पहले के समय मैं राजा की एक से ज़्यादा रानियाँ होना बहुत आम बात थी। लेकिन उस समय ऐसा कभी नहीं हुआ था की किसी रानी के एक से ज़्यादा पति हो, और इसी नियम को बदले हुए द्रौपदी ने कुछ ऐसा कर दिखाया जिसे देख कर देवी देवता तक हैरान हो गए .
द्रौपदी राजा द्रुपद की बेटी थी और द्रौपदी का जन्म अग्नि कुंड से हुआ था, आग से जन्मी द्रौपदी सबसे बेहद अलग थी, पूरी दुनिया में द्रौपदी सबसे ज़्यादा खूबसूरत थी और खूबसूरती के साथ साथ वह बहुत होनहार और बुद्धिमान भी थी. द्रौपदी दुनिया की पहली महिला थी जिनके पांच पति थे।
द्रौपदी के किस्मत मैं पांच पति का होना, उनके पिछले जनम के कर्मो को दर्शाता है।
द्रौपदी अपने पिछले जनम में ऋषि मृदुल की पत्नी थी और उनका नाम इन्द्रसेना था, वह बेहद खूबसूरत और बुद्धिमान थी। ऋषि मृदुल से विवाह के कुछ ही समय पश्चात ऋषि मृदुल की अल्पमृत्यु हो गयी थी , लेकिन द्रौपदी यानी की इन्द्रसेना का जीवन उस समय शुरू ही हुआ था ।
ऋषि मृदुल की अल्पमृत्यु के बाद इन्द्रसेना ने वापस विवाह करने की सोची, लेकिन सर्वगुण संपन्न होने की वजह से उन्हें अपने लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा था , तब थक हार कर उन्होंने वर की प्राप्ति के लिए भगवान् शंकर की पूजा पाठ और घोर तपस्या की, इन्द्रसेना की घोर तपस्या देख भगवान् शंकर बहुत खुश हो गए और इन्द्रसेना के सामने प्रकट हो गए,
उन्होंने इन्द्रसेना को वरदान मांगने को कहा तब इन्द्रसेना ने वरदान में एक उचित वर माँगा, भगवान् शंकर ने इन्द्रसेना से पुछा की ‘कैसे वर की इच्छा है तुम्हें’?
तब इन्द्रसेना ने कहा ‘हे भोलेनाथ मुझे ऐसा वर चाहिये जो कि सबसे सुंदर हो, श्रेष्ठ धर्नुधर हो, श्रेष्ठ सहनशील हो, श्रेष्ठ शक्तिमान तथा श्रेष्ठ सत्यवान हो, ये सुन कर भगवान् शंकर ने इन्द्रसेना को ये वरदान दे दिया और कहा की अगले जनम में तुम्हें ऐसे वर की प्राप्ति होगी जो सुंदर हो, श्रेष्ठ धर्नुधर हो, श्रेष्ठ सहनशील हो, श्रेष्ठ शक्तिशाली और श्रेष्ठ सत्यवान हो.
भगवान् शंकर ने इन्द्रसेना को वरदान तो दे दिया लेकिन इन्द्रसेना को ये भी कहा की ये पांच गुण एक ही पुरुष में होना उचित नहीं है इसलिए वरदान के अनुसार इन्द्रसेना ने जब द्रौपदी के रूप में जनम लिया तब उन्हें पांच पति मिले, जिसमें हर पांडव में एक-एक गुण था जैसे सबसे बड़े सत्यवान-युधिष्ठिर थे, सबसे बड़ा शक्तिशाली-भीम , सबसे बड़ा धनुर्धर-अर्जुन, सबसे ज्यादा सुंदर-नकुल और सबसे अधिक सहनशील-सहदैव। महादेव के इस वचन की वजह से द्रौपदी को उनके इस जनम में पांच पतियों की प्राप्ति हुई
द्रौपदी की भक्ति और तपस्या
“द्रौपदी की भक्ति और तपस्या” द्रौपदी, महाभारत की महत्वपूर्ण पात्री में से एक हैं, जिनकी भक्ति और तपस्या की कथा धार्मिक ग्रंथों में महत्वपूर्ण रूप से उजागर है।
1. **अपरीक्षिता का जन्म**: द्रौपदी का पूर्व जनम ‘अपरीक्षिता’ के रूप में था। उनका पिता एक महर्षि थे, और वह बचपन से ही ब्रह्मचारिणी बनने का निर्णय लिया।
2. **तपस्या का आरंभ**: अपरीक्षिता ने ब्रह्मा ऋषि के आश्रम में वेदों का अध्ययन करने के लिए जाते हुए अपने जीवन का पथ चुना। वह नियमित रूप से भगवान शिव की तपस्या करने लगी।
3. **भगवान शिव का प्रकट होना**: अपरीक्षिता की अद्भुत भक्ति ने भगवान शिव को प्रसन्न किया और वह प्रकट होकर उनके सामने आए।
4. **वरदान की प्राप्ति**: भगवान शिव ने अपरीक्षिता से कुछ आवश्यक वरदान मांगा, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण वरदान वह था कि उनका पति केवल एक ही पुरुष होगा, जो उनके पिछले जन्म की पत्नी थी, और उसके साथ उन्होंने तपस्या की थी।
5. **द्रौपदी का जन्म**: इसके बाद, अपरीक्षिता का पुनर्जन्म हुआ, और वह द्रौपदी के रूप में जन्म ली। वह पांच पांडवों की माता बनी और महाभारत के महत्वपूर्ण घटनाओं में उनके साथ रही।
6. **द्रौपदी का धर्मपति**: द्रौपदी का पति युद्धिष्ठिर, भारतीय धर्म के प्रतीक और न्यायकी शासक थे। उनका संगठनशील और धार्मिक जीवन द्रौपदी के साथ उनके घर को एक आदर्श परिवार बनाते थे।
7. **द्रौपदी का संघर्ष**: द्रौपदी के जीवन में कई कठिनाइयां और परिक्षण थे, जैसे कि द्रौपदी चीरहरण का प्रतिरोध करती है और कौरवों के खिलाफ युद्ध में उनका साथ देती है।