उससे कर्ज चुकाने की बात कही तो शिकारी ने उसे ऋण वापिस देने का वचन दिया।
इस Mahashivratri Vrat Katha में शिकारी का वचन सुन साहूकार ने तुरंत उसे रिहा कर दिया। अपनी रिहाई के तुरंत बाद शिकारी जंगल में शिकार के लिए गया, अब रात हो चली थी इसलिए शिकारी ने वहीँ जंगल में आराम करने की सोची। चित्रभानु आराम करने के लिए बेल के पेड़ पर चढ़ गया। बेल के पेड़ के ठीक नीचे एक शिवलिंग स्थापित था। सौभाग्य तो चित्रभानु का इस तरह से साथ दे रहा था मानो स्वयं ईश्वर उसका मार्गदर्शन कर रहे हों। शिकारी बेल के पेड़ पर रात बिताने लगा और उसके नीचे स्थापित शिवलिंग बेलपत्र से ढक चुका था क्योंकि शिकारी ने पेड़ से बेलपत्र की कुछ पत्तियां तोड़ी और इसी दौरान उसकी कुछ पत्तियां शिवलिंग पर जा गिरी।
Shivratri Katha आगे इस प्रकार है कि शिकारी भूखा था इसलिए उसका Maha Shivaratri के व्रत का पालन हो गया। शिकारी भूख प्यास से बहुत व्याकुल था तभी उसे एक हिरणी वहां से जाते हुए दिखी। चित्रभानु ने जैसे ही हिरणी पर तीर दागने की सोची हिरणी बोली कि मैं गर्भवती हूँ कुछ ही समय में बच्चे को जन्म देने वाली हूँ तू अभी मुझे मारकर एक साथ दो जीवों की हत्या करेगा।
जैसे ही मैं अपने बच्चे को जन्म दे दूंगी शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाउंगी अभी मुझे जाने दो। इसपर शिकारी ने उसकी बात मान ली और उसे जाने दिया। अपना धनुष रखने के दौरान पेड़ से कुछ बेल पत्र गिराकर नीचे शिवलिंग पर गिर गए इस तरह चित्रभानु की प्रथम प्रहर की पूजा सम्पन्न हुई।
इसके कुछ समय बाद वहां से एक और हिरणी निकली शिकारी ने उसे देखते ही अपने धनुष से तीर शिकार के लिए निकाल लिया यह देख हिरणी बोली कि मैं थोड़ी देर पहले ऋतू से निवृत्त हुई हूँ और मैं अपने प्रिय को खोज रहीं हूँ। अपने पति से मिलकर मैं शीघ्र ही यहाँ आ जाउंगी। निवेदन है कि अभी मुझे यहाँ से जाने दें। शिकारी ने हिरणी की बात मान उसे भी जाने दिया। एक बार फिर से धनुष रखने पर पेड़ से बेल पत्र गिरकर Shivling पर जा गिरे और शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी पूर्ण हो गई।
अब फिर से शिकारी को वहां से जाती हुई तीसरी हिरणी दिखाई दी अब चित्रभानु एक भी मौका नहीं छोड़ना चाहता था इसलिए तीर निशाने पर लगा लिया। इस बार जो हिरणी दिखी उसके साथ बच्चा भी था। हिरणी ने शिकारी से निवेदन किया कि मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ने जा रही हूँ मुझे अभी जाने दो। वापिस लौटते वक़्त मैं तुम्हारे पास आ जाउंगी तब तुम मेरा शिकार कर लेना। शिकारी से हिरणी की बातों से भावुक हो गया और उसे जाने दिया।
भूख से व्याकुल चित्रभानु पेड़ से बेल के पत्ते तोड़-तोड़ कर शिवलिंग पर फेंकता ही जा रहा था। इस प्रकार चित्रभानु की रात बीत गई। अब सुबह की पहली किरण निकली तो शिकारी ने जंगल में एक मृग देखा। शिकारी ख़ुशी से उत्साहित हो उठा और अपने धनुष से तीर निकालते हुए मृग पर निशाना लगाया।
यह देख मृग बोला कि यदि तुमने इस मार्ग से गुजरने वाली तीन हिरणियों और बच्चों को मार दिया है तो तुम मुझे भी मार सकते हो और यदि तुमने उन्हें जीवनदान प्रदान किया है तो तुम मुझे भी मेरे परिवार से मिलने दो क्योंकि मैं उन हिरणियों का पति हूँ। शिकारी मृग की बात सुनकर दया भाव से भर गया और उसे भी बाकियों की ही तरह जीवनदान दिया।
Mahashivratri Katha में आगे की बात करें तो अब सुबह हो चुकी थी शिकारी चित्रभानु का जाने अनजाने में व्रत पालन हुआ, भूख के कारण रात्रि का जागरण हुआ और व्याकुलता के कारण शिवलिंग पर बेल पत्र पर भी अर्पित हो गए। भगवान शिव की कृपा शिकारी को तुरंत प्राप्त हुई क्योंकि वे तो भोलेनाथ हैं। Bholenath की ही कृपा से अब शिकारी कोमल ह्रदय वाला चिरभानु बन गया था इसलिए जब मृग और हिरणी का परिवार उसके सामने आया तो उसने उन्हें मारा नहीं।
जाने अनजाने में चित्रभानु ने जो पूजा विधि का पालन किया था उससे उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। चित्रभानु मृत्यु के पश्चात यमदूत के साथ नहीं बल्कि शिवगणों के साथ शिवलोक पहुंचा। शिकारी का सौभाग्य तो देखिये अगले जन्म में राजा बने चित्रभानु को अपने पूर्व जन्म की सभी बातें याद थी। इसी के कारण राजा चित्रभानु Mahashivratri Vrat का इस जन्म में पालन कर सका और इस बार राजा ने जाने अनजाने में नहीं बल्कि चेतन मन से महाशिवरात्रि का पालन किया था।