बिहार के शिवहर नामक गांव में गौतम नाम का अनन्य हनुमान भक्त रहा करता था , वह पेशे से सुनहार था।
प्रतिदिन बजरंग बलि की पूजा करना प्रत्येक मंगलवार का उपवास करना गौतम का वर्षो का नियम था , गौतम को हनुमान जी से जुडी कहानियां सुनना व सुनाना बड़ा पसंद था। यहाँ तक की गौतम ने तो रामचरित मानस में से सुन्दर कांड भी कंठस्थ कर लिया था। बजरंग बलि की कृपा से उसका व्यापार भी अच्छा चल रहा था। गौतम को किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं थी।
वह अक्सर कहता था की मैंने तो अपने जीवन की डोर बजरंग बलि को सौपं दी है।
एक बार जब गौतम अपने व्यापार के काम से दुसरे शहर जा रहा था , तभी बीच रास्ते में तेज़ बारिश हो गयी ,आकाश में बिजली कड़क रही थी और तभी गौतम के सामने लगे बड़े से पेड़ पर बिजली गिरी और पेड़ के दो भाग हो गए।
एक भाग तो दूसरी ओर गिरा परन्तु दूसरा भाग उस झोपडी के ऊपर गिरा जिसमे गौतम बारिश से बचने के लिया रुका हुआ था।
गौतम झोपडी के अंदर होने के कारण पेड़ से दब गया।
गौतम ने बाहर निकलने के बहुत प्रयास किया परन्तु वह बाहर नहीं आने में असमर्थ था। बारिश बढ़ती जा रही थी, धीरे धीरे गौतम का दम घुटने लगा उसे सांस लेने में परेशानी हो रही थी।
तब उसे कोई बाहर निकलने का मार्ग ना दिखाई दिया तब गौतम ने बजरंग बलि को याद कर मदद की गुहार लगायी।
कुछ ना होने पर वह सहायता के लिए चिल्ला चिल्ला कर आवाजें लगाने लगा परन्तु वह आस पास उसकी आवाज सुनने वाला कोई ना था।
तब एक वृद्ध व्यक्ति वह जा पहुंचा। वृद्ध व्यक्ति ने गौतम को आवाज देकर कहा तुम चिंतित ना हो तुमने मुझे मदद के लिए याद किया था में आ चुका हूँ , ओर देखते ही देखते वृद्ध व्यक्ति ने अकेले ही पूरा पेड़ हटा दिया। गौतम ने उस व्यक्ति से कहा आपका धन्यवाद अपने मेरी प्राण रक्षा की है परन्तु आपको कैसे पता की मैं यहाँ फसा हुआ हूँ ये आपको कैसे पता चला? इस पर वृद्ध व्यक्ति ने उत्तर दिया की तुमने ही तो मुझे बुलाया था तो मैं आ गया। उसके बाद कुछ ही देर बाद वृद्ध व्यक्ति वहाँ से जाने लगा तब गौतम ने देखा की जाते व्यक्ति मैं एक अलग प्रकार का तेज नज़र आ रहा है , ओर चलते चलते व्यक्ति लुप्त हो गया।
तब गौतम को याद आया की उसने तो बजरंग बलि से मदद मांगी थी तब उसे ज्ञात हुआ की यह व्यक्ति कोई साधारण व्यक्ति नहीं स्वयं हनुमान जी थे उसने वापस अपने गांव जाकर जिसे यह बात बताई सब हैरान रह गए।