देशभर में कालों के काल महाकाल के अनकों चमत्कारी और अद्भुत मंदिर मिलते है। जिसे देखकर एक पल के लिए भक्त भी अपने भगवान के चमत्कार को देखकर हैरान रह जाते है, और वहीं दूसरी और विज्ञान भी महादवे के Neelkanth Mahadev Temple Kota इस चमत्कार के सामने हाथ खड़े कर देता है। इन दिनों देशभर में सावन की धूम देखने को मिल रही है। लोग पूरे विधि-विधान से सावन के इस पर्व को मनाते है। कावड़ यात्रा निकाली जाती है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन हरिद्वार पहुंचते है। वहीं आज के इस आर्टिकल में हम भगवान शिव के ऐसे ही चमत्कारी मंदिर की बात करेंगे। जिसके चमत्कार को देखने के लिए देश-भर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालुओं की भारी संख्या आती है। हम बात कर रहे है कि नीलकंठ महादेव के मंदिर की। Mahakal Locket With Rushrasha
कहा मौजूद है ये मंदिर Neelkanth Mahadev Temple Kota
भगवान शिव का यह चमत्कारी मंदिर कोटा के रेतवाली में मौजूद है। इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि यहां भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ विराजते हैं। इसका निर्माण सातवी शताब्दी में हुआ था। इस मंदिर में भगवान भालेनाथ(Neelkanth Mahadev Temple Kota) की पुत्री अशोकासुंदरी के दर्शन भी लोगों के जीवन में खुशहाली लाते हैं। इसके साथ ही यहां उनकी पहली पत्नी माता सती भी विराजमान हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार ये मंदिर करीब 1500 साल पहले मौर्य शासन में 738 वीं शताब्दी में बनाया गया था। यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है।
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100 सालों से जल रही है अखंड ज्योति Neelkanth Mahadev Temple Kota
नीलकंठ महादेव मंदिर की एक खासियत यह भी यहां लगातार 100 सालों से अखंड ज्योति जल रही है।मंदिर के पुजारी शिव शर्मा बताते हैं कि नीलकंठ महादेव यहां स्वयं भू हैं, जो अपने आप स्थापित हुए हैं. यह मंदिर 1500 वर्ष पुराना है।सावन में चारों और भगवान भोलेनाथ के जयकारे गुंजायमान रहते है। भोलेनाथ(Neelkanth Mahadev Temple Kota)के भक्त सुबह से ही शिवालयों में पहुंचकर भगवान की पूजा अर्चना कर रहे हैं। नीलकंठ महादेव मंदिर का अपना ही प्राचीन इतिहास हैं। नीलकंठ महादेव यहां अपने आप स्थापित हुए हैं। पुजारी बताते हैं कि इस शिवलिंग की जड़े पाताल तक जाती है, इसलिए इसे हार्डकेश्वर लिंगम कहा जाता है।इसके दर्शन करने मात्र से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, दुखों का नाश होता है और परिवार में सुख समृद्धि आती है।
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इस मंदिर की सभी प्रतिमाएं 1500 साल पहले की
यह मंदिर काफी प्राचीन है, और इस का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां लगा हुआ शिलालेख कुटिला लिपि में लिखा हुआ है, जिस पर मंदिर का इतिहास है। महंत श्याम गिरी का कहना है कि कर्ण ऋषि आश्रम में संवत 738 यानी कि करीब 1500 साल पहले मौर्य काल के दौरान राजा शिवगण (Neelkanth Mahadev Temple Kota)के अधीन आ गया था। इसमें ही मंदिर का निर्माण करवाया गया है। वर्तमान में मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 1972 में अपने अधीन कर लिया और तब से उन्हीं के अधीन यह मंदिर है। यहां पर पुरातत्व विभाग का स्टाफ मॉनिटरिंग रखता है। मंदिर परिसर में ही गार्डन, कुंड, भैरव मंदिर, हनुमान की प्रतिमा और डेढ़ दर्जन शिवलिंग बने हुए हैं।