खाटू श्यामजी | Khatu Shyamji ki Kahani
आज हम बात करेंगे महाभारत के एक ऐसे योद्धा की, जो दोनों पक्षों से युद्ध में हिस्सा लेना चाहते थे, और अगर ऐसा होता ,
तो महाभारत की युद्ध भूमि में ना पांडव बच पाते ना कौरव, बस केवल एक ही योद्धा बचता जिसका नाम है बर्बरीक । लेकिन ऐसा नहीं हो पाया क्यूँ की श्री कृष्ण ने इस युद्ध से पहले ही बिना कोई शस्त्र उठाए या कोई लड़ाई कीये बगेर ही बर्बरीक का सिर धड़ से अलग करवा दिया और इस तरह श्री कृष्ण ने कलयुग को दिए ‘ बाबा खाटूश्याम(Baba Khatu Shyamji)’ । क्या है पूरी कहानी आइए बताते है आपको हमारी आज की इस लेखन में ।
बर्बरीक के दादा पांचों पांडवों में से सबसे ताकतवर भीम थे और उनकी दादी थी हिडिम्बा राक्षसी । इतने ताकतवर कुल के होने की वजह से बर्बरीक भी बेहद बलशाली थे । बर्बरीक भीम के बेटे बाबा घटोत्कच और नागकन्या मौरवी के पुत्र हैं. कलयुग में बर्बरीक को बाबा खाटू श्याम(Baba Khatu Shyamji) के नाम से जाना जाता है ।
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खाटू श्याम की सच्ची कहानी क्या है? | Khatu Shyam ki sacchi kahani kya h ?
एक पुराण के अनुसार माना जाता है की बर्बरीक शिव के अवतार थे और महादेव की उपासना से बर्बरीक ने तीन तीर प्राप्त किये. ये तीर चमत्कारिक, और इनके आगे कोई टिक नहीं पता था इस लिये श्याम बाबा को तीन बाणधारी भी कहा जाता है ।
भगवान अग्निदेव ने भेट में बर्बरीक को एक दिव्य धनुष दिया था, इस धनुष में इतनी ताकत थी, जिसके पास ये तीर और धनुष होते, वो तीनों लोकों में विजय होने की क्षमता रखता था ।
जब बर्बरीक को महाभारत के युद्ध के होने की खबर मिली, तब वह अपने दिव्य शस्त्र उठा कर युद्ध भूमि में जाने की तैयारी करने लगे, तब उनकी माँ ने उनसे जाने से पहले कहा की तुम उनकी तरफ से ही लड़ना जो युद्ध में कमजोर होंगे, हार रहे होंगे । बरबारिक अपनी माँ की हर एक आज्ञा का पालन करता था । उन्होंने अपनी माँ से वादा किया की वैसा ही करेंगे।
जब बर्बरीक युद्ध के लिए जा रहे थे तब श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का भेस बना कर उनको रोक दिया, और उनसे पूछने लगे की तुम ये 3 बाण लेकर कहा जा रहे हो? तब बर्बरीक ने जवाब दिया की यह तीन बाण इतनी क्षमता रखता है की किसी भी युद्ध में पूरी सेना को एक ही बार में खतम कर सकते है । श्री कृष्ण जो की ब्राह्मण के भेस में थे , उन्होंने बर्बरीक से कहा, की ऐसा तो नामुमकिन है, जरा इस पीपल के वृक्ष के सारे पत्ते भेद कर दिखाओ ।
बर्बरीक ने तीर निकाल कर पीपल के वृक्ष की ओर छोड़ा , उस एक तीर ने उस वृक्ष के सारे पत्तों को भेद दिया और भेदता हुआ श्री कृष्ण के पैरों के चक्कर लगाने लगा, क्यूँ की श्री कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैरों के नीचे दबा रखा था । बर्बरीक समझ गए की एक आखिरी पत्ता यहाँ ही है तभी ये तीर ऐसे पैरों के पास घूम रहा है ।
फिर श्री कृष्ण ने जैसे ही पैर हटाया वैसे ही बाण उस पत्ते पर जा लगा । श्री कृष्ण ने बर्बरीक से जब पूछा की तुम किसकी तरफ से लड़ोगे, तब बर्बरीक ने कहा ‘जो पक्ष भी हारेगा में उसकी तरफ से लड़ूँगा । श्री कृष्ण ये सुनकर सोचने लगे की ऐसे तो अगर कौरव हारने लगे, तब बर्बरीक एक ही बाण में पांडवों की सेना को खतम कर देंगे ।
और कौरवों को इस वचन के बारे में पता था । इसलिए उन्होंने पहले से ही ये योजना बना रखी थी की युद्ध की हुरुआत में आधे सैनिक ही भेजेंगे, ताकि हम हारने लगे और बर्बरीक उनकी तरफ से युद्ध करके पांडवों की सेना को खतम कर देंगे ।ऐसे में बिना कोई समय बर्बाद करे, ब्राह्मण के रूप में श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से ब्राह्मण दान मांगा । बर्बरीक ने दान देने का वचन दे दिया ।
ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा कि उसे दान में बर्बरीक का शीश चाहिए, बर्बरीक अपने शब्दों और वचनों का पालन करते थे, और वो समझ भी गए थे की ब्राह्मण के रूप में श्री कृष्ण ही है जो उनसे ये कुर्बानी मांग रहे है, वही वह ये भी समझते थे की पांडवों का ये युद्ध जीतना कितना जरूरी है लेकिन वह अपनी माँ को भी वचन दे चुके थे ।
उनहोने अपना शीश काटने से पहले भगवान श्री कृष्ण से विनती की, कि वह उन्हें सिर्फ एक बार अपने वास्तविक रूप के दर्शन कर दे । भगवान कृष्ण ने विनती स्वीकार कर ली और श्री कृष्ण को ये करते हुए बेहद दुख हो रहा था, लेकिन ये करना बेहद जरूरी था । श्री कृष्ण ने बर्बरीक को कोई ओर इच्छा भी प्रकट करने को कहा, तब बर्बरीक बोले कि वो कटे शीश के साथ ही महाभारत का पूरा युद्ध देखना चाहते है ।
श्रीकृष्ण ने उनकी इस इच्छा को पूर्ण किया और बर्बरीक का शीश एक पहाड़ी की चोटी में रख दिया, जहां से महाभारत का पूरा युद्ध देखा जा सकता था, जिसे खाटू कहा जाता था, और वो वही स्थापित हो गए । वही से बर्बरीक ने महाभारत का पूरा युद्ध देखा और तब ही बर्बरीक कलयुग में बने हारे का सहारा । इसके बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को एक वरदान दिया कि कलयुग में लोग उन्हे कृष्ण के अवतार की तरह पूजेंगे । आज इस स्थान को बाबा खाटू श्याम(Baba Khatu Shyamji) के नाम से जाना जाता है. जहां पर बर्बरीक की खाटू श्याम के रूप में पूजा की जाती है ।
राजस्थान के सीकर में खाटूश्याम बाबा khatu shyamji का मंदिर है. जहां दूर दूर से लोग आते हैं और कभी भी खाली हाथ वापस नहीं जाते. श्याम बाबा shyam baba को हारे का सहारा माना जाता है, तभी कहा जात है ‘ हारे का सहारा, खाटू श्याम हमारा ।
खाटू श्याम जी कौन थे? | Who is Khatu Shyam ji in Hindi | Who was Khatu Shyam ji
बर्बरीक के दादा पांचों पांडवों में से सबसे ताकतवर भीम थे और उनकी दादी थी हिडिम्बा राक्षसी । इतने ताकतवर कुल के होने की वजह से बर्बरीक भी बेहद बलशाली थे । बर्बरीक भीम के बेटे बाबा घटोत्कच और नागकन्या मौरवी के पुत्र हैं. कलयुग में बर्बरीक को बाबा खाटू श्याम Baba Khatu Shyamji के नाम से जाना जाता है ।
Shri Krishna Ne Barbarik ko kya Vardan Diya tha ? कृष्ण भगवान ने बर्बरीक को क्या वरदान दिया?
बर्बरीक को वरदान प्राप्त था कि वह तीन बाणों से तीनों लोक जीत सकते हैं. जिसकी वजह से युद्ध से पहले कौरव बर्बरीक को लेकर डरे हुए थे. बर्बरीक को उनकी मां ने बचपन से यही सिखाया था कि हमेशा हारने वाले की ओर से युद्ध लड़ना. ये बात श्री कृष्णा अच्छी तरह से जानते थे.
श्री कृष्ण ने बर्बरीक का सिर क्यों मांगा? | Shri Krishna ne Barbarik ka Sir Kyu Manga Tha ?
बर्बरीक को कुछ ऐसी सिद्धियाँ प्राप्त थीं, जिनके बल से पलक झपते ही महाभारत के युद्ध में भाग लेनेवाले समस्त वीरों को मार सकते थे। जब वे युद्ध में सहायता देने आये, तब इनकी शक्ति का परिचय प्राप्त कर श्रीकृष्ण ने इनसे इनके शीश का दान मांग लिया था।
खाटू श्याम जी मंदिर कहाँ है? | Where is Khatushyam Mandir | Where is Khatu Shyam ji Mandir | Where is Khatu Shyam ji Mandir located
खाटू श्याम जी इतने प्रसिद्ध क्यों हैं? | Why Khatu Shyam is Famous | Why Khatu Shyam ji is so Famous
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श्री खाटू श्याम जी भारत देश के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध गांव है, जहाँ पर बाबा श्याम का विश्व विख्यात मंदिर है।