अंगूठा काटने के बाद क्या हुआ एकलव्य का? | What happened to Eklavya after cutting off his thumb
Eklavya ki kahani : गुरु ने दक्षिणा में अंगूठा मांगा और उस गुरुभक्त एकलव्य (Eklavya) ने बिना भविष्य के परवाह किए अपने अंगूठे को न्योछावर कर दिया। वैसे तो भारतीय उपमहाद्वीप पर गुरु शिष्य परम्परा का प्राचीन इतिहास है,किन्तु एकलव्य के बलिदान ने इस परम्परा को सदा सर्वदा के लिए अमर कर दिया। एकलव्य की इस कहानी (eklavya ki kahani) ने आने वाली पीढ़ी को ना सिर्फ एक सबक दिया,बल्कि एक ऐसी दुविधा भी दे डाली जहाँ लोगों को यह स्वयं तय करना था की इस कहानी में गुरु बड़ा है या शिष्य?
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है,कि आखिर महाभारत की कहानी में एकलव्य को किस बात के लिए याद किया जाए?
एकलव्य (Eklavya) के एक श्रेष्ट धनुर्धर होने के बावजूद,अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहा गया। अंगूठे के साथ अपना भविष्य दान में देने के बावजूद कर्ण को दानी कहा गया। और तो और गुरु द्रोण ने एकलव्य को अपना शिष्य तक नहीं माना,तो फिर वे उसे अपना प्रिय शिष्य कैसे मान लेते? किन्तु एकलव्य की कहानी (eklavya ki kahani) सिर्फ इतनी ही नहीं है। जैसे नदी के बहाव को कोई कितना भी रोक ले,वो अपना मार्ग बना ही लेती है। ठीक उसी प्रकार कटा हुआ अंगूठा,एकलव्य के जीवन का कभी रुकावट नहीं बना और उसने ऐसे ऐसे कारनामे किए जिसे करने में स्वयं अर्जुन तक सक्षम नहीं थे। तो अंगूठा कटने के बाद,कैसे लिया एकलव्य ने अपना बदला?
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क्या एकलव्य ने सिखाया बिना अंगूठे के,उँगलियों से बाण चलने का तरीका? | Did Eklavya teach how to shoot arrows with fingers without thumb?
दोस्तों तीरंदाज़ी भले हीं आज के समय में भी उतनी मशहूर ना हो जितनी महाभारत के काल में हुआ करती थी। किन्तु रामायण और महाभारत के युद्ध में तीरंदाज़ी की बड़ी महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका थी। आज के समय में तीरंदाज़ी एक खेल का रूप ले चूका है और आज हम इसके नए मॉडर्न रूप आर्चरी को जानते हैं।आर्चरी,ओलंपिक्स जैसे बड़े बड़े गेमिंग प्लेटफॉर्म्स में खेला जाता है।
अगर आपने कभी आर्चरी का गेम देखा है,तो क्या आपने कभी इस बात को नोटिस किया है? कि उसमें एरो को चलाने के लिए उँगलियों का प्रयोग किया जाता है,नाकि अँगूठे का। भारत में प्राचीन काल में,धनुष से बाण चलाने के लिए अँगूठे का प्रयोग किया जाता था।
राम,लक्ष्मण,भीष्म,द्रोण,अर्जुन और कर्ण जैसे पौराणिक धनुर्धर भी बाण चलाने के लिए अंगूठे का हीं प्रयोग किया करते थे। तो फिर आर्चरी में ये नई तकनीक कहाँ से आ गई? जहाँ बाण बिना अँगूठे के उँगलियों के प्रयोग से चलाए जाते हैं। आखिर किसने किया इस नई तकनीक का अविष्कार? आइए जानते हैं।
क्या एकलव्य को आधुनिक धनुर्विद्या का जनक माना जाता है? | Is Eklavya considered the father of modern archery?
महाभारत में वर्णित है कि एकलव्य बचपन से धनुष बाण में रूची रखता था,परन्तु उसको धनुर्विद्या सिखाने वाला कोई नहीं था। एक बार एकलव्य (Eklavya) ने जंगल में द्रोणाचार्य को पांडवों को धनुर्विद्या सिखाते हुए देखा और वो भी चुपके से कई दिनों तक द्रोणाचार्य से विद्या सीखता रहा। गुरु द्रोण अर्जुन और अन्य पांडवों को जो विद्या सिखाते,एकलव्य भी रोज छुपकर वो विद्या सीखता रहता था। एकलव्य ने छुप कर धनुर्विद्या की हर तकनीक सीख ली थी। कहा जाता है एक बार एकलव्य (Eklavya) ने एक कुत्ते का मुँह बाणों से भर दिया था,जिसे देख स्वयं गुरु द्रोणाचार्य भी चकित रह गए थे।
द्रोणाचार्य ने एकलव्य से क्या पूछा? । What draunacharya asked to Eklavya
जब गुरु द्रोण ने एकलव्य से उसके गुरु का नाम पुछा तब एकलव्य ने उन्हें बताया की वो किस प्रकार छुप कर धनुर्विद्या सीखा करता था। यह बात तो हम सब जानते हीं हैं कि गुरुद्रोण ने गुरुदक्षिणा में एकलव्य से अंगूठा माँगा और एकलव्य ने दे दिया। लेकिन उसके बाद क्या हुआ ? गुरुद्रोण सिर्फ कुरुवंशियों को शिक्षा दिया करते थे और एकलव्य कुरुवंसज नहीं था। द्रोण ने ये सोंच कर एकलव्य का अंगूठा माँगा था कि अगर अँगूठा नहीं रहेगा ये कभी धनुष बाण नहीं चला पाएगा और अर्जुन से बेहतर धनुर्धर नहीं बन पाएगा। परन्तु शायद गुरु द्रोण यह बात नहीं जानते थे कि बाद में एकलव्य (Eklavya) ने तीरंदाज़ी की एक ऐसी नई कला की शुरुआत कर दी थी,जहाँ बाण बिना अँगूठे के उँगलियों के प्रयोग से चलाए जाने लगे।
क्यों फैलाए गए एकलव्य के बार में झूठ? | Why was the lie spread about Eklavya?
एकलव्य (Eklavya) को आधुनिक धनुर्विद्या का जनक माना जा सकता है। एकलव्य के बारे में यह एक बहुत बड़ा झूठ फैलाया गया है कि वह एक साधारण भील था। एकलव्य कोई निर्धन जंगली व्यक्ति नहीं था। भागवत पुराण के अनुसार एकलव्य अपने पिता हिरण्यधनु की मृत्यु के पश्चात श्रृंगवेरपुर का राजा बना। उसने निषादों को संगठित किया और एक अति शक्तिशाली सेना बनाई।
एकलव्य अपने राज्य की सीमा के विस्तार में जुट गया। उसके पिता जरासंध के ध्वज के नीचे शासन करते थे। एकलव्य (Eklavya) भी अपने पिता का अनुसरण करते हुए,ये जानते हुए भी कि जरासंध पापी है,एकलव्य जरासंध का सहयोगी बन गया। जरासंध ने श्रीकृष्ण की अनुपस्थिति में जो मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया, एकलव्य उन सबमें उसके साथ था। अपनी अद्भुत धनुर्विद्या से उसने मथुरा की सेना का बहुत अहित किया।
जब जरासंध ने मथुरा पर 18वीं और अंतिम बार आक्रमण किया उस समय भी एकलव्य (Eklavya) उसके ही साथ था। उस युद्ध में जब श्रीकृष्ण ने जब एकलव्य को केवल दो अँगुलियों से अद्भुत निपुणता से बाण चलाते देखा तो वे हैरान रह गए।
महाभारत में एकलव्य की मृत्यु कैसे हुई? । Eklavya mahabharat death
वे समझ गए कि आगे चल कर एकलव्य धर्म स्थापना के मार्ग में अवरोध बन सकता है, इसीलिए उन्होंने उसके वध का निश्चय किया। उन्होंने एकलव्य को युद्ध के लिए ललकारा और एक भारी शिला से उस पर प्रहार किया। उस प्रहार से वहीं युद्धक्षेत्र में ही एकलव्य वीरगति को प्राप्त हो गया।
क्या एकलव्य और कृष्ण संबंधित हैं? । Eklavya and krishna relationship
एकलव्य (Eklavya) के मरने के बाद उसका पुत्र केतुमान निषादों का राजा बना और उसने युधिष्ठिर के बजाय दुर्योधन को अपनी सेवाएं देना उचित समझा। महाभारत के युद्ध में भी उसने कौरवों की ओर से युद्ध किया और अंततः भीम के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ।महाभारत के कुछ संस्करणों में ऐसा कहा गया है कि एकलव्य युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भी आया था किन्तु मूल व्यास महाभारत में ऐसा कोई वर्णन नहीं है। महाभारत के युद्ध के बाद जब सभी पांडव अपनी वीरता का बखान कर रहे थे,तब श्री कृष्ण ने अपने अर्जुन प्रेम की बात स्वीकारी थी। एक जगह श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं
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जब श्री कृष्ण से बदला लेने आया,एकलव्य का बेटा । Who was the son of Eklavya?
एकलव्य (Eklavya) के मरने के बाद उसका पुत्र केतुमान निषादों का राजा बना और उसने युधिष्ठिर के बजाय दुर्योधन को अपनी सेवाएं देना उचित समझा। महाभारत के युद्ध में भी उसने कौरवों की ओर से युद्ध किया और अंततः भीम के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ।महाभारत के कुछ संस्करणों में ऐसा कहा गया है कि एकलव्य युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भी आया था किन्तु मूल व्यास महाभारत में ऐसा कोई वर्णन नहीं है।
एकलव्य पूर्व जन्म में कौन था? । who was eklavya in previous death
महाभारत के युद्ध के बाद जब सभी पांडव अपनी वीरता का बखान कर रहे थे,तब श्री कृष्ण ने अपने अर्जुन प्रेम की बात स्वीकारी थी। एक जगह श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि “तुम्हारे प्राणों की रक्षा के लिए मैंने क्या क्या नहीं किया? घटोत्कच के हाथों कर्ण की शक्ति व्यर्थ की, कर्ण का निःशस्त्र वध करवाया,और तो और स्वयं एकलव्य (Eklavya) का वध भी कर दिया।” तो आपके एकलव्य के विषय में क्या विचार हैं?