श्री कृष्णा अपने प्रेम और अपनी लीलाओ के लिए पुरे विश्व मैं प्रसिद्द है, लेकिन क्या आपको मालूम है की श्री कृष्णा जो सबसे बेहद प्रेम से रहते थे, उनकी 16008 पत्निया, जो दिन रात उनकी भक्ति मैं लीन रहती थी, श्री कृष्णा ने उन्ही को ऐसा श्राप दे दिया जिसके बाद सब कुछ नष्ट हो गया .
द्वारका जैसी पावन नगरी मैं श्री कृष्णा के बेटे साम से एक ऐसा दुष्कर्म हो गया जिसका कभी कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता था.
महाभारत युद्ध के ख़तम होने के बाद श्री कृष्णा सब यदुवंशियो और अपनी आठ पत्नियों के साथ द्वारका नगरी में रहने लगे ,उनकी आठ पत्नियों के नाम थे रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा ।
गांधारी ने श्री कृष्णा को जो श्राप दिया था उसका असर भी द्वारका मैं धीरे धीरे दिखने लगा, एक समय नरकासुर राक्षश ने वरदान प्राप्त किया की उसे कोई भी पुरुष नहीं मार सकता और उसका आतंक बहुत बढ़ गया,वह ऋषियों को मार, और स्त्रीयो को अगवाह कर उनका शोषण करता था,
उसने 16,000 कन्याओं को अपना बंधी बना कर रखा था, उसके आतंक से स्वर्ग लोक भी कांप उठा, तब देवी- देवताओ ने श्री कृष्णा से बिन्ती की और उसके आतंक पर रोक लगाने को कहा, तब श्री कृष्णा ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर नरकासुर का वध कर दिया और सभी 16,000 कन्याओ को छुड़ा लिया। लेकिन 16,000 कन्याओ ने कृष्णा से कहा की प्रभु आपने हमें उस राक्षस के प्रकोप से तो बचा लिया लेकिन इस समाज के कलंक से हमें कौन बचाएगा?
अब हम आपके ही पास रहना चाहते है, हम आपको ही अपना पति मान बैठे है, आपको हमसे विवाह करना पड़ेगा, ये सब सुनने के बाद श्री कृष्णा 16,000 रूप में प्रकट हो गए और 16,000 कन्याओं से विवाह कर लिया,परन्तु श्री कृष्ण ने केवल उनसे विवाह ही किया था, उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार नहीं किया था.
अब ये 16,000 पत्निया द्वारका में ही श्री कृष्णा की भक्ति कर अपना जीवन बिता रही थी.
एक बार नारद मुनि द्वारका में पधारे लेकिन उस समय सब अपने काम में वव्यस्त थे और श्री कृष्णा के बेटे साम ने नारद मुनि पर ध्यान नहीं दिया, इस बात को नारद मुनि ने अपना अपमान समझा और सबक सिखाने की सोची और उन्होंने साम के साथ उनकी अन्य पत्नियों को मदिरा पान करवा दिया,
मदिरा पान करने के बाद सब अपना आपा खो बैठे और श्री कृष्णा की 16,000 पत्नियों में से एक ने साम की पत्नी का भेष बना कर उसके कक्ष में चली गयी और नशे में दुष्कर्म कर बैठे.
जैसे ही श्री कृष्णा को ये बात पता चली तो श्री कृष्ण ने साम को कुष्ट रोग से पीड़ित होने का दंड दिया और उनकी जितनी भी पत्निया इस बुरे कर्म मैं शामिल थी उन्हें भी श्राप दिया की मेरी मृत्यु के बाद तुम्हारा बुरे लोगो द्वारा अपहरण हो जाएगा।
फिर गांधारी के द्वारा दिया हुआ श्राप अपना कहर दिखने लगा और धीर धीरे यदुवंशियो की आपस में ही लड़ाई होने लगी, एक दिन सारे यदुवंशियो की आपस में मुठभेड़ हो गयी और उन्होंने एक दूसरे की हत्या कर दी।
यदुवंशियो का ऐसा नाश देखकर बलराम बहुत दुखी हुए और वो समुन्द्र तट पर जाकर योग निद्रा में चले गए और उन्होंने अपना देह त्याग दिया।
ये खबर मिलने पर श्री कृष्णा बहुत निराश हो गए और उन्होंने अपने सारथि से कहा की अब मेरे जाने का समय हो गया है, मैं जंगल जा रहा हूँ योग मैं लीन होने और श्री कृष्णा वह जंगल जा कर एक पेड़ के नीचे बैठ गए, एक शिकारी आया और उसने श्री कृष्ण के पैर के टिल को मृग की आँख समझ कर तीर मार दिया और तीर लगते ही इस बात को बहाना बना कर श्री कृष्णा ने अपना देह त्याग दिया और वैकुण्ठ धाम चले गए ।
इस बात की खबर अभी उनकी पत्नियों को नहीं थी।
जब अर्जुन श्री कृष्णा से मिलने द्वारका पहुंचे तो उन्हें वहां का हाल पता चला, ये सब देख अर्जुन बहुत दुखी हुए और वहां जितने भी यदुवंशी के शव थे , उनका अंतिम संस्कार करके, अर्जुन द्वारका के बचे हुए यदुवंशी, श्री कृष्णा की पत्नियों और बच्चो, बल राम की पत्नी और सारा धन लेकर इंद्रप्रस्थ की तरफ निकलने लगे. द्वारका नगरी जैसे ही खाली हुई वैसे ही वह समुन्द्र में समां गयी, मानो समुन्द्र सबके जाने का इंतज़ार कर रहा हो. ये भी श्री कृष्णा की ही लीला थी,
अर्जुन ने श्री कृष्णा के देह त्याग की खबर उनकी पत्नियों को नहीं बताई थी. अर्जुन के साथ बचे हुए यदुवंशी और श्री कृष्णा की पत्निया इंद्रप्रस्थ की ओर भड़ने लगी, लेकिन इस बात की खबर आस पास के गाँव में फ़ैल गयी, धन और स्त्री के लालचा में कुछ डाकुओ ने अर्जुन पर हमला कर दिया और लूट पाट मचाने लगे, उस समय जब अर्जुन ने अपने शास्त्र उठाए तब उनके शास्त्रों ने काम करना बंद कर दिया और अर्जुन को एहसास हुआ की उनकी सारी शक्तिया ख़तम हो गयी है। बहुत प्रयास करने पर भी अर्जुन श्री कृष्णा की पत्न्यो और धन की रक्षा नहीं कर पाए. और डाकू सब कुछ लूट कर चले गए और श्री कृष्णा की पत्नियों को भी अपने साथ ले गए।
अब केवल बस श्री कृष्णा की आठ पत्निया और कुछ सेवक ही रह गए थे, जिसे लेकर अर्जुन इंद्रप्रस्थ चले गए। वहां पहुंच कर अर्जुन ने राज्य में सबको अपना स्थान बाँट कर अपना कर्त्तव्य पूरा किया. भगवान् श्री कृष्णा के प्रियपात्र वज्र मथुरा के राजा बन गए.
इसके बाद अर्जुन ने श्री कृष्णा की पत्नियों को श्री कृष्णा के देह त्याग की बात बता दी, जिसे सुनने के बाद, रुक्मणि जो की माँ लक्ष्मी का अवतार थी, उन्होंने अपनी शक्तियों से अपना देह त्याग दिया और वह भी श्री कृष्णा के पास वैकुण्ठ धाम चली गई, जमनावटी ने भी अपने प्राण त्याग दिए, और सत्यभामा और बाकी पत्निया जंगल में तपस्या के लिए चली गयी और वह वन में केवल फल और पत्तों का भोजन करती थी और श्री हरी की आराधना करती रही, और समय आने पर श्री हरी में ही विलीन हो गयी।