महाभारत काल से एक कहावत चलती आ रही है ‘कही की ईठ कही का रोड़ा , भानुमति ने कुनबा जोड़ा’। यह सिर्फ एक कहावत ही नहीं, बल्कि महाभारत के अंत का एक अहम् हिस्सा है। दरअसल यहाँ बात भानुमति की हो रही है, भानुमति जो की दुर्योधन की पत्नी थी।
महाभारत काल में द्रौपदी के बाद भानुमति विश्व सुंदरी के नाम से प्रसिद्द थी, भानुमति काम्बोज के राजा चंद्रवर्मा की पुत्री थी। भानुमति बला की खूबसूरत होने के साथ साथ शारीरिक रूप से बेहद बलवान और दिमागी रूप से बुद्धिमान भी थी, जिन्होंने अर्जुन की बहादुरी और उनके बारे में बहुत सुना था।
वह मन्न ही मन्न अर्जुन को पसंद करने लगी थी और वह अर्जुन से विवाह करना चाहती थी, लेकिन उन्होंने अपनी इस इच्छा को अपने पिता के सामने ज़ाहिर नहीं किया थी। जब उनका स्वयवर रचाया गया तब स्वयंवर में कई नगर के राजा और राजकुमार उपस्तिथ थे ,स्वयंवर में दुर्योधन को भी आमंत्रित किया गया था । दुर्योधन अपने मित्र कर्ण को साथ लेकर स्वयंवर में उपस्तिथ हुआ ।
समारोह शुरू होने के बाद, राजकुमारी भानुमति हाथ में माला लेकर अपने अंगरक्षकों से घिरी हुई मैदान में दाखिल हुई। स्वयवर के दौरान जब वो अन्य जगहों से आए हुए राजा और राजकुमारों से उनका परिचय ले रही थी, तब दरअसल वह अर्जुन की तलाश में थी, परन्तु अर्जुन उन्हें कही नहीं दिखे, क्यों की स्वयवर में अर्जुन शामिल ही नहीं हुए थे । इस बात से अनजान भानुमति एक-एक कर के सारे प्रतिभागियों से उनका परिचय लेने लगी और उन्हें जैसे ही प्रतिभागियों के नाम और उनके वंश के बारे में बताया जा रहा था,वह अर्जुन की तलाश में आगे भड़ी जा रही थी।
जब दुर्योधन की बारी आई, वह दुर्योधन का नाम और कुल सुनकर दूर चली गई। दुर्योधन ने इसे अपना अपमान समझा और वह इस अस्वीकृति को स्वीकार नहीं कर पाया और बेहद क्रोधित हो उठा। दुर्योधन ने राजकुमारी की खूबसूरती से प्रभावित होकर, अहंकार और क्रोध में राजकुमारी के हाथ की वरमाला अपने गले में ज़बरदस्ती पहन ली , यह देखकर वहां उपस्तिथ योद्धा और राजकुमार भी क्रोधित हो उठे।
दुर्योधन ने योद्धाओं को उसे और कर्ण को हराने की चुनौती दी और राजकुमारी को जबरदस्ती अपने रथ पर ले गया।
कर्ण ने अपने मित्र की रक्षा के लिए शेष योद्धाओं के साथ सफलतापूर्वक युद्ध किया। कर्ण ने पीछा करने वाले राजाओं को आसानी से हरा दिया और कर्ण की युद्ध क्षमता को देखकर अन्य शाही योद्धाओं ने उनका पीछा छोड़ दिया।
इस बात से भानुमति बहुत क्रोधित थी और दुर्योधन को अपने पति के रूप में स्वीकार नहीं कर रही थी, क्योंकी वो अर्जुन से विवाह करना चाहती थी।
हस्तिनापुर पहुंचने पर दुर्योधन ने अपने पितामाह भीष्म का उदाहरण दिया की कैसे भीष्म ने अपने सौतेले भाई विचित्रवीर्य के लिए काशी की तीन राजकुमारियों का अपहरण करके लाये और उनका ऐसे विवाह कराया। यह बात सुन भानुमति ने अपने भाग्य का लेखा स्वीकार कर सहमति देदी और दुर्योधन से विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात दोनो की दो जुड़वाँ संतान हुई, पुत्र का नाम लक्ष्मण और पुत्री का नाम लष्मणा रखा गया।
महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु ने लक्ष्मण का वध कर दिया , युद्ध में जब भीम के हाथों दुर्योधन की मृत्यु हो गयी तब युद्ध ख़तम होने के बाद भी कौरव और पांडव कुल के बीच में मन मुटाओ था।
तब भानुमति ने दुर्योधन के चचेरे भाई अर्जुन से विवाह करने की इच्छा ज़ाहिर की, दरअसल उस ज़माने में ऐसी प्रथा थी की पति की मृत्यु के बाद पत्नी उनके भाई से पुनः विवाह रचा सकती है, जैसे की रावण की पत्नी मंदोदरी ने विभीषण के साथ विवाह कर लिया था,और यह भी नियम था की अगर दो पक्षों के बीच विवाह कर दिया जाये तब उनके बीच की दुश्मनी कम हो जाती है।
इसी प्रकार भानुमति ने भी विवाह का प्रस्ताव अर्जुन के सामने रखा, उनके इस निर्णय के पीछे का एक मुख्या उद्देश्य यह भी था की इस विवाह के पश्चात भाइयो के बीच का बैर ख़तम हो जाये और उनकी अगली पीढ़ी आपस में प्रेम से रहे। अर्जुन ने ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और भानुमति से विवाह कर उन्हें अपनी पांचवी पत्नी बना लिया। उसके बाद दोनो कुलों में रिश्तेदारी हो गयी।कहा जाता है की कौरवों और पांडवों के बीच की दूरी भानुमति ने ही ख़तम की और वही से ये कहावत सामने आई है की किस तरह भानुमति ने कही की इट कही से जोड़ यानी कही से कोई रिश्ता कही जोड़ कर दोनो कुलबो के बीच का बैर ख़तम कर दिया