होयसलेश्वर मंदिर | Hoysaleswara temple
भारत मे स्थित होयसलेश्वर मंदिर (Hoysaleswara temple), भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर है जो कर्नाटक के हालेबिदु (halebidu) नामक स्थान पर स्थित है। यह बेलूर से 12 किलोमीटर दूर है। इसका निर्माण 11-12 वी शताब्दी में राजा विष्णुवर्धन के काल में हुआ था। और इस साल 2023 मे यूनेस्को ने इस मंदिर को वर्ल्ड हैरिटेज की सूची मे शामिल किया गया हैं, जो हमारे भारत के लिए गर्व की बात हैं।
लेकिन इस मंदिर को जो चीज खास बनाती हैं वह हैं, इस मंदिर का निर्माण और इसकी बनी हुई मूर्तिया, जिसे देख कर आप भी यही कहेंगे की, “ये तो पक्का है की प्राचीन सभ्यता में कोई न कोई उन्नत तकनीक अवश्य रही होगी, जिसे हमारे आज के युग ने कही खो दी हैं।
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मंदिर निर्माण
इस मंदिर की बहारी परत पर जो पूरे 12 नक्काशीदार परतों से बनी हैं, हैरान करने वाली बात यह है की इन सभी 12 परतों को किसी सिमेन्ट या चूने की सहायता से नहीं जोड़ा गया हैं, बल्कि इसे आधुनिक तरीकों से इंटेरलोककइंग की सहायता से जोड़ा गया हैं। जिसे हम पत्थर को तराशना कहते हैं। जो एक प्राचीन वास्तुकला और अभियांत्रिकी का एक विशेष उद्धारण हैं। लेकिन उन सभी परतों को जोड़ने के लिए आधुनिक औजार की जरूरत पड़ती हैं जो उस समय मे होने असंभव हैं।
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मंदिर मे बने स्तम्भ
इस मंदिर मे बने स्तम्भ इस मंदिर की एक खास विशेष जान हैं, 12 फीट लंबे गोलाकार स्तम्भ पर पाए जाने वाले गोलाकार निशान, यह निशान इतने सठिक हैं की इसे उन्नत तकनीकों का उपयोग करके ही बनाया जा सकता हैं। ऐसे मे सवाल यह आता हैं की उस समय आधुनिक उन्नत मशीने और तकनीक न होने के बावजूद भी इन स्तम्भो पर यह गोलाकार निशान कैसे बनाए गए।
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मंदिर मे बनी मुर्तिया
इस मंदिर मे ऐसी कई अन्य मूर्तियाँ हैं जिसमे बने नक्काशीदार आभूषण हैं जो छोटे पत्थर की इंटेरलोककइंग की सहायता से जोड़े हैं, जो मुश्किल से 1 इंच चोड़े हैं, जिसको किसी आधुनिक मशीन की मदद से ही तराशा जा सकता हैं और यह आज के समय मे भी आधुनिक मशीन की सहायता से बनाना भी बहुत कठिन हैं, लेकिन असंभव नहीं। अब यह सोचा जा सकता हैं की आधुनिक उपकरण न होने के बावजूद भी इतने पक्के सठिक तरीकों से नक्काशादरियाँ कैसे की जा सकती हैं।
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आकर्षित मूर्तियाँ
इस मंदिर मे सबसे आकर्षित मूर्ति हैं मसान भैरव की मूर्ति, जिसे एक दीवार पर तराशा गया हैं जिसकी बनावट मे भी अनोखी कलाकृति हैं। साथ ही मंदिर की अन्य मूर्तियों की तरह इसे भी आभूषण से तराशा गया हैं। लेकिन इस मूर्ति को जो चीज सबसे अलग बनाती है वह हैं इस मूर्ति के एक हाथ मे ऐसा यंत्र हैं जो आधुनिक यंत्र के समान दिखता हैं। लेकिन सोचने वाली बात हैं यह हैं की अन्य हाथों मे प्राचीन समान हैं जैसे डमरू और इंसानी खोपड़ी उन्ही बीच आधुनिक उपकरण जैसी दिखने वाली आखिर यह चीज क्या हैं? क्या यह सच मे कोई आधुनिक उपकरण हैं जो हमे कोई संकेत दे रहा हैं? या ये हमारी महज कल्पना हैं।
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कुछ एसी मूर्तियाँ जो एक अलग ओर ही इशारा कर रही हैं।
इस मंदिर के बहारी तरफ एक नंदी (nandi)भगवान की मूर्ति हैं, जो हर तरह के मौसम और धूल मिट्टी को झेलने के बाद भी बहुत चमकती हैं और साथ ही जिस पत्थर पर वह बनी हैं वह बेहद चिकना हैं। जिस पर हर ,मनुष्य अपना चेहरा साफ देख सकता हैं। ऐसा लगता हैं मानो की इस मूर्ति को अभी आधुनिक उपकरणों की सहायता से पोलिश किया गया हो। लेकिन आज के आधुनिक समय मे पोलिश और पत्थर को चिकना बनाने के लिए आधुनिक मशीनो की सहायत से कर पाना ही संभव हैं। और उस समय मे मूर्ति को इतनी सठिक चिकना और पोलिश कर पाना वो भी बिना आधुनिक मशीनो की सहायता से यह तो संभव ही नहीं हैं। लेकिन बात अगर नंदी मूर्ति की हो रही हैं तो हमारे भारत देश में एक ऐसा मंदिर भी हैं, जिसमे नंदी की बढ़ती मूर्ति जो दे रही हैं संकेत कलयुग के अंत का
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दूसरी तरफ मंदिर मे कुछ एसी मूर्तिया भी हैं, जिसको देख कर यह कहना गलत नहीं होगा की इस मंदिर को बनाने भविष्य से कोई आया था।
क्यूंकी इस मंदिर मे बनी भगवान शिव(bhagwan shiv)जी की एक मूर्ति हैं जिनके सर के मुकुट पर बनी कुछ 1 इंच चोंडी खोपड़ियाँ बनाई गई हैं, और वह खोपड़ियाँ कोई साधारण खोपड़ियाँ नहीं हैं, वह खोकली खोपड़ियाँ हैं, जिनके मुह के अंदर अगर टॉर्च से रोशनी मारी जाए तो वह खोपड़ी मे बने आखों और कानों से निकलती हैं। सोचने वाली बात यह हैं जो मुश्किल से 1 इंच चोंडी खोपड़ी हैं, उसे इतनी बारीकी से खोकली कैसे बनाई होगी जिसमे टॉर्च से रोशनी डालो या एक पतली सुई भी डालो तो वह एक से दूसरे छोर से बाहर निकल आती हैं। हैरानी की बात यह भी हैं की इन खोपड़ियों को आधुनिक औजारों से भी खोखला करना संभव नहीं हैं, और उस समय मे सिर्फ छैनी और हथोड़े की सहायता से यह कर पाना तो असंभव हैं।
इस मंदिर की विशेषताओ को देख कर तो यही लगता हैं, की वाकई हमारे पूर्वजों के पास जितना ज्ञान था, हमारे पास उसका 1 तिनका भी नहीं है। और यह कहना भी गलत नहीं होगा की यह मंदिर अतीत से नहीं बल्कि भविष्य से हैं।। ऐसे महान पूर्वजों को हमारी ओर से शत शत नमन हैं।
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होयसलेश्वर मंदिर का इतिहास | Hoysaleswara Temple history
भगवान शिव (bhagwan shiv) को समर्पित होयसल मंदिर का निर्माण राजा विष्णुवर्धन के एक अधिकारी केतुमल्ला सेट्टी ने करवाया था। इस मंदिर को होयसल काल के राजा वीरा बल्ला द्वितीय ने अपनी रानी केतला देवी के लिए 1173 से 1228 ईसवी के अंतर्गत बनवाया था।
होयसलेश्वर मंदिर कहाँ है | Where is Hoysaleswara Temple | Hoysaleswara Temple location
होयसलेश्वर मंदिर हलेबिदु में है, जिसे हलेबिदु (halebidu)दोरासामुद्र भी कहा जाता है । हलेबिदु भारत के कर्नाटक राज्य के हसन जिले में एक शहर है।
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होयसल क्या है | what is Hoysala ? | Hoysala constructions
विट्ठल मंदिर कहाँ स्थित है | Where is Vittala Temple located
विठोबा मन्दिर (Vithoba Temple), जिसे श्री विठ्ठल रुक्मिणी मन्दिर (Shri Vitthal Rukmini Mandir) भी कहा जाता है, भारत के महाराष्ट्र राज्य के सोलापुर ज़िले के पंढरपुर नगर में स्थित विट्ठल और रुक्मिणी को समर्पित एक प्रमुख मन्दिर है।
Hoysaleswara Temple timings | Hoysaleswara Temple information
होयसलेश्वर मंदिर का समय
मंदिर – सुबह 6:30 से रात 9:00 बजे तक
संग्रहालय – सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक, सोमवार से शुक्रवार
होयसलेश्वर मंदिर का निर्माण किसने करवाया था? | Who ho built Hoysaleswara temple | Hoysaleswara temple architecture
होयसलेश्वर मंदिर का निर्माण होयसल राजा विष्णुवर्धन ने 1116 ई. में चोलों पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में करवाया था।
बिष्णुपुर मंदिर कहाँ स्थित है? | Where is Bishnupur Temple located
हलेबिडु मंदिर का इतिहास | Halebidu history | Halebidu Temple history
हेलिबिड को भारतीय मंदिर और शिल्प कला का दर्शन कराने वाले स्थान के रूप में जाना जाता है। बेलूर के संग जुड़वा नगर कही जाने वाली यह जगह तीन शताब्दियों तक (११वीं शताब्दी के मध्य से १४वीं शताब्दी के मध्य तक) होयसल वंश का गढ़ था। बेलूर-हेलिबिड की स्थापना जन अनुयायी नृपा कामा ने की थी।