गुजरात के एक गांव में ऐसी घटना घटित हुई है जिसके बारे में सुनकर आप हैरान रह जाएंगें। आखिर इतना बड़ा चमत्कार कैसा हो सकता है। दरअसल, यह कहानी गांव के एक सतपाल शख्स की है जिसपर मां अम्बे की कृपा शुरु से ही है। यह बात साल 2012 की है जब गुजरात में बाढ़ जैसी स्थिति बनी हुई थी। इस दौरान गांव में पानी भराव रहता था। आपको बता दें कि, सतपाल एक पंचर की दुकान पर काम करता था। रोज़ाना वह शहर की सड़क से होकर गुजरता था। उस सड़क पर शुरु से ही सतपाल को लगता था कि, सड़क के नीचे से कुछ कंपन होती है जिसको सिर्फ वही महसूस करता था। ऐसा उसे इसलिए लगा, क्योंकि कई बार उसके परिवार वाले और दोस्तों को उसने कहा कि, इस जगह पर मुझे कुछ कंपन सी महसूस होती है तो सब उसकी बात पर हंसने लगते और कोई भी यकीन नहीं करता। इसके बाद सतपाल को यह बात तो समझ आ गई थी कि, यह कंपन सिर्फ उसी को महसूस होती है। एक बार सतपाल अपने काम से वापिस लौटता हुआ उसी सड़क से जा रहा था। अचानक वहां भूंकप की स्थिति उत्पन्न हुई और वह एक जगह रूक गया। इतने में ही दूर से सड़क फटती हुई सतपाल की साईकिल तक आकर रूकी। जिसके बाद सतपाल घबरा गया कि, कही वह इस सड़क में ना धस जाए। जैसे ही सतपाल अपनी साईकिल को घूमने की सोचता है तो सड़क की दरार में से चमकती कोई चीज़ की रोशनी सतपाल पर पड़ती है। वह तुरंत साईकिल पर से उतरकर उसमें झांकने की कोशिश करता है। फिर वह हाथ डालकर देखता है कि, आखिर उसमें क्या है। जैसे ही वह हाथ डालता है तो मां अम्बे कि मूर्ति उसके हाथ में आती है और उसकी दिव्य चमक उसके चेहरे पर पड़ने लगती है। यह देखकर सतपाल खुश हो जाता है और अपने घर परिवार वालों को मूर्ति के बारे में सच-सच बता देता है। उसी रात सतपाल के सपने में मां अम्बे आती है और कहती है कि, मेरी इस मूर्ति की स्थापना ऐसी जगह करवाना जहां पर पीपल का पेड़ मौजूद हो। जब अगली सुबह सतपाल उठता है तो वह सारा सपना अपने घरवालों को बताता है। इसके बाद घर वाले फैसला पंचायत को बताते हैं तो पंचायत भी उनका साथ देने के लिए तैयार हो जाती है। सबसे अंचभे वाली बात यह है कि, अंबे माता की मूर्ति की आंखों पर लाल कलर की पट्टी बंधी रहती है। जिसको अभी तक भी सतपाल ने नहीं खोला। उसने सोचा जिस दिन स्थापना करेंगे तब ही मां अंबे की मूर्ति को देखेंगे। इसके बाद जिस दिन मां अम्बे की मूर्ति को स्थापित किया जाता है तो सभी गांव वासी मूर्ति को देखकर डर जाते हैं, क्योंकि यह मूर्ति रौद्र रूप में थी। साथ ही इसमें मां अंबे की चार आंखें थी। जिसका रहस्य समझ पाना काफी मुश्किल था। समय बीतता गया लोगों की मनोकामना मां अंबे पूर्ण करती गईं और चमत्कार पर चमत्कार दिखाती गईं। सतपाल ने बताया कि, जिस दिन उन्हें मूर्ति मिली थी। उस दिन पूरे रास्ते पर भूंकप के चलते दरारा पड़ गई थी, लेकिन अगले ही दिन वहां कुछ भी नहीं था। किसी को भी भूंकप के झटके नहीं लगे। यहां तक की टी.वी में भी इसके बारे में कुछ नहीं बताया गया। यह सिर्फ मां अंबे ने मेरे लिए किया था या फिर मेरा कोई भ्रम था। मैं नहीं जानता, लेकिन मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली मानता हूं कि, मां अंबे ने मुझको चुना। इसी के साथ वहां के गांव वासी बताते हैं कि, कभी-कभी रात के समय उन्हें मूर्ति में से कुछ आवाज़ें आती है। जैसे हंसने कुछ बोलने की, लेकिन साफ-साफ कुछ समझ नहीं आता। यह चमत्कार है या भ्रम इसके बारे में हम भी कुछ नहीं कह सकते, लेकिन जहां श्रद्धा भाव है वहीं भगवान है।
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