मुंडमालाघाट की लड़ाई | The Battle Of Mundamala Ghat
Mundamala Ghat Battle : तो दोस्तों आज के बेहद खास लेखन मे हम एक ऐसे महान वीर योद्धा के युद्ध के बारे मे जानेंगे, जिन्होंने इतिहास मे माँ काली को भेट मे असली इंसानों के सर की बनी मुंडमाला चडावे मे दी थी।
यह कहानी हैं सन 1575, जब भारत मे मुगलों का शासान काफी तेजी से बढ़ता जा रहा था। उस समय बिष्णुपुर राज्य बंगाल क्षेत्र मे अद्वितीय गौरव पर खड़ा था। उस वक्त भारत मे अफ़गान आक्रमणकारी सोलेमान खान करानी का शासन चल रहा था। वह पूरे बंगाल को हराना चाहता था, लेकिन उससे पहले ही सोलेमान खान करानी के एक लापरवाह बेटे दाऊद खान करानी ने बंगाल मे स्थित बिष्णुपुर पर लग भग एक लाख से अधिक पठान सैनिकों की विशाल सेना लिए बिष्णुपुर की ओर बढ़ गया।
इसकी भनक बिष्णुपुर के राजकुमार हमीर मल्ले देव को हुई, उस समय हमीर मल्ले देव मल्ल भूमि की कुलदेवी माँ मृणमयी यानि माँ काली की पूजा कर रहे थे। पूजा को पुन: करके हमीर मल्ले देव ने अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार किया। तब तक बहुत देर हो चुकी थी, आक्रमणकारीयो ने बिष्णुपुर मे बसे रानीसागर नामक छोटे से गाँव मे तब तक हमला कर चुके थे। लाखों की सेना ने जब रानीनगर मे हमला किया। तो वहाँ के लोगों मे भगदड़ मच गई और लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भागने लगे।
रानीनगर को दवस्त करने के बाद, आक्रमणकारीयो ने अपनी सेना को राजकुमार हमीर मल्ले देव के किले की ओर मोड दी। वैसे बिष्णुपुर साम्राज्य में कुल बारह किले थे, जिनमें से एक मुंडमाल किला था। और यह युद्ध इसी किले के सामने हुआ। हमीर मल्लो देव ने अपनी सेना के साथ युद्ध मे उतर गए। दोनों पक्षों के बीच धमासान युद्ध छिड़ गया, सम्पूर्ण रणभूमि पठान सैनिको की चीखो से गूंज उठी। युद्ध इतना भयंकर था की भारी संख्या मे पठान सैनिक की लाशे जमीन पर दवस्त होने लगी और युद्ध उन्ही लाशों के ऊपर होने लगा। राजकुमार हमीर मल्ले देव और उनके सैनिको ने आक्रमणकारीयो को इतनी क्रूरता से मारा की इसका अंदाजा इस तरह लगाया जा सकता हैं की, किले के पूर्वी द्वार पठान सैनिकों की लाशों से भर गया। लंबे समय युद्ध चलने के बाद आखिर मे जीत बिष्णुपुर के राजकुमार हमीर मल्लो देव की हुई।
लाशों का भारी ढेरा हटाने से पहले हमीर मल्लो देव ने पठान सैनिकों की लाशों का सर काट कर मुंडमाला बनाई और उसे दानव संहारक माँ मृणमयी देवी को उपहार के रूप मे चड़ाई। तभी से इस युद्ध को मुंडमाला घाट युद्ध/ Mundamala Ghat Battle के नाम से जाना जाने लगा।
मुंडमालाघाट की लड़ाई | The Battle Of Mundamala Ghat
बंगाल प्रांत के अधिकांश भाग अभी भी इस्लामी आक्रमण से वंचित थे। गौर में अफगान आक्रमणकारी सोलेमान खान कर्रानी के शासनकाल के दौरान, बिष्णुपुर का राज्य बंगाल के रार क्षेत्र में एक अद्वितीय गौरव पर खड़ा था। सुलेमान के लापरवाह बेटे दाऊद खान कर्रानी ने पूरे बंगाल पर आक्रमण करने का सपना देखा। 1575 ई. में दाऊद खान ने 1,00000 पठान सैनिकों की विशाल सेना के साथ बिष्णुपुर पर हमला किया। श्रद्धेय फकीर नारायण कर्मकार महाशय लिखते हैं – “दाऊद खान अचानक एक लाख से अधिक सैनिकों और समान गोला-बारूद के साथ बिष्णुपुर के पास रानीसागर नामक गाँव में आया और डेरा डाला।” बर्बर आक्रमणकारियों ने मूल आबादी के एक बड़े हिस्से का नरसंहार किया और कई लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया। दाऊद खान की लाखों की सेना के अचानक हमले से रानीसागर के लोग शर्मिंदा हो गये।