वैकुण्ठ लोक: Lord Vishnu Bhagwan ka Swarg
Lord Bhagwan Vishnu ka swarg – हम एक साधारण मनुष्य जो अपने bhagavan vishnu की आराधना पृथ्वीलोक पर ही करते हैं, लेकिन मन मे हमेशा ये खयाल तो आता ही हैं की हम लग-भग सभी लोग भगवान की आस्था लगाए बैठे हैं, लेकिन कभी ये जानने की कोशिश नहीं करी की आखिर जिन भगवान की पूजा हम करते हैं आखिर उनका स्थान कहा हैं या उनका लोक कहा हैं? अगर है तो कितना दूर होगा इस पृथ्वीलोक से? और क्या हम कभी पहुच भी पाएंगे या नहीं?
तो चलिए आज की इस पोस्ट मे हम यही जानने की कोशिश करते हैं आखिर वैकुण्ठलोक जिसे भगवान विष्णु का स्थान भी कहा जाता हैं, वह पृथ्वीलोक से आखिर हैं कितना दूर हैं? और हम मनुष्य कभी वह जा भी सकते हैं?
Lord Vishnu Bhagwan के आसपास के लोक: पृथ्वीलोक के बाहर की दुनिया के रहस्य
हम सभी के मन मे पहला खयाल यही हैं, क्या पृथ्वी लोक के अलावा भी कोई और लोक हैं? स्वर्ग लोक, वैकुण्ठ लोक और अन्य लोक आखिर कैसे दिखते होंगे।
हमे पहले यह समझने की जरूरत हैं की हम एक मनुष्य हैं जिसके जीवन की शुरुआत और अंत सब पृथ्वी पर ही होती हैं। और पृथ्वी से बाहर की किसी भी चीज को न हम सुन सकते हैं और न ही महसूस कर सकते हैं। हम मनुष्य के जीवन की जहां शुरुआत हुई हैं वही इसका अंत होना निश्चित हैं।
और अगर अब हम बात करे अन्य लोक की तो यह बस हमारे श्रद्धा और भक्ति पर निर्भर करता हैं क्युकी कहते है न, मानो तो पत्थर मे भगवान हैं और न मानो तो वह बस बेजान पत्थर हैं। इसलिए भक्ति और श्रद्धा ही इंसान को यकीन दिला सकती हैं की पृथ्वीलोक के अलावा भी अन्य लोक अस्तित्व करते हैं।
Vaikunth Lok : अदूरी जगह, पृथ्वी के बाहर का भगवान का आवास
तो अब हम जानते हैं की यह अन्य लोक पृथ्वी से कितनी दूरी पर हैं लेकिन याद रहे हैं, यह कोई स्पष्ट दूरी नहीं हैं यह सारी जानकारी प्राचीन हिन्दू ग्रंथों के प्रमाड़ो के अनुसार ही है। और हम आपको उन सभी लोको की स्थान की दूरी बताने जा रहे हैं।
भगवद पुराण के अनुसार वैकुण्ठ का स्थान ध्रुव तारे की ओर है जिसे उरसा लघु नक्षत्र भी कहा जाता हैं साथ ही इसे ध्रुव लोक भी कहा जाता हैं। इसकी दूरी पृथ्वी से लग भग 433 प्रकाश वर्ष दूर हैं, जिसे अगर किलोमीटर मे नापे तो यह हैं चार पद्म दस नील चालीस खरब मतलब अगर 4 के आगे 15 शून्य लगाओ तो इतनी दूरी बनती हैं।
इसके बाद अगर हम ध्रुव लोक के ऊपर 1 करोड़ योजन यानी 12 करोड़ 29 लाख 53 हजार 881 किलोमीटर जाते हैं तो, हम माहर लोक पहुच जाते हैं, जो स्वर्ग लोक का ही हिस्सा हैं। इस लोक मे वही आत्मा जाती हैं जो साधारण मनुष्य की आत्मा होती हैं जिन्होंने अपने जीवन मे कोई बुरे कर्म न करे हो, एक अच्छा साधारण जीवन काटा हो। एसे लोगों की ही आत्मा इस लोक मे जाती हैं और शांति प्रदान करती हैं।
जन लोक और तपो लोक: आत्मा के सफल यात्रा की दूरी
माहर लोक के उपर आता हैं जन लोक जो 2 करोड़ योजन यानी 24 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर हैं। इस लोक मे वही आत्मा जाती हैं जिसने अपना जीवन किसी अच्छे काम और किसी अच्छे इंसान के लिए त्याग दिया हो। इस लोक मे देव लोक के अन्य देवो को देखना प्राप्त होता हैं।
जन लोक के नीचे आता हैं, तपो लोक जिसमे चार कुमार, सनत, सनातन, सनंदन और सनत्कुमार रहते हैं। इन चारों कुमारों को विष्णु का पहला अवतार माना जाता है। और यह जन लोक से 8 योजन की दूरी पर हैं यानी 98 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर हैं, और यहाँ सिर्फ साधु, संत ऋषि मुनि जैसे व्यक्तियों की आत्मा ही आ सकती हैं जिन्होंने अपने जीवन के सभी दुख, खुशियों और परिजनों का त्याग कर सिर्फ Ishwar ki bhakti मे नील हो गए हो।
Aatma की अनंत यात्रा: Satyalok aur vaikunth lok के अद्वितीय विश्व
तपो लोक के बाद आता हैं सत्यलोक जो तपो लोक से 12 योजन की दूरी यानि 1 खरब 47 लाख करोड़ की दूरी पर है। इस लोक मे जो भी आत्मा जाती हैं वह कभी संसार मे वापिस नहीं आती, वह हमेशा के लिए सत्यलोक मे अनंत काल तक रहती हैं।
इसके बाद सत्यलोक के ऊपर आता हैं, वैकुण्ठ लोक जो इस ब्रह्मांड का अंतिम सत्य हैं, यहाँ पर जो आत्मा जाती हैं वह सदेव vishnu bhagwan और laxmi ji की सेवा मे अपना जीवन काटते हैं। जब आप वैकुंठ पहुंच गए हैं, तो इसका मतलब है कि आपने जन्म और मृत्यु के चक्र से मोक्ष या मुक्ति प्राप्त कर ली है। इसलिए हम हमेशा, अनंत काल तक वहीं रहेंगे।
और अब हम अगर इन सभी लोको की दूरी मापे तो यह पृथ्वी से लग भग चार पद्म दस नील चालीस खरब तीन अरब पंद्रह करोड़ अठहत्तर हजार चार सो चवालीस किलोमीटर, होती हैं।
आध्यात्मिक यात्रा: कर्मों का मार्ग वैकुण्ठ लोक तक
अगर हम आज के तकनीकी से जाए तो लग भग 12 लाख साल का समय लग जाएग। जो जाहीर करता हैं हम इंसान वहा एसे तो कभी नहीं पहुच सकते। और हम कभी भौतिक रूप से कभी वहाँ नहीं पहुच सकते, लेकिन हम आध्यात्मिक रूप से कुछ पलों मे वहाँ पहुच सकते हैं।
और यहाँ पहुचने के लिए हमारे जीवन के कर्मों का अच्छा होना जरूरी हैं, हमारे कर्म अगर अच्छे हैं तो भगवान स्वयं हमे वहा तक लेके जा सकते हैं। इसलिए अच्छे कर्म किए जाओ फल की चिंता मत करो।
Vishnu Bhagwan Ki katha | Story of Lord Vishnu
गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है. इस पूजा से परिवार में सुख-शांति रहती है. जल्द विवाह के लिए भी गुरुवार का व्रत किया जाता है…
विष्णु ब्रह्मांड के संरक्षक और रक्षक हैं। उनकी भूमिका कठिन समय में पृथ्वी पर लौटने और अच्छे और बुरे के संतुलन को बहाल करने की है। अब तक, उनका नौ बार अवतार हो चुका है, लेकिन हिंदुओं का मानना है कि वह इस दुनिया के अंत के करीब आखिरी बार पुनर्जन्म लेंगे।
हजारों फन वाले महान नाग आदिशेष की कुंडलियों से बने बिस्तर पर, जिसके अनंत आयाम हैं, विष्णु वैकुंठ के दूधिया पानी में निवास करते हैं। उनकी पत्नी, देवी लक्ष्मी, उनकी देखभाल करती हैं। समुद्र आनंद और चेतना का प्रतिनिधित्व करता है, साँप समय, विविधता, इच्छा और भ्रम का प्रतिनिधित्व करता है, और देवी लक्ष्मी भौतिक दुनिया और रचनात्मक शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। विष्णु को गहरे नीले बादल के रंग से दर्शाया जाता है।
यह आकाश का रंग है, जो उनके ब्रह्मांडीय आयामों, गरज और बारिश के वैदिक देवताओं के प्रति उनकी आत्मीयता और साथ ही पृथ्वी से उनके संबंध को दर्शाता है। उन्हें आमतौर पर एक चेहरे, चार भुजाओं और या तो खड़े या आराम की स्थिति में दिखाया जाता है।
Lord Vishnu Avatars | Bhagwan Vishnu ke Avatar
- पहला अवतार : बाइबिल के नूह के हिंदू संस्करण, संत वैवस्वत को विष्णु ने अपने मत्स्य या मछली अवतार (या इसके विपरीत) में बचाया था।
- दूसरा अवतार : समुद्र मंथन के समय, विष्णु ने कूर्मा (या कूर्मा) के रूप में अपनी पीठ को मंदरा पर्वत के लिए धुरी के रूप में प्रस्तुत किया, जिसका उपयोग देवताओं और राक्षसों द्वारा मंथन की छड़ी के रूप में किया गया था।
- तीसरा अवतार : विष्णु के वराह अवतार के रूप में, उन्होंने राक्षस हिरण्याक्ष को परास्त किया, चुराए गए वेदों को पुनः प्राप्त किया और पृथ्वी को समुद्र की गहराई से मुक्त कराया।
- चौथा अवतार : एक प्राणी के रूप में जो आधा शेर और आधा आदमी था, नरसिंह, जिसे शेर अवतार के रूप में भी जाना जाता है।
- पांचवां अवतार : बाली, एक राक्षस जिसने पृथ्वी पर कब्ज़ा कर लिया था, बौने अवतार वामन से हार गया था।
- छठा अवतार : परशुराम, उन्होंने पवित्र गाय कामधेनु को चुराने के लिए राजा कार्तवीर्य को हराया था, जिसमें सभी इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति थी।
- सातवां अवतार : राम: उन्होंने सीता के अपहरणकर्ता, राक्षस राजा रावण को हराया।
- आठवां अवतार : मथुरा के अत्याचारी शासक और राक्षस पुत्र कंस को कृष्ण ने हराया था।
- नौवां अवतार: बुद्ध : दुनिया में दुख को खत्म करने के लिए विष्णु ने मानव रूप धारण किया।
- दसवां अवतार : कलियुग, या पतन के वर्तमान युग के अंत में, विष्णु सफेद घोड़े पर सवार होकर अपने दसवें अवतार कल्कि के रूप में पृथ्वी पर प्रकट होंगे।
Vishnu Ji ki Aarti | Vishnu Bhagwan ki Aarti
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥
आज की पोस्ट मे बस इतना ही, आशा करते आज की यह पोस्ट आप सभी को अच्छी लगी होगी।