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    Home » The Battel of Gokul,1757 | अफगानी सेना को हराने वाला खौफनाक धर्म युद्ध
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    The Battel of Gokul,1757 | अफगानी सेना को हराने वाला खौफनाक धर्म युद्ध

    VikashBy VikashNovember 24, 2023Updated:November 24, 2023
    Dharm yudh
    Dharm yudh
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    धर्म युद्ध | Dharm yudh

    युद्ध, कितना खौफनाक शब्द हैं, लेकिन यह शब्द एक समर्थन और साहस का प्रतीक है। हमारे भारत देश मे भी इतिहास मे युद्ध के विभिन्न प्रकार देखने को मिलते हैं, और उन युद्धों ने हमारे जीवन पर कितना गहरा असर डाला और अन्य देशों ने हमारे भारत से कितना कुछ छीना यह तो हम भली भाति जानते हैं। (Naga Sadhus)

    युद्ध का एक ही दृष्टिकोण हैं, सिर्फ तभाई! लेकिन अतीत मे एक ऐसा भी युद्ध हुआ था जिसे किसी सैनिकों या किसी जनता के सहारे नहीं जीता गया, बल्कि यह जीत भगवान शिव के अखंड भक्त भस्म धारी नागा साधु द्वारा जीता गया था। जिनकी संख्या युद्ध मे कुल 4000 थी और दुश्मनों की अफगानी सेना 40,000 थी। उन नाग साधुओ ने 15,000 से ज्यादा दुश्मनों को मार गिराया था।

    महज ये एक काल्पनिक कहानी लग रही होगी। लेकिन यह वास्तविक घटना हैं। आज के इस लेखन में हम आप सभी को एक ऐसे धर्म युद्ध के बारे मे बताएंगे, जिसे भसम धारी नाग साधु ने धर्म हेतु अपनी मात्रभूमि की रक्षा के लिए जीता था।

    Naga Sadhus
    Naga Sadhus

    सन 1756 मे जब अहमद शाह आबदली ने भारत की भूमि पर अपना चौथा आक्रमण किया था तब उसने दिल्ली को अपना निशाना बनाया और पूरे एक माह तक दिल्ली मे रुका। आबदली की सेना ने दिल्ली को लूटा, वहाँ की स्त्रीयो का शोषण किया, लोगों को काटा, और छोटे छोटे बच्चों को अन्य देशों मे बेचा। ऐसा कर उसने पूरी दिल्ली को तहस नहस कर दिया।

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    उसके बाद अहमद शाह आबदली ने अपनी सेना को यह हुकूम देते हुए कहा की “आगरा, वृंदावन, मथुरा, महाबन और गोकुल मे अपना आतंक मचा दो, हर तरफ लूट पाट मचा दो और रास्ते मे जो मिले उसे तलवार से बीच मे से काट डालो” यह कहकर अहमद शाह आबदली ने अपने सेनापति सरदार खान को आदेश देते हुए, सेना को रवाना किया।

    रास्ते मे जहा जहा अहमद शाह आबदली की सेना ने कदम रखा वहाँ से लोगों की दर्द भरी चीखे घुनजने उठी, आगरा तक के हर कस्बे और शहर को तहस नहस करने के बाद। इनके खौफ की आवाज दूर दूर तक गूंज उठी और खौफ की यह गूंज देश के अलग अलग स्थानों पर स्थित नागा साधुओ के कानों तक जा पहुची।

    ऐसे मे सभी नागा साधु मथुरा से 9-10 किलोमीटर दूर, यमुना पार श्री कृष्ण के पालन गाव गोकुल पहुचने का फैसला किया। कई हजारों की संख्या मे नागा साधु दिल्ली से कई गुना ज्यादा दूर थे। अहमद शाह आबदली की सेना भी धीरे धीरे आगे बड़ रही थी।

    आगरा को तहस नहस करने के बाद, अहमद शाह आबदली की सेना वृंदावन और मथुरा पहुँची। और उन्होंने वहाँ भी वही किया जिनका उन्हे आदेश मिला था, सेना ने पूरे वृंदावन और मथुरा की गलियों को खून से लाल कर दिया। लोगों ने अपनी जान बचाने की बहुत कोशिश करी लेकिन वह अफगानी आक्रमणकारिओ से बच न सके, कुछ स्त्रीयो ने अपने चिर हरण से और दूसरे देश मे बेचे जाने के डर से आत्महत्या कर ली। वृंदावन और मथुरा को पूरी तरह दवस्त करने बाद। अफगानी सेना महाबन की ओर बड़ने लगी, लेकिन तभी सेना के सेनापति सरदार खान ने पहले गोकुल को तहस नहस करने का सोचा और अपनी सेना को आदेश देते हुए गोकुल की ओर रवाना हो चला।

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    मथुरा से गोकुल लग भग 10 किलोमीटर दूर था, और अभी गोकुल मे 10,000 मे से सिर्फ 4000 नागा साधु (Naga Sadhus) ही पहुचे थे। जैसे ही अफ़गान की आक्रमण सेना यमुना तट तक पहुची तब उन्होंने देखा की त्रिशूल और तलवार लिए 4000 भसम धारी नागा साधु ((Naga Sadhus) जो अपनी मात्रभूमि की रक्षा हेतु चट्टान की तरह खड़े हुए हैं। अफगानी सेना के सेनापति सरदार खान ने नागा साधुओ को कमजोर समझ कर आक्रमंड कर दिया।

    तब हर हर महादेव के नाम से शुरू हुआ एक भयंकर युद्ध जिसकी कल्पना अफगानी सेना तक ने नहीं की थी। सम्पूर्ण रणभूमि महादेव के रण-हुंकार गूंज उठी। युद्ध इतना भयंकर था की मानो महादेव स्वयं तांडव कर रहे हो। अफगानी सेना ने नागा साधुओ को कमजोर समझ कर सबसे बड़ी गलती करी। अफगानी सेना ने अपने सामने चीता की भस्म से सने जटाधारी विकराल रूप साधु देख थर थर कापने लगे, और तलवार और त्रिशूल लिए सभी साधु अफगानी सेना मे घुस गए। सभी नागा साधु अफगानी सैनिकों के खून से रणभूमि को हर हर महादेव का नारा लिए लाल कर रहे थे वही अफगानी सैनिकों की चीखे गूंज रही थी।

    युद्ध भूमि इतनी भयंकर हो चुकी थी की युद्ध को रोक पाना अब असंभव हो चुका था, और धीरे धीरे और नागा साधु युद्ध मे शामिल हुए जा रहे थे। अफगानी सेना ने भी अपना पूरा बल लगाया लेकिन वह साधुओ के मानसिक और शारीरिक बल के सामने टिक नहीं पाए। और एक एक कर रणभूमि मे दवस्त होने लगे। एक एक साधु अकेले अफगानी सेना के 8-10 सैनिकों को मार गिरा रहे थे।

    और यह सब इतनी तेजी हो रहा था की कुछ ही वक्त मे पूरी अफगानी सेना के कुछ सैनिक युद्ध भूमि छोड़ भागने लगे। नागा साधु भी अपनी जिद्द पर आड़े रहे और अफगानी सैनिकों को पकड़ पकड़ कर मार गिराने लगे। रणभूमि पूरी तरह लाशों और खून से भर गई थी। युद्ध इतना विकराल हो चुका था की अब युद्ध लाशों के ऊपर होने लगा था।

    युद्ध मे अभी तक अफगानी सेना के लग भग 15,000 सैनिक मारे जा चुके थे, आखिर मे जब अफगानी सेना के लिए विजय की कोई आशा नहीं बची, तब अफगानी सेना के सेनापति सरदार खान ने सेना को पीछे हटने के आदेश दिए गए। सभी सैनिक अपने घायल साथियों को वही रणभूमि मे मरता छोड़ पीठ दिखा कर वहाँ से भाग खड़े हुए।

    यह अहमद शाह आबदली के लिए शर्मनाक हार थी, वह केवल 4000 नागा साधुओ (Naga Sadhus) से हार गए। जिसमे उन्होंने लग भग अपने 15,000 सैनिक गवा दिए। दूसरी ओर अगर बात की जाए तो 2000 नागा साधू वीरगति को प्राप्त हुए थे।

    इस युद्ध  का परिणाम आने वाले कई सालों तक देखा गया, जब भी किसी मुस्लिम आक्रमणकारी को मालूम चलता की युद्ध मे साधु भी शामिल हो रहे हैं, तो वह लड़ते नहीं थे। ऐसे साधुओ को हमारी ओर से उन्हे शत शत नमन हैं।

    नागा साधु और औरंगजेब में युद्ध | naga sadhus vs aurangzeb

    1669 में जब औरंगजेब ने वाराणसी पर दूसरी बार हमला किया, तो नागा साधुओं ने अपनी आखिरी सांस तक जवाबी कार्रवाई की होगी। स्थानीय लोककथाओं और मौखिक आख्यानों के अनुसार, लगभग 40,000 नागा साधुओं ने काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की रक्षा करते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया।

    Sadhus
    Sadhus

    नागा साधु कौन हैं? | Who are the Naga Sadhus?

    नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं जो उनके लिए ठंड से निपटने में मददगार साबित होते हैं। वे अपने विचार और खानपान, दोनों में ही संयम रखते हैं। नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे हैं। त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से वे अपने सैन्य दर्जे को दर्शाते हैं।
    naga-sadhu-wearing-rudraksha

    naga-sadhu-wearing-rudraksha

    नागा साधु कपड़े क्यों नहीं पहनते? | किन कारणों से वस्त्र नहीं पहनते नागा साधु

    नागा साधु (naga sadhus) प्रकृति और प्राकृतिक अवस्था को महत्व देते हैं. इसलिए भी वे वस्त्र नहीं पहनते. नागा साधुओं का मानना है कि इंसान निर्वस्त्र जन्म लेता है अर्थात यह अवस्था प्राकृतिक है. इसी भावना का आत्मसात करते हुए नागा साधु हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं.

    नागा बाबा किसकी पूजा करते हैं?

    नागा साधु भगवान शिव और दत्तात्रेय के साथ अनिवार्य तौर पर करते हैं. ऋषि अत्रि और भगवान दत्तात्रेय की माता का नाम अनुसूया है.

    नागा साधु और अघोरी में क्या अंतर है?

     नागा साधु और अघोरी दोनों में बहुत सी समानताएं हैं लेकिन दोनों में मूलभूत अंतर भी है। कभी-कभी जनता दोनों को एक ही समझ बैठती है लेकिन ऐसा है नहीं। नागा साधु निर्वस्‍त्र रहते हैं लेकिन अघोरियों के लिए वस्‍त्र पहनने या न पहनने का कोई नियम नहीं है।
    Naga sadhus at the kumb mela
    Naga sadhus at the kumb mela

     

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