आखिर क्यों किया था भगवान श्रीकृष्ण ने एकलव्य का वध।अगर गुरू द्रोणाचार्य एकलव्य का अंगूठा ना मांगते तो क्या वह कर्ण और अर्जुन से भी ज्यादा पराक्रमी योध्दा थे। धनुर्विद्या में महारत हासिल करने वाले एकलव्य की आखिर क्या है कहानी। जानने के लिए वीडियो को अंत तक देखें। और वीडियो पसंद आए तो लाइक जरूर करें। अगर आप हमारे चैनल पर नए हो तो चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूले। और साथ ही साथ कमेंट बॉक्स में जय श्री कृष्णा लिखना ना भूलें। एकलव्य जोकि रिश्ते में भगवान श्रीकृष्ण के चचेरे भाई लगते थे, और धनुर्विद्या में माहिर इतने की सब उनकी इस विद्या का लोहा मानते थे। चचेरे भाई होने(Mahabharat) के बावजूद क्यों एकलव्य समझता श्रीकृष्ण को अपना दुश्मन। हरिवंश पुराण के हरिवंश पर्व अध्याय 34 के अनुसार महाभारत काल में प्रयाग के तटवर्ती प्रदेश में श्रृंगवेरपुर नाम के राज्य के प्रमाण मिलते है। जहां निषादराज हिरण्यधनु का पूरा साम्राज्य था। मान्यता के अनुसार एकलव्य को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने निषाद राजा को सौंप दिया था। तो वहीं गुरू द्रौषाचार्य और एकलव्य को लेकर एक खास प्रसंग हमें जानने को मिलता है।
आखिर एकलव्य ने कैसे सीखी धनुर्विद्या
जब गुरु द्रोणाचार्य हस्तिनापुर के राजकुमारों को धनुर्विद्या की शिक्षा देने आरम्भ कर रहे थे तो तभी एक दिन द्रोणाचार्य की भेंट एकलव्य से हुई। एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा देने को कहा था। लेकिन(Mahabharat) तब गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को शिक्षा देने से इंकार कर दिया था। क्योंकि वो अपने वचन से बाधित थे।क्योंकि उन्हें सिर्फ और सिर्फ हस्तिनापुर के राजकुमारों को ही धनुर विद्या सिखाने का प्रावधान था। गुरु द्रोणाचार्य के इंकार करने के बाद एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को गुरु मान कर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। लगातार अभ्यास करने से वह भी धनुर्विद्या सीख गया।
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क्यों एकलव्य को देख हैरान रह गए थे गुरू द्रोणाचार्य
एक दिन पांडव और कौरव राजकुमार गुरु द्रोण के साथ शिकार के लिए पहुंचे। राजकुमारों का कुत्ता एकलव्य के आश्रम में जा पहुंचा और भौंकने लगा। कुत्ते के भौंकने से एकलव्य को अभ्यास करने में परेशानी हो रही थी। तब उसने बाणों से कुत्ते का मुंह बंद कर दिया। एकलव्य ने इतनी कुशलता से बाण चलाए थे कि कुत्ते को बाणों से किसी(Mahabharat) प्रकार की चोट नहीं लगी।गुरु द्रोण ने देखा तो वे धनुर्विद्या का ये कौशल देखकर दंग रह गए।गुरु द्रोण को लगा कि एकलव्य अर्जुन से श्रेष्ठ बन सकता है। तब उन्होंने गुरु दक्षिणा में उसका अंगूठा मांग लिया था और एकलव्य ने अपना अंगूठा काटकर गुरु को दे भी दिया। लेकिन इसके बाद भी एकलव्य का सफर खत्म नहीं हुआ। इसके बाद एकलव्य वापस अपने राज्य लौटा और निषादों का राजा बना। उसने निषाद भीलों की सेना बनाई और अपने राज्य का विस्तार किया। एक प्रचलित कथा के अनुसार एकलव्य श्रीकृष्ण को शत्रु मानने वाले जरासंध के साथ मिल गया था।
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बलराम और एकलव्य के बीच जब हुआ युद्ध
एक कथा के अनुसार बलराम और एकलव्य के बीच भीषण युद्ध हुआ। जिसमे एकलव्य हार गया था। एकलव्य को चार अंगुलियों से धनुष चलाते देख भगवान श्री कृष्ण समझ गए थे कि यह पांडवों और उनकी सेना के लिए खतरनाक(Mahabharat) साबित हो सकता है। जिसके बाद आता है महाभारत का वो अध्याय जिसमें स्वयं भगवान श्रीकृष्म और एकलव्य का आमना-सामना हुआ था, और उसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अपने सुदर्शन चक्र से एकलव्य का वध किया था। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अर्जुन से भी कहा था कि अगर मैं एकलव्य का वध नहीं करता और गुरु द्रोणाचार्य छल पूर्वक एकलव्य का अंगूठा नहीं कटवाते तो वह इतने पराक्रमी थे कि देवता, दानव कोई भी मिलकर उन्हें युद्ध में परास्त नहीं कर सकता था। तो इस बात से यह सिद्ध होता है कि अगर गुरु द्रोणाचार्य उनका अंगूठा नहीं कटवाते तो वह कर्ण और अर्जुन से भी बड़े योद्धा होते, जिन्हें हराना शायद नामुमकिन होता।