हवन का महत्व क्या है? ( Havan ka mahatva kya hai? )
सनातन धर्म में हवन ( Havan ) का विशेष महत्व बताया गया है क्योंकि यह वातावरण के शुद्धिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण कर्मकांड है। प्राचीन समय में हवन के माध्यम से ईश्वर को प्रसन्न किया जाता था जिसे यज्ञ की संज्ञा दी गई।
वेदों में इसे अग्निहोत्र ( Agnihotra ) माना गया है और कहा गया है कि किसी भी शुभ काम से पूर्व हवन किया जाना चाहिए।
हमारे शास्त्रों में जिन 16 संस्कारों का उल्लेख किया गया है उनमें से एक भी संस्कार बिना हवन क्रिया के पूर्ण नहीं माना जाता है। वेदों में इस बात को कुछ इस प्रकार वर्णित किया गया है कि जिस प्रकार मनुष्य को जीने के लिए जल की आवश्यकता है उसी प्रकार अग्निहोत्र की भी आवश्यकता है।
तभी तो पुराने समय में दो समय का अग्निहोत्र उनकी रोजमर्रा की क्रिया का एक अभिन्न अंग था। अग्निहोत्र के बारे में यह वर्णन मिलता है कि यदि किसी भी पदार्थ को अग्नि में डाला जाए तो उसका दायरा बढ़ने के साथ उसमें मौजूद गुणों में इज़ाफ़ा होता है।
वेदों में इसे अग्निहोत्र ( Agnihotra ) माना गया है और कहा गया है कि किसी भी शुभ काम से पूर्व हवन किया जाना चाहिए।
हमारे शास्त्रों में जिन 16 संस्कारों का उल्लेख किया गया है उनमें से एक भी संस्कार बिना हवन क्रिया के पूर्ण नहीं माना जाता है। वेदों में इस बात को कुछ इस प्रकार वर्णित किया गया है कि जिस प्रकार मनुष्य को जीने के लिए जल की आवश्यकता है उसी प्रकार अग्निहोत्र की भी आवश्यकता है।
तभी तो पुराने समय में दो समय का अग्निहोत्र उनकी रोजमर्रा की क्रिया का एक अभिन्न अंग था। अग्निहोत्र के बारे में यह वर्णन मिलता है कि यदि किसी भी पदार्थ को अग्नि में डाला जाए तो उसका दायरा बढ़ने के साथ उसमें मौजूद गुणों में इज़ाफ़ा होता है।
हवन और यज्ञ में अंतर ( Havan aur Yagya me antar )
हवन और यज्ञ में केवल इतना अंतर है कि हवन को छोटे स्तर पर किया जाता है, यह किसी भी पूजा या जप के बाद अग्नि में दी जाने वाली आहुति है। जबकि यज्ञ को एक बड़े स्तर पर किसी देवता को प्रसन्न करने के उद्देश्य से किया जाता है।
हवन में क्या-क्या सामान चाहिए? ( Havan me kya-kya saman chahiye? )
हवन के लिए सामग्री ( Havan ke liye samagri ) :
हवन कुंड, गंगाजल, रुई, कपूर, तेल, धूप, कुशा, दूर्वा, सुपारी, तिल, जौ, चावल, चीनी, श्रीफल, पंचामृत, आम की लकड़ी, सिन्दूर, मौली, हल्दी, कुमकुम, इलाइची, केसर, फल, नैवैद्य, लौंग, फल, चन्दन, तुलसी, जायफल, केसर, फूलों की माला, नवग्रह समिधा आदि की आवश्यकता होती है बाकी का सामान इस बात पर भी निर्भर करता है कि किस देवता या देवी के लिए हवन किया जा रहा है।
हवन कुंड, गंगाजल, रुई, कपूर, तेल, धूप, कुशा, दूर्वा, सुपारी, तिल, जौ, चावल, चीनी, श्रीफल, पंचामृत, आम की लकड़ी, सिन्दूर, मौली, हल्दी, कुमकुम, इलाइची, केसर, फल, नैवैद्य, लौंग, फल, चन्दन, तुलसी, जायफल, केसर, फूलों की माला, नवग्रह समिधा आदि की आवश्यकता होती है बाकी का सामान इस बात पर भी निर्भर करता है कि किस देवता या देवी के लिए हवन किया जा रहा है।
हवन के लाभ ( Havan ke labh )
1. घर में मौजूद सभी कीटाणु और जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और घर का शुद्धिकरण होता है।
2. हवन करने से शरीर के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
3. वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है।
4. आत्मा की शुद्धि करने में हवन काफी लाभकारी है।
5. मन-मस्तिष्क में सकरात्मक शक्ति का संचार होता है।
6. वायु प्रदुषण से छुटाकरा पाने में भी हवन लाभदायक है।
7. बुरी बला को टालने में और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए शुभ है।
2. हवन करने से शरीर के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
3. वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है।
4. आत्मा की शुद्धि करने में हवन काफी लाभकारी है।
5. मन-मस्तिष्क में सकरात्मक शक्ति का संचार होता है।
6. वायु प्रदुषण से छुटाकरा पाने में भी हवन लाभदायक है।
7. बुरी बला को टालने में और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए शुभ है।
हवन के प्रकार ( Havan ke prakar )
हिन्दू परंपरा में हवन या यज्ञ पांच प्रकार के बताएं गए हैं :
1. ब्रह्म यज्ञ
2. देव यज्ञ
3. पितृ यज्ञ
4. विश्व यज्ञ
5. अथिति यज्ञ
1. ब्रह्म यज्ञ
2. देव यज्ञ
3. पितृ यज्ञ
4. विश्व यज्ञ
5. अथिति यज्ञ
हवन कब करना चाहिए? ( Havan kab karna chahiye? )
हवन करने के लिए उस दिन की तिथि और वार की संख्या को जोड़ें और उसमें 1 को जमा करें। इसके बाद निकले कुल जोड़ को 4 से भाग दें। यदि शेष 3 या 0 निकले तो उस दिन अग्निवास पृथ्वी पर माना जाएगा। इस दिन हवन करने से शुभ फल की प्राप्ति होगी और यह हवन भी बहुत कल्याणकारी माना जाएगा।
शेष 2 बचने पर उस दिन का अग्निवास पाताल में माना जाता है और इस दिन हवन किये जाने से जातक को धन का भारी नुक्सान उठाना पड़ता है। शेष अगर 1 बचे तो उस दिन का अग्निवास आकाश में होगा और इस दिन हवन किये जाने से अल्प आयु होती है। ध्यान रहे कि वार का पता लगाने के लिए रविवार से दिन की और शुक्ल प्रतिपदा से तिथि की गणना करी जानी चाहिए।
( जिस प्रकार शुभ कार्य को करने से पहले हवन करना अनिवार्य बताया गया है उसी प्रकार हवन क्रिया में शंख की पावन ध्वनि का होना भी अनिवार्य है। यदि आप Original Blowing Shankh खरीदने के इच्छुक हैं तो इसे prabhubhakti.in से Online Order कर सकते है हमारे पास शंख उचित मूल्य पर उपलब्ध हैं। )
शेष 2 बचने पर उस दिन का अग्निवास पाताल में माना जाता है और इस दिन हवन किये जाने से जातक को धन का भारी नुक्सान उठाना पड़ता है। शेष अगर 1 बचे तो उस दिन का अग्निवास आकाश में होगा और इस दिन हवन किये जाने से अल्प आयु होती है। ध्यान रहे कि वार का पता लगाने के लिए रविवार से दिन की और शुक्ल प्रतिपदा से तिथि की गणना करी जानी चाहिए।
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