बुध प्रदोष क्या है? ( Budh Pradosh kya hai? )
हिन्दू पंचांग में हर महीने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी तिथि के समय बुधवार को पड़ने वाले व्रत को बुध प्रदोष ( Budh Pradosh ) कहा जाता है। इस व्रत को सौम्यवारा प्रदोष ( Saumyavara Pradosh ) भी कहा जाता है। जो भी जातक इस दिन व्रत का पालन करते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती है। इस दिन भोलेनाथ की कृपा के साथ बुध देव की कृपा प्राप्त होती है। जिससे कुंडली में बुध के दुष्प्रभाव भी कम होने लगते है तथा ज्ञान भी प्राप्त होता है।
बुधवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत का पालन करते हुए यदि बुध यन्त्र लॉकेट ( Budh Yantra Locket ) को धारण कर लिया जाए तो यह कुंडली में बुध के अशुभ फल को कम करता है और एक समय आने पर शुभ फल भी देने लगता है।
बुधवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत का पालन करते हुए यदि बुध यन्त्र लॉकेट ( Budh Yantra Locket ) को धारण कर लिया जाए तो यह कुंडली में बुध के अशुभ फल को कम करता है और एक समय आने पर शुभ फल भी देने लगता है।
बुध प्रदोष व्रत कथा ( Budh Pradosh Vrat Katha )
बुधवार प्रदोष व्रत कथा ( budhwar pradosh vrat katha ) कुछ इस प्रकार है कि एक नगर में रहने वाले पुरुष ने हाल ही में विवाह किया था। उसके विवाह के दो दिन के बाद ही उसकी पत्नी मायके चली गई थी। वह पुरुष अपनी पत्नी को मायके से लेने के लिए कुछ दिन बाद गया। परन्तु वहां पर पुरुष के ससुराल पक्ष ने उसे समझाया कि बुधवार ( budhwar ) के दिन विदाई करना शुभ नहीं माना जाता है। इसके बावजूद वह पुरुष नहीं माना और जिद कर अपनी पत्नी को विदा कर लाने लगा।
जैसे ही वे दोनों पति-पत्नी नगर के थोड़ा पास पहुंचे पत्नी को तेज़ प्यास लगी। इसके लिए वह पुरुष एक लोटा लेके थोड़ा आगे पानी की तलाश करने आगे चला और उसकी पत्नी वहीँ पेड़ के नीचे प्रतीक्षा करने के लिए बैठ गई। जब कुछ समय बाद वह पुरुष पानी लेके वहां पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी के लोटे से पानी पीते हुए हंस-हंस कर बातें कर रही है।
यह दृश्य देख उस पुरुष को बहुत क्रोध आया। क्रोधित होते हुए वह जैसे ही अपनी पत्नी के पास पहुंचा तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। हैरान करने वाली बात थी कि उस आदमी शक्ल हूबहू उस पुरुष के जैसी थी। पत्नी भी दोनों को देख कर चौंक गई और सोच में पड़ गई। दोनों हूबहू शक्ल के पुरुषों के बीच झगड़ा होने लगा। पास नगर के लोग वहां आ गए और बहुत भीड़ भी एकत्रित हो गई। इतना ही नहीं वहां सिपाही तक आ गए।
हमशक्ल पुरुषों को देख सिपाही भी हैरान हो गए जबकि पत्नी को तो कुछ ही नहीं आ रहा था। सिपाही ने उस स्त्री से पूछा कि बताओ इनमें से तुम्हारा पति कौन है? वह स्त्री दुविधा की स्थिति में पड़ चुकी थी। अपनी परेशानी के हल के लिए उस पुरुष ने भगवान शिव का अच्छे मन से ध्यान किया और बुधवार के दिन अपनी पत्नी को विदा कराकर लाने के लिए क्षमा याचना भी की।
भोलेनाथ ने पुरुष की गलती को क्षमा किया और उसके बाद वह दूसरा पुरुष खुद ब खुद अंतर्ध्यान हो गया। इस तरह दोनों पति-पत्नी हंसी ख़ुशी अपने घर को लौट गए और बुधवार के प्रदोष व्रत का नियमपूर्वक पालन करने लगे। तभी से यह बुधवार की कथा ( budhwar ki katha ) प्रचलन में है।
जैसे ही वे दोनों पति-पत्नी नगर के थोड़ा पास पहुंचे पत्नी को तेज़ प्यास लगी। इसके लिए वह पुरुष एक लोटा लेके थोड़ा आगे पानी की तलाश करने आगे चला और उसकी पत्नी वहीँ पेड़ के नीचे प्रतीक्षा करने के लिए बैठ गई। जब कुछ समय बाद वह पुरुष पानी लेके वहां पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी के लोटे से पानी पीते हुए हंस-हंस कर बातें कर रही है।
यह दृश्य देख उस पुरुष को बहुत क्रोध आया। क्रोधित होते हुए वह जैसे ही अपनी पत्नी के पास पहुंचा तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। हैरान करने वाली बात थी कि उस आदमी शक्ल हूबहू उस पुरुष के जैसी थी। पत्नी भी दोनों को देख कर चौंक गई और सोच में पड़ गई। दोनों हूबहू शक्ल के पुरुषों के बीच झगड़ा होने लगा। पास नगर के लोग वहां आ गए और बहुत भीड़ भी एकत्रित हो गई। इतना ही नहीं वहां सिपाही तक आ गए।
हमशक्ल पुरुषों को देख सिपाही भी हैरान हो गए जबकि पत्नी को तो कुछ ही नहीं आ रहा था। सिपाही ने उस स्त्री से पूछा कि बताओ इनमें से तुम्हारा पति कौन है? वह स्त्री दुविधा की स्थिति में पड़ चुकी थी। अपनी परेशानी के हल के लिए उस पुरुष ने भगवान शिव का अच्छे मन से ध्यान किया और बुधवार के दिन अपनी पत्नी को विदा कराकर लाने के लिए क्षमा याचना भी की।
भोलेनाथ ने पुरुष की गलती को क्षमा किया और उसके बाद वह दूसरा पुरुष खुद ब खुद अंतर्ध्यान हो गया। इस तरह दोनों पति-पत्नी हंसी ख़ुशी अपने घर को लौट गए और बुधवार के प्रदोष व्रत का नियमपूर्वक पालन करने लगे। तभी से यह बुधवार की कथा ( budhwar ki katha ) प्रचलन में है।
बुध प्रदोष व्रत की क्या विधि है? ( Budh Pradosh Vrat ki kya Vidhi hai? )
1. बुधवार के दिन प्रातःकाल स्नान करें और भगवान शिव, पार्वती व नंदी को पंचामृत से स्नान कराएं।
2. इसके बाद बेल पत्र, अक्षत (चावल), पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं
3. फिर पुष्प अर्पित करते हुए घी का दीपक और धूप जलाएं।
4. दीपक जलाने के पश्चात नैवेद्य (भोग), फल भगवान को चढ़ाएं।
5. भगवान शिव को घी और शक्कर में मिले जौ के सत्तू अर्पित करने से शुभ फल मिलता है।
6. यह सब क्रिया संपन्न करने के बाद कथा पढ़ें और आरती करें।
7. आसन पर बैठकर ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार ध्यान लगाकर जाप करें।
2. इसके बाद बेल पत्र, अक्षत (चावल), पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं
3. फिर पुष्प अर्पित करते हुए घी का दीपक और धूप जलाएं।
4. दीपक जलाने के पश्चात नैवेद्य (भोग), फल भगवान को चढ़ाएं।
5. भगवान शिव को घी और शक्कर में मिले जौ के सत्तू अर्पित करने से शुभ फल मिलता है।
6. यह सब क्रिया संपन्न करने के बाद कथा पढ़ें और आरती करें।
7. आसन पर बैठकर ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार ध्यान लगाकर जाप करें।
साल 2022 में बुध प्रदोष व्रत कब है? ( Year 2022 Budh Pradosh Vrat )
अगस्त 24, 2022
बुधवार- भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 24 अगस्त को सुबह में 8 बजकर 30 मिनट पर
समाप्त- 25 अगस्त को सुबह में 10 बजकर 25 मिनट पर
दिसम्बर 21, 2022
बुधवार- पौष, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- पौष, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 21 दिसंबर को देर रात 12 बजकर 45 मिनट पर
समाप्त- 21 दिसंबर को रात में 10 बजकर 16 मिनट पर
बुधवार- भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 24 अगस्त को सुबह में 8 बजकर 30 मिनट पर
समाप्त- 25 अगस्त को सुबह में 10 बजकर 25 मिनट पर
दिसम्बर 21, 2022
बुधवार- पौष, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- पौष, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 21 दिसंबर को देर रात 12 बजकर 45 मिनट पर
समाप्त- 21 दिसंबर को रात में 10 बजकर 16 मिनट पर