महाभारत में अर्जुन सबसे अच्छे धनुर्धर थे और बेहद होनहार भी थे । जो भी अर्जुन को देखते वह उनसे मोहित हो जाते । लेकिन एक बार जब एक अप्सरा अर्जुन से मोहित हो गई, तो उन्होंने अर्जुन को श्राप दे दिया । ऐसा क्यूँ ? आईए बताते है आपको हमारी आज के इस लेखन में आखिर अर्जुन किन्नर क्यों बने? माना जाता है महाभारत में पांचों पांडव किसी ना किसी देवता का का रूप थे । वही अर्जुन को देवराज इन्द्र का धर्म पुत्र माना जाता है ।
अर्जुन किन्नर क्यों बने?
एक बार जब अर्जुन देवराज इन्द्र के निमंत्रण पर, उनके इंद्रलोक पहुचें, तब इंद्रलोक में एक बेहद खूबसूरत नृतयिक ‘अप्सरा उर्वशी’ ने जैसे ही अर्जुन को देखा, वह उनपर मोहित हो गई ।
उर्वशी अर्जुन के साथ समय व्यतीत करने और अर्जुन को के बारे में और जानने के लिए उनके कक्ष में पहुँच गई, जहां अर्जुन आराम कर रहे थे । उर्वशी अर्जुन के लिए अपना प्रेम भाव जताना चाहती थी ।
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लेकिन जैसे ही यह अर्जुन से मिली, तो अर्जुन ने उनका अभिवादन हाथ जोड़कर माँ के स्वरूप में किया । अर्जुन के मुख से अपने लिए माँ शब्द सुनकर अप्सरा के मन्न को ठेस पहुँच गई, वह नाराज़ हो गई और बेहद क्रोधित भी हो गई ।
अर्जुन को श्राप क्यों मिला था?
क्रोध में आकार अप्सरा ने अर्जुन को श्राप दिया, की भविष्य में वह एक किन्नर बन जाएंगे और नपुसकता के शिकार बन जाएंगे । अप्सरा ने अर्जुन से कहा की वह पूरा जीवन नाचने और गाने में बीता देंगे और साथ ही उनका सारा पुरुषत्व खतम हो जाएगा ।
अर्जुन यह श्राप सुनते ही भयभीत हो गए और देवराज इन्द्र के पास पहुँच गए । देवराज इन्द्र ने अप्सरा से अनुरोध किया की अर्जुन से नजाने में यह गलती हुई है, क्यूँ की अर्जुन का मन्न साफ है इसलिए उन्होंने उर्वशी को माँ समान दर्जा दिया । अर्जुन को यह श्राप देना उचित नहीं है ।
लेकिन एक बार दिया गया श्राप वापस नहीं लिया जा सकता , इसलिए फिर उर्वशी ने अर्जुन का श्राप थोड़ा कम किया, उन्होंने अपने इस श्राप को केवल एक साल के लिए ही दिया, की अर्जुन अपने मानव जीवन में एक सल किन्नर की तरह बिताएंगे और नाच गाना करेंगे ।
उनका पुरुषत्व एक साल के लिए कम हो जाएगा । अर्जुन को यह श्राप 13वें वर्ष में लगा । अर्जुन तब अज्ञात वायस में थे और तब यह श्राप अर्जुन के लिए वरदान साबित हुआ क्यूँ की इस श्राप के कारण की अर्जुन अज्ञातवायस में अपनी पहचान छुपा पाए और एक स्त्री के रूप में अज्ञात वायस में 1 साल रहे जहां उन्हें कोई भी पहचान नहीं पाया ।
अर्जुन बृहन्नला नाम की नृत्यका बने थे और बृहन्नला बनकर अज्ञातवास में अर्जुन ने विराट नगर के राजा विराट की पुत्री उत्तरा को नृत्य सिखाया था । उत्तरा का विवाह बाद में, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से हुआ ।
इसे हमें सीख मिलती है की अगर आपके मन्न में किसी के प्रकार बुरी भावनाए ना हो, आपका मन्न साफ हो तो गलती से मिल हुआ श्राप भी वरदान का कार्य करता है ।
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