Ujjain Mahakal Mandir Mahakaleshwar | महाकाल भगवान कौन है? | Why is Lord Shiva called Mahakal?
Mahakal Mandir – शिव महापुराण में यह वर्णित किया गया है कि भगवान शिव के रूप का उद्भव दूषण नामक एक दैत्य से भक्तो की रक्षा करने के लिए हुआ था। अतः दूषण का वध करने के पश्चात् भगवान शिव को कालों के काल महाकाल या महाकालेश्वर नाम से पुकारा जाने लगा। महाकाल भगवान शिव के दशावतारों में प्रथम अवतार है और इस अवतार की पत्नी का नाम महाकाली है।
महाकाल को उज्जैन का राजा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि किसी भी शुभ काम को करने से पहले महाकाल का आशीर्वाद लेना बेहद जरूरी है। शिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर जो सभी ज्योतिष सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में तीसरा बेहद खास ज्योतिर्लिंग है।
महाकाल और शिव जी में क्या अंतर है? – शिव को महाकाल कहा जाता है, अर्थात समय। शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं। इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपने ओज व उष्णता की शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है। परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है क्योंकि पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप पर टिका हुआ है।
उज्जैन महाकाल की स्थापना कब हुई? | Ujjain Mahakal Mandir ki sthapna kab hui? | Mahakal ki sthapna kaise hui
मन में यह सवाल जरूर उठा होगा कि महाकाल मंदिर का निर्माण किसने करवाया या फिर महाकाल शिवलिंग कितना पुराना है तो चलिए हम आपको बता दे की उज्जैन में स्थापित महाकाल मंदिर की स्थापना द्वापर युग में नंद जी की आठ पीढ़ी पहले हुई थी। बता दें मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकाल में हमेशा ही भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है क्योंकि उज्जैन में मौजूद महकाल का संबंध भगवान शिव से है और यह
Ujjain Mahakal Mandir 12 ज्योतिर्लिंगों में भी शामिल है। इसे पृथ्वी का नाभिस्थल भी कहा जाता है क्योंकि इस मंदिर के शिखर से कर्क रेखा होकर गुजरती है।
उज्जैन के महाकाल मंदिर का इतिहास | Mahakaleshwar Temple Ujjain History in Hindi | महाकाल उज्जैन का इतिहास | महाकाल का इतिहास
उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर का पौराणिक महत्व भी है। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां दूषण नामक राक्षस का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी, जिसके बाद भक्तों के निवेदन के बाद भोलेबाबा यहां विराजमान हुए थे। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से तीसरा ज्योतिर्लिंग है।
Ujjain ke Mahakal Mandir ki kahani से ही महाकालेश्वर मंदिर का पौराणिक इतिहास जुड़ा हुआ है। सभी के मन में यह सवाल जरूर उठा होगा कि महाकालेश्वर मंदिर की इतनी मान्यता है तो उसके पीछे प्रमुख वजह क्या है आज हम महाकालेश्वर मंदिर के पौराणिक कहानी के बारे में बता जा रहे हैं।
उज्जैन के महाकाल मंदिर का इतिहास पौराणिक कथाओं में दर्ज है। मान्यता है कि यह मंदिर द्वापर युग में बना था। कुछ लोगों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी में उज्जैन के पूर्व राजा चंदप्रद्योत के बेटे कुमारसेन ने करवाया था। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि यह मंदिर 150 साल पहले राणोजीसिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने बनवाया था। इस मंदिर के निर्माण में मंदिर से जुड़े प्राचीन अवशेषों का भी इस्तेमाल किया गया है।
महाकाल मंदिर का रहस्य क्या है? | Mahakal Mandir ka Rahasya | महाकालेश्वर मंदिर का रहस्य
महाकाल मंदिर का निर्माण किसने करवाया | Mahakal Mandir ka nirman kisne karvaya
महाकाल मंदिर कितने साल पुराना है? – पौराणिक कथाओं की मानें तो यह मंदिर द्वापर युग में स्थापित हुआ था जिसे 800 से 1000 वर्ष प्राचीन माना जाता है। जबकि आज का यह महाकाल मंदिर उज्जैन लगभग 150 वर्ष पूर्व राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने निर्मित करवाया था। महाकाल मंदिर का निर्माण राणोजी शिंदे ने करवाया था। 18वीं सदी के चौथे-पांचवें दशक में राणौजी के दीवान सुखटंकर रामचंद्र बाबा शैणवी ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, यह मंदिर द्वापर युग में बना था. माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी ईस्वी में उज्जैन के पूर्व राजा चंदप्रद्योत के पुत्र कुमारसेन ने करवाया था। 12वीं शताब्दी ईस्वी में राजा उदयादित्य और राजा नरवर्मन के अधीन इसका पुनर्निर्माण किया गया था। पुराणों के मुताबिक, महाकालेश्वर मंदिर की स्थापना ब्रह्मा जी ने की थी। प्राचीन काव्य ग्रंथों में भी महाकाल मंदिर का जिक्र किया गया है। महाकाल मंदिर की नींव और चबूतरा पत्थरों से बना था और मंदिर लकड़ी के खंभों पर टिका था।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई? | महाकालेश्वर मंदिर के पीछे की कहानी क्या है | महाकाल मंदिर की उत्पत्ति कैसे हुई? | उज्जैन में बाबा महाकाल कैसे प्रकट हुए?
भगवान शिव ने ब्राह्मणों को राक्षस के अत्याचार से बचाने के लिए पहले उसे चेतावनी दी पर दूषण राक्षस पर इसका कोई असर नहीं हुआ। और उसने नगर पर हमला कर दिया। जिसके बाद भोलेनाथ के क्रोध का ठिकाना नहीं रहा। वो धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए।
राक्षस के अत्याचारों से पीड़ित होकर प्रजा ने भगवान शिव का आह्वान किया, तब उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और राक्षस का वध किया। कहते हैं प्रजा की भक्ति और उनके अनुरोध को देखते हुए भगवान शिव हमेशा के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में उज्जैन में विराजमान हो गए।
गोप बालक हो उठा ललायितराजा का शिवपूजन देख गोप बालक लालायित हो उठा और पूजा करने की इच्छा उसके मन में जाग उठी। रास्ते में जाते हुए वह बालक पूजा सामग्री जुटाने में जुट गया पर वह पूजा का सारा सामान नहीं जुटा सका। पर उसके मन में जागृत हुई वह इच्छा कम न हुई और उसने एक सामान्य पत्थर लेकर ही भगवान शिव की पूजा करना आरम्भ कर दिया।
उसने पत्थर पर पुष्प, चन्दन आदि अर्पित किये और राजा की ही भांति उपासना में डूबता चला गया। गोप बालक की मात ने भोजन के लिए भी कई बार पुकार लगाई परन्तु वह बालक अपनी जगह से न हिला और पूजा में ही लीन रहा।
बालक की माता ने उठा फेंका पत्थर
गोप बालक की माता को उसकी हठ देख अत्यधिक क्रोध आया और उन्होंने वह पत्थर उठाकर फेंक दिया। अपनी माता का क्रोध देखकर वह बालक जोर जोर से रोने लगा। बालक के अश्रु निकल रहे थे साथ ही मुख से भगवान शिव का नाम। ईश्वर का नाम पुकारते हुए ही वह बेहोश हो गया।
बालक की श्रद्धा भक्ति देख भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए। जब वह हठी गोप बालक होश में आया तब उसने देखा कि उसके सामने स्वर्ण और व रत्नों से बना एक विशालकाय मंदिर खड़ा है जिसमें एक अत्यधिक प्रकाश वाला ज्योतिर्लिंग स्थापित है। यह देख वह बालक बहुत प्रसन्न हुआ और फिर से भगवान शिव की भक्ति में खो गया। इसे ही आज Mahakaleshwar Jyotirlinga के नाम से जाना जाता है।
बालक की भक्ति देख प्रकट हुए थे हनुमान जी
जब माता ने यह सब देखा तो उसे अपने किये पर दुःख हुआ और उसने अपनी गलती की क्षमा मांगते हुए बालक को गले से लगा लिया। वहीँ राजा चन्द्रसेन भी उसी स्थान पर पहुंचे तथा बालक की भगवान शिव के प्रति श्रद्धा देख अत्यंत प्रफुल्लित हुए। फिर क्या वहां उस मंदिर को देख लोगों की भीड़ उमड़ आई जो आज तक इस स्थान पर बनी हुई।
वहां हनुमान जी भी प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि जो फल ऋषि-मुनियों की तपस्या से प्राप्त नहीं होता वह फल एक नन्हें बालक की भक्ति से प्राप्त हुआ है। इसके बाद उन्होंने कहा कि इस नन्हें बालक की आठवीं पीढ़ी में नन्द नामक गोप का जन्म होगा जिसके यहाँ भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण जन्म लेंगे और सभी का उद्धार करेंगे।
महाकाल मंदिर कितने साल पुराना है? | How many years old is Mahakaleshwar temple? | महाकाल शिवलिंग कितने साल का है? | महाकाल शिवलिंग कितना पुराना है
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी ईस्वी में उज्जैन के पूर्व राजा चंदप्रद्योत के पुत्र कुमारसेन ने करवाया था। 12वीं शताब्दी ईस्वी में राजा उदयादित्य और राजा नरवर्मन के अधीन इसका पुनर्निर्माण किया गया था। पौराणिक कथाओं की मानें तो यह मंदिर द्वापर युग में स्थापित हुआ था जिसे 800 से 1000 वर्ष प्राचीन माना जाता है। जबकि आज का यह महाकाल मंदिर उज्जैन लगभग 150 वर्ष पूर्व राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने निर्मित करवाया था। बताते चलें कि इसके निर्माण में मंदिर से जुड़े प्राचीन अवशेषों का भी प्रयोग किया गया है।
महाकाल की भस्म आरती क्यों की जाती है? | Mahakal ki bhasm aarti kyon ki jaati hai?
उज्जैन का महाकाल मंदिर में bhasma aarti ब्रह्म महूर्त में भगवान शिव को जगाने के लिए की जाती है। एक पौराणिक कथा भी इस संबंध में जुड़ी हुई है जिसके मुताबिक उज्जैन में पहले राजा चन्द्रसेन का शासन था वहां दूषण नामक राक्षस ने आक्रमण कर दिया था। दैत्य के इस आक्रमण से महाकाल ने भक्तों की रक्षा की थी। इसके पश्चात राक्षस की राख से अपना शृंगार किया और सदैव के लिए वहां बस गए। तभी से bhasma aarti ujjain में किये जाने की प्रथा आ रही है।
उज्जैन में कोई राजा रात क्यों नहीं रुकता? | Ujjain me koi Raja raat kyon nahi rukta?
उज्जैन में कोई भी शासक या राजा रात्रि में नहीं ठहर सकता है। कहा जाता है कि उज्जैन के राजा महाकाल हैं और उनके अलावा इस नगरी में कोई दूसरा शासक या राजा नहीं रुक सकता है। सामन्य सी बात है एक नगरी में दो राजा आखिर कैसे रह सकते हैं। Ujjain mahakal मंदिर का इतिहास गवाह है कि कोई राजा यदि रुक भी जाए तो उसको अपनी इस गलती का भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
महाकाल की कृपा पाने का सर्वोत्तम उपाय क्या है? | What is the best way to get Mahakal blessings?
महकाल की कृपा पाने के लिए जातक महाकाल कवच को धारण करें जो व्यक्ति को काल और मृत्यु के भय से छुटकारा दिलाते हुए साहस प्रदान करता है। इसी के साथ यह
Mahakal Kavach रूपी लॉकेट को विधिवत यदि धारण कर लिया जाए तो व्यक्ति की समस्त चिंताओं का नाश हो जाता है।
महाकालेश्वर मंदिर की क्या विशेषता है? | Mahakaleshwar Mandir ki kya visheshta hai?
Temples of Ujjain Mahakal mandir की सबसे ख़ास विशेषता यह है कि यह स्वयंभू ज्योतिर्लिंग दक्षिणमुखी दिशा में विराजमान है। इसी विशेषता के कारण यह स्थल अत्यन्त पुण्यदायी है।
महाकाल की आरती कितने बजे होती है? | Mahakal ki aarti kitne baje hoti hai?
महाकाल की भस्म आरती का समय ब्रह्म महूर्त में सूर्योदय से 2 घंटे पहले और शाम में आरती का समय 6.30 से 7 बजे तक संध्या आरती की जाती है।
उज्जैन स्टेशन से महाकाल मंदिर की दूरी कितनी है? | Ujjain station se Mahakal Mandir ki doori kitni hai?
12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल भगवान शिव का Mahakal Mandir Ujjain स्टेशन से मात्र 2 किमी की दूरी पर मौजूद है।
महाकाल मंदिर में किसकी पूजा होती है? | Mahakal Mandir me kiski puja hoti hai?
उज्जैन महाकाल मंदिर के राजा कहे जाने वाले Mahakaleshwar की पूजा होती है। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल है। इसे पृथ्वी का नाभिस्थल भी कहा जाता है क्योंकि इस मंदिर के शिखर से कर्क रेखा होकर गुजरती है।