महाभारत (Maha bharat) का युद्ध खतम होने के बाद, जब श्री कृष्णा हस्तिनापुर छोड़ द्वारका जाने लगे, तब जाते-जाते उन्होंने कुंती से कुछ मांगने को कहा, और कुंती ने श्री कृष्णा से भेट में ‘दुख’ मांगे ! उन्होंने कहा ‘हे कृष्ण तुम मुझे भेट में जीवन भर दुख दो, दर्द दो पीड़ाह दे दो !
कुंती महाभारत का एक अहम हिस्सा थी, देखा जाए तो महाभारत में कुंती ने केवल दुख ही झेले,और जब साक्षात भगवान ने उनसे कुछ मांगने को कहा तब भी उन्होंने जीवन में दुख ही मांगे? पर ऐसा क्यूँ ? इसका जवाब हम आपको आजके इस लेखन में देंगे, और इसका जवाब जानने के बाद यकीनन आप भी ऐसा ही करेंगे, क्या पता आप भी इसका जवाब सुनकर जीवन में दुख ही मांगे ?
Maha bharat | महाभारत के युद्ध के खतम होने के बाद जब पांडव हस्तीनपुर और इंद्रप्रस्थ पर राज करने लगे, तब श्री कृष्ण अपना कर्तव्य पूरा करके द्वारका नगरी लौटने की तैयारी कर रहे थे !
जाने से पहले जब वह सबसे आखिरी बार मिलने लगे,तब श्री कृष्ण न सबसे भेट में कुछ न कुछ मांगने को कहा, तब श्री कृष्ण को मिलते ही माता कुंती उनके चरणों को स्पर्श करने लगि।
शर्मिंदा होकर, श्री कृष्णा ने माता कुंती से कहा, ‘आप मेरी बुआ है,आप मेरे लिए मेरी माँ समान है ! आप मेरे चरण स्पर्श करके, मुझे पाप का भाग्यदारी न बनाए ! तब माता कुंती ने कहा, हे कृष्ण ! आप साक्षात विष्णु अवतार है ! मुझे आपकी लीला समझ आ चुकी है ! मुझे पता लग गया है की आप साक्षात भगवान है ! और आपके चरण छूने का अवसर मेरे लिए स्वर्ग प्राप्ति समान है ! श्री कृष्ण ने कहा, ‘आपने आज तक मुझसे कुछ नहीं मांगा , आप जो कहेंगी में वो करूंगा, आपको भेट में जो चाहिए वो में दूंगा ! तब कुंती ने कृष्ण से कहा’ हे कृष्ण ! आप मुझे भेट में दुख दे ! दर्द दे ! पीढ़ा दे ! उनका ये जवाब सुनकर सब हैरान हो गए !
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तब कुंती ने कहा ‘आज तक मेने तुम्हें तब तब पुकारा है जब जब मेरे जीवन में दुख आया है , दर्द आया है , और तुम हमेशा मेरे पुकारने पर भागे भागे मेरे पास चले आते थे, और हमारे साथ ही रहते थे ! जब जब दुख थे तब तब तुम हुमरे पास थे, हमारे साथ थे ! में चाहती हूँ तुम इसी तरह हमारे साथ रहो ! हमेशा हमारे पास ही रहो!
श्री कृष्ण ने कहा में आपके पास ही हूँ !आपके मन्न मे !आजतक आपने मेरा सिर्फ दुख में सुमिरन किया, इसलिए में दुख में साथ था, अगर सुख में भी सुमिरन करो, तब में सुख में भी साथ रहूँगा ! यदि आपने सुख में पुकार होता तब में सुख में भी आता !
भक्तों इस बात पर संत कबीर दास जी ने एक दोहा भी लिखा है जो की इस प्रकार है !
‘दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
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इन पंक्तियों में कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों !
इसलिए हमे भी भगवान को हर घड़ी याद करना चाहिए, इस जीवन के लिए सुख के लिए उनसे प्राथना करनी चाहिए, हमे सदेव प्रभु के करीब ही रहना चाहिए क्यूँ की ऐसा करने से हमारे जीवन में कभी दुख आएगा ही नहीं ! प्रभु की छत्रछाया में रहने से हमे जीवन सही ढंग से जीने का ज्ञान प्राप्त होता है ! हम बुरे काम नहीं करते, सही राह में चलते है ! यदि हम अच्छे काम करते रहे तो हमारे क्रम का घड़ा अच्छे कर्मों से भरता रहता है, और हमारे साथ कुछ गलत या बुरा नहीं होता ! तो हमारे जीवन में दुख और सुख आना हमारे ही कर्मों पर निर्भर है !
आप भी इसी तरह सदेव प्रभु का सुमिरन करिए ! उनके साथ जुड़े रहिए !
जय श्री कृष्ण