2022 शाकंभरी जयंती कब है? ( Shankbhari Purnima 2022 kab hai? )
हमारे धार्मिक शास्त्रों में पौष पूर्णिमा ( Paush Purnima ) के बारे में जो वर्णन मिलता है उसके अनुसार पौष माह में शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन यानी पूर्णिमा तिथि को पौष पूर्णिमा मनाई जाती है। शाकंभरी जयंती 2022 ( Shankbhari Purnima 2022) की तिथि 17 जनवरी को पड़ रही है, इसे हम पौष नवरात्रि ( Paush Navratri ) के नाम से भी जानते हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि साल में आने वाली हर पूर्णिमा को कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। इसी तरह पौष पूर्णिमा के दिन शांकभरी जयंती पर्व मनाया जाता है।
शांकभरी जयंती क्यों मनाई जाती है? ( Why We Celebrate Shakambhari Jayanti? )
शांकभरी जयंती से संबंधित शास्त्रों में इस बात का उल्लेख हमें मिलता है कि पौष पूर्णिमा के दिन आदि शक्ति दुर्गा ने धरती पर अवतरित होकर भक्तों को अकाल और खाद्य संकट जैसी गंभीर समस्या से मुक्ति दिलाई थी। यही कारण है कि Shakambari Mata को फलों और सब्जियों की देवी कहा जाता है। इसी दिन को शांकभरी जयंती के रूप में मनाया जाता है। भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासी समुदाय इस पर्व को छेरता पर्व के नाम से बड़ी ही धूम धाम से मनाते है।
शाकंभरी देवी की कहानी ( Shakambari Devi Story )
शांकभरी जयंती से जुड़ी Shakambari Devi ki Kahani की बात करें तो एक बार धरती पर दुर्गम नाम के दैत्य का आतंक काफी बढ़ गया था। दुर्गम दैत्य के कारण भय का माहौल बना हुआ था। सबसे भयावह बात यह थी कि सौ वर्षों से बारिश नहीं हुई थी और वर्षा न होने के चलते धरती पर भयंकर अकाल और खाद्य संकट को स्थिति उत्पन्न हो आई थी। खाद्य वस्तुएं न होने के कारण जन जीवन खतरे में था।
दुर्गम दैत्य ने ब्रह्मा जी से चारों वेदों तक को छीन कर अपने कब्जे में कर लिया था। यह स्थिति देख आदि शक्ति देवी दुर्गा को धरती पर अवतरित होना ही पड़ा। देवी दुर्गा ने शांकभरी का अवतार धारण किया जिसकी खास बात यह थी कि देवी के इस अवतार के सौ नेत्र थे। धरती पर वर्षा करने के लिए शांकभरी ने रोना आरंभ किया।
रोते हुए देवी के जो अश्रु निकले उससे पूरी पृथ्वी पर एक जल धारा बह निकली। वर्षा करने के बाद अब बारी दुर्गम दैत्य की थी। शांकभरी और दैत्य के बीच भयंकर युद्ध हुआ अंततः देवी ने दैत्य का खात्मा कर दिया। इस प्रकार देवी दुर्गा के शांकभरी अवतार ने धरतीवासियों को दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाकर उनके जीवन को खुशियों से भर दिया।
शांकभरी जयंती से जुड़ी दूसरी कथा के अनुसार देवी दुर्गा के शांकभरी अवतार ने लगभग सौ वर्षों तक घोर तप किया था और महीने के अंत में एक बार शाकाहारी भोजन ग्रहण कर फिर तप किया। देवी द्वारा जिस स्थान पर तप किया गया था वह स्थान निर्जीव था जहां भोजन तो क्या जल तक नहीं था। उनके तप से उस निर्जीव स्थान पर पेड़ पौधे उग आए, और हर जगह हरियाली हो गई।
हरियाली को देख तप वाले स्थान पर सभी संत महात्मा देवी की महिमा देखने के लिए आ गए। वहां पहुंचकर संत महात्मा ने देवी शांकभरी ( Shakambari Devi ) को शाकाहारी भोजन करवाया। इसके बाद से देवी के संबंध में यह बात कही जाने लगी कि देवी सिर्फ शाकाहारी भोजन ग्रहण करती हैं इसलिए उनका नाम शांकभरी रखा गया।
माता शांकभरी देवी दुर्गा का ही अवतार है जिन्होंने धरती पर अवतरित होकर दैत्य दुर्गम का सर्वनाश किया था। इसी प्रकार यदि आप अपने शत्रुओं से लंबे समय से परेशान है तो देवी दुर्गा के अलौकिक कवच (Shri Durga Kavach Locket ) को धारण करें। आदि शक्ति दुर्गा आपकी शत्रुओं से रक्षा करेंगी।
दुर्गम दैत्य ने ब्रह्मा जी से चारों वेदों तक को छीन कर अपने कब्जे में कर लिया था। यह स्थिति देख आदि शक्ति देवी दुर्गा को धरती पर अवतरित होना ही पड़ा। देवी दुर्गा ने शांकभरी का अवतार धारण किया जिसकी खास बात यह थी कि देवी के इस अवतार के सौ नेत्र थे। धरती पर वर्षा करने के लिए शांकभरी ने रोना आरंभ किया।
रोते हुए देवी के जो अश्रु निकले उससे पूरी पृथ्वी पर एक जल धारा बह निकली। वर्षा करने के बाद अब बारी दुर्गम दैत्य की थी। शांकभरी और दैत्य के बीच भयंकर युद्ध हुआ अंततः देवी ने दैत्य का खात्मा कर दिया। इस प्रकार देवी दुर्गा के शांकभरी अवतार ने धरतीवासियों को दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाकर उनके जीवन को खुशियों से भर दिया।
शांकभरी जयंती से जुड़ी दूसरी कथा के अनुसार देवी दुर्गा के शांकभरी अवतार ने लगभग सौ वर्षों तक घोर तप किया था और महीने के अंत में एक बार शाकाहारी भोजन ग्रहण कर फिर तप किया। देवी द्वारा जिस स्थान पर तप किया गया था वह स्थान निर्जीव था जहां भोजन तो क्या जल तक नहीं था। उनके तप से उस निर्जीव स्थान पर पेड़ पौधे उग आए, और हर जगह हरियाली हो गई।
हरियाली को देख तप वाले स्थान पर सभी संत महात्मा देवी की महिमा देखने के लिए आ गए। वहां पहुंचकर संत महात्मा ने देवी शांकभरी ( Shakambari Devi ) को शाकाहारी भोजन करवाया। इसके बाद से देवी के संबंध में यह बात कही जाने लगी कि देवी सिर्फ शाकाहारी भोजन ग्रहण करती हैं इसलिए उनका नाम शांकभरी रखा गया।
माता शांकभरी देवी दुर्गा का ही अवतार है जिन्होंने धरती पर अवतरित होकर दैत्य दुर्गम का सर्वनाश किया था। इसी प्रकार यदि आप अपने शत्रुओं से लंबे समय से परेशान है तो देवी दुर्गा के अलौकिक कवच (Shri Durga Kavach Locket ) को धारण करें। आदि शक्ति दुर्गा आपकी शत्रुओं से रक्षा करेंगी।
शाकंभरी नवरात्रि क्या है? ( Shankbhari Navratri kya hai? )
शांकभरी नवरात्रि देवी दुर्गा के शांकभरी रूप के लिए मनाया जाता है क्योंकि देवी शांकभरी ने धरतीवासियों को अकाल और खाद्य संकट से मुक्ति दिलाई थी और धरती से दुर्गम दैत्य का संहार किया था। इस वर्ष 2022 में Shakambari Devi Navaratri पूजन पौष शुक्ल अष्टमी यानी 10 जनवरी से आरंभ होकर पौष पूर्णिमा के दिन 17 जनवरी को समाप्त होगा। बताते चलें शांकभरी देवी का उल्लेख ‘श्री दुर्गासप्तशती’ के एकादश अध्याय और ‘अथ मूर्तिरहस्यम’ में मिलता है। जिसमें कहा गया है कि देवी की अंगभूता छह देवियां- नन्दा, रक्तदंतिका, शाकम्भरी, दुर्गा, भीमा और भ्रामरी हैं।
शाकम्भरी माता का मंदिर कहाँ है? ( Shakambari Mata Mandir kahan hai? )
भारत में शांकभरी देवी ( Shakumbhari Devi ) के अनेकों पीठ हैं लेकिन शक्तिपीठ केवल एक है जो सहारनपुर के पर्वतीय भाग में अवस्थित है। जिसके बारे में कहा जाता है कि सहरानपुर का Shakambari Mata ka Mandir माता वैष्णों देवी के बाद दूसरा सबसे अधिक देखे जाने वाला स्थान है।
शाकंभरी माता किसकी कुलदेवी है? ( Shakambari Mata Kiski Kuldevi hai? )
शांकभरी माता ( Shakumbhari Mata ) चौहान वंश की कुलदेवी मानी जाती है क्योंकि चौहान वंश के शासक वासुदेव ने शांकभरी मंदिर की सांभर में स्थापना सातवीं सदी में की थी। यहाँ स्थापित प्रतिमा के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह स्वयंभू प्रतिमा है।
Shakambhari Purnima in 2022 OR Paush Navratri 2022 Date
पूर्णिमा आरंभ तिथि – 03:18 सुबह Jan 17, 2022
पूर्णिमा तिथि समाप्ति – 05:17 सुबह Jan 18, 2022
पूर्णिमा तिथि समाप्ति – 05:17 सुबह Jan 18, 2022