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    Home » कर्ण का पूर्वजन्म था उसके दुर्भाग्य की वजह ।
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    कर्ण का पूर्वजन्म था उसके दुर्भाग्य की वजह ।

    VeshaliBy VeshaliNovember 21, 2023Updated:November 21, 2023
    Danveer karn
    Danveer karn
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    Karn ka poorvjanam कैसा था ? उसे भाग्य के हाथों इतना कष्ट क्यों झेलना पड़ा था?

    सूर्यपुत्र कर्ण, महाभारत का एक ऐसा योद्धा था जिसे समझना बेहद मुश्किल है ,जहां एक ओर कर्ण महदानी था, वही दूसरी ओर कर्ण ने महाभारत के युद्ध में ना सिर्फ बुराई का साथ दिया बल्कि, द्रौपदी को नगरवधू कहा और जितना दुर्योधन महाभारत का युद्ध चाहता था उससे कई ज्यादा कर्ण ये युद्ध करना चाहता था । Karn ka poorvjanam कर्ण का पूर्वजन्म निश्चित था

    Karn ka porvajanam
    Karn ka porvajanam

    लेकिन देव पुत्र होने के बावजूद कर्ण में इतनी बुराई कैसे थी? और महान दानी होने के बावजूद उसकी इतनी दर्दनाक मृत्यु कैसे हुई? दर्शकों इसके भी राज़ जुड़े है कर्ण के पिछले जन्म से ।

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    ये बात है त्रेतायुग की, जब कर्ण एक राक्षस था जिसका नाम दम्भोद्भव था । दम्भोद्भव ने सूर्य देव की घोर तपस्या की और तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने दम्भोद्भव से वरदान मांगने को कहा, तब दम्भोद्भव ने सूर्यपुत्र से अमरता का वरदान मांगा । लेकिन इस धरती पर कोई भी अमर नहीं रह सकता, इसलिए सूर्यदेव ने दम्भोद्भव को ये वरदान देने से साफ मना कर दिया । तब दम्भोद्भव ने सूर्य देव से वरदान मे 1000 दिव्य कवच और कुंडल मांगे जिन्हे केवल वो ही तोड़ सकता है जिसने 1000 साल तपस्या की हो और कवच तोड़ते ही वह व्यक्ति भी मर्र जाए । इसलिए उस कवच का नाम सहस्त्र कवच पड़ गया । Danveer karan की मृत्यु के दौरान जो हुआ, सुनकर दंग रह जाएंगे।

    सूर्य देव ने दम्भोद्भव को ये वरदान दे दिया, जिसके बाद दम्भोद्भव का सारा डर खतम हो गया, और उसने देवी देवताओं और धरती पर अत्याचार करना शुरू कर दिया । उसने बिना रुके पूरी धरती पर आतंक मचाना शुरू कर दिया जिससे बाद उसके पापों का घड़ा बहुत जल्दी भरने लगा । परेशान होकर सभी देवी देवताओं ने विष्णु जी से प्रार्थना की, कि वह धरती और ब्रह्माण को इस राक्षस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाए । तब जा कर भगवान विष्णु ने 2 ऋषियों के रूप मे नर और नारायण का अवतार लिया ।

    भगवान विष्णु का ये अवतार दो जुड़वा भाइयों के रूप में अवतार था । जिसमे डॉनऊ के शरीर अलग अलग थे, लेकिन उन्मे आत्मा एक ही थी ।
    नर नारायन, डॉनऊ ही ऋषि थे । दम्भोद्भव राक्षस को मारने के लिए दोनों ने घोर तपस्या की और फिर नर ने जाकर दम्भोद्भव राक्षस को युद्ध के लिए ललकारा ।

    nar narayan
    nar narayan

    जब दम्भोद्भव और नर का युद्ध हो रहा था, तब जैसे ही नर ने दम्भोद्भव का सहस्र कवच तोड़, तब वरदान अनुसार नर की मृत्यु हो गई, लेकिन नारायण ऋषि जो नर का ही हिस्सा थे, उन्होंने तपस्या कर के, नर को जीवित कर दिया, और खुद इस राक्षस से युद्ध करने लगते, फिर जब वह भी एक कवच तोड़ देते और उनकी भी मृत्यु हो जाती, तब तक नर उन्हे तपस्या करके वापस जीवित कर देते, और फिर दम्भोद्भव राक्षस से युद्ध कर के उनका कवच तोड़ देते ।

    ऐसे ही दम्भोद्भव और नर नारायण (nar narayan)के बीच ये युद्ध सालों तक चलता रहा और आखिर में नर नारायण ने दम्भोद्भव 999 कवच तोड़ दिए । अब केवल एक कवच बचा रह गया था । तब घबरा कर दम्भोद्भव राक्षस ने सूर्य देव से आश्रय मांगता है । सूर्यदेव के अनुरोध पर नर नारायण उसे छोड़ देते हैं। फिर द्वापर युग में जब कुंती भगवान सूर्य का आह्वान करती हैं तब भगवान् सूर्य इस आखिरी सहस्र कवच को ही उन्हे पुत्र रूप में देते हैं।

    इसीलिए इस जन्म मे दम्भोद्भव राक्षस यानि की कर्ण उस एक बचे कवच कुण्डल के साथ जन्म लेता है। लेकिन आज अपने पिछले जन्म में राक्षस रूप मे कर्ण ने जीतने भी बुरे क्रम कीये थे, उनका पहल कर्ण को अपने इस जन्म मे भोगना पड़ा ।

    पिछले जन्म के अपने दुष्कर्म की वजह से, और बुरी परवर्ती की वजह से कर्ण की दुर्योधन जैसे दुष्ट इंसान से दोस्ती हुई । भले ही कर्ण भी पांडवों का ही भाई  था, उसके  बावजूद उसने हमेशा अधर्म का साथ दिया ।

    vishnu bhagwan
    vishnu bhagwan

    लेकिन बुरे कर्मों का फल आपको भुगतना ही पड़ता है , फिर उससे बचने के लिए भले ही आप कितने भी जन्म ले लो, इसलिए दम्भोद्भव राक्षस के कर्मों का पूरा फल देने के लिए, नारायण ऋषि ने द्वापर युग में कृष्ण के रूप में अवतार लिया और नर ऋषि ने अर्जुन के रूप में अवतार लिया और द्वापर युग में अपने अवतार लेने के पीछे जो उनकी योजना थी, उसे पूरा करने के साथ ही कर्ण का ये आखिरी कवच और जीवन भी खतम कर दिया ।

    महभारत(Mahabharat) में भी इसलिए कर्ण भले ही एक पल के लिए सभी पांडवों से युद्ध ना करता, लेकिन वह अर्जुन से युद्ध करके उसे मृत्यु के घाट उतार देना चाहता था । कर्ण को अपने पिछले जन्म की वजह से ही अर्जुन से बैर था ।
    आखिर में कर्ण जीवन के कष्टों को भोगकर मुक्त हुआ और अंत में पुनः सूर्यलोक में प्रवेश कर गया।

    Mahabharat karn
    Mahabharat karn

    दोस्तों कर्ण की जीवन की ये गाथा सुनकर हमे ये सिक्षा  मिलती है, की अगर आप  बुरे क्रम करते हो, कितने भी पाप करते हो, आपको उनका फल एक न एक  दिन तो जरूर भोगना पड़ता है ।

    आप अपने कर्मों के फल से कही भागकर नहीं जा सकते । अगर आप अच्छे हो, और अच्छे क्रम करते हो, तब भले ही आपको उसका फल लेट मिले, पर मिलता जरूर है । वही अगर आप बुरे क्रम करोगे, तब भी आपको कभी न कभी  उसका फल भोगना ही पड़ेगा ।
    इसलिए हमे हमेशा धर्म की  राह पर चलना चाहिए और अच्छे क्रम करने चाहिए ।

    कर्ण का इतिहास | Karn history in hindi | Karn story in hindi

    कर्ण की वास्तविक माँ कुन्ती थीं और कर्ण और उनके छ: भाइयों के धर्मपिता महाराज पांडु थे। कर्ण के वास्तविक पिता भगवान सूर्य थे। कर्ण का जन्म पाण्डु और कुन्ती के विवाह के पहले हुआ था। कर्ण दुर्योधन का सबसे अच्छा मित्र था और महाभारत के युद्ध में वह अपने भाइयों के विरुद्ध लड़ा।

    करण कवच कुंडल कथा | Karan kavach kundal story in hindi

    कवच कुंडल जो कर्ण को जन्म के साथ ही अभेद्य रूप में प्राप्त हुये । कोई भी बाण और हथियार उसे भेद नहीं सकता था । कवच कुंडल जिसके कारण कर्ण से अर्जुन की सुरक्षा के लिए इंद्र से लेकर कृष्ण तक चिंतित थे । क्योंकि ये कर्ण की त्वचा से अभिन्न रूप में जुड़ा हुआ था और कोई धातु मानव की त्वचा से अभिन्न रूप में चिपकाई नहीं जा सकती ।

    कर्ण का जन्म कैसे हुआ? How karna was born | How was karna born

    कर्ण की वास्तविक माँ कुन्ती थीं और कर्ण और उनके छ: भाइयों के धर्मपिता महाराज पांडु थे। कर्ण के वास्तविक पिता भगवान सूर्य थे। कर्ण का जन्म पाण्डु और कुन्ती के विवाह के पहले हुआ था।

    कर्ण कौन है? Who is karan | Who is karn in mahabharat | Who is suryaputra karn

    कर्ण छ: पांडवों में सबसे बड़े भाई थे । भगवान परशुराम ने स्वयं कर्ण की श्रेष्ठता को स्वीकार किया था । कर्ण की वास्तविक माँ कुन्ती थीं और कर्ण और उनके छ: भाइयों के धर्मपिता महाराज पांडु थे। कर्ण के वास्तविक पिता भगवान सूर्य थे।

    who killed karna | how karna died | how did karna die

    महाभारत युद्ध के 17वें दिन कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया। तभी अर्जुन ने अपना दिव्यास्त्र निकाला और कर्ण पर वार कर दिया। जैसा साधू ने श्राप दिया था उसी तरह कर्ण की मृत्यु हो गई।

    कर्ण की पत्नी और पुत्र | karna wife | karna Son

    व्रूशाली और सुप्रिया : कर्ण की दो पत्नियां थीं। दोनों ही बहुत सुंदर थी। ‘अंग’ देश के राजा कर्ण की पहली पत्नी का नाम वृषाली था। वृषाली से उसको वृषसेन, सुषेण, वृषकेत नामक 3 पुत्र मिले।

    कर्ण कितना शक्तिशाली था | How much powerful was Karna | Who was karna in previous birth

    यह तो सभी जानते हैं कि महाभारत के युद्ध में सबसे शक्तिशाली योद्धा कोई थे तो वह कर्ण और अश्वत्थामा थे। लेकिन कवज और कुंडल उतर जाने के बाद भी कर्ण इतने शक्तिशाली थे कि वे अर्जुन के रथ को एक ही बाण में हवा में उड़ा देते। कर्ण पूर्व जन्म में एक राक्षस था, जिसे सूर्य की कृपा प्राप्त थी. कर्ण का जन्म होना और जीवनभर यातनाएं भोगना भी उसके पूर्व जन्म का फल था.

    Age of karna during Mahabharata war | Karn from mahabharat | karna from mahabharat

    तो वनवास के अंत में युधिष्ठिर 90-96 वर्ष के हैं। और ‘कुंडल’. कर्ण 95-101 के आसपास हैं। मरने से पहले।

     

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