झारखण्ड के गढ़वा जिले में एक ऐसी घटना गठित हुई जिसे देख सभी हैरानी में पड़ गए , और जिसने भी घटना को सुना वो दंग रह गया।
जहाँ एक मृत व्यक्ति 22 साल बाद एक सन्यासी बन कर अपनी ही पत्नी से भिक्षा माँगने जा पहुंचा।
गढ़वा जिले में रहने वाला सुमेर नाम का व्यक्ति रहा करता था , जो काफी समय से महादेव की भक्ति व आरधना में लगा हुआ था। सुमेर बचपन से ही महादेव के पराक्रम के किस्से व कहानियां सुनकर बड़ा हुआ था। प्रत्येक दिन महादेव के मंदिर जाकर महादेव की पूजा करना व सोमवार का उपवास करना सुमेर का नियम था। उसके जीवन के हर संकट में वह मात्र महादेव को याद किया करता।
सुमेर का जीवन सुखमय रूप से व्यतीत हो रहा था , महादेव की कृपा से उसका विवाह भी पास की एक कन्या से हो गया , पूरे परिवार में ख़ुशी का माहौल था। सुमेर का वैवाहिक व सांसारिक जीवन सुखद रूप से व्यतीत हो रहा था। परन्तु कुछ ही दिनों बाद सुमेर अत्यधिक चिंताओं में रहने लगा उसका किसी काम में मन लगना बंद हो गया। सुमेर सबसे अलग अकेला ही रहने लगा था।
तब एक दिन अचानक बिना किसी को कुछ बताये अपना पैतृक आवास छोड़कर चला गया , कुछ दिन बीत गए परिवारजन सुमेर को खोजने में लग गए , पुलिस थाने में भी सुमेर के अचानक गायब होने की शिकायत दर्ज कराई , परन्तु किसी को जब कोई सफलता नहीं मिली और सुमेर की कोई खबर नहीं मिली और काफी दिन बीत जाने के बाद घरवालों को आशंका हुई कि वह जिंदा नहीं है और कोई घटना-दुर्घटना में मारा गया होगा। इसी के साथ सभी ने सुमेर में लौटने की उम्मीद छोड़ दी।
उधर, दूसरी ओर सुमेर घर छोड़कर सन्यास पर निकल गया था। कई सालों तक गांव से बाहर रहकर एक आश्रम में सुमेर ने शिक्षा दीक्षा प्राप्त की। कई वर्षों तक आश्रम में रहकर सुमेर ने अपनी शिक्षा दीक्षा पूर्ण करें। उसके बाद उसका मन पूरी तरह आध्यात्म की ओर मुड़ गया एवं वह महादेव की भक्ति में लीन रहने लगा। एक दिन ऐसा आया कि सुमेर का मन आश्रम से उट गया उसे लगा मेरे आस पास मौजूद लोग मेरी भक्ति में विघ्न डाल रहे है और इसी कारण वह अपनी भक्ति से महादेव के दर्शन पाने हेतु हिमालय की ओर निकल गया। सुमेर पैदल ही हिमालय की ओर बढ़ रहा था। भूख प्यास मार्ग में आने वाली कोई भी बाधा सुमेर की भक्ति के आगे नहीं टिक पाई। उसका विश्वास था कि एक दिन अवश्य ही महादेव उसे दर्शन देगे l
कई माह की यात्रा करने के बाद सुमेर हिमालय जा पहुंचा एवं वहां पर उसने अपनी तपस्या प्रारंभ की। वातावरण रोज बदल रहा था। कभी बहुत ज्यादा सर्दी होती कभी बर्फीली हवाएं चलती परंतु ऐसा कारण आना था जो सुमेर की कठिन तप से तोड़ सके । सुमेर की तपस्या के बीच एक दिन तो ऐसा भी आया जिस दिन भारी बर्फबारी से सुमेर का शरीर तक ढक गया परन्तु फिर भी सुमेर ने टस से मस ना हुआ ।
समय आगे बढ़ता रहा काफी वर्ष गुजर गए। एक समय ऐसा आया कि जब सुमेर को अपनी बंद आंखों से एक तीव्र प्रकाश महसूस हुआ प्रकाश इतना तीव्र था की बन्द आँखे भी उसे सह नही पा रही थी। सुमेर को विवश होकर अपनी आंखें खोलनी ही पड़ी। आंख खोलकर जब देखा तो सामने एक साधु खड़े हुए थे , एवं सुमेर की ओर देखकर मुस्कुरा रहे थे।
साधु ने उस मेरे से कहा कि तुम यहां कई वर्षों से तप कर रहे हो परंतु इस प्रकार तुम्हारा तप पूर्ण नहीं होगा तुम्हे इस प्रकार महादेव की प्राप्ति नहीं होगी तुम्हे महादेव की प्राप्ति उस समय होगी जब तुम जाकर अपनी पत्नी से भिक्षा लोगे । साधु की यह बात सुनकर सुमेर से रहा नहीं गया। तुरंत ही उसने अपने गांव की ओर प्रस्थान किया l कई माह की पैदल यात्रा के बाद सुमेर अपने गांव जा पहुंचा। उसका रूप पूर्ण रूप से बदला हुआ था। लंबे घने बाल बड़ी-बड़ी दाढ़ी और कमजोर शरीर l
सुमेर अपने ही घर के द्वार पर पहुंचकर भिक्षाम देही भिक्षाम देही कहकर आवाज लगाने लगा । अंदर से सुमेर की पत्नी सफेद साड़ी पहने हुए बाहर आयी जो अपने को कई वर्षों पूर्व विधवा मान चुकी थी । सुमेर को इस रूप में देख सुमेर की पत्नी की आंखों में आंसू आ गए उसने चिल्लाकर अपने सास-ससुर को बाहर बुलाया और माता पिता भी अपने पुत्र को देख अपने आंसू नही रोक पाए । परिवार जन सुमेर के गले लगने लगे जिसमें सुमेर ने उत्तर दिया कि जो कल था वह मेरा अतीत था, परंतु यह जो है वह मेरा आज है और मैं इसी आज में प्रसन्न हूं। आप मुझे भिक्षा देदे मेरी वर्षों की तपस्या सफल हो जाएगी। मुझे महादेव के दर्शन हो जाएंगे और यही मेरे जीवन का धेय है। कुछ ही देर में वहां पूरा गांव जमा हो गया। सभी यह देख आश्चर्य में थे कि जो व्यक्ति 22 साल पहले मर चुका था, वह आज वापस कैसे आ सकता है। किसी को अपनी आंखों देखें, फिर यकीन नहीं हो रहा था।
परिवार जनों ने सुमेर को रोकने का बहुत प्रयत्न किया परंतु सुमेर ने किसी की एक न सुनी। वहां से भिक्षा लेकर वापस हिमालय की ओर प्रस्थान कर गया। एक दिन जब सुमेर यात्रा के बीच रात में एक पेड़ के नीचे विश्राम कर रहा था तभी वहां एक दिव्य रोशनी फिर से प्रकट हुई। वह कोई और नहीं वही साधु थे जिसने हिमालय पर सुमेर को उसकी पत्नी के हाथों भीक्षा लाने के लिए विवश किया था। प्रकाश के बीच से साधु को निकलते देख सुमेर अचंभित रह गया। साधु ने सुमेर से पूछा पुत्र क्या तुम भिक्षा ले आए हो, यदि ले आए हो तो वह मुझे दे दो। सुमेर ने ऐसा ही किया जो भिक्षा वह अपनी पत्नी से लाया था। उसने वह उन साधु को दे दी।
साधु ने अपना हाथ सुमेर के माथे पर रख दिया। माथे पर हाथ रखते ही सुमेर को एक विशेष अनुभूति हुई। अगले ही पल में साधु वहां से गायब हो गए। सुमेर ने आंखें खोली, तब वहां तो कोई नहीं था। सुमेर को ज्ञात हुआ कि यह कोई साधारण साधु नहीं थे। जय महादेव थे जो साधु के रूप में आकर जिन्होंने मेरे को दर्शन दिए और मेरी दक्षिणा को स्वीकार किया। मेरी तपस्या सफल हो गयी। सुमेर कई वर्षों बाद आन्नदित महसूस कर रहा था। परिवार जन एवं गांव आश्चर्य मे था कि जो व्यक्ति कितने वर्षों पहले गायब हो गया पुलिस ने उसे मृत घोषित कर दिया। वह आज 22 साल बाद वापस आया तो आया कैसे? इस प्रकार अपने भक्तों के 22 वर्षों के तब के बाद महादेव ने उसे दर्शन दिए l