कौन थे काकभुशुण्डि। Kon the Kakbhushundi
Kakbhushundi Story – आखिर कौन थे काकभुशुण्डि और क्या है उनकी कहानी। किसने और क्यों दिया था उन्हें श्राप, माता सीता को रावण के चंगुल से छुटाने में कैसे की थी काकभुशुण्डि (kakbhushundi) ने भगवान राम की मदद। आखिर क्यों लेना पड़ा था उन्हें 1000 बार जन्म। क्यों काकभुशुण्डि पर क्रोधित हुए थे भगवान शिव।
काकभुशुण्डि गरुड़ संवाद | Kakbhushundi garud sanvaad
संत तुलसीदास ने रामचरण मानस के उत्तरकांग में लिखा है कि काकभुशण्डि परमज्ञानि राम भक्त है।जब भगवान राम माता को रावण से बचाने के लिए लंका आए थे। तब रावण के पुत्र मेघनाथ से उनका युद्ध किया था। युद्ध के दौरान एक ऐसा समय आया जब मेघनाथ ने भगवान राम को नागपाश से बांध दिया था। देवर्षि नारद के कहने पर गरुड़ जोकि सर्वभख्शी थे। जिन्होंने नागपाश के सभी नागों को प्रताड़ित कर भगवान राम को नागों के बंधन से छुटाया। लेकिन वहीं भगवान राम के नागपाश से बंध जाने के कारण गरुड़ को भगवान राम के परमब्रह्म होने पर संदेह हो गया। गरुड़ के इस संदेह को दूर करने के लिए देवर्षि नारद ने गरुड़ को भगवान ब्रह्म जी के पास भेजा। वहीं ब्रह्म जी ने कहा कि तुम्हारा संदेह भगवान शिव दूर सकते है। वहीं भगवान शिव ने भी गरुड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए काकभुशण्डि के पास भेज दिया। अंत में काकभुशुण्डि जी ने भगवान राम जी के चरित्र पवित्र कथा गरुड़ को सुनाई और गरुड़ के संदेह को दूर किया। भगवान राम के प्रति उनके संदहे को समाप्त करने के बाद काकभुशुण्डि (kakbhushundi) जी ने गरुड़ को स्वयं की कथा सुनाई।
काकभुशुण्डि की कहानी?। Kakbhushundi ki kahani ( Kakbhushundi Story)
Kakbhushundi Story- काकभुशुण्डि (kakbhushundi) जी का प्रथम जन्म अयोध्यापुरी में क्षुद्र के घर हुआ। अपने उस जन्म में वह भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। किंतु अभिमानपूर्वक अन्य देवताओं की निंदा करते थे। एक बार अयोध्या में अकाल पड़ गया। उस समय काकभुशुण्डि जी अयोध्या छोड़ उज्जेन चले गए। वहां वह एक दयालु ब्रह्माण की सेवा करने लगे और उनके ही साथ रहने लगे। उन्होंने काकभुशुण्डि को भगवान शिव जी का मंत्र दे दिया। भगवान शिव जी का मंत्र पाकर उसका अभिमान और बढ़ गया। वह भगवान विष्णु से द्रोह करने लगा। उनके गुरू ब्रह्माण ने इस बात से दुखी होकर काकभुशुण्डि (kakbhushundi)को भगवान श्री राम की भक्ति का उपदेश दिया। एक बार उस क्षुद्र ने भगवान शिव के मंदिर में अपने ही गुरू का अपमान कर दिया। जिसने बाद भगवान शिव ने आकाशवाणी कर उसे श्राप दिया और कहा कि हे पापी तुने अपने गुरू का अपमान किया है इसलिए तु सर्प की अधर्म योनि में चला जा।सर्प योनि के बाद तुझे एक हजार बार अन्य योनियों में जन्म लेना पड़े।
गुरू बड़े दयालू थे।इसलिए भगवान शिव सेअपने शिष्य के लिए क्षमा प्रार्थना की। गुरू द्वारा क्षमा याचना करने पड़ भगवान शिव ने आकाशवाणी कर कहा कि हे ब्रह्माण मेरा श्राप व्यर्थ नहीं जाएगा।इस क्षुद्र को एक हजार बार जन्म अवश्य ही लेना पडे़गा।किंतु जन्म में और मरने पर जो दुख होता है वो इसे नहीं होगा। और ज्ञान भी नहीं मिटेगा। इसे अपने प्रत्येक जन्म का स्मरण बना रहेगा। जगत में इससे कुछ भी दुर्लभ नहीं होगा। मेरी कृपा से इसे श्री राम के चरणों के प्रति भक्ति भी प्राप्त होगी। इसके बाद उस क्षुद्र ने विध्यांचल में जाकर सर्प योनि प्राप्त की। कुछ काल बीतने पर उसने उस शरीर को बिना किसी कष्ट के त्याग दिया। वो जब भी कोई भी शरीर त्यागता था उसे बिना किसी कष्ट के त्याग सकता था। अपने प्रत्येक जन्म की याद उसे बनी रहती थी प्रभु श्रीराम के प्रति भक्ति भी उसमें उत्पन्न हो गई थी। अंतिम जन्म उसने ब्रह्माण का पाया। ब्रह्माण हो जाने पर ज्ञान प्राप्ति के लिए लोमस के पास गया। जब लोमस ऋषि उसे ज्ञान देते थे देते थे तो वो उनसे अनेक प्रकार के तर्क-विर्तक करते थे। उसके इस व्यवहार से क्रोधित होकर लोमस ऋृषि ने उसे श्राप दे दिया। कि जा तु चंडाल पक्षी कौआ हो जा।
तब वह तत्काल कौआ बनकर उड़ गया। श्राप देने के बाद लोमस ऋृषि को अपने इस श्राप पर पश्चताप हुआ। और उन्होंने इस कौआ को वापस बुलाकर राम मंत्र दिया।इसी के साथ इच्छा मुक्ति का वरदान भी दिया।कौआ का शरीर पाने पर और भगवान श्री राम का मंत्र मिलने पर उसे अपने कौआ के शरीर से प्यार हो गया, और वह कौआ के रूप में ही रहने लगा।इसी के साथ काकभुशुण्डि (kakbhushundi) के नाम से विख्यात हुए।
महाभारत को 16 बार किसने देखा था?। Who saw Mahabharata 16 times
Kakbhushundi Story – वेदों और पुराणों के अनुसार काकभुशुण्डि (kakbhushundi) ने 11 रामायण और 16 महाभारत देखी हैं। वह कल्प के अंत तक अपने शाश्वत स्वरूप में जीवित रहेगा। भगवान राम ने ही काकभुशुण्डि को अमर बनाया था। कौए के रूप में अपने एक जन्म के दौरान काकभुशुण्डि की मुलाकात बालक राम से हुई। प्रभु खेल रहा था और उसने उसे पकड़ने की कोशिश की। समय आने पर काकभुशुण्डि को भगवान के मुख के दर्शन हुए। अपने मुख में आकाशगंगाओं और ब्रह्मांड को देखने के बाद, काकभुशुण्डि ने भगवान राम से दूर उड़ना बंद कर दिया और उनके पास लौट आए। काकभुशुण्डि ने जगत्नाथ, भगवान राम को न पहचानने के लिए क्षमा मांगी। भगवान ने उन्हें दिव्य मुस्कान दी और काकभुशुण्डि से उनकी इच्छा पूछी। काकभुशुण्डि ने कहा कि वह भगवान राम के प्रति अपनी भक्ति हमेशा-हमेशा के लिए अदा करना चाहते हैं। काकभुशुण्डि के प्रेम और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान राम ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि काल (समय) काकभुशुण्डि (kakbhushundi) को नहीं मार सकता और वह इस कल्प के अंत तक जीवित रहेंगे। संत द्वारा प्राप्त शाश्वत आनंद को “काकभुशुण्डि समय यात्रा” (time travel) कहा जाता है।
काकभुशुण्डि अब कहाँ हैं? | Kakbhushundi ab kaha hai
काकभुशुण्डि ने क्या देखा? | Kakbhushundi Ne kya dekha
Kakbhushundi ने राम के मुख में एक ब्रह्मांडीय दर्शन देखा, जिसमें लाखों सूर्य और चंद्रमाओं का अवलोकन किया, और प्रत्येक दिव्य वस्तु के भीतर अयोध्या में स्वयं ऋषि का दर्शन देखा।