गरुड पुराण | Garud Puran
मृत्यु…! मृत्यु शब्द सुनने के बाद क्या समझ आता हैं? वही मनुष्य के जीवन का अंत.. फिर एक नए मनुष्य रूप मे जन्म। अगर हम आपसे कहे की यह बिल्कुल गलत हैं। मृत्यु एक सच्चाई हैं, जीवन एक अनंत सफर हैं! जो जीवन काल चक्र के अंदर ही रहता है!
लेकिन आज हम आपको मृत्यु, मौत, मोक्ष आखिर क्या हैं! इनकी एक भयानक हकीकत से आज आपको उजागर करेंगे। जिसे सुनने के बाद आपका दिल दहक जाएगा।
पहले ये जानना बहुत जरूरी हैं की, मृत्यु, मौत और मोक्ष का क्या मतलब हैं, जिस रूप मे आपने अपने जीवन का अंत प्राप्त किया हैं, उसकी आत्मा का परमात्मा से मिलन करना।
लेकिन यह जरूरी नहीं हैं, की आत्मा का परमात्मा तक से मिलने का सफर खूबसूरत हो। यह सफर आप ही तय करते हैं। आपने अपने जीवन मे क्या कर्म किया हैं उसका फल आपको किस तरह मिलेगा, यह तो आपको ही तय करना पड़ेगा।
स्वर्ग के बारे मे तो हम जानते हैं, की वह स्थान मनुष्य के पाप से परे हैं, एक सुंदर आरामदायक आनंद से भरी जगह हैं। तरह तरह के खूबसूरत पशु पक्षी रहते हैं। लेकिन अगर बात नरक की करे तो क्या जवाब होगा? यही जवाब होगा की बुरे कर्म करने वाले मनुष्य की आत्मा वहाँ जाती हैं, उसे मारा जाता हैं, गरम तेल मे उबाला जाता हैं। क्या बस इतना ही? हकीकत तो ये हैं की हम नरक मे बारे कुछ नहीं जानते।
और हम लोग जानेंगे भी कैसे, क्यूंकी हमने कभी गरुड पुराण\Garud Puran पड़ी ही नहीं और गरुड पुराण मे क्या हैं उसे जानने की कभी कोशिश भी नहीं करी। पहले यह जानते हैं की गरुड पुराण पढ़ने के लिए हमारे परिवार की सदस्य क्यूँ मना करते है!
इसको आप इस तरह समझिए की, क्या आपके परिवार मे कभी मृत्यु की बात होती हैं? क्या आपको बचपन मे मृत्यु के बारे मे बताया जाता हैं? साधारण सा जवाब हैं… नहीं! जीवन मे हर मनुष्य हर तरह की तैयारी करता हैं लेकिन कभी मृत्यु की तैयारी नहीं करता। उसकी वजह यह भी हैं की, हमारे सांस्कृतिक जीवन मे मौत और मृत्यु जैसे शब्दों को अशुभ माना जाता हैं। इसी वजह से गरुड पुराण को हमारे परिवार के सदस्य पढ़ने से मना करते हैं।
गरुड पुराण हमे जीवन के कर्मों के बारे मे क्या बताती हैं
गरुड पुराण\Garud Puran के पहले अध्याय मे विष्णु जी से जुड़ी गहरी बातें बताई गई हैं। लेकिन इसके दूसरे अध्याय उत्तरकाण्ड मे जीवन, मृत्यु और नरक से जुड़ी बातें बताई हैं। गरुड पुराण मे 4 दिशाओ के दरवाजों का जिक्र किया गया हैं, जिसमे पहला दरवाजा उन लोगों के लिए हैं जो साफ दिल के होते हैं, और वह लोग पूर्व दिशा के दरवाजे मे जाते हैं। दूसरा दरवाजा हैं पश्चिम दिशा का दरवाजा, जिसमे साधु संत जैसे व्यक्ति की आत्मा जाती हैं। तीसरा दरवाजा हैं उत्तर दिशा का दरवाजा हैं, जिसमे दान करने वाले व उन लोगों की आत्मा जाती हैं जो धार्मिक स्थल मे मृत्यु हुई हो। इन दरवाजों के अंदर मनुष्य की आत्मा की मुलाकात होती हैं, धर्म राज से जो आगे का सफर मे उन्हे स्वर्ग तक लेके जाते हैं।
चौथा व अंतिम दरवाजा हैं, दक्षिण दिशा का दरवाजा, जिसमे वो लोग जाते हैं जिन्होंने अपने जीवन मे पाप किया हो, लोगों को हमेशा ठेस पहुचाई हो, आसान शब्दों मे स्वार्थी लोगों को इस दरवाजे के अंदर भेजा जाता हैं। जिनमे उनकी मुलाकात होती हैं, धर्म राज के अवतार यमराज से, जो उन्हे उनके कर्मों की सजा देने के लिए नरक मे लेके जाते हैं।
अक्सर लोग अपने जीवन के कर्मों के डर से, मृत्यु के समय वाराणसी मे चले जाते हैं। मैं उसी वाराणसी की बात कर रहा हूँ, जो उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। जहाँ लोग देश-विदेश से लोग घूमने आते हैं। लेकिन एक हिसा ऐसा भी हैं, जिसे काशी के नाम से जानना जाता हैं। जहाँ लोग अपने मृत्यु के समय रहने आते हैं। माना जाता हैं, यहाँ पर आने वाले सभी लोग अपने जीवन मे करे पाप के डर से आते हैं। और वो लोग यही आकर अपनी आखिरी साँसे लेते हैं।
लेकिन क्यू? क्यूंकी कहा जाता हैं काशी भगवान शिव की बनाई हुई है, शिव जी कहते हैं काशी मे यहाँ जो भी आएगा वो अपने सारे कर्मों से मुक्ति पा लेगा। चाहे वह कोई भी हो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्ध हर जाती धर्म रंग का इंसान काशी मे एक समान हैं।
काशी मे मुक्ति भवन बना हुआ हैं जिसके अंदर दूर-दूर से आए लोग रहते हैं, माना जाता हैं जिस किसी की भी मृत्यु यहाँ होती हैं उसका जीवन मृत्यु का चक्र वही खत्म हो जाता हैं। लेकिन मुक्ति भवन की एक पॉलिसी हैं, यहाँ आने वाला इंसान सिर्फ 15 दिन के लिए रह सकता हैं, अगर इन 15 दिनों मे इंसान की मृत्यु नहीं होती हैं, तो उसे यहाँ से जाना होगा।
वाराणसी मे एक समय पर लग भाग 100 से अधिक अंतिम संस्कार होते हैं, जिस वजह से यहाँ शक्तिशाली ऊर्जा का एक अलग ही आभास होता है लेकिन यह ऊर्जा हम मामूली इंसानों के लिए नहीं होती हैं, यह एक शक्तिशाली नकारात्मक ऊर्जा होती हैं जो सिर्फ साधु ही अपनी तंत्र विध्या जैसी शक्ति पाने के लिए इस्तेमाल मे लेते हैं।
लेकिन सवाल यह उठता हैं की आखिर काशी ही क्यू? काशी मे ही क्यूँ मोक्ष मिलता हैं? इसके पीछ भी कहानी है, आईए इस कहानी गौर करते हैं। एक समय की बात हैं, काशी मे एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसका नाम था ऋषि मारकंडे, ऋषि मारकंडे के पिता ने सालों तक एक संतान पाने की तपस्या की थी। एक दिन शिव जी उनके सामने प्रकट हुए, शिव जी उनकी प्रथना को स्वीकार किया लेकिन एक ऑप्शन दिया, जिसमे शिव जी ने ऋषि मारकंडे के पिता से पूछा क्या उन्हे एक ऐसी संतान चाहिए जिसकी उम्र बहुत लंबी लेकिन वह मूर्ख हो या फिर एक ऐसी संतान जिसकी उम्र केवल 16 साल हो लेकिन वह सबसे बुद्धिमान हो।
तब ऋषि मारकंडे ने पिता ने कहा मुझे बुद्धिमान सतान चाहिए। भगवान शिव ने उनकी इच्छा पूरी करी। तब ऋषि मारकंडे की माँ के कोक से जन्म हुआ एक बच्चा। जिसका नाम रखा गया ऋषि मारकंडे, इच्छा के अनुसार वह सबसे बुद्धिमान बच्चा था, जिन्होंने बचपन से ही वेदों ओर शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने लगे। समय बीता और वह सबसे बुद्धिमान व्यक्ति के साथ साथ भगवा शिव के सबसे बड़े भक्तों मे से एक भक्त बन गए। वह इतने बुद्धिमान हो चुके थे की उन्हे अपने भाग्य के बारे मे मालूम हो चुका था, जैसे ही उनका समय 16 साल की उम्र को आने को हुआ तो वह कुछ साल पहले से ही भगवान शिव की तपस्या मे नील हो गए।
जब वह 16 साल के हुए तो उन्हे यमलोक से यम-दूत लेने आए, लेकिन ऋषि मारकंडे भगवान शिव लिंग के सामने बैठे तपस्या मे नील थे, यम दूतों ने अपना पूरा बल लगाया, लेकिन वह शिव भक्ति की भक्ति के सामने उनका जोर कम पड़ गया। यह देख कर यमराज खुद ऋषि मारकंडे की आत्मा को लेने आए।
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तब वहाँ भगवान शिव क्रोधित रूप मे प्रकट हुए, और उन्होंने अपने भक्त की रक्षा करने के लिए। अपने त्रिशूल से यमराज का सर धड़ से अलग कर दिया। ऐसे ऋषि मारकंडे को तो नया जीवन मिल गया लेकिन यमराज की मृत्यु हो जाने के कारण पृथ्वी पर मृत्यु और जीवन का संतुलन बिगड़ने लगा क्यूंकी यमराज के बिना किसी की मृत्यु होना असंभव था। किसी की मृत्यु न होने के कारण चारों तरफ असुरों, राक्षसों ओर पापियों का कहर बढ़ने लगा।
तब सभी देवताओ ने शिव जी से विनती करी की, वह यमराज को पुनर्जीवित कर दे। शिव जी ने देवताओ की बात सुनी लेकिन दो शर्तों पर पहली की यमराज ऋषि मारकंडे को बक्श दे दूसरा की यमराज व यामलोक के किसी भी दूत का काशी मे प्रवेश करना वर्जित हैं। यानि अब काशी मे कोई भी मृत्यु प्रवेश नहीं कर सकती, जिससे वहाँ मरने वालों की आत्मा यमलोक मे नहीं जा सकती। लेकिन इस वजह से उनके जीवन का चक्र वही खत्म हो जाता हैं।
लेकिन इस कारण काशी मे पापियों संख्या हद से ज्यादा बढ़ गई, ऐसे मे प्रकट हुए काशी के रक्षक काल भैरव, भगवान शिव का सबसे खौफनाक रूप। जो कोई भी पापी वहाँ जाता हैं उसका सामने शात शात सामना काल भैरव से होता हैं। इंसान की मृत्यु से कुछ सेकंड पहले काल भैरव आकर साधारण मृत्यु से कई गुना ज्यादा दर्द देते हैं, जहा एक मृत्यु मे 40,000 बिच्छुओ के काटने का दर्द होता हैं वही काशी एक पापी की मृत्यु के समय कई लाख बिच्छुओ के काटने का दर्द होता हैं और इस अनुभव को भैरवी यातना कहा जाता हैं।
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लेकिन जो इंसान काशी नहीं जा पता उसका नरक मे कैसा अनुभव होता हैं? गरुड पुराण\Garud Puran मे इस सवाल का जवाब दिया हुआ हैं। नरक हमारी सोच से कई गुना ज्यादा खतरनाक हैं, हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। गरुड पुराण मे हर एक पाप की एक सजा बताई गई हैं, जिसमे गरुड पुराण\Garud Puran हमे अलग अलग पापों और बुरे कर्मों के लिए 28 प्रकार की अलग अलग दर्दनाक दंड से भरी सजाए बताई गई हैं।
हर बुरे कर्म की एक सजा हैं जिसमे 5 सबसे भयानक सजा हैं जिसे सुनने के बाद आप सभी की रूह काँप जाएगी। आईये इन 5 भयानक दर्दनाक सजा की बात करते हैं।
जिसमे पहली सजा हैं; तमिश्रम:- यानि भयानक कोड़े की मार। यह सजा उन लोगों के लिए होती हैं जो दूसरों की धन संपत्ति को चुरा लेते हैं। इसमे यम लोक के दूत, इंसान की आत्मा को रसियों से बांध कर, तमिश्रम नरक मे भज देते हैं। जिसमे उन्हे कोड़ों से पीटा जाता हैं। उन्हे इतना मारा जाता हैं की उनकी चमड़ी से खून बहने लगता हैं और इंसान बेहोश हो जाता है। फिर जब इंसान को दुबारा होश आता हैं तो यह प्रक्रिया दुबारा दोहराई जाती हैं।
दूसरी सजा हैं कुंभीपाकम:- इस नरक मे वो लोग जाते हैं, जो लोग अपने फायदे और मजे के लिए दुसरो को नुकसान पहुचाते हैं। इसमे लोगों को एक गरम तेल के एक बड़े बर्तन मे तला जाता हैं।
तीसरी सजा हैं रौरावं:- इसमे वो लोग जाते हैं जिन्होंने दूसरों के साथ छल कपट किया हैं या उन्हे शर्मिंदा किया हैं वह लोग इस नरक मे जाते हैं। इसमे इंसान को जलती हुई कोले की जमीन मे पटक दिया हैं,जहा जलते हुए कोयले उसके शरीर को जला देते हैं और इंसान जलते अंगारों पर हर तरफ दौड़ लगाता हैं। उसके बाद उसके शरीर के जले गले हुए हिस्सों पर सांप, बिच्छू और कोवे जैसे जीवों से कटवाया जाता हैं।
चौथी सजा हैं प्राणरोधम:- इस नरक मे वो लोग जाते हैं जो, जानवरों का शिकार कर उन्हे खाते हैं। इसमे यम लोक के सेवक इंसान के टुकड़े टुकड़े करते हैं उन्हे बीच से काटा जाता हैं। जिसमे इंसान बहुत तड़पता हैं, चीखता हैं चिल्लाता हैं। उसके शरीर के अलग अलग टुकड़े हो जाते हैं। और कुछ समय बाद ये बदन के टुकड़े जुड़ जाते हैं और वही सब दुबारा दोहराया जाता हैं।
पाँचवी सजा हैं तपतामूर्ति:- इस नरक मे वो लोग जाते हैं, जो लोग किसी के साथ गैर संबंध बनाते हैं और अप्रकार्तिक योन क्रिया करते हैं, इस सजा मे यम लोक के सेवक गरम गरम कोले के अंगारों पर बांध कर जलाया जाता हैं। इस गरम गरम अंगारों की गर्मी से इन्सान का शरीर पिघलने लगता हैं। पूरे पिघले के बाद वह फिर से ठीक होते हैं और फिर यह प्रक्रिया दोहराई जाती हैं।
ये थी कुछ खौफनाक सजा यह सभी सजा कई हजारों और लाखों वर्षों तक चलती हैं। जब तक उनको उनके पापों की सजा पूरी न हो जाए। गरुड पुराण मे भगवान विष्णु बताते हैं, 84 लाख योनियों से गुजरने के बाद एक मनुष्य शरीर की प्राप्ति होती हैं।
लेकिन हम मनुष्य इसे बुरे कर्म करके बर्बाद कर देते हैं। लेकिन हम बुरे कर्म इस लिए भी करते हैं क्यूंकी हमे कभी नरक और मृत्यु के बारे मे पढ़ाया नहीं जाता। हमे बस यह बता दिया जाता हैं जैसा करोगे वैसा भरोगे। अगर कर्मों के बारे मे विस्तार से बताया जाए तो शायद नरक के द्वार पर भीड़ थोड़ी कम हो जाए।
गरुड़ पुराण में क्या लिखा है? | What is written in Garud Puran?
पाठ में ब्रह्माण्ड विज्ञान, पौराणिक कथाएँ, देवताओं के बीच संबंध, नैतिकता, अच्छाई बनाम बुराई, हिंदू दर्शन के विभिन्न स्कूल, योग का सिद्धांत, “कर्म और पुनर्जन्म” के साथ “स्वर्ग और नरक” का सिद्धांत, पैतृक संस्कार और समाजशास्त्र, नदियाँ और शामिल हैं। भूगोल, खनिजों और पत्थरों के प्रकार, रत्नों की परीक्षण विधियाँ..
गरुड़ पुराण कौन पढ़ सकता है? | Who can read Garud Puran ?
हिंदू धर्म में ऐसे कई ग्रंथ और पुराण हैं जिनका संबंध हमारे व्यवहारिक जीवन से होता है ये हमारे सोलह संस्कारों का हिस्सा माने जाते हैं और इनका पाठ जरूरी होता है। इन्हीं में से एक है गरुड़ पुराण। जब भी किसी की मृत्यु होती है तो इस पुराण का पाठ सभी परिवार के लोगों को सुनाया जाता है और इससे घर की शुद्धि होती है।
गरुड़ पुराण पढ़ने से लोग क्यों डरते हैं? | Why are people afraid of reading Garud Puran ?
क्या गरुड़ पुराण सत्य है? | Is Garud Puran true?
गरुड़ पुराण के लेखक कौन है? | Who is the author of Garud Puran ?
महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता है। कृष्णद्वैपायन वेदव्यास महर्षि पराशर और सत्यवती निषाद के पुत्र थे| महाभारत ग्रंथ का लेखन भगवान् गणेश ने महर्षि वेदव्यास निषाद से सुन सुनकर किया था। वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो क्रमानुसार घटित हुई हैं।