उत्तर प्रदेश के फ़िरोज़ाबाद शहर में जगराज नाम का व्यक्ति रहा करते थे , उन्होंने अपने एक मित्र के साथ मिल कर कांच का नया कारोबार शुरू किया वह दोनों अपने कारखाने में कांच के बर्तन चूड़ियाँ व भिन्न भिन्न उत्पाद बना कर बाज़ार में थोक व्यापारिओं को बेचा करते थे। धीरे धीरे उनके कार्य ने रफ़्तार पकड़ ली और कुछ ही वर्षो में उनकी पहचान शहर व आस पास के इलाको में एक बड़े और प्रतिष्ठित व्यापारी के रूप में बन गयी। जगराज जी अपने सभी छोटे बड़े कर्मचरियो के साथ सभ्य और शालीन व्यवहार किया करते थे , यह तक की जब उन्हें मौका मिलता तो वह उनके साथ बैठ भोजन भी कर लिया करते थेl
यह बात उनके मित्र को उचित नहीं लगती वह अक्सर जगराज जी को ऐसा करने को मना किया कर कहता की अब हम बड़े व्यापरी है ऐसी चीज़ें हमें शोभा नहीं देती तुम ऐसा कर के सबके सामनेअपनी और मेरी दोनों की छवि पर दाग लगा रहे हो , ऐसी सभी बातों को जगराज जी हवा में उड़ा दिया करते।
इधर कांच का व्यापार दिन दोगुना रात चौगना तरक्की कर रहा था, कुछ दिनों बाद दोनों के एक बड़े संगठन से बहुत बड़ा अनुबंध मिला अगर वह इस अनुबंध को पूरा कर लेते तो उन्हें मोटा लाभ मिल सकता था।
परन्तु उसी अनुबंध के दौरान जगराज जी के मित्र ने पूरे व्यापार को हड़प लेने की निति तैयार कर एक चाल चली , जब जगराज जी एक किसी कार्य में व्यस्थ थे उस समय उनके पास आकर एक व्यापारिक दस्तावेज बता कर झूठे अनुबंध पर उनके हस्ताक्षर ले लिए।
जिस पर लिखा था की इस कांच के कारखाने और व्यापर से जुड़े किसी भी लेन देन में मेरी कोई भाग्य्ता नहीं है , और में सारा कार्यभार अपने मित्र को सौंपता हूँ। ऐसे झूठे अनबंध पर हस्ताक्षर लेकर उसने जगराज जी को बड़ी बेइज़्ज़ती से कारखाने से निकल दिया।
जगराज जी को समज न आया की एक ही पल में उनके साथ क्या हो गया , उनकी इतने वर्षो की महेनत कुछ ही पलो में समाप्त हो गई।
जगराज जी ने कई पुलिस थानों और न्यायालयों में उनके साथ हुई धोखादड़ी के खिलाफ न्याय की मांग करि परन्तु हर तरफ से निराशा ही मिली , बेहद परेशान होकर जगराज जी सम्पूर्ण संसार के न्यायाधीश के पास जा पहुंचे अर्थात भगवा कृष्ण के दरबार में।
जगराज जी ने अपनी सारी आपबीती प्रभु को सुना दी बात कहते हुए उनकी आँखों से आंसुओं की धारा बहने लगी इस दौरान मंदिर के महंत ने सारी बात सुन ली तब महंत जी ने जगराज जी को अपने पास बुलाया और उन्हें अष्ट सिद्धि गणेश लक्ष्मी यंत्र दिया और कहा पुत्र तुम अपना नया कार्य शुरू करो और इस यंत्र की स्थापना अपने दफ्तर में कर रोज़ इसकी पूजा व आराधना पूरे भाव से करो माँ लक्ष्मी तुम पर अवश्य ही प्रसन्न होंगी।
जगराज जी ने वैसा ही किया जो महंत जी ने बताया था , अपने जमा किये हुए पैसो से कांच का ही नया व्यपार शुरू किया , और अपने दफ्तर में अष्ट सिद्धि गणेश लक्ष्मी यंत्र की स्थपना कर सच्चे मन से उसकी पूजा पाठ भी शुरू कर दी कुछ ही दिनों में जगराज जी के व्यापार ने रफ़्तार पकड़ ली बड़े बड़े अनुबंध आने लगे इधर उनके मित्र द्वारा हड़पा हुआ कारोबार टप पड़ने लगा था।
अष्ट सिद्धि गणेश लक्ष्मी यंत्र की कृपा और प्रभु की आस्था से जगराज जी का खोया हुआ कारोबार और धन वापस मिल गया और जीवन के हर प्रकार के संकट दूर हो गए साथ ही उनके मित्र रुपी शत्रु का भी विनाश हो गया।