जाने क्या क्या योगदान देंगे 7 चिरंजीवी | 7 Chiranjeevi
अमरता एक वरदान या श्राप, आज के इस युग मे सभी मनुष्य का जीवन बहुत छोटा रह गया हैं। और आज के समय मे इंसान अपनी पूरी उम्र जी ले वही बड़ी बात होती हैं। हर मनुष्य को अपनी उम्र और अपने जीवन काल का समय बहुत छोटे लगता हैं, ऐसे मे कई मनुष्य के मन मे ये खयाल आता हैं की काश वह अमर होते या उनके जीवन काल के समय थोड़े और लंबे होते। (7 Chiranjeevi)
क्यूंकी लोगों को मृत्य से डर लगता हैं, लेकिन क्या हैं मृत्यु? पलके झपकी और सब खत्म। लेकिन इस पृथ्वी पर ऐसे लोग भी हैं जो मृत्यु व समय से चक्र से मुक्त हैं। जी हाँ…! आज हम बात कर रहे हैं उन 7 चिरंजीवियों या यू कहे की उन 7 अमर वियक्तियों की जिन्हे मिला हैं अमर होने का वरदान वरदान।
चलिए जानते हैं आज उन 7 चिरंजीवों के बारे मे और यह कैसे देंगे कलयुग के अंत भगवान कल्कि का साथ।
हम पहले चिरंजवी(Chiranjeevi) की बात करते हैं, परशुराम
परशुराम जो की भगवान विष्णु के छठा (6th) अवतार हैं, परशुराम बहुत ही क्रोधी स्वभाव के थे और वह क्षत्रिय कुल के विरोधी थे । एक बार उनके पिता बहुत क्रोध मे थे, और क्रोध मे परशुराम से कहा की तुम अपनी माता का शीश काट दो।
ऐसे मे परशुराम ने अपनी पिता की बात का आदर किया और अपनी माँ का शीश काट दिया। उनके पिता बहुत प्रसन्न हुए, और कोई भी एक वरदान मांगने को कहा, ऐसे मे परशुराम ने अपनी माता को जीवित करने व उनका शीश जोड़ने का वरदान मांगा। परशुराम के पिता प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम की माता पुनर्जीवित कर दिया और साथ ही परशुराम को पृथ्वी के अंत तक जीवित रहने का वरदान दिया।
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और कलयुग के अंत मे भगवान कल्कि के गुरु बनेंगे और उन्हे 64 महा कौशल विध्याय सिखाने मे मदद करेंगे, जहा दूसरी तरफ भगवान श्री राम के पास 12 और भगवान श्री कृष्ण के पास 24 महा कौशल विध्याय थी वही भगवान कल्कि के पास 64 महा कौशल विधायों के साथ साथ अस्त्र, शस्त्र और दिव्य हथियार चलाने की महारत होगी, इन सभी कौशलताओ को पाने मे परशूराम भगवान कल्कि की मदद करेंगे।
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अब हम दूसरे चिरंजवी(Chiranjeevi) की ओर चलते है, राजा बाली;
राजा बाली जो असुरों के राजा थे, जो काफी शक्तिशाली थे, एक बार उनके गुरु शुक्राचार्य ने उनसे विश्व विजयी यज्ञ करने को कहा, जिससे पूरी पृथ्वी उनके वक्ष मे हो जाती। एसे मे उन्होंने यज्ञ की तैयारी करी तब सभी देवी देवता परेशान हो गए और भगवान विष्णु के पास गए और उनसे मदद मांगी।
भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बाली के पास पहुचे। राजा बाली ने उनका स्वागत किया और उनसे कहा बताइए मैं आपको दक्षिणा मे क्या दे सकता हूँ? तब विष्णु जी ने कहा मुझे ज्यादा कुछ नहीं बस यह 3 पग यानि 3 कदम की धरती चाहिए। राजा बाली खुश हुए और कहा ठीक हैं आपको 3 पग की धरती दे देता हूँ। ऐसे मे विष्णु जी का वामन अवतार बहुत विशाल हो गया और अपने एक कदम से पूरी पृथ्वी और दूसरे कदम से पूरा स्वर्ग लोक नाप लिया। तब राजा बाली को मालूम पड़ा यह तो स्वयं भगवान विष्णु है और भगवान विष्णु ने राजा बाली से पूछा बताओ तीसरा कदम कहा रखू? ऐसे मे राजा बाली ने अपना शीश विष्णु जी के सामने किया और कहा अब आप अपना कदम मेरे शीश पर रख दीजिए।
भगवान विष्णु राजा बाली के इस स्वभाव से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हे अमरता के साथ साथ शितलोक दे दिया।
कलयुग के युद्ध मे राजा बाली अपनी सेना के साथ भगवान कल्कि की मदद करने आएंगे।
अब हम बात करते हैं, तीसरे चिरंजवी(Chiranjeevi) भगवान हनुमान की;
बजरंबली हनुमान, हम सभी ने भगवान हनुमान के बारे मे सुना हैं; और हम सभी जानते हैं हनुमान कौन है और उन्होंने क्या क्या महान कार्ये किए हैं। और वह दूसरों का घमंड तोड़ने और सही रहा दिखने मे सबसे उत्तम हैं। भगवान हनुमान आज के समय मे पृथ्वी पर हमारे साथ ही हैं। जब श्री राम को अपने धाम वापिस जाना था तो उन्होंने हनुमान जी के साथ एक रचना रची जिसमे राम जी ने अपनी एक अँगूठी एक जमीन की दरार मे फेक दी और वह दरार पाताल लोक तक जाती थी। तब भगवान राम ने हनुमान जी को कहा की मेरी यह अँगूठी मुझे ला कर देदो तब हनुमान जी अपने प्रभु के आदेश का पालन किया और दरार मे चले गए। हनुमान जी के जाने के बाद ही श्री राम अपने वैकुंठ लोक जा सके। और हनुमान जी को वरदान मे अमरता का वरदान मिल।
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और कलयुग के अंत भगवान कल्कि की मदद करने उनके सारथी बनकर आएंगे और युद्ध मे उनका अंत तक साथ देंगे।
अब हम बात करते हैं; चौथे चिरंजवी(Chiranjeevi) विभीषण की;
2 भाई एक लालची, हेनकारी, क्रोध से भरा हुआ तो दूसरा उसी का उल्टा शांत स्वभाव, ईमानदार से भरा हुआ। हम बात कर रहे हैं रावण के भाई विभीषण की। रावण का भाई होते हुए भी विभीषण ने सच्चाई और अच्छाई के रास्ते को चुना, विभीषण एक मात्र ऐसा इंसान था जिसने रावण के बुरे कर्मों पर आवाज उठाई और उसे समझाने की कोशिश करी लेकिन रावण ने अपने भाई की एक न सुनी।
तब विभीषण को मालूम पड़ा की जीत तो बस अच्छाई की ही होनी हैं, तो उन्होंने भगवान राम, लक्ष्मण और हनुमान जी का साथ दिया और माँ सीता को रावण की लंका से छुड़ा कर लाए। लेकिन यह कह पाना मुश्किल है की विभीषण को अमरता का वरदान प्राप्त हुआ परंतु जब द्वापरयुग मे युधीक्षतर का राज अभिषेक हो रहा था, विभीषण सहदेव से मिले थे। ऐसे मे माना जाता हैं की विभीषण को अमरता का वरदान प्राप्त हैं।
और माना यह भी जाता हैं जिस विभीषण ने अच्छाई का साथ दिया उसी तरह विभीषण एक बार फिर हनुमान जी के साथ कलयुग के अंत मे अच्छाई का साथ देंगे।
अब बात करते हैं पाँचवे चिरंजवी(Chiranjeevi) की, अश्वतहमा;
गुरु द्रोणाचार्य के बेटे अश्वतहमा जिन्हे अपने पिता के कारण अमर होने का वरदान मिला, वरदान ऐसा जिससे उनका बीमारी, भूख-प्यास और हथियार के हमले भी कुछ नहीं बिग्गाड़ सकते। आगे चलकर उन्होंने दुर्योधन से दोस्ती करी और फिर महाभारत युद्ध मे अपनी अमरता के घमंड के चलते उन्होंने कौरवों का साथ दिया। और उन्होंने इतनी गलतियाँ की श्री कृष्ण ने उनके अमरता के घमंड को श्राप मे बदल दिया। जेसे उनके शरीर से हमेशा गंदी दुर्घनद आएगी और वह हमेशा भूखे प्यासे रहेंगे कोई उनकी मदद नहीं कर पाएगा।
लेकिन कलयुग के अंत तक अस्वतथामा को एहसास हो जाएगा की उन्होंने कितनी बड़ी गलती करी हैं और वह कलयुग के अंत मे अपनी महाभारत यद्ध मे इस्तेमाल करी हुई कौशलताओ का उपयोग कलयुग के महा युद्ध मे करेंगे।
अब हम बात करते हैं, छठे चिरंजवी(Chiranjeevi) वेद व्यास की;
जिन्हे ज्ञान का देवता भी कहा जाता हैं, इन्होंने ही वेदों को 4 भागों मे बाटा हैं, जिसे ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद कहा जाता हैं। इन्हे इस ब्रह्मांड का सबसे सर्वश्रेष्ठ लेखक कहा जाता हैं। इन्होंने ही पहली बार महाभारत को एक किताब मे लिखा था, इन्ही के कारण आज हम महाभारत की हर एक कड़ी को विस्तार से जानते हैं।
अपने जीवन काल मे इन्होंने 18 पुराण लिखी थी, जिसका ज्ञान आज पूरे भारत विश्व मे फैला हुआ हैं। वैसे तो वेद व्यास जी की मृत्यु 116 साल की उम्र मे हो गई थी लेकिन कुछ कथाओ और पुराणों की माने तो यह चिरंजीवी की सूचियों मे भी आते हैं।
माना यह भी जाता हैं, कलयुग मे जब भगवान कल्कि का जन्म होगा तो वह भगवान कल्कि को वेदों व लिखी गई हर एक पुराणों का ज्ञान प्राप्त कराएंगे, जो उनकी युद्ध मे सहायता करेंगे।
अब बात करते हैं, आखिरी सातवे चिरंजवी (Chiranjeevi) कृपाचार्य की;
कृपाचार्य जो की कौरवों ओर पड़ावों के गुरु शिष्य थे। महाभारत युद्ध के सबसे शक्तिशाली योद्धाओ की सूची मे उनका नाम हमेशा आया हैं, एक बार तो उन्होंने महाभारत युद्ध मे अर्जुन से भिषंड युद्ध किया था। वह भले ही युद्ध मे कौरवों के साथ थे लेकिन उन्होंने काभी पांडवों के साथ अन्नाए नहीं किया। उनके इस भाव को देख कर श्री कृष्ण ने उन्हे अमरता का वरदान दिया।
लेकिन अभी वह कहा है और इनका क्या योगदान होगा कलयुग के अंत मे इसकी कोई पुष्टि नहीं हैं।
यह थे आज के सपतचिरंजीवी के बारे मे पूरी जानकारी, आज किस इस विडिओ मे बस इतना ही, मिलते है आबसे अगली विडिओ मे। धन्यवाद!
7 चिरंजीवी के नाम
चिरंजीवी यानी चिर काल तक जीवित रहने वाला। सप्त चिरंजीवी हैं।
- पवनसुत हनुमान
- भगवान परशुराम
- अश्वत्थामा
- कृपाचार्य
- विभीषण
- राजा बलि
- वेद व्यास
चिरंजीवी भव का अर्थ
भगवान विष्णु मतलब होने के कारण चिरंजीवी नाम बहुत सुंदर बन जाता है।
7 चिरंजीवी के नाम shlok
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः।। सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।
इस श्लोक की प्रथम दो पंक्तियों का अर्थ है की अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सात महामानव चिरंजीवी हैं।
7 चिरंजीवी की क्या भूमिका है?
चिरंजीवी शब्द हिंदू धर्म में अमर प्राणियों को संदर्भित करता है। माना जाता है कि वे विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि की मदद करेंगे, जो कलयुग को वापस सतयुग में ले जाएगा। ऐसा माना जाता था कि कलियुग में भगवान के अवतार को मार्गदर्शन और शिक्षा देने में सक्षम कोई शिक्षक नहीं मिलेगा। तो चिरंजीवी बने/बनाए गए.