क्यों श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को जुआ खेलने से नहीं रोका? | kyu shree krshn ne yudhishthir ko jua khelane se nahin roka
द्वापर युग में श्री कृष्ण धरती पर मौजूद थे । बात है 5000 साल पहले की जब महाभारत का युद्ध हुआ था ।
एक ही परिवार के भाइयों और रिश्तेदारों के बीच हुआ ये युद्ध, बेहद भयानक युद्ध था जहां अधर्म, पाप, छल कपट की सारी सीमाए पार हो चुकी थी। (kyu shree krshn ne yudhishthir ko jua khelane se nahin roka )
कुरुक्षेत्र की मिट्टी, लाखों सैनिकों के खून से सनी हुई थी। 18 दिन के इस युद्ध के आखिर में भले ही धर्म की जीत हुई थी , लकिन ये कहना मुश्किल है की अपने ही खून को मार कर पांडव एक खुशाल जीवन बिता रहे थे।
पांडवों की सेना में स्वयं श्री कृष्णा भी थे। वो चाहते तो इस युद्ध को रोक सकते थे पर ऐसा नहीं हुआ… पर क्यों?
महाभारत एक ऐसा ग्रन्थ है जो कई सारी मिस्ट्रीज़ से भरा है, हम जितना महाभारत के बारे में पड़ते है, उतना ही उसमे घुसते चले जाते है है, हमारे मन्न में कई सारे सवाल उठ रहे है , आज महाभारत को लेकर एक ऐसा ही सवाल हमारे मन्न में उठा है,
की जब साक्षात् श्री कृष्णा धरती पर थे तो उन्होंने क्यों महाभारत को होने से नहीं रोका? क्यों उन्होंने युधिष्टर को जुआ खेलने से नहीं रोका? आज के लेखन में हम आपको इसका जवाब देंगे ।
श्री कृष्णा पांडवों के इष्ट देव थे और साथ ही साथ उनके दोस्त और एडवाइजर (Advice) भी थे। पांडव कोई भी काम करने से पहले श्री कृष्णा से उनकी एडवाइस (Advice) ज़रूर लेते थे और उनसे पूछ कर ही कोई कदम उठाते थे।
लेकिन जब युधिष्टर ने दुर्योधन के साथ चौसठ का खेल यानी की डाइस गेम खेलने से पहले श्री कृष्णा से कोई सलाह नहीं ली थी, ना ही उनको बताकर ये खेल शुरू किया था।
इस खेल के दौरान जब दुर्योधन को समझ नहीं आ रहा था की अब अगला कदम वह क्या ले? तब वह अपने मामा शकुनि की सलाह ले रहा थे , और मामा शकुनिने इस खेल में महारथ हासिल की हुई थी, वो दुर्योधन की मदद कर रहे थे।
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लेकिन जब युधिष्टर को अगला कदम क्या लेना है समझ नहीं आ रहा था, तब वह चाहते तो श्री कृष्णा की मदद ले सकते थे , लेकिन उन्होंने बिना किसी की मदद के यह खेल खेलते रहने का निर्णय किया ।
अगर युधिष्टर ने श्री कृष्णा की मदद ली होती तो ये खेल श्री कृष्णा और शकुनि मामा के बीच होता।
और क्या पता तब श्री कृष्णा जीत जाते ?
जुआ खेलना एक पाप के सामान है और इस खेल का हिस्सेदार बनना भी एक पाप है। वही महाभारत में इस बात का वर्णन किया गया है, की जब ये खेल शुरू होने वाला था, तब श्री कृष्णा महल में पांडवों से मिलने आए थे, लेकिन पांडवों को पता था की यह खेल खेलना एक बुरा काम है, इसलिए उन्होंने श्री कृष्णा को इस खेल में शामिल होने के लिए पूछा तक नहीं, क्यों की उन्हें मन्न इस मन्न पता था की श्री कृष्णा कभी भी किसी गलत काम में साथ नहीं देंगे, इसके अलावा शर्म के मारे भी वह श्री कृष्णा से ये नहीं पूछ पाए।
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जिस वजह से श्री कृष्णा उस जगह पर मौजूद नहीं थे। पाण्डव श्री कृष्णा से छुपकर ये खेल खेलना चाहते थे, इसलिए जब श्री कृष्णा महल में आए तो उन्होंने श्री कृष्णा को एक कमरे में रुक कर आराम करने को कहा, और जब उनको बुलाया जाए तब ही वह कमरे से बाहर आए, ऐसा श्री कृष्णा से कहा गया था।
जिस वजह से श्री कृष्णा वह खुद चाह कर भी वहां नहीं आ पाते। वैसे अगर श्री कृष्णा फिर भी युधिष्टर को ये खेल खेलने से रोक देते , और महाभारत नहीं होती, तब श्री कृष्णा के द्वापरयुग में अवतार लेने का मकसद भी अधूरा रह जाता। ना युधिष्टर हारते, ना महाभारत होती, और ना ही श्री कृष्णा महाभारत के युद्ध में अधर्मियों का विनाश करके धर्म की स्थापना कर पाते ।
जब जब अधर्म और पाप का घड़ा भरता है, तब साक्षात् भगवान् धरती पर आकर पाप का सर्वनाश करते है।
वैसे ही द्वापरयुग में महाभारत का होना ज़रूरी था नहीं तो धरती पर पाप और अधर्म इतना भड़ जाता की धरती जीते जी नर्क बन जाती।
इसलिए भी होता है, उसमें विधाता की ही मर्ज़ी होती है, और भगवान् जो भी करते हैं हमेशा सही करते है।
युधिष्ठिर ने जुआ क्यों खेला | Yudhishthir ne jua kyon khela
युधिष्ठिर को जुआ खेलना पसन्द नहीं था किंतु बुलाये जाने पर न जाना नियम-विरुद्ध समझकर वे उस व्यसन में लिप्त हो गये। इस जुए ने उनको कहीं का न रखा। एक-एक करके वे अपनी सब वस्तुएँ खो बैठे। हाथ में कुछ न रह जाने पर वे अपने चारों भाइयों को, अपने को और द्रौपदी को भी, दाँव में लगाकर, हार गये।
श्री कृष्ण ने पांडवों को जुआ खेलने से क्यों नहीं रोका? | Shree krshn ne paandavon ko jua khelane se kyon nahin roka?
पांडव किस खेल में हारे थे? | Paandav kis khel mein haare the?
पासे का खेल : शकुनि जुए में माहिर था और उसके पास पासों की एक जोड़ी थी जो जादुई रूप से उसकी बोली के अनुरूप थी। इसके कारण, एक के बाद एक दांव लगाते हुए, युधिष्ठिर खेल में अपनी सारी संपत्ति और अंततः अपना राज्य हार गए।
शकुनि को पांडवों से नफरत क्यों थी? | Shakuni ko paandavon se napharat kyon thee?
उसने कौरवों और पांडवों के बीच नफरत भड़काई। दुर्योधन के जीवन में पांचों पांडवों की ईर्ष्या की आग जल रही थी जिसने शकुनि को बदला लेने का मौका दिया। उसके अंदर बदले की भावना इतनी तीव्र थी कि वह अपनी मृत्यु तक हस्तिनापुर में ही रहा।
धन्यवाद