दानवीर कर्ण | Danveer karan एक महायोद्धा के प्राणों का अद्वितीय त्याग
ॐ नमः शिवाय : महाभारत में जब अर्जुन ने सूर्य पुत्र कर्ण पर धोखे से वार करके उन्हें मूर्छित कर दिया, उसके बाद भी – Danveer karan कर्ण के प्राण नहीं गए, ये देख कर अर्जुन बहुत डर गए और श्री कृष्णा से पूछा ‘माधव अब तो कर्ण मूर्छित होकर धरती पर पड़े है, फिर भी उनके प्राण क्यों नहीं निकल रहे ? तब श्री कृष्णा ने बताया की Danveer karan कर्ण एक महान योद्धा होने के साथ-साथ, महान दानी थे, उन्होंने हमेशा अपने वचनों का पालन किया है, उन्होंने अपने जीवन में सदा ही त्याग किया है और कबहि किसी से किसी भी प्रकार की कोई उम्मीद नहीं राखी न किसी से कभी कुछ माँगा, बल्कि अपने दोनों हाथों से हमेशा सबको दान देते गए।
उनके दान-पुन्य इतने ज़्यादा है की उनके प्राण भी नहीं निकलना चाह रहे है। लेकिन आखीर में कर्ण को अपने प्राण त्यागने पड़े और उसके बाद जो हुआ उसे देखकर पूरा ब्राह्माण हिल गया । तो आखिर ऐसा क्या हुआ ? चलिए आज के इस लेखन में आपको बताते है।
जब महावीर कर्ण और अर्जुन के बीच युद्ध हो रहा था, तब उनका युद्ध अपने चरम पर था। कभी कर्ण अर्जुन को घायल करते कभी अर्जुन अपने तीरंदाज़ी से कर्ण को हिला देते। यहाँ तक की कर्ण, परशुराम जी के श्राप के कारण अपना ब्रह्मास्त्र भी चलन भूल गए। दिन का दूसरा पहर चल रहा था और उसी समय कर्ण के रथ का पहिया युद्ध भूमि में धस गया। कर्ण ने अर्जुन से कहा ‘हे कुंती पुत्र अर्जुन, जब तक में ये पहिया बहार ना निकाल दू ,मुझे निहत्था देख आप मुझ पर प्रहार नहीं करियेगा, क्यों की आप एक महान योद्धा है और ये छल माना जाएगा।
लेकिन भगवान् श्री कृष्णा भी जानते थे की सूर्या पुत्र कर्ण को हराना नामुमकिन है, इसलिए उन्होंने अर्जुन से कर्ण पर प्रहार करने को कहा, अर्जुन ने कर्ण पर अंजलीका अस्त्र चला दिया और निहत्थे कर्ण वही धरती पर मूर्छित हो गए। उसी समय ये खबर सुन कर परशुराम वह पर आ गए और उन्होंने कर्ण से कहा, की मैंने तुम्हें इसी दिन के लिए यह श्राप दिया था, क्यों की मुझे ज्ञात था जितनी शक्तियां तुम्हारे पास है उससे तुम विजय हो जाते , लेकिन तुमने अधर्म का साथ दिया है जिसका अंत विनाश है। और जहा दूसरी ओर स्वयं नारायण हो तब कोई कैसे हार सकता है। तो तुम्हारा वध तो निश्चित था। जो विजयधनुष तुम्हरे पास है तुम उसे अब महादेव को लौटा दो।
जब कर्ण ने महादेव को गुहार लगाई तब त्रिकाल दर्शी महादेव वहां प्रकट हो गए और कर्ण से कहा ‘हे कर्ण अभी तुम इसी विधि के विधान को स्वीकार क्र लो , लेकिन में तुम्हें ये आशीर्वद देता हूँ की भविष्य में जब जब महान योद्धाओ का नाम लिए जाएगा,
तब तब तुम्हारा नाम सबसे ऊपर आएगा। कर्ण ने महादेव (Mahadev) को विजयधनुष वापस कर दिया और अपना देह त्याग दिया।कर्ण (Danver karan)के देह त्यागते ही उसके शरीर से एक अद्भुत ऊर्जा उत्पन्न हुई जो आकाश में जाकर बिखर गयी। मंगल और बुद्ध गृह ने अपनी दिशा बदल दी , उसके बाद पूरी धरती में मातम सा छागया , समुन्द्र में कोहराम मच गया. पूरा आकाश काला पड़ गया और ज़ोर ज़ोर से गरजने लगा मानों कोई चीख रहा हो, आकाश से जलती हुई उल्काएँ गिरने लगी और पूरी सृष्टि में हाहाकार मच गया। यहाँ तक की देवी देवता तक मातम मानाने लगे और Shri krishna खुद इतनी पवित्र आत्मा का ऐसा अंत देखकर रो पड़े।
जब इस बात की खबर माता कुंती को मिली तब वह युद्ध के मैदान में जा कर फूट फूट कर रोने लगी, तब ये देखकर सभी पांडवों ने पूछा की आप हमारे शत्रु के वध पर क्यों रो रहे हो ? तब माता कुंती ने पण्डवों को कर्ण के उनके बड़े भाई होने का राज़ बताया जिसे सुनकर पांडव भी फूट फूट कर रोने लगे और युधिष्ठिर ने माता कुंती से कहा की तुम्हारी वजह से अनजाने में हमने अपने ही भाई का वध कर दिया है, हम इतने बड़े पाप के भोगी है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूँ की आज के बाद कोई भी स्त्री अपने पेट में कोई बात नहीं रख पाएगी । Danveer karan
कर्ण ने मृत्यु से पहले श्री कृष्णा से कहा था की मेरा अंतिम संस्कार किसी पवित्र स्थान पर एक पवित्र आत्मा से ही करवाना, लेकिन महाभरत के युद्ध के समय ऐस कोई स्थान नहीं रह गया था जो की पवित्र हो, इसलिए कर्ण की इच्छा का मान रखते हुए श्री कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार अपनी हथेली में कर दिया।