Mahanavami पर्व
हिन्दू धर्म में महानवमी का पर्व ख़ासा महत्व रखता है। इस दिन navarathri goddess देवी पार्वती के नौंवे अवतार सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाता है। भारत के कई राज्यों बिहार, बंगाल, उड़ीसा, असम में दुर्गा पूजा बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है। यहाँ navratri day 9 को दुर्गा उत्सव, शरदोत्सब, अकालबोधन, महापूजो जैसे भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। वहीँ Sharada Navaratri के दौरान बंगाल में मनाया जाने वाले महापूजों के दिन दुर्गा मां की विदाई विसर्जन स्वरुप की जाती है। [1]
देवी Siddhidhatri
Hindu calendar के अनुसार Sharada Navaratri के 9th day of navratri में दुर्गा मां के सिद्धिदात्री अवतार की पूजा की जाती है। सिद्धि प्रदान करने वाली देवी ही सिद्धिदात्री के नाम से प्रचलित है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के शरीर का आधा भाग सिद्धिदात्री का है। वैदिक पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने देवी सिद्धिदात्री की आराधना कर ही सिद्धि प्राप्त की थी जिसके बाद से महादेव का आधा हिस्सा देवी के रूप में बन गया।
siddhidhatri और शिव के संगम को अर्द्धनारीश्वर की संज्ञा दी गई है जो आधुनिक समाज की लैंगिक समानता का सटीक उदाहरण पेश करता है यानी वैदिक काल से आधुनिक विचारधाराएं प्रचलन में है।
siddhidatri mata ki katha – सिद्धिदात्री माता की कथा
देवी की चार भुजाएं हैं और इन चारों भुजाओं में चक्र, गदा, कमल और शंख रहता है। देवी कमलपुष्प और सिंह दोनों पर ही विराजमान रहती हैं।
मार्कण्डेयपुराण के अनुसार siddhidhatri की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे 8 प्रकार की सिद्धियों पर अपना प्रभाव रखती हैं जिनमें अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्वये शामिल हैं। भगवान शिव ने देवी की आराधना कर इन्हीं सिद्धियों की प्राप्ति की थी जिसके बाद उनका आधा शरीर सिद्धिदात्री जैसा बन गया था। [2]
महिषासुर वध की कथा
महिषासुर कौन था
पौराणिक कथा के अनुसार असुरों के राजा रम्भ और जल में रहने वाली भैंस के संगम से महिषासुर का जन्म हुआ था जिस कारण वह कभी भी मनुष्य और कभी भी भैंसे का रूप ले लिया करता था। महिषासुर ब्रह्मा जी का परम भक्त था। ब्रह्मा जी ने महिषासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया था कि न तो देवता और न ही कोई असुर महिषासुर को हरा सकते हैं। ब्रह्मा जी के इसी वरदान का फायदा उठाकर महिषासुर ने तीनों लोकों पर अपना कब्ज़ा जमाने की सोची और आतंक मचाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते दानव ने स्वर्ग और पृथ्वी लोक दोनों पर अपना आधिपत्य जमा लिया। सभी देवताओं ने उसे हराने के लिए भीषण युद्ध किये लेकिन किसी को भी जीत हासिल न हो पाई।
महिषासुर के मचाये उत्पात से तंग आकर सभी देवता त्रिमूर्ति ब्रह्मा-विष्णु-महेश के पास पहुंचें। त्रिमूर्ति ने इसके समाधान स्वरुप अपनी तीनों की ही शक्तियों का समावेश कर शक्ति नामक देवी का निर्माण किया। देवी दुर्गा नाम से जानी जानें वाली शक्ति ने महिषासुर को परास्त करने के लिए पूरे नौ दिन तक भीषण युद्ध किया और अंत में जाकर महिषासुर की हार हुई। इस तरह Nauratam में पूजे जाने वाले देवी दुर्गा के नौ रूपों ने महिषासुर को हराया और बुराई पर अच्छाई ने विजय प्राप्त की। [3]
Durga Navami puja vidhi in hindi
1. Nauratam के आखिरी दिन देवी की प्रतिमा के सामने धूप और दीपक जलाकर देवी की आरती व हवन करना चाहिए।
2. Navaratra के नौंवे दिन इनकी पूजा होने के कारण माँ दुर्गा का भोग नौ प्रकार के फल, फूल, मिष्ठान और नैवैद्य के सम्मिश्रण वाला होना चाहिए।
3. इस दिन सभी देवताओं के नाम की आहुति भी जानी चाहिए।
4. जो भी भक्त पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से माता की उपासना करते हैं उनकी सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
5. सिद्धि प्राप्ति के लिए देवी के जाप मंत्र का 108 बार उच्चारण करना चाहिए।
Maa Siddhidatri Mantra: सिद्धिदात्री माता का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
Mata Siddhidatri Jaap Mantra: माता सिद्धिदात्री जाप मंत्र
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
Mata Siddhidatri प्रार्थना मंत्र
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
Maa Siddhidatri beej mantra: मां सिद्धिदात्री बीज मंत्र
ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:
siddhidatri mata ki aarti – नवरात्रि नौवें दिन की आरती
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता। तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा। महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता। भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥ [4]
Siddhidhatri का दाता रूप हमें देता है दानदाता बनने की प्रेरणा
देवी के दात्री रूप की आराधना कर भक्त 8 प्रकार की सिद्धियों को वरदान में पा सकते हैं और इस सिद्धि का सीधा सरल मार्ग है ईश्वर की भक्ति। परंपरा की मानें तो दो ही प्रकार से ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है जिसमें से एक आसान मार्ग भक्ति है। नवरात्र के इन पावन दिनों में सच्ची भक्ति और योग साधना ही वह मार्ग है जो ईश्वर तक जाने का द्वार खोलता है। वहीँ व्यक्ति भी माता के इस रूप से दानदाता बनने की एक सीख लेकर अपने व्यक्तिगत लाभ को एक तरफ रखकर समाज में अपना योगदान दे सकता है।