शनि प्रदोष क्या है? ( Shani Pradosh Kya hai? )
हिन्दू पंचांग के अनुसार शुक्ल और कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी ( Trayodashi ) तिथि को जो व्रत शनिवार के दिन पड़ता है उसे शनि प्रदोष ( Shani Pradosh ) कहा जाता है। त्रयोदशी का दिन भगवान शिव ( Bhagwan Shiv ) को समर्पित है और शनिवार को शनिदेव ( Shani Dev ) की पूजा किये जाने का विधान है। बता दें कि भगवान शिव को शनिदेव का आराध्य देव माना जाता है। इस प्रकार शनि प्रदोष के दिन भगवान शिव और शनिदेव की पूजा करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति है और शनि दोष का प्रभाव भी शीघ्र ही कम हो जाता है।
यदि आप शनि के दुष्प्रभावों जैसे शनि की ढैय्या और साढ़े साती का सामना कर रहे हैं तो इस दिन शनि यन्त्र लॉकेट को धारण करें। शनि यन्त्र लॉकेट ( Shani Yantra Locket ) में समाहित शक्तियां आपकी कुंडली में अशुभ फल दे रहे शनि के प्रकोप को कम करेंगे और धीरे-धीरे आपकी कुंडली में यह शुभ फल देने लगेंगी।
यदि आप शनि के दुष्प्रभावों जैसे शनि की ढैय्या और साढ़े साती का सामना कर रहे हैं तो इस दिन शनि यन्त्र लॉकेट को धारण करें। शनि यन्त्र लॉकेट ( Shani Yantra Locket ) में समाहित शक्तियां आपकी कुंडली में अशुभ फल दे रहे शनि के प्रकोप को कम करेंगे और धीरे-धीरे आपकी कुंडली में यह शुभ फल देने लगेंगी।
शनि प्रदोष की पूजा कैसे करें? ( Shani Pradosh ki Puja kaise kare? )
1. शनि प्रदोष व्रत ( Shani Pradosh Vrat ) के दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. इसके बाद भगवान शिव और देवी पार्वती को पहले जल और पंचामृत से स्नान कराएं।
3. फिर बेलपत्र, धतूरा, लौंग, इलाइची, अक्षत, पान और पुष्प आदि अर्पित करें।
4. तत्पश्चात घी का दीपक और धूप जलाएं।
5. साथ ही शनिदेव को सरसों का तेल, काला तिल और काली उड़द शनिदेव को अर्पित करें।
6. फिर आसन पर बैठकर ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करें।
7. शनिदेव का ध्यान करते हुए शनि स्तोत्र का पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
2. इसके बाद भगवान शिव और देवी पार्वती को पहले जल और पंचामृत से स्नान कराएं।
3. फिर बेलपत्र, धतूरा, लौंग, इलाइची, अक्षत, पान और पुष्प आदि अर्पित करें।
4. तत्पश्चात घी का दीपक और धूप जलाएं।
5. साथ ही शनिदेव को सरसों का तेल, काला तिल और काली उड़द शनिदेव को अर्पित करें।
6. फिर आसन पर बैठकर ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करें।
7. शनिदेव का ध्यान करते हुए शनि स्तोत्र का पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
शनि प्रदोष व्रत कथा ( Shani Pradosh Vrat Katha )
प्राचीन समय में एक नगर में रहने वाला सेठ बड़ा ही धनवान था। उसके पास धन-दौलत और ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं थी। इतना अधिक धनवान होने के बाद भी वह दयालु प्रवृति का था क्योंकि उस सेठ के यहाँ से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटा था। वह खूब दान-पुण्य करता था, परन्तु उस सेठ के कोई संतान नहीं थी। इस बात से सेठ और उसकी पत्नी दोनों बहुत दुःखी रहा करते थे।
जब दोनों पति-पत्नी अत्यंत दुःखी हो गए तो उन्होंने तीर्थ यात्रा पर जाने का मन बनाया। इस प्रकार वे दोनों अपना सारा काम-काज सेवकों को सौंपकर तीर्थ पर निकल पड़े। नगर से कुछ दूर निकलते ही दोनों को विशाल वृक्ष के नीचे एक तेजस्वी साधु समाधि लगाए दिखे। साधु को देख दोनों के मन में विचार आया कि क्यों न अपने तीर्थ की शुरुआत साधु का आशीर्वाद लेकर की जाए।
आशीर्वाद लेने के दोनों साधु के सामने हाथ जोड़कर समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और शाम से रात हो गई पर साधु की समाधि न टूटी। इसके बावजूद दोनों पति-पत्नी प्रतीक्षा में वहीँ बैठे रहे। आखिरकार अगले दिन प्रातःकाल साधु समाधि से उठे तो उन्होंने दोनों को हाथ जोड़कर वहां बैठे देखा। इसके बाद साधु बोले कि ‘मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं।’ इसके बाद साधु ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत के बारे में बताया और पूजा विधि बताई।
सेठ और उसकी पत्नी जब अपनी तीर्थ यात्रा पूर्ण करने के बाद अपने घर को लौटे तो उन्होंने साधु के कहे शनि प्रदोष व्रत का पालन किया। इसी का फल था कि सेठ के घर एक सुन्दर बालक ने जन्मा। इस तरह जो भी जातक इस दिन नियमपूर्वक पूजा विधि का पालन कर Shani Pradosh Katha का पाठ करते हैं उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।
जब दोनों पति-पत्नी अत्यंत दुःखी हो गए तो उन्होंने तीर्थ यात्रा पर जाने का मन बनाया। इस प्रकार वे दोनों अपना सारा काम-काज सेवकों को सौंपकर तीर्थ पर निकल पड़े। नगर से कुछ दूर निकलते ही दोनों को विशाल वृक्ष के नीचे एक तेजस्वी साधु समाधि लगाए दिखे। साधु को देख दोनों के मन में विचार आया कि क्यों न अपने तीर्थ की शुरुआत साधु का आशीर्वाद लेकर की जाए।
आशीर्वाद लेने के दोनों साधु के सामने हाथ जोड़कर समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और शाम से रात हो गई पर साधु की समाधि न टूटी। इसके बावजूद दोनों पति-पत्नी प्रतीक्षा में वहीँ बैठे रहे। आखिरकार अगले दिन प्रातःकाल साधु समाधि से उठे तो उन्होंने दोनों को हाथ जोड़कर वहां बैठे देखा। इसके बाद साधु बोले कि ‘मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं।’ इसके बाद साधु ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत के बारे में बताया और पूजा विधि बताई।
सेठ और उसकी पत्नी जब अपनी तीर्थ यात्रा पूर्ण करने के बाद अपने घर को लौटे तो उन्होंने साधु के कहे शनि प्रदोष व्रत का पालन किया। इसी का फल था कि सेठ के घर एक सुन्दर बालक ने जन्मा। इस तरह जो भी जातक इस दिन नियमपूर्वक पूजा विधि का पालन कर Shani Pradosh Katha का पाठ करते हैं उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।
शनि प्रदोष व्रत कब है 2022? ( Shani Pradosh Vrat 2022 )
आइये जानते है शनि प्रदोष व्रत 2022 की तिथि के बारे में :
जनवरी 15, 2022
शनिवार- पौष, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- त्रयोदशी तिथि 14 जनवरी को रात्रि में 10 बजकर19 मिनट पर
समाप्त- 16 जनवरी को दोपहर में 12 बजकर 57 मिनट पर
अक्टूबर 22, 2022
शनिवार- कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर को शाम में 6 बजकर 02 मिनट पर
समाप्त- 23 अक्टूबर को शाम में 6 बजकर 3 मिनट पर
नवम्बर 5, 2022
शनिवार- कार्तिक, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी तिथि नवम्बर को शाम में 5 बजकर 06 मिनट पर
समाप्त- 6 नवंबर को शाम में 4 बजकर 28 मिनट पर
जनवरी 15, 2022
शनिवार- पौष, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- त्रयोदशी तिथि 14 जनवरी को रात्रि में 10 बजकर19 मिनट पर
समाप्त- 16 जनवरी को दोपहर में 12 बजकर 57 मिनट पर
अक्टूबर 22, 2022
शनिवार- कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी
प्रारम्भ- कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर को शाम में 6 बजकर 02 मिनट पर
समाप्त- 23 अक्टूबर को शाम में 6 बजकर 3 मिनट पर
नवम्बर 5, 2022
शनिवार- कार्तिक, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ- कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी तिथि नवम्बर को शाम में 5 बजकर 06 मिनट पर
समाप्त- 6 नवंबर को शाम में 4 बजकर 28 मिनट पर