भगवान श्रीकृष्ण के 80 पुत्रों का रहस्य। भगवान श्रीकृष्ण के बाद क्या हुआ उनके पुत्रों का। वहीं कितनी पत्नियां थी भगवान श्रीकृष्ण की। और क्या उनके यादव वंश से आज भी है क्या कोई जीवित। भगवान विषणु जी ने धरती पर बढ़ रही बुराइयों और लोगों के साथ हो रहे अत्याचारों का अंत करने के लिए समय-समय पर मनुष्य रुप में जन्म लिया। और अपना पृथ्वी पर एक आम नागरिक की तरह ही जीवन व्यतीत कर बुराइयों का अंत किया। भगवान विष्णु जी का आठवां और आखिरी अवतार जोकि उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के रुप में लिया था। भगवान श्रीकृष्ण जिन्होंने कंस का वध किया, जिनके नेतृत्व से महाभारत की दिशा ही बदल गई। कौरवों का पलड़ा भारी होते हुए भी महाभारत(Mahabharat Story) का युध्द जीते पांडव ही। तो इस वीडियो में हम भगवान श्रीकृष्म से जुड़ी कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बात करेंगे। जिनके बारे में शायद ही आपको पता हो। वैसे तो आप सब को पता ही होगा भगवान श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थी।
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जिनमें रूकमणी,रुक्मिणी,सत्यभामा,जाम्बवती,कालिंदी,नागर्जुनी, भद्रा, लक्ष्मणा, मित्रविंदा शामिल थी। वहीं आपको बता दें कि भगवान श्रीकृष्ण को इन आठ पत्नियों से 80 पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।लेकिन अब सवाल यह उठता है कि भगवान श्रीकृष्ण के देह त्यागने के बाद उनके इन पुत्रों का क्या हुआ।तो आपको इस बारे में हम विस्तार से बताते है। जैसा कि आप सभी को पता है कि महाभारत(Mahabharat Story) के समय माता गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को श्राप दिया था। उसी श्राप का नतीजा था कि भगवान श्रीकृष्ण के देह त्यागने के बाद उनके पूरे कुल का नाश हो गया । जहां भगवान श्रीकृष्ण के देह त्यागने से पहले ही उनके सभी पुत्र बलि चढ़ चुके थे। यदुवंश आपस में लड़ कर ही मर चुका था। जहां एक तरफ स्वयं गांधारी का दिया हुआ श्राप काम कर रहा था। तो वहीं उनकी दूसरी पत्नी जो कि स्वयं जाम्बवंती थी जिनसे उसे साम नामक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। जो कि बहुत अन्यायी था। जिससे की उनके कुल को एक और श्राप मिला था।
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बता दें कि महाभारत( Mahabharat Story)युद्ध की समाप्ति के बाद जब युधिष्ठर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया की जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा। गांधारी के श्राप से विनाशकाल आने के कारण श्रीकृष्ण द्वारिका लौटकर यदुवंशियों को लेकर प्रयास क्षेत्र में आ गये थे। यदुवंशी अपने साथ अन्न-भंडार भी ले आये थे। कृष्ण ने ब्राह्मणों को अन्नदान देकर यदुवंशियों को मृत्यु का इंतजार करने का आदेश दिया था। कुछ दिनों बाद महाभारत-युद्ध की चर्चा करते हुए सात्यकि और कृतवर्मा में विवाद हो गया। सात्यकि ने गुस्से में आकर कृतवर्मा का सिर काट दिया। इससे उनमें आपसी युद्ध भड़क उठा और वे समूहों में विभाजित होकर एक-दूसरे का संहार करने लगे। इस लड़ाई में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न और मित्र सात्यकि समेत सभी यदुवंशी मारे गये थे, केवल बब्रु और दारूक ही बचे रह गये थे। यदुवंश के नाश के बाद कृष्ण के ज्येष्ठ भाई बलराम समुद्र तट पर बैठ गए और एकाग्रचित्त होकर परमात्मा में लीन हो गए। इस प्रकार शेषनाग के अवतार बलरामजी ने देह त्यागी और स्वधाम लौट गए।