रावण की बेटी, जिसे हनुमान जी (Hanu man ji) से हो गया था प्रेम।
रामायण कितनी सुंदर कथा हैं न? जिस रामायण को हम पढ़ते है उसमे हमे बताया गया हैं की आखिर कैसे बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी, आखिर कैसे भगवान राम ने रावण का वध किया था। Hanu man ji
लेकिन क्या हम जो रामायण पढ़ते हैं क्या वह काफी हैं या ऐसा भी कुछ हैं जिसके बारे मे हम नहीं जानते। हमरे देश मे जिस तरह रावण को बुराई का प्रतीक बताया गया हैं और भगवान राम को अच्छाई का प्रतीक बताया गया हैं, वैसे ही भारत के अलावा कई जगह पर रावण को इतना अच्छा तो नहीं लेकिन एक सर्व ज्ञानी ब्राह्मण बताया गया हैं। और हमारे भारत देश मे राम को अच्छाई का प्रतीक की कैसे भगवान राम ने रावण का घमंड तोडा और उसका सर्वनाश किया।
लेकिन भारत के अलावा अन्य कई देशों मे रामायण को अलग तरीकों से लिखा गया हैं, जिस तरह हमारे देश मे भगवान राम को इतना महत्व दिया गया हैं उसी तरह अन्य देशों मे भी रामायण मे रावण को भी उतना ही महत्व दिया गया हैं जितना भारत मे भगवान राम को दिया गया हैं।
आज के इस लेखन मे हम आपको अन्य देश की रामायण का एक छोटा सा किस्सा बताएंगे, तो चलिए शुरू करते हैं;
क्या आप लोग रावण की बेटी के बारे मे जानते हैं? बहुत से लोग कहेंगे नहीं, क्यूंकी हम सभी ने रावण के 7 पुत्रों के बारे मे ही सुना हैं, और रावण की पुत्री के बारे मे हमे भारतीय रामायण मे काभी इनके बारे मे बताया ही नहीं गया और अगर बताया गया हैं तो उनकी ज्यादा जानकारी हमारे पास नहीं हैं।
लेकिन वाल्मीकि रामायण के रामायण को दक्षिण भारत ही नहीं, बल्कि कई देशों में अलग-अलग तरह से लिखा गया और इनमें से ज्यादातर रामायण में श्रीराम के साथ-साथ रावण को भी काफी महत्व दिया गया है। यही वजह है कि श्रीलंका, इंडोनेशिया, मलेशिया, माली, थाईलैंड और कंबोडिया में भी रावण को पूरा महत्व दिया जाता है।
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थाईलैंड की रामकीन रामायण और कंबोडिया की रामकेर रामायण में रावण की पुत्री का जिक्र किया गया है। आइए जानते हैं कौन थी रावण की बेटी जिसे हनुमान जी से हो गया था प्रेम…
रामकियेन और रामकेर रामायण के अनुसार, रावण के तीन पत्नियों से 7 बेटे थे. पहली पत्नी मंदोदरी से दो बेटे मेघनाद और अक्षय कुमार थे, दूसरी पत्नी धन्यमालिनी से अतिकाय और त्रिशिरा नाम के दो बेटे थे और तीसरी पत्नी से प्रहस्थ, नरांतक और देवांतक नाम के तीन बेटे थे।
रामकियेन और रामकेर रामायण के अनुसार रावण की एक बेटी थी जिसका नाम, सुवर्णमछा या सुवर्णमत्स्य था, अगर इनके स्वरूप की बात की जाए तो वह बहुत ही सुंदर थी। इनका आधा शरीर मछली और आधा शरीर एक स्त्री का था जिसे आज के समय मे हम जलपरी के नाम से जानते हैं। इनका शरीर सोने के समान चमकता था जिस वजह से उसे सुवर्णमछा भी कहा जाता हैं, जिसका मतलब हैं एक सुंदर सोने की मछली।
और थायलैंड और कॉम्बोडिया के लोग रावण की बहन को एक जलपरी के स्वरूप मे पूजते हैं। और पिछले समय काल की बात करे तो, एक बार तो सुवर्णमछा को हमारे राम दूत महाबली हनुमान जी से भी प्यार हो गया था। जी हाँ… रामकियेन और रामकेर रामायण के अनुसार सुवर्णमछा को हनुमान जी से प्यार हो गया था। इसके पीछे एक कहानी है आईये उस कहानी पर भी गौर करते हैं।
जब राम सेतु का निर्माण हो रहा था, तब वानर सेना राम सेतु के लिए पत्थर डाल रहे थे, तब वह वापिस जाकर और पत्थर लेकर आए, लेकिन जो पत्थर उन्होंने पहले डाले थे वो गायब होते जा रहे थे। ऐसे मे सभी चिंतित हो गए और फिर भगवान राम ने इस विषय पर हनुमान जी से बात करी।
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तब हनुमान जी ने समुद्र के नीचे जाने का फैसला किया, और जब वह पानी मे उतरे और उन्होंने देखा पानी के अंदर रहने वाले जीव यह पत्थर लेके कही जा रहे हैं। फिर हनुमान जी ने उन्हे रोकने का प्रयास किया लेकिन वे नहीं रुके फिर हनुमान जी ने उनसे युद्ध किया कुछ को हराने के बाद और कुछ पानी मे रहने वाले जीव पानी की घेराई मे चले गए फिर हनुमान जी ने उन सभी का पीछा किया।
पीछा करने के बाद उन्हे पानी के नीचे सुवर्णमछा मिली, तब हनुमान जी को मालूम पड़ा इन सब का कारण सुवर्णमछा ही हैं। फिर हनुमान और सुवर्णमछा के बीच एक युद्ध हुआ, जिसमे सुवर्णमछा युद्ध के दौरान हनुमान जी की तरफ आकर्षित होने लगी जब हनुमान जी को यह ज्ञात हुआ की सुवर्णमछा उनकी तरफ आकर्षित हो रही हैं, तब उन्होंने युद्ध को धीमा किया और बात करने का प्रयास किया तब सुवर्णमछा ने उनकी सुनी और दोनों समुद्र तल पर आ गए।
जब हनुमान जी ने उनके ऐसा करने का कारण पूछा, तब हनुमान जी को मालूम पड़ा जिससे वह लड़ रहे हैं वह दरअसल रावण की बेटी हैं, तब हनुमान जी ने प्यार से सुवर्णमछा को समझाया की वह रावण से सीता को बचाने जा रहे हैं, और रावण ने कितने बुरे बुरे कर्म किए हैं। और वहाँ पहुचने के लिए यह राम सेतु का निर्माण कर रहे है।
जब सुवर्णमछा को समझ आया की उनके पिता रावण ने कितने बुरे कर्म किए हैं, ऐसे मे सुवर्णमछा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने हनुमान जी से माफी मांगी और सारे पत्थर लौटा दिए। उसके बाद सुवर्णमछा वापस समुद्र की घेराई मे चली गई। और हनुमान जी वापस अपने प्रभु राम जी के पास पहुच गए।
ऐसे हनुमान जी के सहारे राम सेतु का निर्माण पूरा हो सका, और भगवान राम और लक्ष्मण माता सीता को रावण के चंगुल से छुड़ा पाए।