नवऱात्रि मनाये जाने का महत्व
नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ तो नौ रातें हैं लेकिन गहराई में उतरे तो ज्ञात होता है वह नौ रातें जो दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित हों। यह नौ पवित्र दिन शक्ति पूजा के लिए है, योग साधना के लिए हैं, मां को प्रसन्न करने के लिए हैं। मनुष्य के शरीर में नौ छिद्र है दो आँख, दो कान, दो नाक, दो गुप्तांग और एक मुँह। इन पवित्र दिनों में व्यक्ति इन्हीं छिद्रों का शुद्धिकरण कर छठी इंद्री को जगाने का प्रयास करता है।
हिन्दू पांचांग के अनुसार तो साल में चार बार नवरात्रि आते हैं लेकिन साल में दो ही बार इसे मनाये जाने की परंपरा है। एक तो चैत्र नवरात्रि के रूप में और दूसरी अश्विनी नवरात्रि के रूप में। दोनों ही नवरात्रों का अपना अलग ख़ास महत्व है और आज हम 7 अक्टूबर को पड़ने वाले शारदीय नवरात्री के बारे में बात करेंगे। अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष से प्रारम्भ होने वाले शारदीय नवरात्रि का नाम शारद ऋतू के चलते शारदीय पड़ा। ध्यान देने योग्य बात यह है कि दो तिथियां एक साथ पड़ने के कारण इस बार आठ ही दिन तक पूजन किया जाएगा। [1]
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नवरात्रि में दुर्गा मां को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय है दुर्गा सप्तशती का पाठ करना। दुर्गा सप्तशती महर्षि व्यास ने मार्कण्डेय पुराण से ली है इसमें 700 श्लोकों का समावेश होने के कारण इसे सप्तशती कहा गया है। सप्तशती का पाठ करने से व्यक्ति के सारे दुःख और परशानी दूर हो जाती है।
आखिर क्यों जलाई जाती है अखंड जोत
नवरात्रि में अखंड जोत जलाये जाने के पीछे महत्व यह है कि पूरे नौ दिन अखंड जोत जलाने से प्रकृति के सभी अवरोध समाप्त हो जाते हैं वातावरण शुद्ध हो जाता है और सारी नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती है।
पौराणिक कथा
नवरात्र से जुड़ी दो पौराणिक कथाएं प्रचलन में है। जिसमें से एक का जिक्र तो हिंदी साहित्य के बड़े साहित्यकार निराला जी ने अपनी कविता राम की शक्ति पूजा में किया है। जबकि दूसरी कहानी टेलीविज़न पर कई बार प्रदर्शित की जाती है जिसमें से महिषासुर नामक एक राक्षस होता है जिसका वध करने के लिए देवी का जन्म हुआ था।
ऐसा माना जाता है कि रावण को हराने के लिए प्रभु श्री राम ने लगातार नौ दिन रामेश्वरम में शक्ति पूजा की थी और दुर्गा मां से वरदान मिलने के पश्चात ही श्री राम रावण का वध कर पाने में सक्षम हो पाए थे।
वहीँ दूसरी कथा महिषासुर राक्षस के वध से जुड़ी है। महिषासुर नामक एक राक्षस था। वह ब्रह्मा जी का बहुत बड़ा भक्त था। उसने अपनी कठोर तपस्या के माध्यम से ब्रह्माजी को खुश किया और वरदान प्राप्त कर मांगा कि कोई भी देव, दानव या धरती पर रहने वाला कोई भी व्यक्ति उसे मार नहीं पाएगा। यह वरदान मिलने के बाद महिषासुर क्रूर हो गया और उसने तीनो लोको में आतंक मचाना प्रारंभ कर दिया। इस बात से तंग होकर ब्रह्मा, विष्णु, शिव ने मिलकर मां शक्ति के रूप में दुर्गा को जन्म दिया। दुर्गा माता के साथ राक्षस के नौ दिनों तक चले भीषण युद्ध में अंततः दुर्गा मां की जीत हुई और महिषासुर मारा गया जिसके बाद से यह दिन बुराई पर अच्छे की जीत की नाम से मनाया जाता है। रोचक तथ्य यह है कि दुर्गा मां के कात्यायिनी स्वरुप ने राक्षस महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनि के नाम से पुकारा जाता है।
इन ३ देवियों का नवरात्रि में होता है खाश महत्व
नवरात्रि में देवियों को पूजने की मान्यता है लेकिन इसी के साथ ही देवियों के दिन को तीन भागों में भी विभाजित किया गया है।
बताते चलें कि शुरुआत के तीन दिन देवी पार्वती को समर्पित जिसमें से पहले दिन देवी को कन्या के रूप में पूजा जाता है दूसरे दिन युवा स्त्री के रूप में देवी को पूजा जाता है वहीँ तीसरे दिन एक परिपक्व स्त्री के रूप में पार्वती का पूजन होता है।
मध्य के तीन दिन देवी लक्ष्मी को समर्पित हैं क्योंकि मां लक्ष्मी धन, वैभव और सौभाग्य की देवी हैं इसलिए इन तीन दिनों में मन के सभी विकार जैसे लोभ, ईर्ष्या, वासना, क्रोध, घृणा से मुक्ति पाकर और शून्यता के स्तर तक पहुंचकर ही व्यक्ति लक्ष्मी मां को प्रसन्न कर सकता है।
आखिरी के तीन दिन देवी सरस्वती की अराधना के लिए है इन तीन दिनों में बौद्धिक और कौशल क्षमता के विकास के लिए देवी की पूजा की जाती है। अंत में नौंवे दिन दुर्गा अष्टमी होती है जिस दिन दुर्गा मां को बड़ी ही धूमधाम से विदा किया जाता है। [2]
नवरात्रि मनाये जाने के पीछे वैज्ञानिक तर्क
नवरात्रि मनाने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि दोनों ही नवरात्रे ऐसे मौसम में आते हैं जब न तो ज्यादा गर्मी होती है न ही ज्यादा सर्दी ऐसे में व्यक्ति को अपने शरीर का ख़ास ध्यान रखने की आवश्यकता होती है इसलिए इस दौरान या तो व्यक्ति को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए या फिर व्रत रखना चाहिए।
Navratri Calender 2021
- (पहला दिन) 7 अक्टूबर- मां शैलपुत्री
- (दूसरा दिन) 8 अक्टूबर – मां ब्रह्मचारिणी
- (तीसरा दिन) 9 अक्टूबर – मां चंद्रघंटा और मां कुष्मांडा
- (चौथा दिन)10 अक्टूबर- मां स्कंदमाता
- (पांचवा दिन)11 अक्टूबर- मां कात्यायनी
- (छठां दिन)12 अक्टूबर- मां कालरात्रि
- (सातवां दिन)13 अक्टूबर-मां महागौरी
- (आठवां दिन)14 अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री
- (नौंवा दिन)15 अक्टूबर- विजय दशमी[3]
हिंदु पंचांग के मुताबिक शारदीय नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार, 7 अक्टूबर 2021 से होगी और 15 अक्टूबर 2021 को समाप्त होगी और गुरुवार, 7 अक्टूबर को नवरात्रि के प्रथम दिवस पर कलश स्थापना की जाएगी। अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नवरात्री का प्रारम्भ होता है, सनातन धर्म में अश्विनी मास का महत्व बहुत अधिक है क्योंकि इस महीने में पितृ और देव दोनों की कृपा भक्तों पर बरसती है।
1. देवी शैलपुत्री : पहाड़ों की बेटी।
2. देवी ब्रह्मचारिणी : तपस्या की देवी।
3. देवी चंद्रघंटा : चंद्रमा की भांति चमक रखने वाली।
4. देवी कुष्मांडा : पूरे लोक को अपने चरणों में रखने वाली।
5 .देवी स्कंदमाता : कार्तिक स्वामी की देवी।
6. देवी कात्यायनी : कात्यायन आश्रम में जन्म लेने वाली।
7. देवी कालरात्रि : काल का सर्वनाश करने वाली।
8. देवी महागौरी : श्वेत रंग वाली देवी।
9. देवी सिद्धिदात्री : सिद्धि प्रदान करने वाली।
नवरात्रि के दौरान तामसिक भोजन वर्जित है क्योंकि शक्ति पूजा के लिए सात्विक रहना अनिवार्य है। ऐसा माना जाता है कि सात्विक भोजन ग्रहण करने से व्यक्ति का मस्तिष्क और मन पवित्र व शांत रहता है। लहसुन, प्याज, मांस और मदिरा सभी तामसिक भोजन में गिने जाते है और यह सभी आहार राक्षसी प्रवृति के लोगों का भोजन होता है इन्हें ग्रहण करने से व्यक्ति में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। जबकि आध्यात्मिक क्षेत्र में उन्नति के लिए सकारात्मक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।