रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा लिखित रश्मिरथी की प्रचलित पंक्ति है ”जब नाश मनुष्य पर छाता है , पहले विवेक मर जाता है ” अर्थात जब विनाश मनुष्य को घेर लेता है तब व्यक्ति से पहले उसकी समझ ख़त्म हो जाती है। और इस पंक्ति का जिवंत उदहारण आपको आज की कहानी में बताने जा रहे है।
बहुत समय पहले की बात है छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में एक प्राचीन राम मंदिर है ,वहां के लोग बताते है की मंदिर की महानता और तेज ऐसा है की हनुमान जी स्वयं समय समय पर आकर प्रभु राम और माता सीता के दर्शन करने आते है। सभी लोगो की आस्था मंदिर के प्रति बड़ी ही प्रबल थी , उनका मानना था की कोई भक्त प्रभ से कुछ भी मांगे वह उसे मिल ही जाता है और कई लोगो तो ऐसे भी है जिनकी सालो से चलती आ रही बड़ी बड़ी बीमारियां प्रभु राम के दर्शन मात्र से समाप्त हो गयी।
हरिदास नाम के प्रकांड पंडित मंदिर में रह कर मर्यादा पुरषोतम राम व माँ सीता की सेवा पूजा किया करते है , दिन रात भक्ति में ऐसे लीन रहते की आस पास की कोई सुध न रहती , जीवन का एक मात्र धेय था प्रभु राम और उनकी भक्ति।
एक दिन मंदिर में भव्य फूल बंगला और छप्पन भोग का आयोजन किया गया मंदिर परिसर भक्तो से भरा हुआ था , सभी ने भगवान् के दर्शन किये और मंदिर से सभी प्रसाद ले कर चले गए , पर इस बीच एक दुष्ट व्यक्ति ने भीड़ का फायदा उठा कर माता सीता के हाथ से सोने के कंगन निकाल कर चोरी कर लिए। मंदिर जब पूरी तरह खाली हो गया तब यह बात पंडित हरिदास को पता चली , उन्होंने आस पास के लोगो को एकत्र किया सभी से पूछताछ के बाद समज आया की किसी ने कंगन चोरी किये है। तब हरिदास जी ने सभी को वापस भेज दिया और स्वयं ध्यान मुद्रा में बैठ गए। और संसार में प्रभु राम के सबसे बड़े भक्त हनुमान जी को स्मरण करते हुए सारी घटना की जानकारी देकर मदद की गुहार लगाई, और यह प्रतिज्ञा ली की जब तक माँ के कंगन वापस नहीं मिलते में ध्यान से नहीं हिलूंगा।
और उसी रात शहर के बहार एक अविश्वसनीय घटना घटी ,
जीत नाम का व्यक्ति मंदिर से माँ सीता के कंगन चुरा कर भाग रहा था , शहर से काफी दूर आ चूका था , तभी अचानक एक बड़ी सी परछाई उसके सामने आती है , और उस सुनसान मार्ग पर एक तेज और भारी स्वर आता ही जो कह रहा है की दुष्ट जो तूने किया है वह पाप है अधर्म है , तूने ये घोर पाप करने से पहले एक बार न सोचा की तुजे इसका कितना भयानक दंड मिलेगा धीरे धीरे स्वर ऊँचा होने लगा हवा की गति बढ़ गयी , सलल कांप उठा , बदल गर्जना करके बरसने लगे पर जीतू ने सब को अनदेखा कर अपना कदम जैसे ही आगे बढ़ाया सड़क के किनारे से एक विशाल वृक्ष उसके पैरो के आगे आकर गिरा उसने परछाई को गौर से देखा तो वह विशाल शरीर लम्बी पूँछ हाथ में गदा वह परछाई किसी और की नहीं स्वयं पवनपुत्र है जो क्रोधित हो ऊठे है , वह भयभीत हो उठा और वापस उल्टे पैर मंदिर की और दौड़ गया। मंदिर पहुँच हरिदास जी को कंगन लौटा दिए , हरिदास जी ने पुछा ऐसा क्या हुआ जो तुम इतने घबरा रहे हो और कंगन लौटने खुद आ गए , जीतू ने हरिदास जी कहा की हनुमान जी ने स्वयं आकर मुझे रौद्र रूप में चेतावनी दी है मुझसे अनजाने में गलती हो गयी है मुझे क्षमा कर दे। जीतू ने हरिदास जी और प्रभु राम और माँ सीता से माफ़ी मांगी और कभी ऐसा नहीं करने की कसम खायी। बाद में हरिदास जी ने भी हनुमान जी को धन्यवाद किया।
अगले दिन जब लोगो को पता चला की हनुमान जी ने स्वयं आकर जीतू को रौद्र रूप में चेतवनी दी यह देख सब हैरान रह गए सभी की आस्था मंदिर और पवनपुत्र के प्रति और बढ़ गयी।