हरिद्वार का महत्व ( Significance of Haridwar )
सनातन धर्म में सप्तपुरियों का ज़िक्र आता है और इन्हीं सप्तपुरियों में से एक है हरिद्वार (Haridwar)। जैसा कि इसके नाम से ही प्रतीत होता है श्री हरि का द्वार क्योंकि यहीं से भगवान् विष्णु का तीर्थ कहे जाने वाले बद्रीनाथ का मार्ग आरंभ होता है। वहीँ शैव परंपरा (Shaivism) में विश्वास करने वाले लोगों के लिए यह हरद्वार है जिसमें हर से तात्पर्य भगवान् शिव (Lord Shiva) से है क्योंकि यहीं से शिवतीर्थ केदारनाथ (Kedarnath) का मार्ग खुलता है।
हरिद्वार कहाँ है? ( Where is Haridwar? )
गंगा नदी के निकट अवस्थित हरिद्वार ( Haridwar ) में हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं उनका यहाँ आने का एकमात्र उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति है। हिन्दू धर्म से संबंध रखने वाला हर व्यक्ति मोक्ष की कामना अपने मन में रखा ही है ताकि वह इस कठिन तपस्या के समान कहे जाने वाले जीवन से हमेशा के लिए मुक्ति पा सके। आइये जानते हैं Interesting Facts About Haridwar in Hindi :
हरिद्वार से जुड़े रोचक तथ्य ( Interesting Facts About Haridwar in Hindi )
1. हरिद्वार में ही गिरी थीं अमृत की बूँदें
पौराणिक कथाओं में इस बात का ज़िक्र मिलता है कि समुद्र मंथन (Samudra Manthan) के दौरान धरती पर चार जगह अमृत की बूंदे गिरी थी। इलाहबाद, उज्जैन, नासिक और चौथा स्थान था हरिद्वार (Haridwar)। हरिद्वार में भी हर की पैड़ी स्थान पर अमृत छलका था जो ब्रह्मकुंड के नाम से प्रचलित है। यही वजह है कि इन चार ही मुख्य जगहों पर कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है।
2. हरिद्वार का दूसरा नाम गंगाद्वार
गंगा (Ganga) मैया हरी के गृह से ही निकलकर मैदानी इलाकों तक पहुँचती है इसलिए इसे गंगाद्वार (gangadwar) के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर डुबकी लगाने वाले हर व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है ऐसी मान्यता है।
3. तीनों देवताओं की उपस्थिति ने किया हरिद्वार को पवित्र
हरिद्वार को तीन देवताओं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्थान माना जाता है। गंगा के उत्तरी भाग में श्री हरी का बद्रीनाथ (Badrinath) और भोलेनाथ का तीर्थ केदारनाथ अवस्थित है। वहीँ हर की पैड़ी जहाँ अमृत की बूंदे गिरी थीं वह ब्रह्मकुंड (Bramha Kund) है। इस तरह से यहाँ तीनों ही देवताओं का वास है।
4. हरिद्वार की उपनगरी कनखल में ही सती ने दी थी प्राणों की आहुति
हरिद्वार का कनखल (Kankhal) ही वह स्थान है जहाँ पर राजा दक्ष ने प्रसिद्ध यज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें उन्होंने अपनी पुत्री सती और भगवान् शिव को आमंत्रित नहीं किया था। सती अपने पिता द्वारा किये गए इस अपमान को सह नहीं पाई थी और यज्ञ की अग्नि में उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
5. ऋषि मुनियों की तपभूमि है हरिद्वार
हरिद्वार (Haridwar) में ही सप्तऋषियों, कपिल मुनि और विश्वामित्र ने कठोर तपस्या की थी। इसलिए इस स्थान को ऋषि मुनियों की तपभूमि के नाम से भी जाना जाता है। वहीँ प्रभु श्री राम (Lord Rama) के भाई लक्ष्मण ने हरिद्वार में जुट की बनी रस्सियों का सहारा लेकर नदी को पार किया था। उस स्थान को आज लक्ष्मण झूला कहा जाता है। जब राजा श्वेत ने यहाँ कठोर तपस्या कर भगवान् ब्रह्मा (lord brahma) को प्रसन्न किया था तब राजा ने ब्रह्मा जी से इस स्थान को ईश्वर कहे जाने का वरदान माँगा था।
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पौराणिक कथाओं में इस बात का ज़िक्र मिलता है कि समुद्र मंथन (Samudra Manthan) के दौरान धरती पर चार जगह अमृत की बूंदे गिरी थी। इलाहबाद, उज्जैन, नासिक और चौथा स्थान था हरिद्वार (Haridwar)। हरिद्वार में भी हर की पैड़ी स्थान पर अमृत छलका था जो ब्रह्मकुंड के नाम से प्रचलित है। यही वजह है कि इन चार ही मुख्य जगहों पर कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है।
2. हरिद्वार का दूसरा नाम गंगाद्वार
गंगा (Ganga) मैया हरी के गृह से ही निकलकर मैदानी इलाकों तक पहुँचती है इसलिए इसे गंगाद्वार (gangadwar) के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर डुबकी लगाने वाले हर व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है ऐसी मान्यता है।
3. तीनों देवताओं की उपस्थिति ने किया हरिद्वार को पवित्र
हरिद्वार को तीन देवताओं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्थान माना जाता है। गंगा के उत्तरी भाग में श्री हरी का बद्रीनाथ (Badrinath) और भोलेनाथ का तीर्थ केदारनाथ अवस्थित है। वहीँ हर की पैड़ी जहाँ अमृत की बूंदे गिरी थीं वह ब्रह्मकुंड (Bramha Kund) है। इस तरह से यहाँ तीनों ही देवताओं का वास है।
4. हरिद्वार की उपनगरी कनखल में ही सती ने दी थी प्राणों की आहुति
हरिद्वार का कनखल (Kankhal) ही वह स्थान है जहाँ पर राजा दक्ष ने प्रसिद्ध यज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें उन्होंने अपनी पुत्री सती और भगवान् शिव को आमंत्रित नहीं किया था। सती अपने पिता द्वारा किये गए इस अपमान को सह नहीं पाई थी और यज्ञ की अग्नि में उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
5. ऋषि मुनियों की तपभूमि है हरिद्वार
हरिद्वार (Haridwar) में ही सप्तऋषियों, कपिल मुनि और विश्वामित्र ने कठोर तपस्या की थी। इसलिए इस स्थान को ऋषि मुनियों की तपभूमि के नाम से भी जाना जाता है। वहीँ प्रभु श्री राम (Lord Rama) के भाई लक्ष्मण ने हरिद्वार में जुट की बनी रस्सियों का सहारा लेकर नदी को पार किया था। उस स्थान को आज लक्ष्मण झूला कहा जाता है। जब राजा श्वेत ने यहाँ कठोर तपस्या कर भगवान् ब्रह्मा (lord brahma) को प्रसन्न किया था तब राजा ने ब्रह्मा जी से इस स्थान को ईश्वर कहे जाने का वरदान माँगा था।
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