चमत्कार… आखिर क्या हैं चमत्कार, आसान भाषा मे बोले तो चमत्कार और कुछ नहीं हमारे भगवान ही हैं। नहीं नहीं! यह किसी भगवान का नाम नहीं हैं, चमत्कार शब्द तो बहुत छोटा शब्द हैं लेकिन इसका स्वरूप इस ब्रह्मांड की हकीकत से भी बड़ा हैं। bhagwan ke ye murti
और हमारे सनातन धर्म मे चमत्कार होना बहुत ही छोटी बात हैं।, लेकिन अगर यही चमत्कार किसी इंसान को लाभ दे, तो वह बहुत ही बड़ी बात हैं, आसान शब्दों मे चमत्कार को अनुभव व महसूस करना बहुत बड़ी बात हैं।
आईए जानते हैं एक अनोखे चमत्कार के बारे मे, आज हम आपको लेकर आए हैं भारत के रहस्यमयी और चमत्कारी स्थल की यात्रा पर। आज, हम बात करेंगे ‘पलनि का मुरुगन स्वामी मंदिर’ के बारे में, जहां एक चमत्कारी मूर्ति है जो 9 जहरीले पदार्थों से बनी है।
तो चलिए शुरू करते हैं, और जानते हैं “पलनि का मुरुगन स्वामी मंदिर” के बारे मे।
पलनि का मुरुगन स्वामी मंदिर, मंदिर के नाम मे मुरूगन स्वामी और कोई नहीं, यह हमारे महादेव(Mahadev) और माता पार्वती (Mata parvati)के पुत्र कार्तिके(kartike) का नाम ही हैं। और यह मंदिर कार्तिके स्वामी को ही समर्पित है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के मदुराई के उत्तर-पश्चिम में पायी जाने वाली पलानी पहाडियों के दक्षिण-पूर्व से 100 किलोमीटर की दुरी पर डिंडीगुल के पलानी गाव मे स्थित है और यह मंदिर सबसे प्रसिद्ध एवं सबसे विशाल मंदिरो मे से एक मंदिर माना जाता है।
अब जानते हैं इस मंदिर का इतिहास, एक समय की बात हैं जब महर्षि नारद मुनि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव (bhagwan shiv) को एक ज्ञानफलम् यानि एक ज्ञान का फल देने आए थे, तब भगवान शिव फल को ग्रहण करते उससे पहले उनके दोनों पुत्र भगवान गणेश(bhagwan ganesh) और कार्तिके ने कहा की यह फल हमे खाना हैं। ऐसे मे भगवान शिव ज्ञान का फल गणेश और कार्तिके को देने लगे। महर्षि नारद मुनि ने भगवान शिव को रोकते हुए कहा की यह फल आप किसी एक को ही दे सकते हैं। इसके 2 हिस्से करने से इस फल की ताकत खत्म हो जाएगी।
Mahadev Silver Pendants पर स्पेशल ऑफर
तब भगवान शिव (bhagwan shiv) ने निर्णय लिया की यह फल किसी एक को तब ही मिलेगा जो इस संसार के 3 चक्कर लगा कर सबसे पहले मेरे सामने आएगा। यह सुनकर कार्तिके स्वामी बड़े प्रसन्न हुए और अपने वाहन मोर के साथ इस संसार के चक्कर लगाने निकल दिए। ऐसे मे भगवान गणेश(bhagwan ganesh) बड़े परेशान हुए क्युकी वह अपने वाहन चूह से इस संसार का चक्कर नहीं लगा सकते।
भगवान गणेश सोच ही रहे थे के तभी वह उठे और अपने माता पिता यानि भगवान शिव और माता पार्वती के चक्कर लगाने लगे। 3 चक्कर लगाने के बाद वह खुश हुए और कहने लगे मैंने सबसे पहले चक्कर लगाए। तब भगवान शिव, भगवान गणेश से सवाल करते हैं, गणेश तुमने 3 चक्कर कैसे लगाए? तब भगवान गणेश ने मुस्कुरते हुए जवाब दिया की मेरा संसार आप ही दोनों हैं, इस हिस्साब से सबसे पहले 3 चक्कर मैंने ही लागए।
Also read: बढ़ती मूर्ति जो दे रही हैं संकेत कलयुग के अंत का
भगवान शिव यह सुनकर बहुत पप्रसन्न हुए और उन्होंने गणेश की जीत मे वह ज्ञान का फल भगवान गणेश को दे दिया। जब कार्तिके वापिस लौटे तो वह यह सब जानने के बाद कार्तिके अति क्रोधिक हो चुके थे, और तब उन्हे एहसास हुआ की उन्हे लड़कपन से परिपक्व बनने की जरुरत हैं। तब उन्होंने कैलाश पर्वत छोड़ दिया और पलनि के शिवगिरि पर्वत (Shivgiri parvat) मे ही एकांत में रहने की ठानी और तपस्या करने लगे।
आईए अब जानते हैं मंदिर के निर्माण के बारे मे;
मंदिर का निर्माण 5वीं-6वीं शताब्दी के दौरान चेर वंश के शासक चेरामन पेरुमल ने करवाया था। कहा यह भी जाता है कि जब पेरुमल ने पलनि की यात्रा की तो उनके सपनों में मुरुगन स्वामी यानि कार्तिके आए और पलनि के शिवगिरि पर्वत पर अपनी मूर्ति के स्थित होने की बात राजा को बताई। राजा पेरुमल ने खोज-बिन करी तो वाकई उस स्थान पर कार्तिकेय स्वामी की मूर्ति मिली। जिसके बाद पेरुमल ने उस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया। इसके बाद चोल और पांड्य वंश के शासकों ने 8वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान मंदिर के विशाल मंडप और गोपुरम बनवाए। मंदिर को सुंदर कलाकृतियों से सजाने का काम नायक शासकों को दिया।
मुरुगन स्वामी की मूर्ति मे 9 तरीकों के जहर पाए गए हैं, जी हाँ जहर..! एक ऐसा पदार्थ हैं अगर कोई सेवन करे, तो उसकी मृत्यु निश्चित हैं! कुछ जहर ऐसे भी होते हैं जिन्हे कम मात्रा मे लेने भर से आपकी मृत्यु हो सकती हैं। सोचिए अगर ऐसे 9 जहर आप निगल जाए तो क्या होगा? साधारण जवाब, मृत्यु… वही अगर मैं आपसे कहता हूँ की आपकी मृत्यु नहीं बल्कि हो रही सारी बीमारियाँ भी खत्म हो जाएंगी। जब इस मूर्ति पर दूध, चंदन, शैहद का अभिषेक होता हैं तभी उसे भक्तों को प्रशाद के तौर पर दिया जाता हैं।
शोधकर्ताओं ने जब मूर्ति को अच्छे से तराशा तो उन्हे मालूम पड़ा की यह मूर्ति तो बेहद 9 तरीकों के जहरीले पदार्थ से बनी है। लेकिन जब यह पदार्थ आपस मे मिलते हैं तो एक एसी औसधी बनाते हैं, जिसके सेवन से हर रोग दूर हो जाते हैं। वही दूसरी तरफ एक इसके पदार्थ को आप अलग अलग कहते हैं तो आपके चकने भर से मृत्यु हो जाएगी। अब यह विज्ञान हैं या चमत्कार इसका फैसला अब आप पर हैं। bhagwan ke ye murti
अगर आप सभी इस मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको इस मंदिर को अपना पूरा एक दिन देना पड़ेगा। यानि इस मंदिर मे हो रही पूजा सुबह 6:30 बजे से रात को 8 बजे तक होती हैं और यह पूजा 6 तरीकों से होती हैं। जिनको अलग अलग समय पर बाटा गया हैं जो कुछ इस प्रकार हैं;-
- विला पूजा – सुबह 6.30 बजे
- सिरु काल पूजा – सुबह 8 बजे
- काला संथी – सुबह 9 बजे
- उत्चिक्कला पूजा – दोपहर 12 बजे
- राजा अलंकारम – शाम 5.30 बजे
- इराक्काला पूजा – रात 8 बजे